
इस कदर प्यार है – 19
सुबह आंख खुलते देव करवट बदलता हुआ देखता है कि उसके आस पास उसकी माँ और पिता मौजूद थे| वह आश्चर्य से उनकी ओर देखता है|
माँ उसका सर सहलाते कहने लगी – “हर एक दिन नई सुबह एक नई उम्मीद लेकर आती है तो तुम कैसे बेउम्मीद रह सकते हो मेरे बच्चे |”
“हाँ और क्या – हम तुम्हें ऐसे उदास थोड़े रहने देंगे |” पिता भी उसके पास बैठते उसके कंधे पर हाथ रखते कहते है|
और देव उनकी ओर अभी भी आश्चर्य से देख रहा था जैसे उसे कुछ समझ ही नही आ रहा हो|
“कैनेडा कौन सा दूर है और जहाँ मन हो वही शरीर भी होना चाहिए |” माँ मुस्कराती हुई कह रही थी – “तुमने जब नीमा के लिए इतना किया तो क्या अब उसके दूर जाने से उसका साथ छोड़ दोगे ?”
“और क्या कैनेडा जाने को जितने का टिकट लगेगा मैं दूंगा पर बेटा यूँ खुद के साथ अत्याचार मत करो ये मैं कभी नही देख पाउँगा – अपने बच्चो को उदास मैं नही देख सकता|” देव के पिता के आखिरी शब्द भर्रा गए थे|
देव उस पल उनका चेहरा गौर से देखता रहा ऐसा करते उसका मन गर्व से भर उठा आखिर यहीं तो उसकी खूबसूरत दुनिया है जहाँ उसके लिए उसके अपनों के दिल में अपूर्व प्रेम विधमान है|
“मैं तो न कभी खुद रुद्रपुर से बाहर गया न तुम ही गए बेटा पर आज तुझे ख़ुशी से हम कनेडा भेज रहे है – जा और दिल की कर ले अपनी |”
वे उनकी आँखों में देखता है जो उस पल उसके लिए संसार की सबसे विश्वसनीय थी वह जानता था कि उसके पिता जो शायद कभी अपनी स्कूल की पढाई भी पूरी नही कर पाए पर अपने बच्चों का मन पढना खूब जानते थे, आज तक उसकी कोई बात अनसुनी नहीं की थी पर आज तो बिन कहे ही उसके मन की सुन ली थी| वह झट से उनके गले लग गया – “आप दुनिया के बेस्ट पापा हो और आप बेस्ट माँ |” अपनी दूसरी बांह अपनी माँ के गले में डालता देव अब एकसाथ दोनों के गले लग गया था|
देव के पिता उसके हाथ में एक पैकेट रखते है तो देव उस पैकेट को आश्चर्य से देखते भौं उचकाकर उनकी ओर देखता है|
“एक लाख है जाकर टिकट ले ले |”
“पापा पहले वीजा बनेगा |” देव जल्दी से कहता है|
“ओहो जो भी है बनवा ले और आगे भी और जरुरत हो तो बताना |”
वे हर्ष से अपनी बात कह रहे थे पर देव उस पल अचानक उदास हो उठा – “पापा जो मैं करने जा रहा हूँ क्या वो सही होगा !! क्या मैं नीमा को ढूंढ भी पाउँगा !! जब रुद्रपुर में ही ढूंढने में दो महीने लग गए तब दूसरे अनजान देश में उसे कैसे खोज पाउँगा मैं !!”
देव का परेशान स्वर सुनकर वे उसका हाथ थामते उसकी आँखों में देखते हुए कहते है – “देव तुझे पता है मैंने अपनी दुकान की दीवार पर फूल पत्ती या पेंटिंग सजाने के बजाये जगह जगह कोटेशन क्यों लिखवाई है – पता है क्यों -|” देव उनकी ओर गौर से देखता रहा और वे कहते रहे – “मेरे पिता इतने मजबूर थे कि मुझे स्कूल नही भेज पाए और मजबूरन मुझे अपने साथ दुकान पर बैठाने लगे तब उनसे मैंने जीवन का वो सबक सीखा जो किसी स्कूल में नही सिखाया जाता और इसी जीवन के मूल सूत्रों को सदा याद रखने मैंने दुकान की दीवारों पर लिखवा लिया और जब भी मैं परेशानी में होता हूँ न तो अपने पिता को याद करते बस अपने सामने देखता हूँ और उस समय मेरी नज़रों के सामने जो कोटेशन होती है वही मुझे आगे का रास्ता भी दिखाती है – तो देव तुमभी ऑंखें बंद कर बस ध्यान करो और आगे बढ़ो ईश्वर अच्छे लोगों का साथ कभी नही छोड़ते –|”
“सही कहते है आप – यू आर माय रियल इंस्पिरेशन पापा |”
पापा के गले लगे वह मन ही मन नीमा को याद करते बुदबुदाता है –‘आ रहा हूँ मैं तुम्हारे पास नीमा – मेरा इंतजार करना |’ कहकर मन ही मन मुस्करा उठा|
‘आक्छी.. एस्क्युज मी|’ नीमा को अचानक छीक आ जाती है जिससे उसके पास बैठी दीपा घूर कर उसकी तरफ देखती है|
“नीमा – शायद तुम्हें ठण्ड लग रही होगी – तुम्हें कुछ शौल ले लेना चाहिए |” उनसे कुछ दूर बैठे प्रथम का ध्यान भी नीमा की ओर जाता है|
वे सभी छुट्टी के दिन बाहर गार्डन में बैठे थे, अभी मौसम में जाती हुई हलकी सी धूप फर्श से धीरे धीरे सरक रही थी|
“पर अभी तो धूप है – अभी कौन सी ठंडी आई है|” दीपा थोड़ी चिढ़ी हुई आवाज में बोलती है|
“तब तो फिर तुम्हें कोई याद कर रहा होगा नीमा |” हलकी मुस्कान के साथ प्रथम ने कहा|
ये सुन नीमा भी हलके से मुस्करा दी पर दीपा तुरंत ही अपनी तिरछी मुस्कान से कहती है – “इसे – इसे कौन याद करेगा !”
दीपा कहकर जिस तरह हँसी प्रथम को बुरा लगा वह तुरंत ही नीमा की ओर देखता है जो अब सर झुकाए अपनी आँखों के भाव उनसे छुपा ले गई|
“हाँ हो सकता है हॉस्पिटल वाले याद कर रहे होंगे|”
“दीपा प्लीज..|” प्रथम अब कहकर उसे टोकता है|
“आई एम् जस्ट जोकिंग –|” कहकर वह फिर कसकर हँस दी|
प्रथम उसे फिर टोकना चाहता था पर तभी वह देखता है कि नीमा उठकर जा रही थी| इससे पहले कि वह उसे रोकता वह बिना उनकी ओर मुड़े कहने लगी – “बेबी उठ गई होगी – मैं देख कर आती हूँ |”
कहकर नीमा बिना उनकी ओर मुड़े तुरंत ही वहां से चली गई, पीछे प्रथम दीपा को कुछ समझा रहा था और वह यूँही हंसी में उसकी बात उड़ा रही थी|
देव तुरंत ही तैयार होकर बाहर निकल गया, अब उसकी मंजिल ट्रेवल एजंसी थी| आज उसकी बाईक मुख्य सड़क से निकलने के बजाये गलियों मैदानों से गुजर रही थी जिसके दोनों ओर घने पेड़ों के झुरमुट नज़र आ रहे थे| वह आने वाले वक़्त के इंतजार में इतना खुश था कि उसका मन कुछ गुनगुना रहा था| उसकी बेखुदी का ये आलम था कि उसके बुदबुदाते होंठ कुछ गुनगुना रहे मानों अभी वह बस दो पल बाद ही नीमा उसके सामने होगी पर दिमाग जानता था कि उसकी मंजिल अभी बहुत दूर है पर दीवाने दिल ने कहाँ दिमाग की सुनी कभी……नीमा का ख्याल कर देव मुस्कराकर गुनगुना उठा….
वादा रहा सनम होंगे जुदा न हम
चाहे न चाहे ज़माना
हमारी चाहतों का मिट न सकेगा फ़साना……….
दिल्ली से महज छह घंटे की दूरी पर होने और हल्द्वानी जो उत्तराखंड के पहाड़ी पर्यटन का प्रवेश द्वार माना जाता है उसके नजदीक होने से रुद्रपुर ट्रेवल एजंसी का एक बहुत बड़ा गढ़ था| रुदपुर के लगभग हर स्थान पर ट्रेवल एजंसी मौजूद थी| इसलिए देव को किसी ट्रेवल एजंसी तक जाने के लिए ज्यादा खोजबीन नही करनी पड़ी| दोपहर के समय वह किसी ट्रेवल एजंसी के अन्दर जा रहा था|
“हाँ जी बोलिए |” अन्दर प्रवेश करते देव अपनी गर्दन इधर उधर करता कुछ खोज ही रहा था उससे पहले एक लड़की जो शायद रिसेप्शन पर बैठी थी उसे टोकती हुई पूछती है|
“वो मुझे कैनेडा जाने का ….|” देव अपनी बात जानकर अधूरी छोड़ता हुआ उसका चेहरा देखने लगता है|
वह भी कस्टमर देख अपनी दिलचस्प नज़रे उसपर सीधी करती कहती है – “ओके वीजा चाहिए – आप बैठिए – मैं बात करके बताती हूँ|”
देव उसकी बात पर सर हिलाता अन्दर आता उसकी नज़रों के सामने बिछे सोफे पर धस जाता है| वह बहुत हिचकिचा रहा था क्योंकि धीरे धीरे लोग की मौजूदगी वहां बढती जा रही थी और धीरे धीरे करते बीस मिनट बीतते उस लड़की ने उसकी ओर बिलकुल ध्यान नही दिया था| अब देव अपने बगल में बैठे दो व्यक्तियों पर ध्यान देता है जो अपनी गोदी में रखे बैग से धीरे से नोट निकालकर गिनते हुए आपस में बुदबुदा रहे थे|
“अभी तक एक लाख दे चुके पर टिकट अभी तक नही मिली – पहले ही सारा पैसा चाहिए |”
“क्या करे – बोला तो है – चार दिन और लगेगें |”
“पिछली बार तो यही कहा था – बोलते है सरकारी प्रक्रिया है तो काहे को खोलकर बैठे है एजंसी – सरकारी कार्यालय जाकर न बैठ जाते|” वह आदमी कुछ ज्यादा ही भन्नाया लग रहा था|
उसकी बात सुन देव अपनी पॉकेट में सहेज कर रखे पच्चीस हज़ार और अन्दर पॉकेट में सरका कर सोचने लगता है कि कही कोई गलत जगह तो नहीं बैठ गया| देव से अब वहां और नही रुका गया और धीरे से भीड़ के पीछे से वह उठकर बाहर चला गया| तभी रिसेप्शन पर बैठी लड़की मिस्टर देव की आवाज लगाती है पर बदले में उसे कोई प्रतिक्रिया नही मिलती|
देव बाहर आकर एक गहरा उच्छवास छोड़ता इधर उधर देखता है, उसे कुछ समझ नही आ रहा था कि क्या करे !! जाना भी है पर कैसे उसे कुछ पता नही चल रहा था !! तभी कोई उसे पुकारता है तो वह आवाज की ओर मुड़ता हुआ देखता है उसके पीछे कोई कोयले सा काला इकहरे बदन का कोई आदमी खड़ा उसे बड़े आत्मीय भाव से देख रहा था|
“परेशान लग रहे हो – लगता है पता चल गया ऊँची दुकान फीके पकवान |”
उसकी बात सुन देव एकदम से सकपका जाता है|
“हमसे काम बोलो फिर बस देखना भाई का नाम याद रह जाएगा |” वह मुस्करा कर अपना कोलर उठाते हुए कहता है|
देव उसके चेहरे को फिर से ध्यान से देखने लगता है, उसकी ऑंखें विश्वास से चमक रही थी|
“मुझे कैनेडा जाना है |”
“वीजा चाहिए तो एक हाथ पासपोर्ट लाओ दुसरे हाथ वीजा लो |” वह सहजता से बोला|
“मेरे पास पासपोर्ट नही |” देव हिचकिचाते हुए बोला|
“कोई बात नही वो भी बनवा देंगे बस कुछ डोकोमेंट चाहिए होंगे बस |” उसकी बात सुन देव और कुछ बोलने वाला था उससे पहले ही वह आदमी बोल पड़ा – “और वो फ्री में पासपोर्ट और वीजा बनवा दूंगा बस टिकट का जो लगेगा वो देना होगा |”
इतना सुनते देव की ऑंखें चमक उठी|
“देखो अपना काम ही है मदद करना भटको की – तुम अब बस समय जाया मत करो तीन डोकोमेंट दो और बस हफ्ता भर इंतजार करो – काम पहले होगा पैसा बाद में लूँगा |”
“ठीक है |” देव खुश होते सर झटकता उससे पूछता है कि कौन से डोकोमेंट चाहिए उसे|
“बस आधार कार्ड और पैन कार्ड की कॉपी और तीन फोटो बस |”
सब उस समय उसके पर्स में था तो बिना देर किए देव जल्दी से पास की फोटोकॉपी की दुकान जाकर सब का फोटोकॉपी करा कर उसको देता है, वह उसे अपने मोबाईल का नंबर देता है तो वह आदमी उसके सामने अपना कार्ड बढ़ाते हुए कहता है – “ये लो मेरा कार्ड – नाम याद रखना चमनलाल – अब घर जाओ और हफ्ता भर चैन से सो जाओ|” कहकर अपने सफ़ेद दांत दिखाते वह हँस देता है|
देव को भी उस पल एक सुकून सा महसूस हुआ कि वह अपनी मजिल की ओर एक कदम और आगे बढ़ गया|
कैसे कैसे करते उसके लिए तीन दिन बीते ही थे कि एक फोन आया, वह हडबडाते हुए कह रहा था – “भैया आ जाओ तुम्हारा मेडिकल होना है – लेकिन सब फिट है न अभी हफ्ता दो हफ्ता पहले बिमार तो नही हुए थे न – अगर एक बार मेडिकल फेल हो गया तो पासपोर्ट नही बन पाएगा |”
उसकी बात सुन देव तुरंत सकपका गया, एक आखिरी मौका था अगर खरा न उतरा तो फिर क्या होगा| उसकी हिचकिचाहट वह उस बार से समझता हुआ बोला – “भैया एक फेवर तुम्हारे लिए ले सकता हूँ – एक अपनी पहचान का आदमी है दो टी हज़ार में मेडिकल बना देगा – अब बोलो – आना है या ये कर दूँ |”
“जो आपको ठीक लगे |”
“मैं तो कहता हूँ – तुमको अगर जल्दी हो तो एक नंबर दे रहा हूँ उसमे फटाफट तीन हज़ार डाल दो तुम्हारा मेडिकल बन जाएगा|”
देव के पास अब कोई रास्ता नही था तो बस उस नंबर में तीन हज़ार डाल देता है| अभी इस बात को दो दिन भी नही बीता फिर से उस आदमी का फोन आ गया|
“भैया – बड़ी मुश्किल हो गई – तुम्हारा पासपोर्ट और वीजा सब बन गया – मैं लाने ही वाला था पर उसी वक़्त मेरे स्कूटर से एक्सीडेंट हो गया – मैं बेहोश पड़ा रहा सड़क पर और जब होश आया तो हॉस्पिटल में आंख खुली – अब कोई बेहोशी में वो बैग ही उड़ा ले गया – अब बताओ क्या करे – मेरा अपना पैसा भी था – एटीम कार्ड सब था – मैं बड़ी मजबूर स्थिति में हूँ – बिना पैसा इलाज नही कर रहे और इस वक़्त मेरे पास कुछ नही है – एक बार मदद कर दो – मैं ठीक होते तुम्हारा काम और पैसा दोनों लौटा दूंगा -|”
देव हतप्रभता से मोबाईल थामे बस कितना पूछ पाया|
“पचास हज़ार – भैया एक बार मदद कर दो – मैं सब लौटा दूंगा |”
उसकी गिडगिडाने की आवाज लगातार आती रही इससे देव को कुछ समझ नही आया, फिर आखिर उसने पैसा देने के लिए उसने जो नंबर दिया उसमे उसने पचास हज़ार डाल दिए| इस बार पैसा देते मन में कुछ खटका तो पर उसके पास कुछ और करने कहने को था नहीं|
पैसा देने की बात उसने किसी को नही बताई, उसी वक़्त कार्तिक उसके पास ही मौजूद था पर देव ने कुछ नही कहा|
आखिर किस धोखे मे फसने वाला है देव ? क्या नीमा से मिलने का उसका सपना सपना ही रह जाएगा..!!
क्रमशः….