
इस कदर प्यार है – 15
कार्तिक को उसके घर के पास की गली में छोड़ने के बाद देव उसके घर की तरफ देखता हुआ पूछता है –
“बोल तो घर तक छोड़ दूँ ?”
ये सुनते कार्तिक उसके आगे हाथ जोड़ता हुआ कहता है – “नही मेरे बाप – एक मेरा बाप है मेरी खातिर करने के लिए – |”
“ठीक है – अच्छा कल चलेगा न !” कहता हुआ देव अपनी बाइक मोड़ते हुए पूछता है|
“क्यों नही चलूँगा – ये नीमा की खोज न रेगिस्तान में पानी की खोज से ज्यादा ट्रेजडीफुल होती जा रही है – आ जाऊंगा मैं |”
मुंह बनाते हुए कहता कार्तिक अपने घर के पीछे के हिस्से की ओर बढ़ने लगता है, ये देख देव उसे टोकता हुआ पूछता है –
“अबे वहां पीछे कहाँ से जा रहा है ?”
“क्योंकि सामने से मेरा बाप मेरी खातिर न करे इसलिए पीछे से जाता हूँ अपने कमरे में – एक तो तेरी नीमा खोज की वजह से रोजाना लौटने में दस बज जाते है और मेरा बापू जिस दिन मुझे घर में दस बजे घुसते पकड़ लेगा न उस दिन मेरा बारह जरुर बजा देगा – चल गुड वाला नाईट तेरे लिए – अपन का बापू सो गया होगा तो अपना भी गुड नाईट हो जाएगा |” अपने में ही बडबडाते हुए कार्तिक पीछे की ओर जाने लगा|
उसे जाता हुआ देख देव भी अपनी बाइक वापस मोड़ लेता है|
कार्तिक पीछे की दीवार के पास आकर एक बड़े से ड्रम की सहायता से उस दीवार पर चढ़ते हुए ऊपर के कमरे में चढ़ने लगता है| ये ड्रम वाल इंतजाम उसी ने इस तरह से अपने कमरे में घुसने के लिए कर रखा था| उस ड्रम की वजह से वह बड़ी आसानी से अपने कमरे की खिड़की तक पहुंचा और उससे होता अंदर तक आ गया| कमरे में पूरी तरह से अँधेरा था पर ये सब कार्तिक के हिसाब से था| वह धीरे धीरे बुदबुदाता हुआ कमरे की तय जगह पर हाथ फेरने लगा –
‘माँ ने आज भी खाना मेज पर रख दिया होगा – बस ये टोर्च मिल जाए फिर आराम से खाना खाकर पैर पसार कर सो जाऊंगा और सुबह बापू के उठने से पहले रफूचक्कर हो जाऊंगा – ही ही ही |’
पर अँधेरे में अपनी तय जगह पर टोर्च ढूँढने पर भी जब उसे नही मिली तो खुद को डाँटते हुए बोल उठा – “अबे कार्तिक टोर्च कहाँ रखी तूने ?”
“ये लो टोर्च |” एक हाथ उसे अँधेरे में आगे आता उसे टोर्च पकड़ा देता है|
“हाँ यही तो ढूंढ…..रहा…था.|” अचानक से खुश होता उसका स्वर मिमियाने में बदल जाता है क्योंकि जिसकी शक्ल उसने नही देखी पर उसकी आवाज वह अच्छे से पहचानता था|
फिर सहसा कमरे का स्विच ऑन होता है और कमरा रौशनी से भर जाता है| कार्तिक अच्छे से जानता था कि ये रौशनी बस कमरे में हुई है बाकि उसकी जिंदगी में तो अच्छे से अँधेरा होने वाला है|
उसकी नजरो के सामने उसके पिता खड़े उसे ही घूर रहे थे और कार्तिक के हाथ से टोर्च मेज पर रखे लैम्प कर गिरी और लैम्प जमीन पर तेज आवाज के साथ गिर जाता है|
“बा बापू….|”
“बजेगा अब तेरा भोपू |”
तभी आवाज सुनकर उसकी माँ भागी भागी वहां आ गई और पीछे पीछे उसकी भाभी|
“ये क्या हुआ ?”
माँ कार्तिक को तो कभी अपने पति को हैरानगी से देख रही थी और वे गुस्से में कार्तिक को घूरते हुए बोल रहे थे – “वही मैं कहूँ कि कार्तिक साहब सारा दिन अपने दोस्त के कंधे पर सवार पूरे रुद्रपुर में आवारागर्दी करते फिरते है फिर आराम से कमरे में खाना भी मिल जाता है – सोच ही रहा था कि बिना खाना खाए साहब जिन्दा कैसे है क्योंकि साहब की माँ अपने प्यारे पुत्र के लिए रोजाना खिड़की खोलकर मेज पर खाना सजाकर जो जाती है|”
ये सुनते वे एक सख्त नज़र अपनी पत्नी की तरफ भी करते है तो वह हड़बड़ाती अपने पीछे खड़ी अपनी बहू को देखती हुई कहती है – “क्यों बहू ये तुम हो न जो खाना रख देती हो |”
“म म मैं माँ जी !!” बहु हैरान नजर उनपर डालती है|
“चलो माफ़ कर दिया पर गलत बात है न जब ससुर जी मना करते है तो भी तुम खाना रख देती हो – चलो कोई बात नहीं |” माँ बहु को आँख नचाती हुई अपनी बात कहती है पर उनकी आँखों का इशारा बापू अच्छे से देख लेते है|
“कोई बात क्यों नही – जब गलती बहू ने की है तो सुधार भी वही करेगी – जाओ खाना ले जाओ |”
“अरे क्या करते है जी – खाना रहने दीजिए न – अब रखेंगे तो अन्न बर्बाद जाएगा न – और कार्तिक क्यों आते हो लेट – चलो खाना खाओ और चुपचाप सो जाओ |” माँ जल्दी से आगे आती बात बनाने की कोशिश करती है|
पर बापू पूरे तैश में थे|
“खाना तो खा लो बच्चू पर इतना याद रखना कल से दूकान में मेरे साथ चलोगे – समझे न – तुम्हारी रोज रोज ककी आवारागर्दी देखता हूँ कैसे चलेगी |” कार्तिक को हुकुम सुनाते वे पत्नी को घूरते हुए वहां से चले जाते है|
उनके जाते माँ कार्तिक के पास आती उसे प्यार से संभालती हुई कहती है –
“सुन बेटा कल जरुर चले जाना दुकान वरना अब आगे क्या होगा तेरी माँ के बस में नहीं|”
कार्तिक बुरा सा मुंह बनाए उन्हें देखता रहा और माँ अपनी बहु के साथ कमरे से चली गई|
“आज का साला दिन ही खराब था – अब तो कार्तिक भाई तू कल से बलि चढ़ के रहेगा – चल देव को फोन करके बता देता हूँ |” फिर खुद से बाते करता हुआ अपने मोबाईल से वह देव को कॉल लगाता है – “यार आज तेरे यार के नाम का वारंट जारी हो ही गया – कल से दूकान पर बैठना है |”
“यार तू नही रहेगा तो कैसे मैं नीमा को खोजूंगा |”
“देख दो दिन कैसे भी निपटा लेता हूँ फिर किसी तरह से बापू को चकमा देकर मिलता हूँ न |”
“ठीक है |”
कॉल काट कर वह एक गहरा उच्छ्वास छोड़ता हुआ खाने की थाली लिए बिस्तर पर पालथी मार कर बैठ जाता है|
कार्तिक की मस्ती और देव की नीमा को लेकर खोज आखिर उसे किस मक़ाम में पहुंचाएगी जानने के लिए पढ़ते रहे इश्क की अजब दास्ताँ…
अगले दो तीन दिन तक वे सारे अख़बार पर नज़र गड़ाए रहे पर अभी तक उनके लायक कोई खबर नहीं मिली| अगले पांच दिन बाद एक खबर जिसे पढ़ते देव उछल ही पड़ा| इस वक़्त वह कार्तिक के साथ बैठा रोजाना की तरह चार पांच अख़बार में सर खपा रहा था|
“चल जगतपुरा चलना है |” कहता हुआ देव अख़बार अपनी शर्ट के अन्दर डालता हुआ कार्तिक को लगभग खींचते हुए उठा देता है|
“रुक तो ?” कार्तिक पूछता रह गया और देव बाइक लिए तैयार हो गया जाने को|
“बता तो जगतपुरा क्यों ?”
“काली मंदिर के पास हुआ हंगामा – खबर छपी है|” कहता हुआ देव एक हाथ बाइक के हैंडल से हटाकर शर्ट के अन्दर से अख़बार निकालकर पीछे बैठे कार्तिक की ओर बढ़ाता हुआ कहता है|
“तो !!” अख़बार उसके हाथ से लेता उसकी पीठ पर टिका कर देखता हुआ पूछता है|
झटके से बाइक रोकता देव कार्तिक की तरफ मुड़ता हुआ कहता है – “इसका ये मतलब है कि नीमा की मौसी जगतपुरा में रहती है |”
ये कहते देव के चेहरे पर जैसे हजारों गुलाब खिल आए थे| जैसे नीमा बस उसके सामने ही आने वाली हो| पर कार्तिक को देव की बात बिलकुल समझ नही आई थी और वह अभी भी हतप्रभता से उसका चेहरा ताक रहा था|
कार्तिक अभी भी अनबूझा सा देव की ओर देख रहा था, वह अभी भी नही समझ पाया था कि आखिर देव क्यों जगतपुरा जा रहा है और क्या सच में ऐसी कोई खबर छपी है जिससे उसे नीमा का पता मिल चुका है| कार्तिक जबतक अपने दिमाग को मथता हुआ कोई विचार निकालता उससे पहले ही देव बोल उठा –
“जगतपुरा चौकी में नीमा की मौसी ने किन्ही अज्ञात लोगों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करायी है जो लगातार उनका पीछा करते घर में ताकाझांकी की कोशिश कर रहे थे|”
“नीमा की मौसी लिखा है इसमें जो तू इतना श्योर है|”
“अबे नाम लिखा है न सुशीला बिष्ट जो बीमा कम्पनी में काम करती है तो ये नीमा की मौसी के अलावा कोई हो ही नही सकता -|”
“अच्छा तो पूरे रुद्रपुर में अकेली सुशीला बिष्ट बीमा कंपनी में काम करने वाली होगी – अबे क्यों पल्लाया जा रहा है -|”
“सुन तो तभी तो जाकर ठीक से पता करना है – तू बस चुपचाप बैठ और चल मेरे साथ और जो मैं कहता हूँ वो बस करता जा|” कहता हुआ देव बाइक में सीधा होता बाइक स्टार्ट कर लेता है|
“तू मुझे कह रहा है और तू कितना श्योर है कि पक्का वो पीछा करने वाले रिपोटर लोग होंगे |”
“हाँ बिलकुल हो सकता है|” बाइक चलाते चलाते देव कहता है|
“और जो तू जो बोला करोड़ों का बीमा वाली बात – वो बात सच्ची है या झूठी !!”
“मुझे क्या करना – करोड़ों के बीमा वाली बात सच है या झूठी – मुझे बस नीमा का पता जानना है इसलिए जो समझ आया बस बोल दिया |”
“तू न किसी दिन इस नीमा के चक्कर में साला पिटवाएगा जरुर – देख लेना |”
फिर देव बाइक को अचानक से रोकने के लिए ब्रेक लगाता है जिससे कार्तिक आगे की ओर झुक जाता है जिससे एक बार फिर कार्तिक देव पर चिल्ला उठता है पर देव को कहाँ कुछ परवाह थी वह बस मुस्काए जा रहा था| अब वे बीमा ऑफिस की बिल्डिंग के बाहर खड़े उसे देख रहे थे| कुछ पल तक वही खड़ा देव बिल्डिंग निहार रहा था ये देख कार्तिक उबता हुआ उससे पूछता है – “अब क्या आँखों से स्कैन कर रहा है क्या !”
“काश कर सकता |” कहता हुआ देव खुद पर ही हँस पड़ा|
“फालतू बात बंद कर – अब तू जल्दी से अन्दर जा और जो पता करना है वो पता करके जल्दी से आ |” कहता हुआ स्टैंड पर खड़ी बाइक पर बैठे बैठे ही कार्तिक कहता है|
“मैं नही तू जा रहा है अन्दर |”
ये सुनते कार्तिक अपनी जगह से ऐसे उछला मानों कई वॉट का झटका लगा हो|
“हाँ तू जाएगा – देख मेरी शक्ल उसकी मौसी पहचानती है तो फालतू में कुछ गड़बड़ हो जाएगी इसलिए तू जा अन्दर और पता कर सुशीला बिष्ट के बारे में |”
“मैं नही जा रहा कहीं |” एकदम से ठुनकते हुए कार्तिक बाइक से उतरता हुआ बोला –“जब देख मुझे ही बलि का बकरा बनाता है – मैं क्या बोलूँगा वहां जाकर ?”
“हाँ ये तो तू सही बोला – रुक – बस दो मिनट रुक मैं आता हूँ |” कहता हुआ देव जल्दी से अकेला बाइक पर बैठता हुआ कहीं निकल गया और पीछे कार्तिक उसे रोकता ही रह गया|
और वाकई अगले कुछ ही पल में बाइक लिए देव उसके सामने हाजिर था, कार्तिक हैरान उसे देखता रहा, उसके हाथ में कोई पैकेट जैसा था जिसे लिए कार्तिक को किसी कोने में ले जाता हुआ कह रहा था – “देख ये पहन कर अन्दर चला जा – इस कपडे में बिलकुल गरीब किसान लगेगा बस अन्दर जाकर बीमा कराने की कोई बात बोलते बोलते सब पता भी कर लेना |”
कहते हुए देव उस पैकेट में से कोई कपडा निकालते कार्तिक को देता है, वह लगभग फटा हुआ कुर्ता था जिसे देखते कार्तिक और भड़क उठा – “ये ये मैं पहनूंगा !”
“अब पहन ले न – ज्यादा नाटक मत कर इसमें तेरा लुक बिलकुल मजबूर किसान वाला हो जाएगा – देख तू मेरा यार है और अपनी दोस्ती के लिए इतना भी नही करेगा -!”
देव किसी तरह से अपनी हँसी रोकते हुए कह रहा था तो कार्तिक बुरी तरह से उखड़ गया जिससे वह उसे किसी तरह से मनाते हुए आखिर कुर्ता पहनाकर उसे अन्दर भेज देता है|
मरता क्या न करता कार्तिक बस मुंह उठाए अन्दर चल दिया| देव हमेशा उसे चने के झाड में चढ़ा देता| उसे कुछ समझ नही आ रहा था कि अन्दर जाकर क्या बोलेगा बस जिबह को जाती बकरी की तरह खुद को घसीटते हुए अन्दर जा पहुंचा|
“हाँ किधर ?” ऑफिस के गेट पर चौकीदार उसे रोकते हुए पूछता उसे ऊपर से नीचे देखता हुआ कहता है – “कहाँ चले – किससे मिलना है ?”
“बीमा कराने जाना है – छोटा किसान हूँ साहब |” कार्तिक जबरन अपना मुंह लटकाते हुए हाथ जोड़कर गिडगिडाया|
“छोटा किसान !! छोटा चेतन सुना था ये छोटा किसान क्या होता है ? वैसे कपडे को देखते हुए शक्ल कुछ मिल नही रही|” शक्की नज़रे कार्तिक पर गड़ाते हुए चौकीदार बोला|
उसके टोकते देख कार्तिक खुद अपना हुलिया ऊपर से नीचे देखता हुआ मुंह बनाते बोला – “हाँ तो आधा किसान हूँ न |”
“आधा किसान !!” वह मुंह खोले उसे देखता रहा|
“हाँ वो मेरा खेत आधा शहर में तो आधा गाँव में पड़ता है तो जब शहर वाला हिस्सा उगता है तोउसे गाँव में बेच देता हूँ और जब गाँव वाले हिस्से में उगता है तो उसे शहर में बेच देता हूँ – और जब शहर वाली फसल बेचने जाता हूँ तो गाँव वाला कपड़ा पहनता हूँ और जब गाँव वाली फसल…|”
“बस बस समझ गया मेरे बाप – तू जा अन्दर |” परेशान चौकीदार हाथ कार्तिक के सामने हाथ जोड़ लेता है|
क्रमशः……..