Kahanikacarvan

इस कदर प्यार है – 16

अन्दर जाने का रास्ता मिलते कार्तिक झट से अन्दर चल देता है| अन्दर आते वह ऑफिस की ओर बढ़ता हुआ जगह जगह लगी नेमप्लेट पढ़ते हुए आगे आगे बढ़ता रहता है| आखिर उसे किसी टेबल पर सुशीला बिष्ट लिखा दिखा तो खुश होता हुआ उधर देखता है पर वहां टेबल पर उस समय कोई मौजूद नहीं था| वह उन्हें ढूंढने इधर उधर ताक ही रहा था कि उसके कानों से कोई तेज आवाज टकराई – “इधर से सब भीड़ हटाओ – मछली बाज़ार बना रखा है – हटो सब और फालतू लोग सब बाहर जाओ |” बडबडाती हुई सुशीलादेवी उधर ही चली आ रही थी, कार्तिक अब गौर से उसे देखने खड़ा रहता है| तेज स्वरूप, प्रौढ़ होते हुए भी गज़ब की फुर्ती से उधर ही चली आ रही थी|

“तुम्हे अलग से कहना पड़ेगा |”

कार्तिक को अपने टेबल तक जाने वाले रास्ते पर खड़ा देख उसे भी अपनी सख्त नज़र से घूरती हुई बोली तो कार्तिक एकदम से सकपकाते हुए बोल उठा – “म म मेरा बीमा – मुझे बीमा कराना है |”

किसी तरह से हकलाते हुए अपनी बात कहता है|

“किसका |”

“अपनी बकरी का |” उसे जो समझ आया वह बोल पड़ा|

“बकरी !!” वह यूंह मुंह बनाकर उसे देखने लगी मानों दूसरी भाषा में वह बोला हो|

“हाँ बकरी – क्यों बकरी का नही कराते बीमा – देखिए मेरी बकरी मुझे अपनी जान से ज्यादा प्यारी है इसलिए उसका बीमा कराना है|” कार्तिक भरपूर नाटकीयता से बोलता रहा – “नन्ही सी प्यारी सी बकरी है मेरी उसके लिए मैं अपनी सारी जमीन जायदाद सब गिरवी रख दूंगा पर उसे कुछ नही होने दूंगा |”

“ये क्या बकवास है !” उसके नाटक से उबती हुई सुशीलादेवी उससे पीछा छुड़ाकर भगाना चाहती थी लेकिन तभी बड़े बाबू अपने केबिन से निकलते दिखे जिससे वे जल्दी से अपने चेहरे पर नरमी के भाव लाती हुई बोलती है – “अच्छा अच्छा समझ गई तुम थोड़ी देर बाहर इंतजार करो मैं कागज देखती हूँ |”

“पर मेरी बकरी को तो कुछ नही होगा न !”

“हाँ हाँ कुछ नही होगा – हम तो यहाँ बैठे ही है बीमा करने – तुम्हारे पास गधा भी होता तो उसका भी कर देती बीमा |” कार्तिक पर झुंझलाती दांत पीसती हुई बोली|

“हाँ है न गधा – क्या आप उसका भी कर देंगी बीमा !”

उसकी बात पर सुशीलादेवी एक पल को मुंह खोले देखती रही, गुस्सा तो बहुत आ रहा था पर किसी तरह से गुस्सा जब्त करती नरमी से बोलती है – “एक नही दो गधो का कर दूंगी – साथ में तुम्हारा भी फ्री में कर दूंगी पर अभी के लिए तुम उधर जाकर बैठो – मुझे कागज भी तो देखने है – आखिर तुम्हारे प्यारे गधे बकरी के बीमा के लिए तो बैठी हूँ मैं यहाँ |”

कार्तिक उनका चिढ़ना देख मन ही मन मुस्कराता ख़ुशी से उछलता हुआ अब उधर चल दिया जिधर से आया था| अब ऑफिस में धीरे धीरे भीड़ बढ़ने लगी थी| कार्तिक उनसे दूर बैठा भी उन्ही की ओर नज़र गड़ाए था| वह देख रहा था कि वह जल्दी जल्दी कुछ फाइलों को इधर से उधर रखती जा रही थी| कार्तिक देखता है कि दरवाजे के पास के कोने के स्टूल पर बैठा चपरासी अब ऊँघ रहा था जो कार्तिक झटपट उसके पास जा पहुंचा, चपरासी भी बोर हो रहा था इससे उसके साथ बात करने को सहज हो उठा|

इधर उधर की बात करते कार्तिक बातों बातों में सुशीलादेवी के बारे में पता करने लगा इस पर चपरासी कार्तिक के कानों के और पास आता कहता है – “अरे बस तुम बैठे रहो वहां करोडो का बीमा वाली टेबल है वो न तुम्हारे बकरी कुत्ता का करने वाली बीमा |” कहता ही ही करता हँस पड़ा|

“अच्छा इतना पैसा मिलेगा मेरी बकरी का !”

“बकरी नही आदमी का – खुद के भी तो पति का बीमा कराकर करोडो..|” कहते कहते अचानक रुकता हुआ कार्तिक का अपनी ओर उठा मुंह देख चुप हो गया|

“करोडो !!”

“कुछ नही कुछ जाओ अभी इंतजार करो|” अब चपरासी अपनी बात से कटने लगा|

“हाँ वो तो कर ही रहा हूँ |”

कार्तिक की बेचारी आवाज पर चपरासी उसपर तरस खाता बोलता है – “वैसे आज कोई काम नही करने वाली मैडम – इनको घर जाना है जल्दी – इनकी बेटी आज विदेश जो जा रही है वापस |”

“बेटी !!” ये सुनते कार्तिक के कान खड़े हो गए|

“हाँ बेटी है अपने पति संग कनेडा जा रही है तो आधे दिन की छुट्टी लगाई है इसलिए बेकार है बैठना – कल आना |”

ये सुनते कार्तिक के होश फ़ाक्ता हो गए, उसी पल उसे देव का ख्याल आ गया कि कहीं उनकी बेटी नीमा की बात तो नही कर रहा !! क्या नीमा की शादी कर दी!! तो अब देव की क्या हालत होगी !!

उस पल कार्तिक के दिमाग में ढेर बेचैनी उतर आई, देव जो बाहर उसका इंतजार कर रहा है अब उससे क्या कह पाएगा वह !! फिर किसी तरह से खुद को सयंत करता वह चपरासी की ओर दयनीय मुद्रा बनाता बोल उठा – “तो मेरा काम नही होगा क्या – अच्छा अगर बकरी का दूध उनके घर पहुंचा दूँ तो क्या वे जल्दी से मेरा काम कर देंगी – भैया इनका घर बता दो तो बड़ी कृपा होगी |”

कार्तिक इतनी दयनीयता से बोला तो चपरासी भी ऊपर उदार होता बोला – “देखो पता बता दूँ पर ये किसी से न कहना कि मैंने बताया |”

“हाँ कसम से |” जल्दी से गले की गुठली पकड़ते हुए बोला|

जैसे ही चपरासी ने पता बताया कार्तिक सर पर पैर रखे बाहर की ओर भागा, बाहर आते वह देखता है कि देव सच में बड़ी बेचैनी से उसका इंतजार कर रहा है| एक पल को उसकी बेचैनी देख कार्तिक का मन कांप उठा|

प्रथम घर में आते ही देखता है कि नीमा बेबी को संभाल रही थी, देखकर लग रहा था कि वह बेबी को नहलाकर उसे कपड़े पहना रही थी| साथ साथ कुछ याद आने पर वही रखे बैग में रख लेती| मुख्य कमरे में कई बैग पैक स्थिति में रखे थे| प्रथम कमरे को एक सरसरी दृष्टी में देखता हुआ अन्दर के कमरे की ओर बढ़ जाता है| अन्दर के कमरे में दीपा चादर ओढ़े सो रही थी| वही जमीं पर रखा एक बैग खुली अवस्था में रखा था| प्रथम ये देख दीपा के पास आता उसे हिलाकर जगाता है|

अचानक सामने प्रथम को देख दीपा ऑंखें मलती हुई उठ जाती है|

“अरे आप आ गए !”

“तुम सो रही हो – जाना नही है क्या ?”

“क्या बात कर रहे है – क्यों नही जाना !” प्रथम के सवाल पर अपना सवाल जड़ती हुई वह चौंकी|

“तुम्हारे पास रखा बैग अभी भी पैक नही है और मैं देख रहा हूँ कि नीमा बेबी को संभालती हुई बैग भी पैक कर रही है – क्या इसीलिए तुम उसे अपने साथ ले जा रही हो ?”

प्रथम की बात सुन दीपा फर्श पर का खुला बैग देख अपनी जीभ दांतों तले दबाती फंसी सी हँसी हँसती हुई बोली – “अरे नही – सब बैग पैक करके ही लेटी थी बस यही रह गया – जानू थक गई थी न |” अपने हाव भाव में ढेर मादकता भरती दीपा अब प्रथम के पास सरकती हुई उसके कंधे से लगती हुई बोली – “बेबी के बाद से थोड़ी वीक हो गई हूँ न इसलिए जल्दी थक जाती हूँ |”

कहती कहती वह उसकी गर्दन से कानों के बीच अपनी उंगलियाँ फेरती रही| प्रथम भी मुस्करा उठा|

“और जानू तुम्हें ऐसा क्यों लगता है कि नीमा को मैं काम करवाने ले जा रही हूँ – वो मेरी छोटी बहन जैसी है – इजा ही उसे हमारे साथ भेज रही है ताकि उसका अच्छे से हम वहां उसका ख्याल रख सके |” दीपा उंगलियाँ फेरती फेरती अपने होठ उसके कानों के पास ले आती है|

“पता है न उसके पिता ने तो उसे मरता हुआ छोड़ दिया था वो तो इजा थी जिन्होंने उसको घर दिया और उसका इलाज करवाया पर अब इस रुद्रपुर जैसे छोटे कसबे में तो ज्यादा कुछ है कहाँ !! तो इजा चाहती है कि कनेडा में उसकी काउंसलिंग हो ताकि वह भी अपना सामान्य जीवन जी सके – उसकी भी शादी हो और मेरी तरह उसे भी प्यारा सा पति मिले |” अपना अंतिम शब्द और बहकती हुई कहती वह उसे अपनी ओर खींचती उसके कानों को अपने होंठों के बीच दबा लेती है जिससे मदहोश होता प्रथम भी उसे अपनी बाँहों के बीच घेर लेता है जिससे उस पल कमरे में दीपा की खनकती हँसी गूंज उठती है|

जाने की सारी तैयारी हो चुकी थी| मौसी नीमा के पास बैठी उसका सर प्यार से सहलाती उसे समझा रही थी –

“देखा मैं भी कहाँ चाहती हूँ कि तुम यहाँ से जाओ बल्कि तुम्हारे जाते मैं तो अकेली रह जाउंगी पर क्या करूँ बेटियां कहाँ टिकती है माँ के पास – |”

नीमा मौन आँखों से उनकी ओर देखती है जिसमे अब कुछ बुँदे झिलमिला उठी थी|

मौसी उसकी ठोड़ी उठाती हुई बोली – “दीपा के पास रहोगी तो कुछ सीखोगी – बड़ा देश है अब पता है न इस छोटे कसबे में सिवाय बुनियादी सुविधाओं के है क्या – मैं चाह कर भी तुम्हारे लिए कुछ नही कर पाऊँगी |”

नीमा बस सर झुकाए रही|

“तुम बिलकुल परेशान मत हो – अगर तुम्हें वहां अच्छा नही लगा तो झट से बुला लुंगी यहाँ तुम्हें – फिर क्यों परेशान होना – अब मान लो जैसे कुछ दिन बस घूमने जा रही हो – चलो अब चलने का समय हो गया है – अभी दिल्ली पहुंचकर हवाईजहाज मिलेगा |”

मौसी अपनी बातोंसे से उसे ढेर दिलासा देकर उसे जाने को तैयार करती दीपा को पुकारती हुई अन्दर कमरे की ओर आती है जहाँ दीपा आखिरी बैग पैक करने में लगी थी|

उसे बैग पर जोर अजमाइश करते देख उसके पास आती हुई वे बोली – “ओहो तुम्हारी अभी तक पैकिंग नहीं हुई – चलो टैक्सी बस आने ही वाली है |”

अपनी माँ की आवाज सुन दीपा उसका हाथ पकड़कर अपनी ओर खींचती अपनी हँसी होंठो के बीच दबाती हुई धीरे से बोली – “वाह इजा तुमने तो कमाल कर दिया इस बार तो मुझे कुछ करना ही नहीं पड़ा – सब उस पगली ने कर दिया |”

“चुप !!” जल्दी से अपने आस पास देखती दीपा को आँखों से चुप करती हुई बोलती है – “पगली क्यों बोलती है – अच्छी खासी भली तो है !”

“क्या भली है – एक तो नाममात्र को बोलती है फिर जब देखो खिड़की के पास खड़ी जाने कहाँ गुम खड़ी रहती है |”

“ओहो जाने दे न – बस ये ध्यान रख उससे तुम्हारा काम तो बन रहा है फिर खाली वक़्त में खिड़की से ताके या दरवाजे से – अब ऐसा कुछ फालतू मत बोल देना वरना प्रथम उसे यहाँ ले आएँगे और तू अकेली वहां खटती रहेगी -|”

अपनी माँ की बात सुन अपने होंठ दबाती हुई स्वीकृति में सर हिलाती है|

“अच्छा चलो अब प्रथम टैक्सी लेकर आते होंगे |”

माँ बेटी जल्दी से उठकर बाहर के कमरे की ओर निकलकर फिर से पैक बैग का मुआयना करती हुई नीमा को आवाज लगाती है तो सोई हुई बेबी को गोद में लिए हुई वहां आती है|

कार्तिक देव के सामने आ तो गया पर उससे कहते कुछ न बना लेकिन जिस बेसब्री से देव उसका इंतजार कर रहा था उससे उसका मौन रहना मुश्किल था आखिर उसने जो सुन और समझा वो देव को बता दिया|

देव भी उसकी बात सुनकर जाने कौनसी मौन की खाई में गुमनाम हो चुका था| अब वे ताल पर आकर उस एकांत में बैठे जैसे उस हालात से संभलने का प्रयास कर रहे थे| ये देख कार्तिक उसे संभालता हुआ बोला – “यार पहले ही कहा था – इतना दिल न लगा कि टूट कर संभल भी न पाओ|” वह उसका कन्धा थामे हुए कहता रहा – “यार वो तेरी थी ही कब – जाने दे न तूने बहुत किया उसके लिए अब और क्या करेगा |” कार्तिक देव की हालत को समझ रहा था कि उसका समझाना तो बस शाब्दिक है पर इस वक़्त उसके दिल पर क्या गुजर रहा है उसका बस अंदाजा भर ही लगाया जा सकता है|

बहुत देर की ख़ामोशी के बाद कार्तिक फिर कहता है – “चल अब घर चलते है |”

“तूने सही कहा यार – आखिर मैं उसे खुश ही तो देखना चाहता था अब अगर घर बसाकर वह खुश है तो मैं दुखी क्यों रहूँ |” कार्तिक का हाथ अपने कंधे से हटाता हुआ देव जबरन मुस्करा उठा|

“बस यार एक आखिरी बार उसे देखना चाहता हूँ |”

क्या यही अंत हो जाएगी देव और नीमा की प्रेम कहानी ? क्या होगा देव की दीवानगी का ? क्या कार्तिक अपने यार के लिए कुछ कर पाएगा? जानने के लिए पढ़ते रहे इश्क की गुदगुदाती कहानी…

क्रमशः……

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