
इस कदर प्यार है – 26
अब देव और कार्तिक बाहर आकर खड़े थे तो युवती जाने से पहले उसकी ओर देखती हुई उसे पुकारती हुई कह रही थी – “सुनो थैंक्स – तुमने अगर सही वक़्त पर मदद नही की होती तो मेरा तो कल टिकट ही कट गया होता तो प्लीज़ मुझे भी अपना अहसान उतारने का एक मौका देना |”
“अभी जो आपने किया उसके लिए तो मैं आपको थैंक्स कहूँगा |”
“अरे ये – इसके लिए अपने दोस्त को थैंक्स कहना पर सच में मुझे तुम्हारे लिए कुछ करना है |”
“हमारा काम तो हो गया – लगे हाथ पुलिस वैरिविकेशन होते अब हमारा पासपोर्ट और वीजा भी आ जाएगा अब फिर जल्दी ही हम कैनेडा में होंगे|” कहता हुआ कार्तिक शरारत में भौंह उचकाता है|
“कैनेडा जा रहे हो – क्या नौकरी के लिए – हाँ बहुत से यंगस्टर काम की तलाश में विदेश जाते है पर चाहो तो मैं मदद कर सकती हूँ – मैं दिल्ली में तुम्हे नौकरी दिला सकती हूँ – इससे मेरा अहसान भी उतर जाएगा |”
“नहीं मैडम – नौकरी के लिए कौन जा रहा है – मेरा यार तो अपने प्यार के लिए जा रहा है तो मैं अपने दोस्त के लिए जा रहा हूँ |”
“प्यार !!” वह औचक उनकी ओर देखती हुई पूछती है – “मैं समझी नहीं – क्या प्लीज़ खुलकर मुझे बताओगे !”
“बस कुछ नही – अपनी नीमा के लिए जा रहा हूँ |” देव शर्माता हुआ कहने लगा|
“नीमा !! कुछ सुना नाम क्यों लगता है |”
“सुना तो होगा ही |”
आगे बढ़कर कहता कार्तिक ज्योही नीमा की पूरी बात बताता है तो वह युवती दंग भाव से उसकी ओर देखती सब सुनती रही फिर आश्चर्य निश्रित भाव से कहती है – “क्या प्यार ऐसा भी दीवाना होता है..|”
वह देव को जाता हुआ देखती सोचती रही और देव कार्तिक के साथ चलता फिजा को देखता मुस्करा रहा था मानों उस धुंधली आभा के पार नीमा खड़ी उसका ही इंतजार कर रही हो……
“यार ये नीमा जो है लगता है तेरे लिए लकी नही है – जब से उसका किस्सा शुरू हुआ है रोज ही नई कोई न कोई परेशानी खड़ी हो जाती है |”
घर पर देव का बेसब्री से इंतजार हो रहा था| इस वक़्त बाइक कार्तिक चला रहा था और पीछे बैठा देव जल्दी से घर पहुंच कर अपनी ख़ुशी अपने माता पिता के संग बाँटना चाहता था| बाइक चलाते चलाते कार्तिक हमेशा की तरह देव से बातें करता जा रहा था और देव भी हाँ हूँ में उसका साथ दे रहा था|
“अच्छी खासी अपनी जिंदगी जा रही थी पर अब तो रोज नया कोई टंटा होता है|”
“बुरा हुआ भी तो सोचो हम उस बुरे वक़्त से निकल भी गए और क्या पता नीमा की वजह से बच भी रहा हूँ |”
“कभी कभी तो ये सोचते दिमाग घूमने लगता है कि अगर विदेशी जमी में पहुंचकर कोई टंटा हुआ तो क्या करेंगे हम ?”
“तो उसकी दुआ हमे बचा लेगी – मेरा मन कहता है उसे मेरा इंतजार होगा तो दिल में दुआए भी होगी तब कुछ भी बुरा कैसे हो सकता है |”
“अबे पागल हो गया है क्या – वो तुझे पहचान भी ले तो ये भी बड़ी बात होगी – मुझे तो लगता है उसकी मौसी ने तुम्हारे बारे में उसे कुछ बताया ही नही होगा |”
“कोई बात नही हम एकदूसरे को दिल की नज़र से पहचान लेंगे |”
तब से अपनी तल्खी पर देव की मुहब्बत का राग सुनते कार्तिक ऊब गया, मंजिल आते वह झटके से बाइक रोक कर उसकी ओर मुड़ता हुआ कहता है – “बेटा तू तो गया – तेरा तो काम हो गया – अभी तक सुना ही था कि मुहब्बत में अच्छे खासे इन्सान गधे बन जाते है आज देख भी लिया – तुझे उसके सिवा कुछ समझ ही नहीं आता क्या|”
कार्तिक की रुखी बात पर देव अभी भी मंद मंद मुस्करा रहा था जिसे देखते अपने सर पर हाथ मारते कार्तिक कह रहा था – “चल भाई – अब तेरे संग हम भी सूली चढ़ ही जाएँगे – अभी तक कबाड़ी वाला से बकरी वाला भी बन गया अब आगे देखते है तू मुझसे और क्या पापड़ बिलवाएगा |”
कार्तिक की बात सुन देव उसके कंधे पर हाथ रखता हुआ कहता है – “चिंता मत कर – मेरे संग संग चलते तू भी प्रेम गली चढ़ ही जाएगा |”
“पता नही – साला पूरे रुद्रपुर में न मिली अपने लिए तो क्या अब क्या कोई विदेशन मिलेगी !” एक गहरा श्वांस छोड़ता हुआ कार्तिक अपनी बाइक पीछे घुमा लेता है तो देव अन्दर घर की ओर बढ़ जाता है|
अलसुबह फोन की घंटी से देव की नींद खुली उस पार से एक फोन आते देव बस नाच ही उठा फिर कार्तिक के साथ उस एजंसी के ऑफिस पहुँच गया|
“मैं तो कोशिश कर ही रहा था पर काम इतना जल्दी हो जाएगा इसका अंदाजा भी नही था – एक ही दिन में पुलिस वेरिफिकेशन हो गई नहीं तो कभी कभी पंद्रह दिन भी हो जाते है |” सामने बैठा आदमी भरपूर मुस्कान से मुस्करा रहा था तो देव कार्तिक को देख मुस्कराते हुए कह रहा था – “जो होता है अच्छे के लिए होता है – न थाने जाता न काम इतनी जल्दी होता |”
“अब बस आज ही टिकट निकाल देता हूँ अब चलने की तैयारी शुरू कर दो |” वह आदमी अपनी ही धुन में बोलता हुआ सामने रखा पेपर देखने लगा|
घर पहुंचकर अपना पहला पासपोर्ट दिखाते दोनों खुश थे, कार्तिक तो ऐसे खुश था मानों वह कैनेडा पहुँच ही गया हो| उसकी हालत पर छेड़ती हुई उसकी भाभी अपनी सास को देखती हुई बोलती है – “मम्मी जी देख लो देवर जी तो ऐसे खुश हो रहे है जैसी अब भारत तो लौटेंगे ही नही |”
इतना सुनते कार्तिक भी मुंह बनाते हुए जवाब देता है – “हाँ भाभी नही लौटेंगे पापा का जूताखाने और भैया का ताना सुनने |”
“अरे वो तो प्यार है बड़ो का |”
“हाँ बहुत ज्यादा ही प्यार है इसलिए ऊबकर जा रहा हूँ अब न लौटूंगा कभी |” कार्तिक उसी स्वर में चिढ़ता हुआ बोला|
भाभी और माँ उसकी हालत पर हँस रही थी तभी उसके पापा वहां से गुजरे जो शायद उसकी आखिरी बात सुन चुके थे तुरंत ही अपने चिरपरिचित सख्त लहजे में बोलते है – “हाँ हाँ जाने दो और ऐसा करो बहु इसका कमरा बेकार पड़ा रहेगा उसे किराये पर उठा देना – कम से कम निखट्टू के कमरे से तो कुछ मिलेगा |”
बाप की बात सुन कार्तिक बुरी तरह उखड़ गया पर बाप को जवाब न देकर पास खड़ी भाभी के पास धीरे से बोलता हुआ वहां से चला गया – “हाँ हाँ दे दो और मेरा सामान भी बेचकर अनाज ले आना |”
कार्तिक मुंह बनाते हुए जिस तरह से गया ये देखते बाकी सबकी हँसी छूट जाती है|
मरिया और सूजी से फोन पर ग्रुप कन्वर्शेसन में दीपा चहक रही थी|
“कमऑन डीपा याद है न हम दो साल पहले इसी टाइम ओंतीरियो गए थे – |”
“नो नो मरिया – अभी बेबी छोटी है और फिर प्रथम भी नही है यहाँ |”
“तुझे क्या तेरे पास तो नैनी है न – चल न – नियाग्रा फॉल की आइस वाइन फेस्टिवल के लिए लोग कहाँ कहाँ से आते है – एक रात की बात है जमकर मस्ती करेंगे |”
दीपा का मन भी ललचा रहा था वह भी ऐसी मस्ती भरी पार्टी मिस नही करना चाहती थी लेकिन प्रथम को कैसे मनाती ये सोचकर वह थोडा उलझ गई थी फिर उनको बाद में बताती हूँ कहती हुई फोन काटकर प्रथम को मिलाने लगती है लेकिन तभी उधर से प्रथम का ही फोन आ जाता है|
“हाय – मैं तुमको फोन मिलाने की सोच ही रही थी|”
“कोई ख़ास बात ?” प्रथम पूछता है|
दीपा कहने से हिचकिचा रही थी कि कही बेबी को सँभालने के नाम पर प्रथम उसे मना न कर दे|
“एक्चुली …|”
“अच्छा पहले मेरी सुनो – न्यु प्रोजेक्ट के लिए मुझे कुछ दिन के लिए इंडिया भेज रहे है तो मैंने सोचा तुम भी चलना चाहो तो चल सकती हो |”
ये सुनते ही दीपा प्रथम के जाने की बात पर खुश हो गई पर अपने मन के भाव दबाती बात बनाती हुई बोलती है – “ओह डियर – मैं भी चलती पर अभी इण्डिया में भी काफी ठंडा होगा तो कहीं बेबी परेशान न हो जाए |”
“हाँ बात तो सही है तो क्या करूँ मना कर देता हूँ |”
“नहीं नहीं – ऐसे करोगे तो तुम्हारा प्रमोशन के पॉइंट कम हो जाएँगे – ऐसा करो तुम अकेले वही से चले जाओ और काम कम्प्लीट करके जल्दी से आ जाना |” अपना शब्द प्यार की चाशनी में डुबाती हुई कहती है|
“हाँ ठीक कहती हो – अच्छा नीमा से भी पूछ लेना अगर वो जाना चाहे तो ..!”
“अरे नही – नीमा का तो बहुत मन लग गया -|” दीपा किसी तरह से बात बनाती प्रथम को अकेले जाने के लिए मना ही लेती है|
अब सब दीपा के मन का हो गया था| प्रथम से पूछना भी नही पड़ा और उसे मनमाफिक आज़ादी भी मिल गई| प्रथम के फोन रखते दीपा झट से अपनी दोस्त मरिया को फोन करके अपना जाना फिक्स करती है, वे तय करती है कि अगले दो दिन बाद वीक एंड में वे एक दिन के लिए साथ में जाएगी और नीमा बेबी को संभाल लेगी|
देव के हाथ में टोरंटो जाने का टिकट था, काफी देर वह उस टिकट को देखता रहा, उस पल उसके मन में एक अजीब सा डर समाने लगा| कुछ समय पहले वह जाने को बेचैन था और आज जब सब कुछ तय हो गया तो उसका मन कुछ बिदक उठा| घर पर भी जहाँ उसके जाने के लिए सभी उत्साहित थे अब जब उसके जाने का समय आ गया तो सब उदास हो उठे| देव भी देर तक माँ का हाथ पकडे बैठा रहा न वे उसे कुछ कह पाई न देव ही उन्हें कुछ समझा पाया| पापा उदासी में कमरे में चहलकदमी करते रहे| अवनि का तो कॉलेज जाने तक का मन नही हुआ बस बार बार भाई के पैक बैग देखकर कमरे से लौट जाती| कैसा अजीब होता है मन जिस ओर भागता है जिसे पाने को बेचैन रहता है उसके करीब आते उसके प्रति ही आशंकित हो उठता है|
इधर कार्तिक झूमता नाचता सामान पैक करके देव के घर जाने के लिए निकला ही था कि उतरे चेहरे के साथ माँ सामने आ गई| वे उसके जाने से उदास थी, पीछे खड़े उसके पापा अपने चिरपरिचित स्वाभाविक एंठ में कड़कते पूछते है – “पूछ लो अगर एअरपोर्ट तक छोड़ना हो तो !”
माँ एक पल कार्तिक को तो दूसरे पल उसके पापा को देखती है, माँ हमेशा यूँही बाप बेटे के बीच फस जाती, उसकी स्थिति कोई नही समझ पाता, पापा मानते माँ के लाड में बेटा बिगड़ गया तो बेटा मानता कि माँ तो पापा के आगे उसकी सुनती ही नहीं, माँ और पत्नी के परिपाटी के बीच वह पिसकर रह जाती| आज बेटा पहली बार घर से बाहर जा रहा था वो भी इतनी दूर ये सोच सोचकर माँ का कलेजा मुंह को आए जा रहा था शायद पापा को भी अन्दर से कोई डर रहा हो पर वे दिखा नही सकते और कोई समझ नही सकता| कार्तिक को हमेशा उनका गुस्सा ही झेलना पड़ता इसलिए इस बार वह अपनी एंठ दिखाता बोलता है – “मैं चला जाऊंगा – किसी को एअरपोर्ट आने की जरुरत नही है वैसे भी देव के साथ जा रहा हूँ|”
पापा चुप हो गए और माँ कुछ न कह पाई फिर कार्तिक सबके पैर छू कर अपना बैग लिए देव के घर जाने को तैयार हो गया तो माँ धीरे से पास आती उसके हाथ में कोई पैकेट पकड़ाती है, कार्तिक उसे हाथ में लेते बिना देखे समझ जाता है कि उस लिफाफे में पैसे थे| वे लेने का इसरार करती है पर कार्तिक उसे माँ को वापस करता हुआ कहता है – “आपने अपने नालायक बेटे के लिए टिकट का इंतजाम कर दिया यही बहुत है अब आगे मैं खुद देख लूँगा |”
ये सुनते माँ का मन रुआंसा हो उठा पर पहली बार कार्तिक के स्वर में कोई विश्वास दिखा तो इसे वक़्त की सहमति मान आशीष देकर उसे विदा कर देती है|
कार्तिक ऑटो से देव के घर पहुंचा तो कोई बड़ी सी कार उसके घर के बाहर देख चौंक गया वो टैक्सी भी नही लग रही थी, फिर दो अनजानी बाइक भी खड़ी थी| वह सब देखता अन्दर आता है तो बाहर से ही उसे अन्दर का अंदाजा मिल जाता है कि उसके घर पर कुछ लोग आए हुए थे| दरवाजा भी खुला ही था जिससे बेधडक वह अन्दर के कमरे तक आ जाता है|
अन्दर आकर सामने का नज़ारा देख उसकी ऑंखें हैरानगी से फटी की फटी रह जाती है| कई सारे जाने पहचाने चेहरे वहां मौजूद थे| सबसे पहले उसकी निगाह उस पत्रकार लड़की पर गई जो देव की माँ से बातें कर रही थी, फिर चमनलाल के साथ एजंसी वाला आदमी, और उस चाय वाले को देखकर तो वाकई वह चौंक जाता है| सबकी बातो से लग रहा था कि सब देव के नीमा के पास जाने की खबर सुन उससे मिलने आए थे| ये बेनाम पर बड़े करीबी रिश्ते थे जो स्वत ही एकदूसरे से जुड़ जाते है यही शायद इस जमी की खासियत थी|
क्रमशः…..