
इस कदर प्यार है – 20
अगले तीन चार दिन तो देव को उस आदमी की ओर से कोई प्रतिक्रिया का इंतजार नही था पर पांचवे दिन उसने उसी नंबर पर फोन मिलाया तो नंबर आउट ऑफ़ कवरेज बताने लगा| देव लगातार मिलाता रहा पर बार बार वही सुनने को मिला| अब देव का मन बेचैन हो उठा| न उसका मन दुकान में लगा न घर पर तो वह ताल चला आया और वहां अकेला बैठा वह लगातार सौ बार उसी नंबर पर मिला चुका पर बार बार वही सन्देश सुनते उसके होश उड़ गए, एक हफ्ते के इंतजार के बाद उसका काम भी नही हुआ उल्टा किसी अनजान आदमी को वह पचास हज़ार दे चुका था|
देव पूरा दिन कोशिश करता रहा जब फोन बिलकुल भी नही मिला तो घर वापस आ गया| जहाँ कार्तिक पहले से मौजूद उसकी माता पिता के संग बैठा जोर से हँस रहा था| देव का मूड उस समय पूरी तरह से उखड़ा हुआ था इसलिए बिलकुल भी उनके पास जाने का मन नही किया पर मजबूरन उसे उनके आस आना पड़ा| उसके कमरे में आते उसके पिता एकदम से खुश होते हुए बोले – “लो आ गया देव –|”
उनकी बात सुन कार्तिक जो दरवाजे की ओर पीठ करके बैठा था तुरंत पीछे पलटते हुए ख़ुशी से उछलता हुआ बोला – “कहाँ था – कब से फोन कर रहा हूँ – हर बार इंगेज |”
देव कुछ नही कहता बस ख़ामोशी से उनके पास एक एक कदम रखता खड़ा हो जाता है|
पर कार्तिक पूरे जोश में था अब उसके सामने सीधा खड़ा होता हुआ बोला – “अपने साथ अब मेरा भी टिकट बनवा ले |”
“क्या तेरा क्यों !!” अबकी देव चौंक जाता है|
“तो क्या तू अकेला जाएगा और जो तुझे आइडिया चाहिए होगा तब क्या करेगा – मैं इसलिए चल रहा हूँ ताकि फोन करके करके तू मुझे परेशान न करे |” कार्तिक अपनी ही मस्ती में बोलता रहा |
“और क्या बेटा – तुम दोनों साथ रहोगे तो हम भी बेफिक्र रहेंगे |” उनके पीछे से देव के पिता बोले|
“देख बड़ी मुश्किल से अपने घर पर सबको राजी किया है और अब सब तैयार है तो तू कोई नौटंकी मत कर – माँ ने तो पैसो का भी इंतजाम कर दिया – बता कितने का टिकट बना ?”
देव अन्दर से झल्लाया हुआ था और बस भमकने ही वाला था कि उसकी पॉकेट में रखा फोन घनघना कर बज उठा| देव जल्दी से फोन निकालकर डिस्प्ले पर कोई अज्ञात नंबर देख हिचकिचाते हुए उठा कर हेलो कहता है|
“अरे भैया मैं हूँ – तुम्हारा पासपोर्ट, वीजा बन गया अब टिकट बनना है बस |”
एकदम से उसकी आवाज सुन देव के चेहरे का भाव बदल गया, वह हलके से मुस्करा उठा और मोबाईल लिए लिए उस कमरे से बाहर निकलकर बाहर की ओर आ गया|
“वो क्या बताए – मेरा फोन खराब हो गया था तो उसी में तुम्हारा नंबर था – अब क्या बताए कंगाली में आटा गीला हो गया – किसी तरह से उधार लेकर नया फोन ख़रीदा तब सबसे पहले तुम्ही को मिलाया भैया |”
“हाँ…. मैं थोडा…. परेशान… हो गया था|” देव रुक रुक कर हिचकिचाते हुए बोला|
“क्या लगा – पैसा लेकर भाग गया !!”
कहकर वह जोर से हँस पड़ा, उसकी हँसी की आवाज की खनक से देव को मोबाईल कुछ देर अपने कान से दूर करना पड़ा|
“अच्छा अब तीस हज़ार दे दो टिकट बनवा लेंगे – पहले का दिया पचास ये मिलाकर पूरे अस्सी हज़ार का डिस्काउंट टिकट और तुम्हारे नंबर पर पासपोर्ट की फोटो भेज देता हूँ – आराम से देख लेना फिर टिकट के साथ ही मिलूँगा |” वह अभी भी हँसते हुए अपनी बात कह रहा था|
देव अब यूँ मुस्करा उठा मानों सर से मनो टन का कोई बोझा उतर गया हो| तभी कार्तिक भी उसके पास आकर खड़ा हो गया, उसे देख उसके कंधे पर हाथ फैलाते हुए कहता है – “अपना एक जिगरी दोस्त भी जा रहा है अब उसका भी टिकट बनवा दो – मैं पैसा भेजता हूँ |”
वह जल्दी से हाँ बोलकर सारी डिटेल मोबाईल में भेने को कहकर फोन काट देता है|
देव फोन रख कार्तिक के बाजु पकड़ अपनी ओर खींचता हुआ बोलता है – “तो तैयार है तू भी |”
“हाँ और क्या – पता है तेरे लिए कितना पापड़ बेला – माँ ने बापू को मनाया वो तो मेरे जाने से उनको कोई फर्क नही पड़ता पर बात पैसों की थी इसलिए मनाना पड़ा – आखिर खोटा सिक्का जो हूँ उनका |”
“अबे तू तो मेरा चलता सिक्का है |” देव उसे अपने एक बाजू से उठाते हुए बोला|
“चल जाने दे अपन भी न कैनेडा जाकर बर्तन साफ़ कर लूँगा पर इनके पास कभी वापस नही आऊंगा |”
कार्तिक की बात सुन देव कसकर हँस पड़ा|
देव को मोबाईल से पासपोर्ट की फोटो मिल गई जिसे काफी देर तक वह देखता रहा, पासपोर्ट कैसा होता है उसने पहली बार देखा था, देव ने अपना फिर उसी एकाउंट में एक लाख दस हजार डाल दिए|
अब उसके लिए ये इंतजार के एक एक दिन काटने मुश्किल हो रहे थे, कब वह उस अनजान देश में अपनी नीमा को खोजेगा !! सोचता हुआ बेचैनी में तकिया सीने से लगाए वह करवट से लेटा लेटा ही खिड़की के कांच के पार उगते कोहरे को देख रहा था| ठण्ड शुरू हो चुकी थी, मैदानी इलाकों के लिए जो सर्दी की दस्तख थी उसके यहाँ के लिए सर्दियों की शुरुआत थी| खुला पर्यावरण होने से शाम होते कोहरे की चादर पूरे इलाके को अपने पाश में घेर लेती| वह अभी भी उस कोहरे पर नज़रे जमाए उसकी बनती बिगडती आकृति देख रहा था| कहाँ होगी नीमा !! क्या इस वक़्त मुझे याद कर रही होगी !!
वह बेखुदी में उस तकिए को और कसकर भींचे धीरे से उसका नाम पुकारता है मानों उसके कानों के पास वह बुदबुदा रहा था|
‘हिक्क …हिक्क…|’ नीमा सुबह के नौ बजे दीपा के बेड के पास इलेक्ट्रिक चाय केटल ऑन कर चुपचाप चली जाना चाहती थी पर अपनी असामयिक हिचकी से अचानक परेशान होती दूसरे हाथ से अपना मुंह बंद किए तुरंत कमरे से बाहर निकल गई|
टोरंटो में ठण्ड अच्छी खासी अपना रूप फैला चुकी थी, सुबह का पारा भी इस समय माइनस में था, आने उत्तरखंड में ठण्ड को देखा पर यहाँ की ठण्ड कुछ जयादा ही तीखी थी, नीमा को बहुत परेशानी होती पर दीपा के बताए काम सुबह उठकर उसे करने ही होते, गीजर ऑन से लेकर केटल ऑन तक उसे ही करना होता फिर बेबी का दूध गर्म करना उसके कमरे का टेम्प्रेचर चेक करना| सब वह चुपचाप कर रही थी पर ये हिचकी उसे शांत नही रहने दे रही थी| उसे याद था जब उसे ऐसी हिचकी आती तो माँ कहती कि कोई याद कर रहा है उसे और वह झट से अपनी सारी सहेलियों का नाम रटने लगती और कब हिचकी बंद हो जाती उसे पता ही नहीं चलता पर अब उसे कौन याद कर रहा होगा !! क्या मौसी जी !! वह उनका नाम कई बार ले चुकी पर ये हिचकी उफ़… वह परेशान होती कांच की खिड़की के पार कल रात की गिरी बर्फ देखने लगी जो पतली चादर सी दूर दूर तक फैली थी| कही कही किसी के भरी बूटो के निशान से एक रास्ता सा बन गया था जिसे देख उसका मन खुद से कह उठा…
कौन आया कौन गया…
सदियों का इंतजार बस हर पल को दे गया…
किसका करता है मन इंतजार..
किसकी याद पर दिल है बेक़रार..
किसका ख्याल नसों में फड़कता है…
किसका साथ पाने को मन ठहरता है…
किसी का होने का अहसास मन करता है..
किसका होने का दिल करता है…
पर कौन है वो अजनबी…
जिसका इंतज़ार हर पल ये मन करता है….
किसका इंतज़ार ये मन क्यों करता है..!!!
देव दो तीन तक तो उसके फोन के इंतजार में अपने काम में व्यस्त रहा पर अगले चौथे दिन उसके पिता उसे टोकते हुए पूछते है – “देव बेटा – कब की टिकट है – कुछ पता चला ?”
देव काउंटर समेटता हुआ उनकी ओर देखता है – “पता नही उसका फोन नहीं आया |”
“अच्छा थोड़ा इंतजार करो – हो सकता है आता होगा|”
पिता की आवाज पर देव भी सोच में पड़ गया| वह उसे कई बार फोन मिला चुका था पर फिर से उसका फोन आउट ऑफ़ कवरेज बताने लगा| अगले दिन भी जब उसका फोन नही आया तो कार्तिक और देव कार्तिक के कमरे में बैठे सोच में पड़े थे| तभी कार्तिक की माँ उनके बीच चाय रखती हुई कहती है – “बेटा कबकी टिकट कराई है बताया नही – मैं बेसन वाले तुम्हारे पसंद के लड्डू बना कर रख दूंगी |”
ये सुन दोनों जवाब देने के बजाये एकदूसरे का चेहरा देखने लगते है तभी माँ के पीछे से कार्तिक की भाभी उन्हें आवाज लगाती कहती है – “भईया जी कनेडा जाना तो मेरे लिए कुछ कनेडा वाली चीज लेकर जरुर आना आखिर मैं भी दिखाउंगी कि मेरे देवर क्या लाए कनेडा से मेरे लिए |”
“भाभी अभी जाने तो दो |” कार्तिक जल्दी से बोलता है|
“अरे तो कौन सा बरसो है जाने में – यूँ टिकट कटी और यूँ गए |” कहकर भाभी अपनी खनकती आवाज में हँस पड़ी|
आगे ज्यादा कुछ न कहते दोनों झटपट वहां से निकल जाते है| अभी वे गली पार करके गए ही थे कि नुक्कड़ का दुकानवाला कार्तिक को आवाज लगाता है – “ओ भईया – सूट प्रेस हो गया अब कब जा रहे हो कनेडा ?”
आवाज सुनते जो पहले दोनों बाइक पर इत्मीनान से चढ़ रहे थे अब जल्दी से चढ़कर तेज रफ़्तार से गली पार कर जाते है और जाकर अपने अड्डे मतलब अपनी पसंद की जगह ताल पर जाकर ही रुकते है|
“अबे लगता है सारी दुनिया हमे कनेडा भेजकर ही चैन की साँस लेगी – जिसको देखो वही पूछ रहा है कनेडा कब जा रहे कनेडा कब जा रहे हो |” खीजता हुआ कार्तिक बोलता है|
“हाँ बे अपना भी यही हाल है – दुकान पर पापा पूछ रहे थे – घर पहुंचू तो अवनि अपना राग लेकर बैठ जाती है और इधर इस चमनलाल का कोई अता पता नही|”
“यार देव इस चमनलाल ने कही अपन लोगों को चूना तो नही लगाया न – |” कार्तिक की बात सुन देव ऑंखें बाहर किए उसकी ओर देखता रहा – “देख कही कुछ गड़बड़ हुआ न तो तेरा क्या होगा पता नही पर मेरा बाप तो मुझे चीर कर दो हिस्से में कर देगा – जब से कनेडा जाने के पैसे दिए है तब से ऐसे घूरते है जैसे कनेडा नही गया तो कोयला नगर भेज देंगे |” कार्तिक मरमरी आवाज में बोलता है तो देव के चेहरे का रंग उड़ जाता है|
“फोन भी नही मिल रहा – समझ भी नही आ रहा कि कब तक इंतजार करना होगा – बस मेरा पासपोर्ट भेजकर गायब हो गया|”
“पासपोर्ट !! दिखा तो वो पासपोर्ट |” जल्दी से कहता कार्तिक देव के हाथ से उसका मोबाईल लेने लगता है|
“अब उसे देखकर क्या करेगा ?” देव स्क्रीन खोलकर उसकी नजरो के सामने करता हुआ कहता है|
“देखने तो दे – कही चमनलाल ने नकली पासपोर्ट तो नही भेजा !!”
“नकली !!” कार्तिक की बात सुन देव चौंक जाता है|
कार्तिक बहुत देर उस इमेज को घूरता रहा|
“अबे सही तो लग रहा है – फालतू में क्यों झटके दे रहा है |”
“तू इसे कैसे सही कह सकता है – तूने या मैंने इससे पहले कभी पासपोर्ट देखा था !!”
कार्तिक की बात पर देव भी सोच में पड़ जाता है|
“ऐसा करते है ये सही है या नही पता करने किसी ऐसे व्यक्ति को दिखाते है जिसने इसने पहले कभी पासपोर्ट देखा हो |”
एक बार फिर कार्तिक का आइडिया देव को पसंद आता है, अब वह हामी में सर हिलाते पूछता है – “तो जाए किसके पास ये भी बता|”
कार्तिक कुछ क्षण सोचने के बाद तपाक से बोलता है – “तेरे डब्बू चाचा के पास चलते है – वो तो विदेश यात्रा भी कर चुके है |”
एकदम से उखड़ते हुए देव बोल उठा – “डब्बू चाचा के पास – मैं नही जा रहा – मुझे अपने दिमाग का दही नही कराना – तू तो उनके साथ मिलकर दिमाग चाटने बैठ जाता है – मैं ही पागल हुआ रहता हूँ |”
“अबे अपना काम है तो चलना होगा न |”
“और वैसे तू किस विदेश यात्रा की बात कर रहा है – वो बस नेपाल गए है और उत्तराखंड की आधी आबादी यूँही घूमती टहलती नेपाल हो आती है|”
“अरे वो नेपाल बोर्डर पर टैक्सी चलाते थे न पहले और फिर अपने पास ऑप्शन ही क्या है – अब चल भी क्या पता आज तेरे दूर के चचाजान हमारे कुछ काम आ जाए |” उठता हुआ कार्तिक अब देव को भी चलने के लिए धकेलता हुआ कहता है|
“ये दूर वाले चाचा से मैं तो दूर ही रहना चाहता हूँ और बता देता हूँ – तू बस काम की बात करना फालतू बैठकर उनके संग पंचायत करने मत बैठ जाना |” देव बेमन से उसके पीछे पीछे चलता हुआ कहता रहा और कार्तिक खीसे निपोरे बाइक की ओर बढ़ रहा था|
इस बार बाइक कार्तिक चलाता हुआ ठीक चमनलाल चाचा की दुकान के सामने रोकता है| उनकी मिक्स टाइप की दुकान थी जहाँ राशन से लेकर चोकोलेट, आइसक्रीम और आगे की ओर बनती जलेबी समोसे की दुकान थी| दोपहर का वक्त होने से अभी वहां कोई ख़ास भीड़ नही थी इसलिए बाइक सामने खड़ी करते वे वही से अन्दर का पूरा जायजा लेते हुए धीरे धीरे अन्दर की ओर आ रहे थे| दुकान के कारीगर उन्हें पहचानते ही हाल लेने लगते है तभी चाचा की आवाज उनसे आकर टकराती है|
“कहाँ से आज सूरज निकला जो भतीजे चले आ रहे है चाचा के पास – आओ – आओ इधर |” उनको आवाज खोजते देख वे अपनी ओर आने का इशारा करते है| दोनों एकदूसरे का मुंह देखते उनके पास आकर बैठ जाते है|
दुकान के एक कोने में दो तीन टेबल के आस पास कुर्सी और स्टूल जमाकर उन्होंने बैठने की भी व्यवस्था कर रखी थी वही बैठे वे उन्हें भी वही बुला लेते है|
“प्रणाम चाचा जी|” वे दोनों झुककर अदब से उनके पैर छूकर उनके सामने की कुर्सी पर बैठ जाते है|
“कैसे है आप ?”
“अमा हमारा हाल चाल छोड़ो ये बताओ तुम दोनों तो कनेडा जाने वाले थे – गए काहे नही |” आधे मुंह में मसाला दबाए दबाए वे मुंह को थोडा तिरछा करते हुए कहते है तो दोनों फिर से मरमरी हालत में एकदूसरे का चेहरा देखने लगते है|
क्या चाचा के पास आकर देव की समस्या का हल निकलेगा या खड़ी होगी नई कोई परेशानी..!!
क्रमशः…….