
इस कदर प्यार है – 24
देव और कार्तिक एकदूसरे को देखते मुस्करा उठे थे आखिर ये पल उनके लिए अविश्वसनीय था| जब वे हर तरफ से निराश हो चुके थे और उसी पल उनकी मंजिल उनके सामने अपनी बांह खोले खड़ी हो गई|
वह आदमी देव और कार्तिक को क्रम्वत सब उसे समझाता है – “अब पासपोर्ट, वीजा और टिकट मिलाकर एकतरफ का 85000 एक व्यक्ति का – समझो ये कन्सेशन टिकट है क्योंकि अभी टोरंटो में जमादेने वाली ठण्ड होती है तो ट्रेवलिंग कम होने से वहां की गवंमेंट इसी समय कन्शेसन देती है |”
ये सुनते एकबार फिर देव और कार्तिक एकदूसरे का मुंह देखते है तो वही खड़ा चमनलाल फिर उसी आदमी की ओर विनती करती निगाहों से देखता है जिससे वह आदमी तुरंत कहता है – “अभी मैं फटाफट प्रोसेस शुरू करता हूँ तब तक बाकी के एमाउंट की तैयारी करो तुम लोग |”
“हाँ हाँ और क्या बहुत ठंडी होती है वहां – अब अपनी तैयारी शुरू कर दो – कपडा लत्ता अच्छे से ले जाना |” चमनलाल अपनी खींसे निपोरता हुआ बीच में फट से बोला|
“ठीक है तो अब बता दीजिए – हमे अभी कितना एमाउंट देना है |” देव थोडा सख्त आवाज में कहता है|
“अभी ऐसा है चमन के पास जो तुम्हारा पैसा है उससे मैं पासपोर्ट और वीजा का प्रोसेस शुरू करता हूँ और जैसे ही ये तैयार हो जाएगा आगे के एमाउंट के लिए फोन करता हूँ |”
सामने बैठे आदमी की बात से देव एकबार फिर अपनी सख्त नजर चमनलाल की ओर दौडाता है जिससे वह उसके नज़र हटाए अन्यत्र देख रहा था फिर धीरे से “ठीक है…|” कहता है|
“हाँ लेकिन मुंझे कुछ डाकुमेंट चाहिए होंगे एड्रेस प्रूफ…|” वह आदमी अपनी बात अधूरी छोड़ता चमनलाल की ओर देखता है|
“वो सब है इनका अपने दोस्त का दे दो |” चमनलाल जल्दी से कहता है|
“मेरे पास आधार कार्ड है पर पैन कार्ड नही है |” कार्तिक सोचते हुए कहता है|
“तो कोई बात नहीं दसवी मी मार्क शीट है वो भी चल जाएगी |” चमनलाल बात साफ़ करते हुए कहता है|
ये सुनते कार्तिक के हाव भाव में हिचकिचाहट देख वह आदमी उसका चेहरा गौर से देखते हुए पूछता है – “दसवी तो किए हो न ?”
ये सुनते कार्तिक मुंह बनाते हुए कुर्सी से लगभग उछलते हुए कहता है – “मेरी शक्ल में लिखा है कि नही किया है – किया है – हाँ डिविजन तीन डंडो के साथ है तो क्या |”
कार्तिक की हालत देख देव को ये सोच वाकई हँसी आ रही थी कि कैसे कैसे करके कार्तिक ने अपनी दसवी पास की थी, देव जहाँ अवरेज में पास हो जाता था वही कार्तिक हमेशा घसीट घसीट कर हर क्लास से निकलता था पर उनकी स्कूल से कॉलेज तक की अबाध्य दोस्ती थी शायद यही प्रेशर रहता हो उसपर कि फेल हुआ तो देव और उसका साथ न छूट जाए !!
उसकी बिगड़ी हालत पर मजे लेता देव धीरे से उसकी तरफ झुकता हुआ उसके कानो के पास आता कहता है – “अबे दे दे – अख़बार में नही निकालेगे तेरी मार्क शीट |”
ये सुन कार्तिक देव को घूर कर देखने लगता है|
उनके जाते वह आदमी अब चमनलाल की ओर देखता हुआ कहता है – “अबकी माफ़ कर रहा हूँ वो भी इस लड़के की वजह से फिर कोई झोल करके मत आना मेरे पास समझे कि नही |”
“अच्छे से समझ गया भईया – इसकी कहानी ने तो मेरी भी अंतरात्मा झंझोड़ दी |”
“हाँ प्रेम कहानी कोई भी उम्र में सुनो सीधे दिल पर ही उतरती है |” वह गहरा उच्छवास छोड़ता अब सामने के उस दरवाजे की ओर देखने लगता है जहाँ से अभी अभी देव गया था|
नीमा खुद को उदासी में लपेटी लेटी रही उसका मन ही नही हुआ कि आंख खोलकर कुछ भी देखे, कितना अकेलापन और विरानगी उसके मन में समाई थी, उस पल उसका मन अंतरस उस एकांत में बिलख उठा आखिर किसके लिए वो जिए, एक निर्थक और व्यर्थ सा जीवन उसे अपना लगने लगा| कितनी देर वह अपनी उदासी में लिपटी लेटी रही उसे आभास ही नही रहा, न दीपा उसे पूछने आई न उसके अलावा किसी ओर के आने की कोई उम्मीद ही थी|
दीपा अपनी चिढ में न नीमा के पास गई न उसे ही बुलाया खुद ही बेबी की देखभाल करने लगी| पर पिछले कई दिनों से नीमा पर निर्भरता से बहुत जल्दी ही अपने काम से वह उब गई, बड़ी मुश्किल से वह बेबी को बहलाती दूध पिलाकर सुला पाई तब जाकर वह अपना काम करने उठ पाई| उसका मन तो हो रहा था कि पहले की तरह नीमा पर सब छोड़छाड़ कर निर्वृत हो ले पर अपने अहम् के कारण उसने नीमा को नही बुलाया और वह अपना काम करने उठी ही थी कि उसकी माँ का भारत से फोन आते वह लपककर फोन उठा लेती है और बिस्तर पर गडमड बैठती फोन कान से लगा लेती है|
हाल चाल लेती उसकी माँ जल्दी ही उसकी परेशान हालत समझती हुई उसे टोकती हुई कहती है – “इतनी परेशान क्यों लग रही हो – क्या बीमार हो – क्या नीमा मदद नही करती – सब ठीक है न !”
अपनी माँ को परेशान होता देख दीपा आखिर उन्हें सब बता देती जिसे सुनते वे उल्टा उसी पर नाराज़ हो उठती है – “पागल हो क्या – तुम उसे अपनी मदद कराने ले गई थी या आराम से छोड़ने – तुम अकेली हलकान हो रही हो और वो महारानी सी ठण्ड में बिस्तर पर पड़ी होगी – तुम सच में बुद्दू हो – कितना समझाया था – अरे काम लेना सीखो – तुम्हे डांटने का भी हक़ है डांट भी दिया तो क्या अब उसे बुलाओ |”
दीपा अपना सा मुंह लिए सुनती रही|
“तुम अगर ऐसी ही नासमझी करती रही तो खुद ही परेशान होगी – आखिर मैंने तुम्हारी परेशानी कम हो इसीलिए तो उसे वहां भेजा वरना मुझे क्या पड़ी थी कि उस अनाथ को तुम्हारे गले बाँधती – अरे डट के काम लो और डट के आराम करो |” कहती हुई वे शातिर मुस्कान से मुस्करा पड़ी|
“अरे पुचकार कर उससे काम लो आखिर अब हमारे सिवा है ही कौन उसका – जाएगी ही कहाँ – फालतू में रोती धोती दिखेगी तो प्रथम उसको भारत भेज देंगे तब तुम बैठी रहना पागल बनी |”
“नहीं …|” अपने दांतों के बीच जीभ दबाते जैसे अब उसको बात समझ आई – “हाँ तुम सही कहती हो इजा – अभी तो प्रथम भी नहीं है – होते तो पक्का उसका रोना धोना सुनकर तुमको फोन करते|”
“तो समझ न – |”
माँ बेटी दोनों अब शातिर मुस्कान से मुस्करा उठी| अब तक बेबी भी उठा गई| दीपा बात करके बेबी को लिए लिए तुरंत ही नीमा को देखने गई जो अभी भी कमरे में उकडू हुई रुआंसी लेटी थी|
“अरे नीमा – कब से बुला रही हूँ – |”
आवाज सुन नीमा झट से उसकी तरफ देखती है, दीपा के चेहरे पर गहरी मुस्कान थी|
“अरे मासी को ढूंढ रही थी – वो तो ले लही|” बेबी को बहलाती बहलाती दीपा उसे लिए नीमा ले पास बैठ गई| बेबी भी नीमा को अपनी चमकती आँखों से देखने लगी, उस पल उसकी निश्छल आँखों में अपने लिए जैसे कोई शिकायत दिखी इससे असब्र होती वह उसकी ओर अपनी बांह फैला देती है और बेबी को भी जैसे इसी बात का इंतजार था वह भी नन्ही प्यारी मुस्कान के साथ उसके अंक में समां जाती है, यही तो दीपा चाहती थी उसका काम हो गया था, नीमा सब भूलती अब उस बेबी संग खेलने में व्यस्त हो चुकी थी|
दीपा अब जैसे नीमा को यूज करना समझ चुकी थी| प्रथम अभी तक अपनी मीटिंग की वजह से वापस नही आया था जबकि वह महज कुछ घंटो की दूरी पर लन्दन में ही था लेकिन टोरंटो में लगातार बर्फबारी से वह अपने ऑफिस में ही था क्योंकि टोरंटो का तापमान माइनस तक गिर चुका था और चारों ओर बर्फ की अच्छी खासी परत जम गई थी| वह वही से दीपा और नीमा की चिंता कर रहा था पर दीपा उसे ये कहकर आश्वस्त कर देती कि नीमा मजे में है और उसे यहाँ की बर्फ बाकि सब बहुत अच्छा लग रहा है| प्रथम उसकी बात पर सहज ही विश्वास भी कर लेता है|
बेबी से मुक्त होती दीपा अब अपनी पिछले ऑफिस की फ्रेंड्स से संपर्क करती है, इस बर्फ़बारी में सभी मस्ती के मूड में थी| उसमे कुछ इंडियन भी थी जिनके लिए ये बर्फ़बारी सबसे आकर्षक का विषय थी| वे सभी आकर दीपा के पास अपनी महफ़िल सजाती और नीमा बेबी को संभालती रहती| दीपा हमेशा से नीमा को अपने सभी मिलने वालों से दूर ही रखती, जब नीमा पास होती तो जानकर वह फ्रेंच बोलती जो यहाँ रहते वह अच्छे से सीख गई थी और खासकर नीमा के बारे में वह फ्रेंच में ही बात करती इसी कारण सभी नीमा को उसकी मेड ही मानते और नीमा दीपा की इस हरकत को भांप भी नही पाती जो अपनी मीठी मीठी बातों से उसे अपने काम में उलझाए रखती|
इधर देव दिन को सालों में बीतता हुआ महसूस कर रहा था, एक एक पल उसका इंतजार और भारी होता जा रहा था| एजंसी से फोन कर वह आदमी उसे बताता है कि पासपोर्ट के लिए उसने लगभग सारी प्रक्रिया पूरी कर ली है बस पुलिस वेरिफिकेशन होते उसका पासपोर्ट जारी हो जाएगा और उसके कुछ एक आध दिन में वीजा भी| ये सुनकर देव का इंतजार कुछ मुस्करा दिया|
इस वक़्त रुद्रपुर भी काफी ठंडा हो गया था, पहाड़ो पर इस बार बहुत जल्दी बर्फ गिरी थी जिससे मौसम की सर्द हवाएं बहुत जल्दी ही मैदानी इलाकों तक आ पहुंची| मौसम के मिजाज को देखते देव आज अपने पापा को जल्दी घर भेजकर दुकान में देरतक रूककर सारा काम खत्म करने में लगा था फिर सारे कर्मचारियों को भेजकर ही वह घर वापस आ रहा था| सर्द रातों में गहरे कुहासे से रास्ता भी साफ़ नज़र नही आ रहा था जिससे देव बाइक आराम से चलाता हुआ चला जा रहा था, रात ज्यादा नही हुई थी लेकिन सर्द मौसम की वजह से सड़के काफी खाली थी जिससे समय का एकांत उसे नीमा की यादों तक ले जाता है, उसके बारे में सोचते सोचते वह अपने में खोया बस मुस्कराए जा रहा था| जाने नीमा कहाँ होगी ?? कैसी होगी ?? क्या उसके सामने आते वह उसे पहचान भी पाएगी ?? तो क्या वह उसे भारत ले आएगा बस फिर उसकी मर्जी जो चाहे करे, वह तो बस उसे दूर से ही देख देखकर जी लेगा| देव लगातार बाइक चलाता मन ही मन गुनगुनाता जा रहा था|
ए रात जरा थम थम के गुजर…मेरा चाँद मुझे आया है नज़र…
मेरे दिल में है अरमा कई कई…मेरी चाहत है अभी नई नई…
रह जाए न प्यासा प्यार मेरा…मेरी बाँहों में भर दे यार मेरा…
इतना सा करम तू कर मुझ पर..ए जरा थम थम के गुजर…
अभी लबो को लबो ने छुआ नही…अरमा कोई पूरा हुआ नहीं…
अभी आस का गुलशन खिलना है..अभी दो जिस्मो को मिलना है…
देखूंगा अभी मैं वो मंजर..ए रात जरा थम थम कर गुजर..
वह अपने ख्यालों में ऐसा गुम चला जा रहा था कि सड़क किनारे जमा भीड़ पर उसकी एकपल को निगाह गई ही नहीं पर थोड़ा आगे बढ़ते सड़क के अँधेरे में जलती बुझती बत्ती देख वह अपनी नज़र उधर करता है तो इतना समझ आता है कि वहां कोई एक्सीडेंट हुआ था पर कोहरे की वजह से कुछ भी साफ़ नज़र नही आ रहा था| काफी आगे जाते उसे लगता है वह कोई कार थी जिसका बोनट पेड़ से जा भिड़ा था जिससे उसकी लाइट ब्लिकं कर रही थी जिससे वह तुरंत ही पलटकर उसकी ओर वापस आता है| उस सुनसान रास्ते में बढती ठण्ड की वजह से उस गाडी के पास खड़े इक्का दुक्का लोगों के अलावा कोई नही था| उस वक़्त गाड़ियाँ भी न के बराबर निकल रही थी वहां से | कुछ गाड़ी निकली भी तो बिना रुके आगे बढ़ गई पर देव वहां रुका उसे देखने लगा, बहुत पास आने पर उसे पता चला कि कोहरे की वजह से शायद कार पेड़ से जा भिड़ी थी, ये पहाड़ी इलाकों के लिए आम नज़ारा था और वो भी कोहरे वाले दिनों में तो और भी भयावह हो जाता था| देव तुरंत बाइक से उतरता उस कार के अगले हिस्से की ओर लपकता है| देव को आता देख खड़े इक्का दुक्का लोग भी अपनी राह चले जाते है| कार का बोनट तेजी से भिड़ा पर कार ज्यादा छतिग्रस्त नही हुई थी लेकिन ड्राईवर का सर सामने की ओर भिड़ने से वह बेहोश था| देव ने आव देखा न ताव तुरंत एम्बुलैंस को फोन लगाने लगा पर उसी वक़्त नेटवर्क खराब होना था इससे फोन पर ज्यादा समय न बर्बाद करके वह तुरंत की ड्राईवर की सीट के बगल में आता उसकी ओर का दरवाजा खोलते उसे बाहर निकालने लगता है| पर अचानक वह ये देख कर चौंक जाता है कि वह कोई लड़की थी और उसके माथे के ऊपर से खून बहकर अब जमने लगा था शायद वह काफी देर से वही पर थी| देव उसका सर धीरे से उठाता है तो वह हलके से आंख खोलती है पर जल्द ही उसकी आंखे बोझिल होकर बंद होने लगती है| ये देख बिना समय गवाए वह उसे खींचते हुए बाहर की ओर निकाल ही रहा था कि सायरन की लगातार आती आवाज पर उसका ध्यान जाता है| वह शायद पुलिस गस्त की गाड़ी थी और दूर से उस माजरे को देखती तुरंत ही उसके पास आती रुक जाती है|
फिर सब कुछ इतना जल्दबाजी में हुआ कि न देव कुछ समझ पाया न कर पाया|
क्रमशः…………………