Kahanikacarvan

इस कदर प्यार है – 14

बच्ची अभी भी आराम से नीमा की गोद में सर रखे उसकी उँगलियों से खेल रही थी ये देख दीपा उसके पास आती बच्ची को अपनी ओर खींच लेती है अचानक ऐसे व्यवहार से नीमा चौंककर उसकी ओर देखती है, बच्ची भी कुछ कुनमुना गई थी मानों अचानक उसके हाथ से कोई खिलौना छूट गया हो पर मौसी तुरंत स्थिति संभालती हुई बोल उठी –

“बहुत तंग किया मौसी को – लाओ अब मेरी गोदी में दो |” बच्ची अब उनकी गोदी में आ गई तो दीपा आँखों से अपनी माँ का इशारा समझती धीरे से मुस्करा दी|

अब वे अपनी उंगलियाँ उसकी आँखों के सामने किसी खिलोने की तरह किए उसे बहलाती रही, वे इधर उधर की बातें कर जल्दी ही वहां से उठ गई, नीमा के पास ज्यादा कुछ बोलने को था नही बस उनकी बातों का हाँ नही में उत्तर देकर मौसी के कहने पर अपना खाना लेने उठ कर चली गई| उसके जाते दीपा तब से अपने मन में जब्त की बात उगल बैठी –

“इजा तुमने तो इसकी काया ही बदल दी – आखिर इतना सब करने की जरुरत ही क्या थी ?”

दीपा गुस्से में अपने होंठ चबा रही थी ये देख वे अपने होंठों के अन्दर गहरी मुस्कान का दबाव बनाती हुई बोली – “करना पड़ता है न अपनों के लिए |”

दीपा एकदम से कनखनी से देखती है|

“हाँ करो पालो पोसो – हमेशा मुझसे हर चीज में आगे रहती थी – पढाई में भी आगे रही और ईश्वर ने मुझसे ज्यादा रूप रंग भी डे दिया इसे – अब तुम भी करती रहो इसकी सेवा |”

“अरी बुद्धू – सेवा तो ये करेगी तुम्हारी – सब तुम्हारे लिए ही तो कर रही हूँ – ये तो अभागी है किस्मत वाली तो तू है – कोई रंग उजला होने से किस्मत उजली नही हो जाती – तुम्ही देखो तुम कहाँ कनेडा में शादी करके सुखी हो तो ये अनाथ अब किसके लिए जिएगी – कौन है जो इसे पूछेगा – वो तो मैं हूँ जो यहाँ ले आई नहीं तो किसी आश्रम में पड़ी रह जाती |”

वह हतप्रभता से उनकी तरफ देखती है|

“कनेडा में कहाँ मिलती है काम करने वाली और डिलीवरी के बाद से तुम्हारी नौकरी भी छूट गई – अब इसे ले जाओगी तो तुम्हारा काम ही तो आसान होगा न |” बच्ची अब अपनी नानी की लम्बी चोटी से खेलने लगी थी|

“अच्छा..|”

“और क्या – तू समझती बड़ी देर से है – इसे ले जाओ आखिर यहाँ रहकर करेगी भी क्या – इसका बाप भी मर गया – इसे तो मैंने ये बताया भी नही और बताने की आखिर जरुरत भी क्या है – कौन सा इसके लिए कुछ कर भी रहा था – मैं तो हरदम यही कोशिश कर रही हूँ कि इसका यहाँ से इसका मोहभंग हो और ये तुम्हारे साथ कनेडा चली जाए |”

“पर प्रथम राजी नही होंगे |”

“ओहो तो कर लेना राजी – वो पत्नी भी क्या जो अपनी बात पति से न मनवा सके और रही बात वीजा इत्यादि की तो वो सब मैंने पहले से ही तैयार करवा लिया है|”

“क्या सच !” अब अव्यक्त ख़ुशी उसके चेहरे पर दमक उठी तो वे अपनी बेटी का गाल प्यार से छूती हाँ में सर हिला देती है|

अब तक खेलते खेलते नन्ही सो गई थी तो उसे गोद में लिए दीपा उठकर जाने लगी| उसे देखते ढेरों विचार उनके मन में घुमड़ने लगे…जैसे कई साल पीछे मन दौड़ता भाग गया जब हर बात पर माँ ही उन दो बहनों में तुलना कर देती, मन चिढ़कर रह जाता, गीता की शादी भी कॉलेज के स्मार्ट लड़के सुरेश से हुई जबकि उसकी शादी के लिए माँ बाप की जूतियाँ घिस गई तब जाकर कहीं बीमा कंपनी का बाबु मिला| क्या रूप से किस्मत चमक जाती है नहीं !! वक़्त के साथ उसने सिद्ध कर ही दिया कि रूप के साथ किस्मत नही खिल उठती…आखिर हर चमकती चीज सोना नही होती…

“ये लो तुम्हारे फॉर्म में करेक्शन कर दिए – आज ही लास्ट डेट है जाकर जमा कर दो |” फॉर्म अपनी छोटी बहन की ओर बढ़ाता है देव|

“थैंकू भईया – अब तो मेरा फॉर्म रिजेक्ट हो ही नहीं सकता |”

“क्यों !!” चौककर देव उसकी ओर सर उठाकर देखता है|

“पता नही पर जब आप फॉर्म भरते हो न तब हमेशा एक बार में ही सलेक्ट हो जाता है – मेरे से पता नही क्या गलत हो जाता है|” कहती हुई अपने ही सर पर टीप मारती है|

“मैं हर काम मन लगाकर जो करता हूँ |” बड़े गंभीर शब्द में बोलता देव अब उसकी ओर से नजर हटाकर खिड़की के पार देखने लगता है जहाँ से सड़क का छोर दिख रहा था शायद उसे कार्तिक का इंतजार था|

वह जाने से पहले अपने भाई का चेहरा देखती है जहाँ गहन उदासी उसे दिख रही थी, उसे कारण भी पता था कि उसका भाई नीमा की गुमशुदगी से परेशान है यकीनन उसके भाई का दिल कितना अच्छा है किसी अनजान लड़की के लिए वह फिक्रमंद था| वह सोचती हुई बाहर चली जाती है|

“देव|” वह पुकार पर सर उठाकर देखता है कार्तिक देहरी पर खड़ा उसे आवाज लगा रहा था शायद उसके देखने से पहले ही वह घर के अन्दर आ चुका था|

“कुछ पता चला !” प्रश्न के शब्दों से कहीं ज्यादा उसके हाव भाव से प्रकट हो रहा था|

ये सुनते कार्तिक का खिला चेहरा पल में मुरझा जाता है|

“नही – कितना सर्च करूँ यार – तू भी तो गली गली की ख़ाक छान चुका है – अब तू ही बता इस शहर में कितने तो बीमा वाले होंगे उसमे से उसका मौसा कौन सा रहा होगा कैसे पता चलेगा भाई |”

देव की निराशाजनक ऑंखें अब झुक गई थी| ये देख कार्तिक उसके पास बैठता हुआ उसके कंधे पर अपनी बांह फैलाता हुआ सांत्वना जैसा देता हुआ कहता है – “यार तेरे लिए कहाँ कहाँ की ख़ाक छानता फिर हूँ पर कुछ सही से अता पता हो तभी तो न मिलेगा कोई कोई आइडिया भी दिमाग में नही आ रहा – बता न क्या करूँ तेरे लिए |”

इस वक़्त कार्तिक के लिए बस अपनी दोस्ती के लिए कुछ भी करने का जूनून सा था|

“छोड़ दे – जाने दे |” किसी कसक की तरह उसके गले से जैसे दर्द फूटता है|

कार्तिक आश्चर्य से देव की ओर देखता है|

“हाँ जाने दे – बहुत कर लिया तूने मेरे लिए – शायद अब आगे का रास्ता हमारे लिए बना ही नहीं है – |”

कार्तिक साफ़ साफ़ देख पा रहा था कि किस हालात में देव के मुंह से ये शब्द निकले होगे पर वाकई उसके हाथ में कुछ नही था|

“चल बाहर कहीं हो कर आते है –|”

कहते हुए देव उठकर बाहर की ओर चल देता है तो कार्तिक भी उसके पीछे पीछे चलता चलता बोलता रहता है –

“हाँ चल यार – बहुत जोर की भूख लगी है – वैसे भी तेरे लिए मैं घर से भाग कर आया हूँ – नहीं तो आज मेरा बापू मुझे मुर्गा बनाकर दुकान में जड़ने ही वाला था|”

देव अपनी बाइक उठाकर एक झटके से किक मार इशारे से उसे बैठने को कहकर रास्ते पर निकल पड़ता है, उस पल कोई भी देव को देखता तो समझ जाता कि किसी को अनजानी राहों में डूबते हुए नहीं देखा तो आकर देख ले देव को….कि आज उसका मन किस कदर डूबा जा रहा था खुद के ही अन्दर|

कार्तिक देव का चेहरा देख तो नही पा रहा था पर उसके मन की डूबन को समझता हुआ उससे बातें कर रहा था जिसपर देव मौन ही बना हुआ था|

“यार ये साले बीमा वाले भी जाने कितने है कोई रिकॉर्ड ही नहीं – लगता है हर गली कूचे से एक बीमा वाला निकल आएगा – जानता है जिससे भी कोई इन्क्वारी करता वो ही मेरा बीमा निकालने पर उतारू हो जाता – मैं तो बस भाग लिया नहीं तो साले पकड़कर मेरा आज का आज ही बीमा कर डालते |” कार्तिक किसी तरह से देव के लिए माहौल हल्का करने का प्रयास कर रहा था पर देव की ख़ामोशी जैसे और गहराती जा रही थी|

“पता है दो चार बीमा वाले तो मेरी ही गली के निकल आए पर कोई भी नीमा के मौसा का नाम तक नही जानता – कोई रिपोटर होता न तो साला हलक से बात निकाल लाता लेकिन देखो एक बार उसके बारे में खबर छापने के बाद अब किसी को नीमा के बारे में कोई फ़िक्र नही – न कोई खबर छापना कि कहाँ गुम हुई या मौसी ने क्यों पता गलत दिया…अरेरे…|” अचानक देव के ब्रेक लगाने से कार्तिक तेजी से आगे की ओर झुक जाता है जिससे तुरंत उसपर बरसते हुए चिल्ला पड़ा – “अबे क्या करता है – यार तेरी इस ब्रेक लगाने के तरीके से किसी दिन मेरी जान निकलेगी |”

कार्तिक बोलता रहा और देव बाइक को साईड स्टेंड में लगाकर अब उसके चेहरे के ठीक सामने आता दोनों हाथों के बीच उसका चेहरा पकड़ते हुए बोल रहा था – “मन तो करता है चूम लूँ तेरा मुंह – क्या आइडिया दिया है |”

“मैंने आइडिया दिया है !!” हकबकाया सा कार्तिक खुद से ही पूछ उठा|

“हाँ बे – ये सही तरीका है जो हम नही खोज सकते ये रिपोटर खोज लाएँगे बस इस खबर को उनके लायक बनाना होगा |” देव जोश में बोल उठा पर उसके विपरीत मरे शब्द में कार्तिक धीरे से बुदबुदाया –

“कोई नई यार – उसका भी आइडिया निकल आएगा मेरे मुंह से – तूं फ़िक्र न कर मुझे न बस किसी झाड की तरह हिला दिया कर  आइडिया खुद बा खुद मुझसे निकल आएँगे |” कार्तिक के चेहरे की वो हालत थी कि उसका मन खुद को ही मारने को कर रहा था पर दूसरी तरफ देव की ख़ुशी पर उसका मन खुश हो रहा था|

अगले ही पल दोनों किसी स्थानीय अख़बार के दफ्तर की ओर साथ में बढ़ गए थे|

अब देव के दिमाग की घंटी बज चुकी थी वह सब कुछ तय करता हुआ किसी स्थानीय अख़बार के दफ्तर में पहुँच चुका था, कार्तिक भी उसके साथ था| जहाँ रिपोटिंग होती थी उसके केबिन के बाहर खड़ा वह इधर उधर देख रहा था, हर जगह सभी व्यस्त दिख रहे थे, कभी कोई किसी केबिन से निकलता कभी कोई फ़ाइल् लिए कहीं प्रवेश कर जाता, फिर देव कार्तिक को इशारा कर आपस में बात करने लगे –

“तू सच्ची बोल रहा है – झूठ तो नहीं है न ये बात ?”

मुंह बनाते हुए कार्तिक बोलता है तो जवाब में देव बोलता है –

“हाँ हाँ सौ फीसदी सच है – लोग तो बड़ी जल्दी इस खबर को भूल गए जिसने कुछ समय पहले पूरे रुद्रपुर में सनसनी मचा दी थी |” अपना अंतिम शब्द थोड़ा तेज स्वर में बोलता वह कार्तिक के चेहरे की ओर अपनी ऑंखें गड़ाए रहा पर उसे अहसास होने लगा था कि आस पास तक उसकी आवाज पहुँच रही थी|

“वही न – तुम नीमा केस की बात कर रहे हो न जिसके पिता ने उसे घर में आठ महीने कैद करके रखा – क्या वही केस !!” कार्तिक भी आवाज में जोर लगाता हुआ उससे पूछता है|

“हाँ हाँ बिलकुल वही – तब तो सभी को सबसे पहले ये खबर चाहिए थी पर अब जब उससे भी धमाकेदार खबर है तो किसी की कोई दिलचस्पी ही नही |”

शब्दों में उदासीनता लाता देव कहता है तो कार्तिक देव के इशारे पर अपने शब्दों में जबरन उत्सुकता लाता उससे पूछता है – “कैसी खबर कुछ तो बता !”

“अच्छा सुन – |” अपने स्वर में वही तेजी बनाए रखते हुए भी बात को उसके कान के और पास आता हुआ कहता है – “करोडो की बात है – पक्की खबर है कि उसका बाप का करोड़ों का बीमा था जिसे हड़पने उसके मरते नीमा की मौसी ने नीमा को फिर से बंधक बना लिया और कोई नही जानता कि इस वक़्त वो है कहाँ और समझ लो अगर ये खबर सामने आ गई तो रुद्रपुर के लिए एक बार फिर बहुत बड़ी सनसनी होगी |”

“हाँ बे सच्ची में |”

“क्या हो रहा है यहाँ ?” अचानक किसी सख्त आवाज ने उनका ध्यान दूसरी दिशा की ओर खींचा| वहां कोई प्रोढ़ लेकिन स्मार्ट व्यक्ति खड़ा था जो अपनी तीखी आँखों से उन्हें घूरता हुआ बोल रहा था – “ये कोई बाज़ार है जो खड़े खड़े बातें बना रहे हो |”

उसकी बात पर कार्तिक की घिग्गी बंध गई तो देव जल्दी से बात संभालता हुआ बोला – “हम दरअसल अपनी नई खुली दुकान का एड निकलवाने आए थे |”

“तो यहाँ क्या कर रहे हो ये रिपोटर सेक्शन है और एड का केबिन इस गैलरी के विपरीत है|”

“अच्छा तो हम गलत आ गए – सोरी सर |” देव कार्तिक की ओर देखता बोलता है – “तूने भी नही बताया – बताना था न कि हम गलत आ गए है |”

देव की झिडकी पर कार्तिक बस मुंह बना कर रह जाता है| अब दोनों वहां से निकलने लगते है तो वह व्यक्ति उन्हें आवाज लगाता पूछ उठता है – “अच्छा वो जो अभी तुम लोग बात कर रहे थे – क्या सच है वो !!”

देव यही तो चाहता था पर किसी तरह से अपने मनोभावों को नियंत्रण करते बनावटी भाव लाता बोल उठा – “कौन सी बात ?”

“ओहो नीमा केस वाली बात |” थोड़ा झल्लाते हुए वह व्यक्ति बोला

“अच्छा नीमा की मौसी वाली बात – हाँ हाँ सर सौ फीसदी सच्ची है बात – झूठ निकले तो गर्दन पकड़ लेना आप मेरी |”

देव के चेहरे पर आए विश्वास भरे भाव वह व्यक्ति कुछ क्षण तक देखता रहा फिर आंख झपकाते उनपर से निगाह हटाते हुए बिना कुछ बोले वापस चला जाता है| पर देव को यकीन था कि वह जो करने आया था उसका वो काम हो गया|

अब दोनों फटाफट बाहर की ओर निकलते बाइक में सवार ताल की ओर निकल पड़े थे| ताल में आते देव के चेहरे पर आगामी ख़ुशी की झलक साफ़ देखी जा सकती थी पर कार्तिक का मुंह अभी भी उतरा हुआ था जिसे देख देव उसे छेड़ते हुए बोला – “क्या हुआ – इतना गन्दा मुंह क्यों बनाए है – शीशे में अपनी शक्ल देख ली क्या !!” कहकर देव जोर से हँस पड़ा, उसकी हँसी से नाराज़ होता कार्तिक अपने चेहरे का भाव और सख्त कर लेता है|

“अबे बता न हुआ क्या ?”

“क्या बताऊँ – जब देखो फालतू की पग्लैती कराता फिरता है मुझसे और पूछता है हुआ क्या – अबे ये नीमा का चक्कर कब छोड़ेगा तू और जो तू उसके पीछे पागल हुआ घूम रहा है वो तो आराम से अपनी मौसी के पास ठंडी ठंडी सर्दी में गर्म गर्म थुपका खा रही होगी |”

कार्तिक की बात सुन देव की हँसी उड़ गई तो वह थोड़ा गंभीर स्वर में बोला – “मैं बस ये सुकून करना चाहता हूँ कि वो आराम से है कि नही – बस एक बार मैं उसे अगर ठीक से रहता देख लूँगा तो कसम से मैं हमेशा के लिए उसका नाम भूल जाऊंगा |”

“तो खा कसम |”

“हाँ तेरी कसम |”

“हाँ झूठी कसम खाने को मेरी ही मिली – मार दे तू मुझे |”

“अबे कैसी बात करता है – तू तो मेरा आइडिया बॉक्स है |” कहता हुआ देव कार्तिक को पकड़कर जबरन अपने गले लगाने लगता है तो कार्तिक उसे अपने से दूर झिड़कने लगता है|

“अच्छा बता क्या खाएगा ?” मनाते हुए देव बोला|

“यार ये थुपका से नुडल याद आ गया – आज वही खाना है |”

“चल अपने कोर्नर चलते है वही खिलाता हूँ तुझे |” कहता हुआ देव बाइक में सवार होता स्टार्ट कर कार्तिक का इंतजार करता है जो अपनी बक बक करता उसके पीछे बैठ गया था|

“यार ये चाइना वालों का सिर्फ यही चीज मुझे बेस्ट लगती है वरना उन चाऊ चाऊ की शक्ल देखने का मन नही करता – अच्छा तू खाने के बाद फिर चलेगा न मेरे साथ – कही अपने कोर्नर में रुक तो नही जाएगा – और तू आजकल अपनी दूकान में बैठने लगा है – पता है तेरी वजह से मेरा बाप मुझे दो बातें सुनाता है कि देव की तरह मुझे भी अपनी दूकान में बैठना चाहिए – अब उन्हें कौन समझाने तेरी दूकान खाने पीने वाली और उनकी मोबाईल वाली – साला दिमाग खराब कर देते है उनके ग्राहक – अबे धीरे चला – मुझे मार देगा क्या -|”

जबरन गड्ढे में से तेजी से बाइक निकालने से पीछे बैठा कार्तिक थोडा उछल गया जिससे वह उसपर बरस पड़ा जिससे देव को कसकर हँसी आ गई|

क्रमशः…………………

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