
इस कदर प्यार है – 10
नर्स की बात सुनने के बाद देव का तो चेहरा ही उतर गया था। वह समझ नही पा रहा था कि आगे आखिर क्या वह कर सकेगा। वही कार्तिक उसे बाहर ले जाते हुए कहता है –
“चल भाई ये तो पुलिस का काम है – हम अपना काम कर चुके – अपने को क्या करना आगे !!”
कार्तिक की बात जैसे देव ने सुनी ही नही वो अपनी ही धुन में बोल उठा – “यार ये कैसे रखे है यहाँ – यहाँ कोई ठीक भी होगा उलटा और बीमार हो जाएगा – ये उसे प्राइवेट हॉस्पिटल क्यों नही भेज देते !”
कार्तिक हतप्रभ उसको सुनता रहा |
“और ये सिक्योरटी बोलते है – साला एक कुत्ता भी भौक दे तो वो कांस्टेबल हार्ट अटैक से मर जाए – कैसे काम करते है ये लोग – जब नीमा का केस अखबार में निकला था तब कितनी बड़ी बड़ी बात बोल रहे थे नेता – अब कोई नही आ रहा उसको देखने जबकि अभी उसे ख़ास ट्रीटमेंट की जरुरत है |”
कार्तिक फटी आँखों से उसे देखता रहा और देव धाराप्रवाह झल्लाता रहा – “पागल है सारे – मैं उसे ऐसे नही रहने दे सकता – ये तो जिन्दा उसे मार देंगे – कुछ तो करना होगा भाई |”
“देव यार तुझे हुआ क्या है – कही तुझे उस लड़की से प्यार व्यार तो नही हो गया – देख मेरे भाई हाँ मत बोलियों वरना अपना हार्ट अटैक हो जाएगा – एक तू ही मेरा दोस्त है वो भी किसी और का हो गया तो मेरा क्या होगा !!”
कार्तिक सच में देव की आँखों को पढने की कोशिश करने लगा जहाँ कुछ बदले हुए भाव थे जिन्हें अभी तक वह देखकर भी अनजान बना हुआ था|
कार्तिक का डर साकार रूप में उसके सामने था और देव की नज़र वार्ड की ओर जाते एक वार्ड बॉय की ओर थी| कार्तिक देखता रह गया और देव उसके पास दौड़ कर पहुँच गया|
देव उससे इल्तिजा कर रहा था और वार्ड बॉय अपनी खाली पॉकेट पर हाथ डालता एक नज़र कार्तिक की ओर देखता तो दूसरी नज़र देव पर डालता है, ये समझते देव जल्दी से अपनी पॉकेट में हाथ डाल कुछ ढूंढने लगता है पर कुछ चिल्लर नोट के अलावा उसके हाथ कुछ नही आता तो उसी फुर्ती से वह कार्तिक के पास आता उसकी पॉकेट में हाथ डाल जो हाथ आता है उसे मुट्ठी में लिए फिर वार्ड बॉय की तरफ बढ़ता सब उसकी पॉकेट के हवाले करता हुआ उसके सामने खड़ा हो जाता है| वार्ड बॉय अब तक उनकी मंशा जान चुका था इससे बिना लाग लपट के वह बोलता है –
“देखो भाई ये है अंडर पुलिस केस – ज्यादा कुछ तो कर नहीं सकता हाँ इतना बता दूँ लड़की ठीक है और अगर कोई रिश्तेदार ने दावा नही किया तो इसे जल्द ही सुधारगृह भेजने वाले है |”
“ठीक है !! मतलब अभी कहाँ ठीक है उसे खास इलाज की जरुरत है |”
“तो भाया ये सरकारी अस्पताल है इतना ही हो पाएगा – देखा जाए तो लड़की अभी तक बोली भी नही कुछ तो क्या करे – आए कोई रिश्तेदार ले जाए और कराए इलाज बाकि यहाँ कुछ नर्स को दे दोगे तो जब तक यहाँ रहेगी उसका थोडा अलग से ख्याल रख लेगी बस |” वार्ड बॉय अपना आखिरी शब्द यूँ खत्म करते वहां से ऐसे निकलने लगा जैसे इतने पैसे का इतना ही बोलना बनता है| देव उसे रोकता रह गया पर वह आगे बढ़ गया|
कार्तिक हैरान सारा माजरा देखता रहा कि कैसे अब वह आती नर्स से प्रार्थना कर रहा था और वह भी इधर उधर नज़र घुमाकर जैसे उसकी बात को अनसुना कर रही थी तब बचे कुछ नोट उसकी ओर बढ़ाता आँखों से इल्तिजा दोहराता अब वह आखिरी नज़र नीमा की ओर डालता थके क़दमों से बाहर निकल रहा था| उस पल कार्तिक को लगा ये साथ चल रहा शख्स उसका यार तो कतई नही है| वह शब्दों से अपनी नाराजगी बयाँ कर उठा –
“ये ठीक नही है – तूने वादाखिलाफी की है दोस्ती में |”
एकदम से कार्तिक की बात से अनभिग्यज्ञ देव हैरान नज़रों से उसकी ओर देखता हुआ पूछता है –
“कैसी वादाखिलाफी ?”
“तू प्यार व्यार में नही पड़ सकता तूने वादा किया था |”
“अबे कब किया वादा मैंने ?”
“जब मेरी कोई गर्ल फ्रेंड नही तो तेरी कैसे हो सकती है यही मौन वादा हुआ था अपने बीच – सब बोलकर थोड़े ही कहा जाता है |”
कार्तिक की बात सुन देव हँसे बिना न रह सका |
“अबे जल रहा है मुझसे ?”
ये सुनते कार्तिक तुरंत फट पड़ा – “अबे जल नही रहा तरस खा रहा हूँ – जिस लड़की के लिए तू अपनी जान हथेली में लिए घूम रहा है वो तुझे जानती भी नही और तू भी उसे कितना जानता है बस दूर से देखा भर ही है – कल को ठीक हो गई और तुझे मालूम पड़ा कि उसका किसी और से कोई चक्कर फिट है तो क्या करेगा तू – बता !!”
उस एक पल देव के चेहरे से हँसी गुम हो गई जिससे वह बेहद सपाट स्वर में कहता आगे बढ़ गया –
“तब भी मैं उसकी भलाई चाहता रहूँगा बस -|”
घर वापस आते वह उसी मनोभावों में लिपटा उदास बना रहा आखिर उसके बस में था ही क्या, वह रोजाना हॉस्पिटल जाता और नर्स को कुछ दे लेकर बस दूर से ही नीमा को देखकर वापिस आ जाता| उसकी आँखों की दुआ में वक़्त से ढेर गुजारिश थी उस नीमा के लिए जिसे वह शायद अभी ठीक से जानता भी नही था फिर भी एक अजब खिचाव सा महसूस करता था उसके साथ वह, नयन भर दूर से ही वह देख लेता और हाथ में लिए उस लॉकेट से मौन प्रार्थना कर लेता| माँ देव का मन पढ़ रही थी, उसकी उदासी उनसे छिपी न रही| ऐसे किसी उदास दोपहरी में वे देव के पास आती उसका सर सहलाती पूछ रही थी – “कैसी है नीमा ?”
“ठीक नही लगती माँ |” अकस्मात् उनके प्रश्न का उत्तर देता देव कुछ पल को माँ का चेहरा देखता रह गया, आखिर माँ कैसे अपने बच्चों का मन पढ़ लेती है, न कोई भूमिका न प्रश्न सीधा प्रतिउत्तर !!
माँ भी बेटे का चेहरा निहारती मानों कहना चाहती थी कि आखिर हो न मेरा हिस्सा तो कैसे तुमसे अनजान रह सकती हूँ, देव माँ का हाथ थामे कह रहा था – “माँ वहां कुछ भी ठीक नही है – सब खानापूर्ति हो रही है – आप देखिए ये वीडियो बड़ी मुश्किल से वार्ड बॉय से मंगवाया है |” कहता हुआ देव मोबाईल का स्क्रीन उनकी आँखों के सामने कर देता है जिसमे वे देख रही थी जो शायद नीमा ही थी एकदम दुबली सी बिस्तर के कोने में सिमटी एक काया, उस दो मिनट के वीडियो में वह एक बार भी अपने स्थान से जरा भी न हिली न सर ही उठाया मानों जमी में धसने जा रहा हो उसका समस्त अस्तित्व !!
“कैसा कानून है जो उसके जीवन को बर्बाद करने का जिम्मेदार है अभी भी उस पिता के पास है उसकी कस्टीडी – जिसे खुद की खबर नही वो क्या उसकी देखरेख करेगा और ऊपर से कह रहे है कि कुछ दिन बाद अगर कोई रिश्तेदार नही आया तो उसे सुधारगृह भेज देंगे – सब कितने मतलबी और बेगैरत है – उस दिन उसकी मौसी आई थी – उनसे मिलकर लगा अब शायद उन्हें अपने किए पर पछतावा हो रहा होगा लेकिन दुबारा फिर उसे देखने भी नही आई – उसे इस वक़्त उनके साथ की जरुरत है आखिर कैसे खुद को फिर से वह इस दुनिया में सामान्य बना पाएगी !!”
देव की दिल की बेचैनी उसके शब्दो से झलक रही थी।
देव की व्यग्रता माँ का ह्रदय अच्छे से समझ गया वह उसे सांत्वना देती कह रही थी – “ये तो नियम है बेटा आखिर जो कुछ तुम्हारे बस में था तुम कर चुके अब क्या कर सकते हो !”
“माँ मैं उसका इलाज करवाना चाहता हूँ ताकि वह फिर से अपना सामान्य जीवन जी सके बस |”
“लेकिन ये तुम्हारे अधिकार क्षेत्र में नही है – |”
“क्यों !!!” उसके शब्द उसके तालू में तड़प उठे|
“जब तक उसके पिता क़ानूनी रूप से उसकी कस्टीडी किसी को नही सौंप देते तो आखिर कैसे संभव होगा ये ?”
“माँ मैं बस उसके इलाज भर तक ये चाहता हूँ तो क्या गलत हूँ मैं ? क्या इसका कोई तरीका नही माँ !!”
माँ कुछ पल उसक चेहरा देखती रह गई| खामोश गुजारिश उनकी आँखों के कोरों में तड़प रही थी जिसे वे देखकर भी आखिर कैसे अनदेखा कर सकती थी !!
“एक तरीका है – हमारे गुरूजी का आश्रम – वो तो सभी दुखियों की पनाहगाह है तो अगर उसके पिता क़ानूनी रूप से इसकी सहमति दे दे तो वहां उसका इलाज भी हो जाएगा और देखभाल भी |”
“क्या सच में माँ – ऐसा हो सकता है ?”
माँ भी उसका उत्साह देख बस मुस्कराती हाँ में सर हिलाती है|
“ठीक है – मैं आज ही किसी वकील से बात करता हूँ – थैंकू माँ – आप सच में दुनिया की सबसे अच्छी माँ है |” वह अतिउत्साह में माँ का हाथ चूमता तुरंत ही उठकर बाहर चल देता है| माँ भी बस मुस्कराती देखती रह गई|
उसके मन की ख़ुशी संभाले नही संभल रही थी क्योंकि अगर ऐसा हो जाएगा तो वह नीमा को करीब से जान भी पाएगा और उसका ध्यान भी रख सकेगा, ये खुशखबरी देने वह उसी वक़्त कार्तिक के घर पहुँच गया था|
देव अपनी सपनीली दुनिया की आभासी ख़ुशी में सराबोर कार्तिक के कमरे तक पहुँच गया, वह अभी बाथरूम से तौलिया पहने निकला ही था पर देव ने आव देखा न ताव झूमता हुआ उससे लिपट ही गया इससे अचकचाता कार्तिक अपनी तौलिया को पकडे उसे रोकता ही रह गया|
“अबे ख़ुशी में झूमता सरे बाज़ार मेरा झूलुस निकालेगा क्या !! छोड़ मुझे अभी नहा कर आया हूँ |”
“आज तेरा सातवां दिन हो गया क्या – कैसे नहा लिया तू !!” देव कसकर मुस्कराते हुए बोला|
“अरे तीन दिन पहले ही नहाया था पर क्या करे अम्मा पीछे पड़ गई आज गणपति विसर्जन है अगर आज नही नहाया तो रात में ठन्डे पानी की बाल्टी डाल देगी – क्या करता बे नहाना पड़ा पर तू इतना खुश क्यो है ?”
“क्यों तेरे को जलन हो रही है क्या ?” देव के शब्द भी मानों उसके होठों पर थिरक रहे थे|
“बोल तो ऐसे रहा है जैसे तेरी नीमा ने तुझे आई लव यू बोल दिया हो !!”
ये सुनते देव के चेहरा कुछ अलग सा हो गया मानों सच में उस अहसास से उसका रोम रोम झूम उठा हो| तभी तेज ढोल की आवाज चारोंओर गूंज उठी, आवाज का अहसास पाते दोनों एकसाथ खिड़की के बाहर झांकते है जहाँ उन्हें गणपति विसर्जन को जाती अटूट भीड़ का टुकड़ा झूमता हुआ दिखता है| ये देख देव कार्तिक को बाहर आने को बोलके सड़क तक आता है, कार्तिक देव को देखता रह गया, वह ख़ुशी में झूमता अब उस भीड़ का हिस्सा बन गया था| जब तक कार्तिक कपड़े पहनकर आया तब तक गणपति को अपने सर पर उठाए नाचता झूमता देव भीड़ के आगे आगे चल रहा था| देव में कुछ तो बदल रहा था जिसे देखते कार्तिक की नज़रे अपना एतराज़ दिखाती उससे विरक्त हो उठी थी|
विसर्जन से होकर देव कार्तिक को लिए वकील से कोई पेपर बनवा कर जेल रोड की तरफ चला था, आज देव के चेहरे पर उम्मीद की अलग ही ललक दिखाई दे रही थी जबकि कार्तिक का बिलकुल मन नही था फिर भी उसे देव के साथ रहना ही था, वह बार बार बडबडाता रहा कि क्या दिन आ गए उस लड़की की वज़ह से कभी हॉस्पिटल तो कभी जेल के चक्कर लग रहे है| लेकिन इस सबसे विरक्त देव को बस नीमा की धुन सी सवार थी| वह जेल अधीक्षक के सामने सारे पेपर दिखाते अपनी माँ को यहाँ आने के लिए फोन लगाता है, जब तक वे आती देव जेल अधीक्षक के इंतजार में उनके ऑफिस के बाहर बेचैनी में चक्कर लगा रहा था| आने वाले वक़्त से उसे बहुत उम्मीद थी, उसके मन में विश्वास का दीया जल रहा था कि अब वाकई वह नीमा के लिए कुछ कर पाएगा| कार्तिक मन मारे बैठा इधर उधर देखने लगा तभी किसी भीड़ पर उसकी नज़र गई, वह भीड़ किसी डेड बॉडी को स्ट्रेचर में लिए बाहर की ओर जा रही थी, उस भीड़ में सफ़ेद कोट वाले से लेकर काले कोट वाले भी मौजूद थे| दोनों उस ओर नज़रे घुमाए देखते रहे| खैर ये यहाँ का आम दृश्य हो सकता है पर दोनों काफी देर उस भीड़ को बाहर निकलते देखने के बाद कोई पुलिसकर्मी अब उन्हें अपनी ओर आते देखते है| देव उस कागज को दिखाने बेसब्र होता उसकी ओर बढ़ जाता है जबकि कार्तिक निर्विकार भाव से बैठा सब देख रहा था| देव अपनी बात समझाता हुआ नीमा के पिता से मिलने का पूछता है तो पुलिसकर्मी साफ़ इंकार कर देता है ये सुन देव का चेहरा उतर जाता है फिर वह मन ही मन वकील को बुलाने का सोच ही रहा था कि पुलिसकर्मी कहने लगा –
“जो है नही उससे मिलकर क्या करोगे – अभी तो लाश की तरह बाहर गया है – कल रात उसके बाप की ह्रदय गति रुक जाने से आकस्मिक म्रत्यु हो गई -|”
“क्या !! ऐसे कैसे हो गया ?”
काटो तो खून नही जब उस इन्सान की जरुरत थी तभी उसकी रुक्सती हो गई, अब वह क्या करेगा !! एक निराशा का भाव उसके चेहरे पर आवंटित हो गया| ये भी आखिर क्या होनी थी जब जिन्दा था तब भी नीमा के लिए उसके बाप ने कुछ नही किया और जब कर सकता था तो हमेशा के लिए चल दिया अब नीमा का क्या होगा !! वह कहाँ जाएगी !!
देव भारी क़दमों से बाहर निकल आया जबकि कार्तिक के चेहरे के भाव कुछ और बता रहे थे, वह खुश था कि अब नीमा नाम के जंजाल से छुटकारा मिला क्योंकि अब पुलिस उसे सुधार गृह भेज देगी जहाँ देव उससे कभी नही मिला पाएगा| जेल रोड तक पहुंचे वे बाइक पर सवार ही होने वाले थे कि गणपति विसर्जन की एक और भीड़ उधर से गुजरी जिसे उदास भाव से देव ताकता रहा तो कार्तिक उछलते हुए उस भीड़ में शामिल हो कर झूमने लगा| वक़्त और हालात दोनों दोस्तों के दिलों पर अलग अलग गुजर रहे थे, उम्मीदे और ख्वाहिशो की अलग अलग छतरी के नीचे वे एक साथ खड़े थे पूरी तरह से निर्लिप्त…
क्रमशः……..