
इस कदर प्यार है – 12
देव के मन में क्या है ये तो सिर्फ उसी ही पता था, वह इस वक़्त कुछ समझ नही पा रहा था लेकिन नीमा को पूरी तरह से अपने दिमाग से निकाल पाना भी उसके लिए असंभव था| अगले दिन सुबह ही वह कार्तिक के घर पहुँच गया, वह अभी सो कर भी नही उठा था, उसके कमरे में बेधडक पहुँचते वह उसे झंझोड़कर उठाने लगता है जिससे हडबडा कर उठता कार्तिक दो पल तक देव को देखते हुए खुद को होश में लाता लगभग उस पर बरस पड़ता है –
“अबे क्या हुआ – कहीं तूफान आ गया या जलजला !!”
कहता कार्तिक बडबडाता रहा तो देव मन ही मन बुदबुदा उठा|
क्या कहे कि मन के समंदर में जज्बातों का कैसा जलजला सा उठ रहा है !!’
“इतनी सुबह आकर उठा दिया – अब बोल न |”
“भाई वो नीमा ..|”
देव अपनी बात कह भी नही पाया और कार्तिक अपना हाथ सर पर मारते कह उठा – “फिर नीमा – अबे तेरा दिन इसी नाम से शुरू होता है क्या !!”
“सुन न पूरी बात – आज सुबह मैं हॉस्पिटल गया तब पता चला दो दिन पहले उसकी मौसी उसे डिस्चार्ज कराकर वहां से ले गई |”
“वाह मार दिया बे पापड़ वाले को – ठीक है न – अब तेरी जिम्मेदारी खत्म |” कार्तिक अपनी दबी ख़ुशी दबा नही पाया, नीमा के जाने की ख़ुशी उसके शब्दों में झलक उठी|
लेकिन देव उसकी बातों पर ध्यान दिए बिना अपने मन का मलाल निकालता रहा – “यार समझ नही रहा है अगर वो ठीक रहे तो सच में मैं बहुत खुश होता लेकिन यहाँ तो कुछ और ही झोल है – उसकी मौसी ने अपना जो पता लिखाया मैं वहां गया था और वो पता गलत निकला तो सोच उसकी मौसी ने ऐसा क्यों किया – एक तो इतने दिन कोई खबर नही रखी और अचानक ले गई तो ऐसे तो कहीं नीमा फिर किसी मुसीबत में तो नही !!”
देव एक सांस में अपनी बात कह गया जिसे सुन कार्तिक में कोई ख़ास प्रतिक्रिया नही हुई|
“कैसे ?”
“अबे अगर ले गई तो गलत पता क्यों दिया – मैं तो उसकी मौसी के खिलाफ थाने में रिपोर्ट लिखाने भी गया पर वहां भी कोई मेरी बात नही समझ रहा |”
“अबे तो क्या समझे जबरदस्ती तू उसके पीछे पड़ा है – जाने दे न उसकी मौसी ही तो है |”
“तू समझ ही नही रहा – अगर ऐसा है तो अपना गलत पता क्यों दिया ?”
“तो क्या करेगा तू अब ?”
“नीमा की खोज और उसी के लिए भाई तेरी मदद चाहिए |”
“न – |” कार्तिक दोनों हाथ से अपना मुंह बंद करता गर्दन न में हिलाता है – “मैं कुछ नही बोलूँगा – बोलता हूँ तो साला आइडिया निकल जाता है|”
“अबे नौटंकी बंद कर और मदद कर न मेरी – अब तेरे सिवा कौन है जिससे मैं अपने दिल की बात कहूँ – सोच न कोई आइडिया|”
“न – मैं कुछ नहीं बोलूँगा – तूने बहुत रायता फैला रखा है नीमा नाम का – अब बोलेगा कि फिर से उसे ढूंढने की एबीसीडी से शुरुआत कर और ले जाएगा फिर उस चाय की टपरी पर बकवास कराने तो मैं न जा रहा कहीं |”
कार्तिक बोला और देव के चेहरे के भाव बदल गए|
“अबे क्या आइडिया दिया है – मैं तो उस चाय वाले को भूल ही गया था उसे जरुर उसकी मौसी के बारे में कुछ पता होगा – चल भाई चलते है वही |”
देव कहता तुरंत उठ गया जबकि कार्तिक अपनी मरमरी हालत में उसको देखता हुआ मुंह बनाते हुए बोल रहा था – “इसीलिए मैं अपना मुंह नही खोलता – साला जब भी भी मुंह खोलो आइडिया निकल जाता है – मैं नही जा रहा उठते कही !”
“तू जितना चाहे थोबड़ा लटका ले चलना तो पड़ेगा भाई तेरे को |”
और सच में कार्तिक के नानुकुर की कोई परवाह किए बिना देव उसे उसी हालत घसीटता हुआ बाहर ले चला|
“मुंह तो धोने दे भाई |”
“शेर को कभी मुंह धोते देखा है – चल ज्यादा नाटक मत कर –|”
“अबे ब्रश तो करने दे !”
“चल बे – रोज रोज ब्रश करके तू क्या उखाड़ लेगा – तू चाय से कुल्ला कुल्ला कर लेना – अब चल |”
कार्तिक का बस न चला और उसे आखिर देव के साथ उसी हालत में बाहर जाना पड़ा|
अगले कुछ ही पल में वे उसी चाय की टपरी पर खड़े थे जिस गली में नीमा का घर था| चाय वाला भी हमेशा की तरह खाली बैठा मक्खी मार रहा था पर देव को देखते उसे पहचानते एकदम से उछल ही पड़ा –
“अरे आप भैयाजी – बड़े दिन बाद आए पर क्या कमाल हो आप – क्या काम किया आपने एकदम हीरो वाला – हम तो सोच ही नही पाए थे कि हमारी गली में इतना कुछ हो गया और हमे पता भी न चला पर आप गजब हो भैयाजी – बैठो आज स्पेशल वाली चाय पिलाता हूँ |”
दोनों को अंदाजा भी नही था कि उनका वहां ऐसा कुछ स्वागत होगा, हैरान चेहरे के साथ वे दोनों वही बैठ जाते है|
चाय वाले की फालतू की बकबक को वह फिर अपने प्रश्न की ओर मोड़ता है देव तो चायवाला कह उठता है –
“मौसी जी !! हाँ दो साल पहले जब नीमा की माँ मरी थी तब उससे पहले उसकी मौसी मौसा बहुत आते थे यहाँ – एक बार को क्या बताए भैयाजी जी नीमा का मौसा हमारे पीछे पड़ गया कि अपना एलआईसी करा लो – अब आप ही बताओ भैयाजी जी हमारे जीवन का क्या होना और क्या न होना – अपना न कोई आगे न कोई पीछे फिर काहे को करा ले एलआईसी भैयाजी अब आप ही बताओ !”
देव को उसकी बेकार की बातों में कोई रूचि नही हो रही थी पर कार्तिक उसकी बातों में रस लेता उसकी लाई चाय सुकड़ता हुआ चहका|
“अच्छा उसका मौसा एलआईसी एजेंट था फिर तो खुद का भी करा रखा होगा बीमा और कहीं मर गया तो उसके परिवार के बल्ले बल्ले हो जाए |”
“हाँ भैयाजी बिलकुल यही हुआ – सुना था करोड़ का कराया था बीमा और अचानक जब मरा तो मौसी तो करोड़पति हो गई और घर को बंगला बना लिया |”
“बिना पति के करोडपति |” कहकर ठहाका मारता कार्तिक और चाय वाला हँसते हुए एक दूसरे को ताली मारते है|
पर सधे चेहरे के साथ बैठा देव ये सुनते एकदम से उचक पड़ता है|
“तो कहीं यही कुछ झोल तो नही – कहीं उसके बाप का भी तो बीमा का चक्कर तो नही !!”
अब देव की बात सुन दोनों की हँसी गायब हो गई और वे हैरान उसका चेहरा देखते रहे|
पूरा दिन घूमते हुए भी देव नीमा के बारे में कुछ भी पता नहीं लगा पाया इससे उसका मन बुरी तरह से व्यथित हो उठा| कार्तिक को उसके घर छोड़ने वह बाइक उसके घर की ओर मोड़ देता है| देव कार्तिक को उसके घर तक छोड़ने तक पूरी तरह से खामोश बना रहा|
कार्तिक ने उसे टोकने की कोशिश भी की पर देव ने उसकी बात का कोई जवाब नही दिया| कार्तिक अपने दोस्त की उदासी समझ रहा था| उसे जाता हुआ देखता कार्तिक धीरे से बुदबुदा उठा –
‘अब या तो उस लड़की को ढूंढना पड़ेगा या अपने यार के दिमाग से उसका फितूर निकलना पड़ेगा – चल भाई कार्तिक – अब अपने दिमाग से कोई जबरजस्त वाला आइडिया निकालना पड़ेगा |’
तभी घर के अंदर से एक आवाज उसका ध्यान तोडती है|
“कहाँ है तुम्हारा लाटसाहब – अभी तक अपनी आवारागर्दी करके लौटा कि नहीं – लौट आए तो अपने सुपुत्र को बोल देना कल से दुकान में बैठना शुरू कर दे नहीं तो उसकी ये जो हरदम भागती हुई टांगे है न इन्हें तोड़कर दुकान में बैठा दूंगा – तब देखता हूँ कैसे नहीं बैठता दुकान में |’
कार्तिक अभी घर भी नही पहुंचा पर अपने बाप की आवाज पर वही ठिठक गया|
‘ये तो मेरे आने से पहले ही मेरे स्वागत की तैयारी हो गई – चल कार्तिक वही पिछवाड़े से कूदते है – इससे पहले ही मेरा बापू मेरी हड्डी को तोड़ तोड़कर कबाड़ में बेचे खुद ही कूदकर अपनी हड्डी की जाँच कर लेते है|’
अब कार्तिक सामने की ओर से न जाकर पीछे से कूदता हुआ अपने घर में प्रवेश करता छुपता हुआ अपने कमरे में पहुँच जाता है|
‘यार कमरे में तो आ गया – अब पहला तिग्दम तो इस दुकान से छुटकारा पाने का लगाना पड़ेगा |’
सोचता हुआ कार्तिक अपने कमरे में पहुँचता बिना बत्ती जलाए ही बिस्तर में घुस जाता है|
खिड़की की सलाखों के पार एक और सूनी साँझ की गोद में उदास सूरज डूबा जा रहा था जिसे उसकी पथराई ऑंखें अपलक जाने कितनी देर से एकटक देखे जा रही थी| ऐसी जाने कितनी साँझ आती और गुजर जाती पर उनका अहसास मानों उसके मन में ठहरा रह जाता| कितनी उदासी भरी थी उस लाल आकाश में डूबते अंगारे से सूरज में मानों देर से रोई आंखे सूज गई हो| वह कितनी देर से यूँही बैठी थी, उसके बगल की मेज पर रखी चाय कब की ठंडी होती उसमे पपड़ी सी जम गई थी| चलने को कितना अनंत आकाश पर उसके कदम कितने बेबस…
“नीमा…!”
वह पुकार पर भी पलटकर नहीं देखती| वह अधेड़ महिला अब उसके पास आकर उसके बालों में उंगलियाँ फिराती हुई फिर उसे पुकारती है|
“नीमा !! चाय नही पी – चलो कोई बात नही – देखो तुम्हारी एक्सरसाइज का टाइम हो गया है|”
कहकर वे अपने पीछे खड़े व्यक्ति को आगे आने का इशारा करती है|
नीमा अब मुड़कर उनकी ओर देखती है, उसके देखने में इतनी गहन उदासी थी कि कुछ पल को वह व्यक्ति वही ठहरता पूछ उठा – “क्या आराम नही मिला या तकलीफ हुई कोई ?”
“अरे थोडा दर्द तो होगा पर आज थोड़ा ध्यान से कराए – बच्ची ने बड़ी तकलीफ सही है जीवन में – थोड़ा समय तो लगेगा वापसी में |” कहती हुई मौसी जी लेटी हुई नीमा का सर प्यार से सहलाती रहती है तो वही कुर्सी पर बैठा फिजियोथेरेपिस्ट उसके पैरो से धीरे धीरे एक्सरसाइज कराता रहा|
काफी देर एक्सरसाइज करा लेने के बाद फिजियोथेरेपिस्ट कमरे से बाहर निकल जाता है पीछे पीछे उसे दरवाजे तक छोड़ने मौसी जी भी जाती हुई कहती रही – “एक हफ्ता तो हो रहा है कितना सुधार है उसके पैरों में – कब तक वह सामान्य रूप से चल पाएगी ?”
वह रूककर उनकी ओर पलटकर देखते हुए कहता है – “थोडा समय तो लगेगा क्योंकि वह अपनी ओर से कोई प्रयास नही कर रही है फिर भी आप विश्वास रखे आपकी मेहनत निष्फल नही जाएगी|”
“हाँ बस आप ऐसा बोल दिए मन को बड़ा सुकून मिल गया |” कहती हुई वे हाथ जोड़ लेती है|
“अरे आप फ़िक्र न करे – मैं अपना बेस्ट दे रहा हूँ वैसे एक बात कहूँगा आप उसकी मौसी होकर उसके लिए माँ से बढ़कर कर रही है जो इसका फल भी अच्छा ही होगा – अच्छा नमस्ते मैं कल आता हूँ |”
उनके बाहर निकलते वे दरवाजा बंद कर नीमा के पास आती उसे शौल ओढ़ाती हुई उसके पास बैठती हुई कहती है – “अब थोड़ी ठण्ड होने लगी है न -|
वह कुछ नही बोलती पर वे अपनी बात कहती रही|
“हर वक़्त एकसा नही होता नीमा – जो हुआ उसे भूलकर अब तुम्हे आगे का सोचना चाहिए – आज तुम्हारी माँ होती क्या वो भी तुमको इतना उदास देख पाती – तुम्हारे पिता भी तुम्हारा बुरा कहाँ चाहते थे वो तो बस उसकी मानसिक स्थिति ही ऐसी हो गई थी तुम्हारी माँ के जाने के बाद से |” वे कहती हुई नीमा के चेहरे की ओर ध्यान से देखने लगती है जहाँ अब कुछ बदलने लगा था|
“मैं समझती हूँ कि तुम्हें अपनी माँ की याद तो आती ही होगी – थी भी तो आखिर कितनी जिन्दादिल – तुम्हारे पिता संग बड़ी खुशरंग जिंदगी जा रही थी उसकी लेकिन उसे कैंसर क्या हुआ सब कुछ खत्म होता गया – सुरेश तो पागल ही हो गया और उसी पागलपन में तुम्हारे साथ भी आखिर क्या कर बैठा लेकिन अब तुम परेशान मत हो – तुम मेरे पास हो न – मैं अब सब ठीक कर दूंगी – कुछ दिन में देखना फिर से तुम चल ही नही दौड़ सकोगी |” कहती हुई सर पर हाथ फिराती उसकी ओर देखती है, नीमा के बेजुबान शब्द मौसी के स्नेह से आँखों से लुढ़क पड़े तो वे प्यार से उसे अपने गले लगा लेती है|
एक डूबती साँझ और ताल के पानी में जैसे डूब कर गुम हो गई जिसे ढूंढता देव का बेकल मन अंतरस तड़प उठा आखिर कितने दिन से इधर उधर भटकने के बाद भी वह अभी तक नीमा को नही ढूंढ पाया था| आज बहुत देर से अकेला बैठा जाने कितने पत्थर वह ताल के पानी में फेंक कर उसके ह्रदय को झंझोड़ चुका था पर बेरहम वक़्त के ह्रदय का एक भी तार नही झझोड़ पाया था| लेकिन उसका मन हार मानने को कतई नही तैयार था बस उम्मीद के सहारे रोज वह नीमा को तलाशता फिर रहा था…बेपनाह…
क्रमशः……