Kahanikacarvan

इस कदर प्यार है – 21

चाचा के सवाल पर दोनों दो मिनट तो ये सोचते रहे कि जवाब क्या दे|

चाचा आगे पूछते है –

“सारे जहाँ में हल्ला मचाकर तुम लोग अभी यही की गलियों की ख़ाक छानते फिर रहे हो |”

“वही तो – आपसे आशीर्वाद लेने आए थे |” बात सँभालने जल्दी से कार्तिक कहता हुआ अपना सर उनकी ओर झुका लेता है|

“अच्छा अच्छा – वो तो सदा साथ रहेगा और साथ में गुरुमंत्र भी देंगे |”

दोनों समझ गए कि फिर चाचा अपना राग अलापना शुरू कर देंगे|

“हम बेटा भलेही दुनिया न घूमे हो पर इस घूमती दुनिया को अपनी उंगली पर जरुर नचाए है तो हमसे गुरुमंत्र ले लिया तो समझो कभी कही फेल नही होगे – समझे न |”

“जी |” दोनों जबरन हाँ में हाँ मिलाते हुए कहते है|

अपनी बात को दो पल का पॉज़ देते वे अपनी दुकान के एक लड़के को आवाज लगाकर कहते है – “अरे अपने बच्चे आए है जरा समोसा चाय लाओ और आज तो खास इमरती बन रही है वो भी लाओ |”

“हाँ तो मैं कह रहा था – कनेडा हो या कुवैत – तैयारी अपनी पुख्ता करके जाना बेटा – अपने घर जैसा खाना कहीं नही मिलता – पैसा दो तीन पॉकेट में रखना – मानलो एक कट गई तो दूसरे में रहेगा पैसा – दूसरी गिर गई तो तीसरे में रहेगा  – समझे न और सुनो….|”

वे आगे और कहते उससे पहले देव कार्तिक को घूरता हुआ देखता है जिसे समझता कार्तिक झट से बीच में बोल उठता है – “एकदम सही बात बताया आपने चाचा जी – तभी तो आपसे मिले बिना थोड़े हम जाते कही -|”

“तो जा कब रहे हो ये भी बता दो |”

तभी दुकान का लड़का चाय, समोसा और इमरती उनके सामने रखते हुए दांत निपोरता हुआ चला गया|

कार्तिक का ध्यान अब समोसों पर जा टिका तो तब से चुप देव आगे कहता है – “वो बस एक दो दिन में टिकट मिलते पता चल जाएगा – और वो कार्तिक आपसे कुछ पूछना चाहता था |”

देव जैसे ही कार्तिक का नाम लेता है उसका सारा ध्यान समोसों से उठता चाचा की घूरती आँखों की ओर चला जाता है|

“हाँ तो पूछो |” वे अभी भी मसाला दाबे दाबे होंठ तिरछा किए हुए कह रहे थे|

कार्तिक हडबडा गया पर जल्दी से खुद को सँभालते हुए देव के मोबाईल की स्क्रीन उनकी नज़रों के सामने करता हुआ कहता है – “ये देखिए पासपोर्ट तैयार है – अब बस टिकट बननी है|”

चाचा स्क्रीन को कसकर घूरते हुए मुंह बनाते हुए कहते है – “ये क्या है – कागज में पासपोर्ट – तुम दोनों मुझे उल्लू बनाने निकले हो – |”

चाचा की बात सुन दोनों के चेहरे की हवाई उड़ गई और चाचा उनपर बरसते रहे – “भतीजे चाचा को उल्लू बनाने निकले है – इसे पासपोर्ट कहते है – अब तो मुझे शक हो रहा है – तुम लोग कोई कनेडा वनेडा नहीं जा रहे – तुम गधो को तो कोयंबटूर का टिकट भी नही मिलेगा – भागो यहाँ से – मसखरी को चाचा ही मिला था |”

ये सुनते दोनों झट से खड़े होते एकदूसरे को इशारा करते झट से बाहर की ओर भागते है| भागते भागते कार्तिक समोसों को झपट कर अपपनी मुट्ठी में करता है तो देव आगे बढ़कर बाइक स्टार्ट करता है पीछे चाचा गुर्राते उनपर भमकते रहते है और दोनों हवा की तरह वहां से गुम हो जाते है|

बाइक रोककर देव कार्तिक पर बिगड़ रहा था – “गए थे तो ऐसे भागने की क्या जरुरत थी –|”

“अबे भागते नही तो तुम सब अपने चचाजान के आगे बक देते और वो चाचा नही अख़बार है फिर तुरंत ही मेरे बाप के पास खबर पहुँच जाती कि मैंने अस्सी हज़ार डुबो दिए ये सुन मेरा बाप जूते घिसने तक मारता मुझको |”

“सही से पूछने तो देता |”

“बोल तो दिया चचाजान ने नकली है ये – अब चल उस एजंसी वाले को पकड़ते है|” कार्तिक अभी भी हाथ में समोसे पकडे था, जिसमे से एक देव की ओर बढाकर बाकी बड़ी बाईट लेकर काट कर खा रहा था|

देव उसका हाथ हटाकर समोसों के लिए मना करते हुए कहता रहा – “अबे तुझे समोसों की पड़ी है यहाँ ये सोचकर दिमाग खराब हुआ जा रहा है कि अगर ये नकली है तो अब आगे क्या करे ?”

देव जितना हडबडाया हुआ था कार्तिक उतने शांत भाव से कह रहा था – “तू चिंता क्यों करता है – अपन भाई लोग चलते है साथ में और उस एजंसी वाले का तम्बू उखाड़ते है|”

“तम्बू तब उखाड़ेगे जब पता होगा कि गडा कहाँ है तम्बू |”

देव की बात सुन कार्तिक वही थमा रह गया| वह किसी तरह से हलक में अटका समोसा गहरी गटकन से निगलता उससे पूछता है – “ये क क्या कह रहा है?”

देव एकदम से उसपर झल्ला उठा – “मैं तो फसा ही तूने अपना पैसा क्यों बीच में फसा लिया |”

कार्तिक तुरंत उचकता दोनों हाथ से उसका कन्धा पकड़ता हुआ चिल्ला उठा – “अबे बोल सही से कहाँ फसा दिया पैसा ?”

“अबे मजाक मत कर – अगर ये पैसा कही इधर उधर हो गया तो मेरा बाप सरेआम मेरा गला काटकर चौराहे में घंटे की तरह टांग देगा|” कार्तिक के होश उड़े हुए थे, समोसा तो कबका उसके हाथ से छिटक चुका था|

“सब गड़बड़ हो गया – क्या करने चला था और क्या हो गया |” देव सड़क किनारे पत्थर पर सर पकडे बैठ गया|

उसकी ऐसी हालत देख कार्तिक झट से उसके पास आता उसकी ओर झुकता हुआ मिमियाता है – “सच बता हुआ क्या है – देख पैसा जाने से ज्यादा मुझे अपने बाप के हाथो अपनी जान जाने का ज्यादा दर्द है – बोल न सही से हुआ क्या – ये साला कौन है चमनलाल !”

कार्तिक उसकी ओर देखता रहा पर देव में कोई प्रतिक्रिया नही हुई मानों खुद में उस वक़्त का सामना करने का हौसला बना रहा हो| कुछ पल की शांति के बाद देव धीरे से कहना शुरू करता है – “वो आदमी मुझे एजंसी के बाहर मिला था – मैंने पता नही क्यों उस पर भरोसा कर लिया और उसे पहले तीन हजार फिर अस्सी हज़ार और तेरे भी अस्सी हज़ार दे दिए उसके नाम और उसके फोन के अलावा कोई पता नही है उसका मेरे पास |”

“क्या ……!!!!” कार्तिक बस गश्त खाकर गिरा नही लड़खड़ाते हुए किसी तरह से देव के पास बैठता हुआ उसकी तरह वह भी अपना सर थामे वही बैठता हुआ बोला – “अब ये सोच अपने अपने बापुओ को हम बताएगे क्या – मेरा तो खैर जनाजा निकलना तय है – सोचता हूँ मरने से पहले जो जो खाने का मन है वो सब खा लेता हूँ – पता नहीं मेरा बाप मेरा चौथा में मूंगफली भी न बांटेगा किसी को -|”

“बकवास बंद कर कर और कुछ सोच – कोई साला हमारे शहर में हमी को उल्लू बनाकर आसानी से निकल जाए |”

कार्तिक अपने  लटके हुए चेहरे से देखता है कि देव के चेहरे के भाव अब बदल चुके थे, वह हैरान उसका चेहरा देखता रहा|

“हाँ बे – अब कुछ तू ही तिगड़ लगा – मैं उस चमनलाल को छोड़ने वाला नही हूँ |” कहते हुए देव ने कसकर मुट्ठियाँ भींच ली जिसमे कुछ घास की पत्तियां बेरहमी से कुचल गई|

“मुझे मिला न तो उस चमनलाल का ऐसा चमन उजाडूऊँगा कि उसकी सौ पुस्ते टकली पैदा होंगी|”

अब दोनों गुस्से से एक ही दिशा में देखते है मानों उनके सामने चमनलाल आकर खड़ा हो गया हो|

नीमा बेबी को लिए तैयार हो चुकी थी पर दीपा अभी भी तैयार हो रही थी जिसपर प्रथम हँसते हुए कह रहा था – “मैडम पार्टी में नही हम बस स्टोर तक ही जा रहे है|”

“या आई नो डार्लिंग पर जगह कोई भी हो शाइन हमेशा करना चाहिए |” प्रथम की बात का जवाब देती देती भी वह अपने होंठ रंग रही थी, फिर जल्दी से टचअप करती पर्स लिए हुए रूम से बाहर आती है जहाँ प्रथम और उसके कुछ दूर बेबी के साथ नीमा खड़ी थी|

फिर आते ही प्रथम की बांह खींचकर थामती हुई उससे सटने लगती है पर नीमा की उपस्थिति से प्रथम थोडा हिचकिचाते हुए उसकी बांह से अलग होते जल्दी से घर से बाहर गैराज की ओर चलता हुआ कहता है – “आज अच्छे से याद करके जो लेना हो ले लेना – फिर मैं जब मीटिंग के लिए आउट ऑफ़ सिटी रहूँगा तो तुम्हे किसी चीज की कोई कमी न हो |”

“ओह मैं बहुत बुरा लग रहा है कैसे रहूंगी दस दिन तक |”

दीपा कार में बैठती हुई सीट बैल्ट लगाने लगती है, नीमा भी पीछे बैठती बेबी को बेबी सीट में  बैठने लगती है|

“अकेली कहाँ हो नीमा जो है – आखिर इसीलिए तो लाई थी न कि अपनी कम्पनी मिले तुम्हे |” ड्राइविंग सीट पर बैठते हुए प्रथम मुस्करा कर दीपा की ओर देखता है जो खिसियाई हुई हँसी हँस रही थी|

“और फिर ये दस दिन दोनों सिस्टर्स सिटी घूमना – मस्ती करना – और ऐसे दस दिन कब बीत जाएँगे पता भी नही चलेगा – क्यों नीमा !” अबकी प्रथम नीमा की ओर मुस्करा कर देखता है जो हलके से होंठ फैलाती उसकी ओर एक नज़र देख लेती है|

“नीमा तुम भी आज जो अपना सामान लेना हो लेलेना – आज हम इंडियन स्टोर जा रहे है वहां हम जैसे इन्डियन के हिसाब का सारा सामान होता है – एक कुकर भी लेना होता है तो हम इंडियन स्टोर ही जाते है – तुम्हें बहुत अजीब लगेगा पर क्या करे हमारे लिए तो बस वही हमारा इंडिया है|” कहते हुए प्रथम कार चलाते चलाते मुस्करा रहा था|

नीमा अब बाहर देखने लगी, सब कितना अलग और अनोखा था, उसने बर्फ देखी थी अपने गाँव की पहाड़ी पर जाकर पर बर्फ के बीच लोग कितनी सहजता से रहते है ये उसके लिए कितना अनोखा अनुभव था| जहाँ भी नज़र जाती बर्फ की चादर फैली थी| अभी बर्फ इतनी मोटी नही थी तो कार आसानी से उन्हें काटती हुई निकल जा रही थी| कार के अन्दर गर्माहट थी पर बाहर की ठण्ड के हिसाब से मोटा कोट और जैकेट उन सबने पहन रखा था| सारी सुख सुविधा थी फिर भी अभी तक वह यहाँ अपना मन नही लगा पाई थी बार बार उसे लगता जैसे अपने पीछे कुछ छोड़ आई है वह पर क्या !!!!

कुछ देर तक दोनों एक ही मुद्रा में बैठे रहते है मानों गुजरे वक़्त का मातम मन रहे थे फिर अचानक कार्तिक अपनी जगह से उछलकर देव के सामने खड़ा होता हुआ कहता है – “तूने क्या बताया था वो एजंसी के बाहर मिला था तो जहाँ उसने तुझे शिकार बनाया वही दूसरों को भी बनाता होगा – बस हमे वही रात दिन पहरा देना होगा – साला अपनी जगह कभी न कभी वापस जरुर आएगा |” अपने ही हाथ में ताली मारते हुए कार्तिक कहता है तो देव भी उसकी ओर गौर से देखने लगता है|

इंडियन स्टोर उस परदेश में देश की आत्मा की तरह था जहाँ आते लगता कि कुछ पल के लिए अपने देश में आ गए है, दरवाजे के अन्दर आते भारत देश का सिम्बल लगा था, जैसे जैसे अन्दर आते है उन्हें बस भारतीय चेहरे दिखने लगते है| प्रथम अब बेबी को गोद में लिए किसी अन्य रैक के पास था तो नीमा और दीपा साथ में दाल चावल और मसालों के रैक की ओर बढ़ गई थी| दीपा नीमा को बताती जा रही थी और वह सामान ट्रोली में रखती जा रही थी| तभी दीपा को पुकारती उसकी पहचान की कुछ उसकी हमउम्र मिल जाती है जो आते पहले दीपा से गले लगती नीमा को प्रश्नात्मक नज़रों से देखने लगती है| नीमा उनकी ओर मुस्करा कर नमस्ते करती है तो वे एकसाथ रंगे होंठो से खिलखिला पड़ती है| फिर उसी पल दीपा फ्रेंच में उनसे बात करने लगती है, नीमा समझ नही पाती पर उसे अहसास हो रहा था कि दीपा ने उसी का परिचय कराया है वह अब उनकी ओर से आंख हटाकर दूसरा सामान रखने लगती है बीच बीच में बातों में मशगूल दीपा को सामान दिखाती भी है पर वो हाथ के इशारे से हाँ बोल अपनी बातों में लगी रहती है|

घर वालों से किसी तरह से आंख बचाते बचाते देव और कार्तिक लगातार दो दिन तक बारी बारी से उस एजंसी के बाहर छुपकर पहरा देते है| देव कार्तिक को उस चमनलाल का हुलिया बता चुका था और कार्तिक अपनी सतर्क नज़रों से बस उसे ही तलाश रहा था|

“अबे देव जल्दी से आ – मुझे वही लगता है अपना शिकार – तू बस फटाफट आ जा फिर मिलकर साले को फाडेगे |” कार्तिक एक आदमी पर नज़र जमाए जमाए देव को फोन करके धीमी आवाज में कह रहा था|

और वाकई देव भी जैसे इसी पल के इंतजार में था वह तुरंत ही वही चला आता है| दोनों शीशम के पेड़ ले पीछे छुपे उस आदमी को घूरते हुए आपस में फुसफुसा रहे थे|

“लगता है साले ने दाढ़ी बढ़ा ली है पर क्या खूब पहचाना तूने भाई|”

“और क्या जो साला मुझे फ्री में बाप के जूते खिलाने वाला था उसे तो मैं सूंघ कर भी पहचान लेता|”

“तो चलते है – ऐसा कर पहले मैं जाता हूँ फिर तू तैयार रहना – देखना साला भागने न पाए|”

“तू बस पहुँच देव – फिर अपना कमाल देखना साले की खोपड़ी पर तांडव न मचा दिया तो कभी न कहना अपना भाई कार्तिक…|”

“फिर चल |” कहता हुआ देव दबे पैर उसकी ओर बढ़ता है| शाम का वक़्त था और वहां कुछ ज्यादा ही संख्या में लोग मौजूद थे| पर देव पूरी तरह से तैयार था उसके निकासी वाले रास्ते के सामने खड़ा उसे पुकारता है तो आवाज सुन वह उसकी तरफ देखता है|

क्या देव उस धोखेबाज तक पहुंच पाएगा  ?? क्या होगा अंजाम उसकी आगे की यात्रा का..??

क्रमशः………………..

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