Kahanikacarvan

इंतज़ार

जब मेरे पास रहते
ढ़ेरों सवाल जवाब
और जब,
इंतज़ार रहता 
तुम्हारे प्रत्युतर का 
तब उस शुष्क पहलू में
नामों की कतार में
सबसे पीछे खड़ी 

देर तक करती ,मैं
तुम्हारा इंतज़ार
और आने तक अपनी बारी
देखती ढ़ेरों सराब
पलकों पर मोती सजाती
होठों को नम करती
और निराशंक जीवन की कल्पना 
में डूबती उबरती
पर,ज्योंहि 
पहुँचती तुम तक
शब्द सीने में दुबक जाते
मन शिथिल हो जाता
निरीह वेदना घेर लेती मुझको
और तब,
वापस जाती भीड़ में
मैं खुद को
कर लेती गुमनाम ||

@अर्चना ठाकुर

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