Kahanikacarvan

इस कदर प्यार है – 11

रास्तों की उम्मीद भी खत्म हो चुकी थी इससे निराश देव वापस घर आ गया| माँ उसकी निराशा समझ रही थी लेकिन किसी के हाथ में कुछ भी नही था| देव हास्पिटल आकर उदास भाव से बस दूर से नीमा को निहार रहा था कि उसकी नज़रों के छोर पर मौजूद नीमा का चेहरा किसी बुत की तरह उदासी में लिपटा कितना निर्लिप्त था उससे, क्या कभी वह उसे इस उदासी की गहनता से बाहर निकाल पाएगा !! क्यों वक़्त उसके हालातों पर रहम नही खा रहा !! कितनी देर यूँही दर्द की झाइयों में लिपटा देव दरवाजे की ओट लिए उसे निहारता रहा जो शायद ही उसकी स्थिति से वाकिफ थी| देव को यूँ खड़ा देख नर्स एक दो बार वहां से गुजरी और उड़ती नज़र देव पर डालती गई|

“सिस्टर !” अबकी नर्स के गुजरते देव उसे आवाज देकर रोकने का प्रयास करता है|

“बोलो |”

“सिस्टर डॉक्टर कब आ रहे है – उसकी तबियत कैसी है पूछनी थी |” हिचकिचाते शब्द से वह किसी तरह से बोलता है|

नर्स एक क्षण रूककर उसका चेहरा ध्यान से देखती हुई कहती है – “तुम किस लिए इस लड़की के लिए परेशान हो !! तुमने मदद की अब इसके अलावा क्या कर सकते हो !! इसका बाप भी नही रहा और कोई रिश्तेदार भी नही तो उसको सुधारगृह भेजना ही पड़ेगा न – मैं पूरा दिन देखती हूँ कि बस यहाँ आकर उसको तुम निहारता रहता है – अरे वो लड़की तो अपने में ही खोई रहती है न किसी से बोलना न देखना बस जो मिला खाया और आंख खोले पड़े रहना फिर तुम क्यों अपना समय ऐसी लड़की पर बर्बाद कर रहे हो !!”

नर्स की तल्खी का देव के पास शायद कोई माकूल जवाब नही था इसलिए वह चुपचाप खड़ा उसे सुनता अपने हाथ में पकडे लॉकेट को देखता रहा, उसे चुप देख नर्स उसके आगे हाथ फैलाकर लॉकेट देने का इशारा करती है तो देव हैरानी से चुपचाप लॉकेट उसके हाथ में रख देता है, उसे लिए नर्स अन्दर जाती हुई कहती है – “तुम्हारी माँ की उम्र की हूँ तो जो ठीक लगा समझा दिया अब बाकि तुम जानो कि क्या करना है – डॉक्टर अभी आते होंगे इंतजार करो |”

देव देखता रहा कि नर्स लॉकेट लिए नीमा के गले में बांध रही थी, ये देख देव की ऑंखें मुस्करा उठी पर नीमा किसी बुत की तरह वही पड़ी रही|

डॉक्टर के आते देव नीमा का हाल लेने उनके पीछे जाता है पर वे उसको इंतजार करने को कहते राउंड लेने निकल जाते है, वे राउंड लेकर वापस आते उसे वही खड़ा इंतजार करते देख उसे अपने केबिन में बुलाते है|

“बैठो |”

इत्मीनान से बैठे डॉक्टर उसे बैठने को कहते है|

“डॉक्टर साहब मैं…|”

“जानता हूँ किसके बारे में जानना चाहते हो – वह फिजक्ली ठीक है पर अभी बस उसका मानसिक पक्ष ठीक होना है मतलब कि काउंसलिंग हो तो उसकी चुप्पी टूटे अभी बहुत गुमसुम रहती है अब सरकारी अस्पताल से इससे ज्यादा क्या हो सकता है फिर भी उसको जल्दी ही डिस्चार्ज मिल जाएगा |”

देव चुपचाप उन्हें सुनता रहा क्योंकि डॉक्टर अभी भी अपनी बात कह रहे थे –“पिछले दो महीने से एक तुम ही हो जिसे मैं उसके लिए आते देख रहा हूँ |” डॉक्टर बात करते करते ड्रावर से कोई फाइल निकाल कर मेज पर रखते हुए उसे खोलते है|

“मैंने अपने अब तक के बीस साल के अनुभव में सरकारी अस्पतालों में कितने ही मरीजो को देखा – कितने ही सरकारी अस्पताल में अपनों को इलाज कराता छोड़ कर चले गए और फिर कभी वापस नही आए और इस लड़की की हालत भी कुछ ऐसी ही है बाप है नही और किसी रिश्तेदार ने कोई दावा भी नही किया तो तुम क्या कर सकते हो – !!”

“मैं तो बस उसको ठीक होता हुआ देखना चाहता हूँ |”

“देखो यंग मैन ये जवानी का जोश है – मैं भी कभी तुम्हारी उम्र का था तो बहुत कुछ सोचता था – ये सुधार दूंगा ये बदल दूंगा पर हुआ क्या वक़्त ने मुझे बदल दिया और यही तुम्हारे साथ होगा इसलिए क्यों इस पर अपना समय बर्बाद कर रहे हो – तुम भले घर के लगते हो तो जाओ अपनी जिंदगी जिओ तुम्हे कौन सी लड़कियों की कमी होगी |”

“पता है डॉक्टर साहब एक दिन मेरी माँ ने मुझसे क्या कहा था कि एक दिन तुम्हे अपने जीवन का कोई न कोई मकसद जरुर मिलेगा तब असल जीवन का महत्व तुम्हे समझ आएगा क्योंकि ईश्वर ने हर मनुष्य की रचना किसी न किसी उद्देश्य के लिए की होती है और यही उद्देश्य हमे जीवन के सुख और दुःख की अनुभूति कराते है जिसके बिना ये जीवन ही निर्थक है – बस मैं तो वही कर रहा हूँ जो समय मुझसे करा रहा है वैसे भी मैं कौन सा उससे कुछ पाने के लिए उसके पास हूँ – मुझे तो पता भी नही कि उसके मन में क्या है – मैं तो बस चाहता हूँ कि वह जल्द से जल्द अपना सामान्य जीवन जीना शुरू कर दे |”

सपाट भाव से देव अपनी बात कहता हौले से मुस्करा देता है तो डॉक्टर अनिमेष उसकी ओर देखता रहा जैसे उनका मन खुद के अन्दर के खोये इन्सान को खोजने लगा हो पर शायद वह बहुत पीछे छूट चुका था….वह देखते है कि देव अब जा चुका था|

घर पहुँचते अवनि अपने भाई को देखते दौड़ती चली आई –  “भईया – अच्छे समय आए – मेरा फॉर्म भर दो न |” मनुहार करती वह झट से अपने भाई की कलाई पकड़ती ही है कि एकदम से उछल पड़ती है – “उ माँ – तुम्हारा हाथ इतना गर्म है – भट्टी से निकल कर आए हो क्या भईया !”

“अभी मेरे सर में दर्द है तो बाद में भरता हूँ तेरा फॉर्म |” कहता हुआ देव अपने कमरे की ओर बढ़ने लगा लेकिन बैठक में बैठी माँ ने सब सुन लिया जिससे वे तुरंत ही देव के पास आती उसे छू कर देखती एकदम से चौंक पड़ी|

“हे भगवान् – तुम्हें तो वाकई बहुत तेज बुखार है और ऐसी हालत में तुम बाहर घूम रहे हो – चलो लेटो यहाँ पर – मैं डॉक्टर को बुलाती हूँ |” माँ बुरी तरह से हडबडाती घबरा गई थी|

“अरे माँ कुछ नही हुआ मुझे वो तो आज धूप बहुत तेज थी न बस इसलिए सर भारी भारी हो गया थोडा आराम करूँगा तो बस ठीक हो जाऊंगा |”

“चुप बिलकुल – आज मैं तुम्हारी कुछ नही सुनुगी – पूरा दिन जाने कहाँ कहाँ मारे फिरते हो अब जबतक तबियत नही ठीक हो जाती तब तक कही बाहर नही निकलोगे समझे |”

माँ ही हिदायत भरी हिकड़ी के बाद देव का वहां से हिलना भी मुश्किल था, बिस्तर पर लेटते देव को वाकई बहुत अच्छा लगा जैसे उसका शरीर कब से यही आराम चाह रहा था| लेटते वह ऐसी तन्द्रा में चला गया कि उसे पता भी नही चला कि कब डॉक्टर आया और कब चला गया| सारी रात पड़ा वह सोता रहा और सिरहाने बैठी माँ उसकी पट्टी करती रही| सुबह भोर ही बुखार कम होने से उसने जब आँख खोली तो माँ को अपने पास ही बैठा पाया, वे कुर्सी पर एक किनारे को झुकी झपकी लिए थी, ये देख देव समझ गया कि उसकी तबियत को लेकर माँ कितना परेशान रही होंगी| वह धीरे से उठकर बिना उन्हें डिस्टर्ब किए उन्हें ओढा कर फिर लेट जाता है| आँख बंद करते वह फिर नींद की आगोश में समा गया|

 “देव …मेरे बच्चे |” माँ प्यार से उसका माथा सहलाती उसका चेहरा ताक रही थी – “अब कैसी तबियत है !”

आँखों को खोले माँ को देखते वह मुस्करा देता है|

“अच्छा अब आराम करो मैं नाश्ता लाती हूँ और हाँ आज भी पूरा दिन आराम करोगे और कहीं नहीं जाओगे – समझे न |”

माँ की प्यार भरी हिदायत के बाद अब देव कहीं नही जा सकता था पर आज ऐसा पहला दिन होगा जब वह थोड़ी देर के लिए भी अस्पताल नही जा सका था लेकिन माँ की बात की अवेहलना करना उसके लिए नामुमकिन था|

देव ने अगले पूरा दिन भी आराम किया तब तक जब तक उसकी तबियत माँ को ठीक नही लगने लगी, तीन दिन बाद जाकर वह बाहर जाने लायक हो पाया तो उठकर तैयार होने लगा वही बैठा कार्तिक उसे घूरता अपने हाथ में पकडे चने की पोंगी से दाने निकाल निकाल कर खा रहा था|

पर जब देव उसे लेने हाथ बढ़ाता है तो कार्तिक उसे पीछे करता हुआ कहता है – “आंटी ने कहा है न कि अभी कुछ दिन बाहर की चीजे नहीं खानी है |”

“अबे बाहर की कहाँ है – अपने कमरे में बैठकर खा रहा हूँ |”

इसपर भी कार्तिक उसे न देकर पोंगी का एक बड़ा हिस्सा अपने मुंह में डाल लेता है| ये देख देव बुरी तरह से चिढ़ने का उपक्रम करता कहता है – “ठूंस ले बे – मेरी बददुआ लगेगी तेरे पेट को |”

“अबे मेरा हाजमा इतना अच्छा है कि तेरी बददुआ भी पचा ले जाएगा |” कहता हुआ कार्तिक अपनी खींसे निपोरता हँस देता है|

तभी कमरे में दौड़ती हुई अवनि आती है – “भईया जा रहे हो कहीं !!” कहती हुई देव के हाव भाव को देखती आगे कहती है – “अब भर दो न मेरा फॉर्म – मुझसे हमेशा फॉर्म भरने में गलती हो जाती है |”

“अभी नही अवनि लौट के आता हूँ तब भरूँगा – पक्का |”

“जाओ भईया मेरा काम को तुम्हारे लिए इम्पोर्टेंट है ही नही – |”

“बोला न अवनि आकर भरता हूँ – अभी इम्पोर्टेंट काम से जा रहा हूँ |”

इसपर गुस्से में घूरती बोलती है – “बड़ा इम्पोर्टेंट काम है – मुझे पता है कहाँ जाते हो – जाओ तुम्हारा इम्पोर्टेंट काम भी नही होगा |”

गुस्से में पैर पटकती अवनि चली गई और देव ने रोका भी नही इस पर कार्तिक उसे सख्त आँखों से देखता हुआ कहता है –

“अभी तबियत ठीक हुई और तू फिर से हॉस्पिटल के चक्कर काटने चल दिया न !”

इस पर देव कुछ नही कहता बस धीरे से मुस्करा देता है|

“जा बे मैं नही आ रहा तेरे साथ |”

“तो मैं भी कौन सा तुझे लिए जा रहा हूँ साथ |” कहता भौं उचकाता कहता है देव तो कार्तिक उसे चिढ़ी नज़र से देखता रह जाता है|

देव वाकई हॉस्पिटल जाने को निकल रहा था, पिछले तीन दिन उसका मन ही जानता था कि किस तरह से वह खुद को यहाँ आने से रोक पाया| हॉस्पिटल आते वह सीधा वार्ड की ओर जाता है पर तब उसकी ऑंखें हैरान रह गई जब नीमा के बैड पर अन्य किसी मरीज को पाता है तो उसका बैड जानने वह नर्स को ढूंढता हुआ उसके पास आता है| नर्स को जैसे उसके प्रश्न का पहले से ही अंदाजा था|

“अब तो वह यहाँ नही है – परसों उसकी मौसी आई थी वही लिवा गई – आखिर यही तो तुम चाहते थे न कि वह अनाथ की तरह न रहे उसे घर मिले तो अब तुम खुश होकर अपने घर जाओ|”

देव उस पल ये खबर सुन दो पल को तय नही कर पाया कि इस खबर को सुनकर वाकई उसे खुश होना है या दुखी फिर नर्स से नीमा की मौसी का पता लेकर बाहर चल देता है|

उसे अहसास था कि अब निश्चित रूप से वह नीमा को रोजाना तो नही देख पाएगा पर उसकी घर पहुँचने की खबर से उसका मन संतुष्ट जरुर था| वह अगले ही पल उस पते पर पहुँच गया जहाँ उसकी मौसी का घर था पर अगले ही पल उसके होश उड़ गए जब उसे पता चला कि वो पता गलत है और उस नाम का वहां कोई नहीं है…दो पल को सन्न हुआ देव वही सड़क पर खड़ा रह जाता है..|

एक ही पल में उसे लगा जैसे उसने सब कुछ खो दिया…कहाँ है नीमा !! कैसी है !! क्यों उसकी मौसी उसे ले गई और ले गई तो अपना पता गलत क्यों दिया !! क्या मात्र संयोंग वश ऐसा हुआ या सोची समझी सच्चाई है ये !! उस पल एक भी सवाल का जवाब नही था इसलिए अपने सवालो की तलाश में वह पुलिस स्टेशन की ओर चल देता है और अपनी रिपोर्ट लिखाने वह एसएचओ के सामने बैठा बता रहा था कि नीमा को उसकी मौसी अपने साथ ले गई और पता गलत नोट कराया जबकि पिछले दो महीने से उन्होंने उसकी कोई खैर खबर नहीं ली थी फिर अचानक आते उसे अपने साथ इस तरह ले जाने के पीछे उनकी क्या मंशा हो सकती है ??

थानाध्यक्ष अपनी घूरती ऑंखें उसपर टिकाते हुए बोल रहा था – “कम्प्लेन क्या है वो बताओ और उससे पहले ये बताओ उस लड़की से क्या रिश्ता है तुम्हारा – भाई हो ! पति हो ! या रिश्तेदार हो !”

“जी कुछ भी नही |” नज़रे नीची किए ये कहते देव के होंठों पर दवाब आ जाता है|

इससे थानाध्यक्ष अपनी कलम रजिस्टर के बीच उल्टा ठोकता हुआ उस पर गरजा – “तो बता क्या और किस के खिलाफ लिखूं कम्प्लेन !”

“लेकिन उसकी मौसी ने गलत पता क्यों दिया ?”

“वो उसकी मौसी है और तूने जो बताया उसके अलावा उसका और कोई नही है तो उसकी मौसी का हक़ है तो ले गई अपने साथ और अगर कुछ बुरा होगा उसके साथ तो उस लड़की को बोलो तब कम्प्लेन लिखूंगा समझे |”

“पर यही तो समस्या है वह मिल ही नही रही |” देव झल्ला उठा|

“तो जब मिली ही नही तो कैसे कह सकते हो कि उसके साथ बुरा हो रहा है – हो सकता है गलती से पता गलत हो गया और तेरा उस लड़की से कोई रिश्ता नही तो तुझे क्या फर्क पड़ता है कि वो कहाँ है – तूने एक बार उस लड़की की मदद की अब क्या दुबारा उसने तुमसे मदद मांगी नही न तो जाओ यहाँ से समय बर्बाद करने आ जाते है अबकी फालतू की बात के लिए मेरे पास आए तो तुम्हारे खिलाफ ही मैं एफआईआर लिख दूंगा – समझे |”

अब देव के पास कुछ कहने को नही रहता तो वह निराश घर वापिस आ जाता है| उसके घर वापस आते सभी को नीमा का जाना पता चल जाता है| अवनि हाथ में फॉर्म लिए लिए देव को अपने सामने से जाता हुआ देखती रही पर कुछ बोलने की हिम्मत नही कर पाई| देव थके कदमों से चलता कमरे में आता सीधा लेट जाता है| माँ समझ रही थी पर कुछ कहने सुनने को था ही नही जिससे एक अजीब ख़ामोशी सबके बीच पसरी रही सबको लगा शायद अब से नीमा का किस्सा यही समाप्त होना तय हो|

क्रमशः…….

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