
इस कदर प्यार है – 30
वे तीनों आस पास के नज़ारे देखते आगे बढ़ते हुए बातें करते जा रहे थे, जहाँ सलीम बताता है कि उसका भाई अनीस भी यही कैनेडा में है, वे अब किसी इंडियन रेस्टोरेंट की ओर बढ़ रहे थे|
“ये कनाडा है भैया – लोग भलेही कम हो पर देश बहुत बड़ा है – कहाँ कहाँ खोजोगे उसे – कुछ सोचा है !!”
“दिल की नज़र से खोजेगा |”
कार्तिक की बात पर मुस्कराता हुआ देव कार्तिक के कंधे पर हाथ फैलाते हुए कहता है – “फ़िलहाल तो ये है मेरा आइडिया बॉक्स – यही देगा कोई आईडिया|”
“आइडिया बॉक्स !!” सलीम हैरान होता है|
“देखते जाओ – जल्दी ही पता चल जाएगा – |” कहकर देव कर्तिक की ओर देखता मुस्करा देता है|
“अच्छा नाम तो बताओ उसका जिसके लिए दुनिया जहाँ छोड़कर आए हो |” वे पैदल रास्ते पर चल रहे थे|
“नीमा…नीमा नाम है उसका |” देव के बोलने से पहले ही कार्तिक बोल उठा|
“नीमा…!! पता नही क्यों सुना हुआ लगता है ये नाम !”
सलीम की बात सुनते देव तुरंत उसकी तरफ मुड़ते हुए पूछता है –
“कहाँ !!!”
“याद नही आ रहा पर सुना है अभी हाल में |”
वह सोचते हुए कहता है तो कार्तिक तुरंत मसखरी करता हुआ कहता है – “अभी हाल में किसी शादी में तो नही गए जिसकी दुलहन का नाम नीमा हो…|”
ये सुनते देव की तैयोरिया चढ़ गई पर दोनों खिलखिला कर हँस दिए|
सलीम पैदल चलता कभी उन्हें जिस बस में बैठने को कहता वे बैठ जाते| वे देखते है कि सलीम के पास कोई पास था जिससे उसे बार बार पेड टैक्सी नही करनी पड़ रही थी बस स्लिप लगाते वह अपना सफ़र किसी भी बस में जारी रख रहे थे|
“ये टोकन है – जब सिटी आना होता है तो इसे खरीद लेने से ज्यादा पैदल नही चलना पड़ता नही वरना सिटी घूमने में ही हाड मांस एक हो जाता है|” सलीम कार्तिक की नज़रों का इशारा समझते हुए कहता है|
अब वे किसी बस से उतरकर किसी रेस्टोरेंट के अन्दर आ गए| वहां अपने मुताबिक चेअर में बैठते कोई ऑडर लेने उनके पास आता है|
“सलाम भाई जान |”
“वालेकुम सलाम भाई |”
सलीम जिसे सलाम कर रहा था कार्तिक और देव उन दोनों को बारी बारी से देखने लगे जिसपर दोनों हँसते हुए एक साथ बोल उठे – “हाँ हम साथ होते है तो सभी हमे ऐसे ही हैरानगी से देखते है -|”
“एक दम सेम टू सेम |”
वे अभी भी सलीम और अनीस को देख रहे थे जो आपस में जुड़वाँ भाई थे|
“हाँ इसीलिए हम एक ही जगह पर काम नहीं करते वरना बहुत गड़बड़ हो जाती है|” कहता हुआ सलीम हँस दिया|
“हाँ अच्छा ही किया नही तो रेस्टोरेंट का मालिक दो बार खाना खाने के जुर्म में एक ही को पीट देता |” कार्तिक की बात पर वे सब कसकर हँस पड़े|
तीनों ने काफी समय बाद भारतीय भोजन जी भर कर खाया|
“वाह मजा आ गया – काश ऐसा खाना रोज मिल पाता !” कार्तिक दाल की कटोरी अच्छे से रोटी से पोछता हुआ कहता है – “पास्ता इतना खा लिया कि अगले सौ साल तक पास्ता नही खाने वाला मैं |”
“मिल तो जाए पर बनाएगा कौन ?” सलीम टोकते हुए कहता है तो देव जल्दी से जवाब देता है – “मैं बना दूंगा पर सामान मिलना चाहिए |”
“क्या सच में !!” वे हैरान होते हुए साथ में देव को देखते है|
“हाँ बिलकुल – गैस और बर्तन चाहिए |” देव जवाब देता है|
ये सुन सलीम तुरंत उठता हुआ कहता है – “तो चल भाई – इंडियन स्टोर से सामान लेते है फिर मिलकर कुछ बना लिया करेंगे – गैस मेरे पास है ही |”
ये सुनते सबसे ज्यादा कार्तिक खुश हो जाता है|
नीमा क्या करने जा रही थी ये वह खुद को देखकर भी हैरान थी पर बेबी को लिए उन कनेडियन डॉलर के साथ वह बाहर निकल आई| बर्फ का आलम चारोंओर था लेकिन सड़क पर आवाजाही के कारण कही कही काली सड़क नज़र आ रही थी| वह बाहर निकल कर अपने अगल बगल के घरो की ओर देखती है जहाँ लोग अपने घर से बाहर की बर्फ हटा रहे थे| बर्फ उसके दरवाजे के आगे भी जमा थी पर अभी उसे हटाने का समय नही था तो वह घर को लॉक करके आगे बढती है उसने दीपा के लॉन्ग बूट पहन रखे थे जिससे वह आसानी से आगे बढ़ पा रही थी| आगे सड़क तक आकर वह पीछे पलटकर घर की लोकेशन को अपने दिमाग में सुरक्षित रखती हुई अब आगे देखती है तभी कोई टैक्सी उसके पास आकर रूकती है जिससे नीमा घबरा कर पीछे हो जाती है|
“किधर जाना है ?”
भारतीय आवाज सुन नीमा में कुछ हौसला होता है तो धीरे से टाउन डाउन में इंडियन स्टोर बोलती है|
“बैठो जी |”
नीमा बेबी को लिए बैठने में कुछ अचकचाती है तो ड्राईवर बाहर निकलकर उसको बैठने में मदद करता है| नीमा ने ठण्ड को देखते कुछ ज्यादा ही भारी ओवेर कोट पहन लिया था ऊपर से बेबी को भी अपने से चिमटाए लिए हुए थी|
देव और कर्तिक वाकई हैरान रह गए उस भारतीय स्टोर में आकर एक पल को लगा जैसे वे भारत के किसी मार्किट में थे, वहां सभी कुछ भारतीयों के मुताबिक था| बहुत सारे ब्रैंड तो इंडियन ही थे| देव कूकर, पतीला और कुछ दाले, आटा और मसाले ले लेता है, इतना सारा सामान देखकर सलीम हैरान रह जाता है|
“भाई तुम ले तो रहे हो – बनाना आता है न !”
“देखते जाओ अपने भाई का कमाल – अपना भाई ऐसा खाना बनाएगा ऐसा खाना बनाएगा तुमने सोची न होगी |” कार्तिक ताली पीटता हँसता हुआ बोला|
“अच्छा ऐसा है क्या – तो ठीक है मैं सब ठीक से पैक कराता हूँ |”
देव कार्तिक और सलीम को पैकिंग करता छोड़कर दूसरी तरफ कुछ सामान देखने लगता है|
ड्राईवर ने नीमा को ठीक स्थान पर पहुंचा दिया, टैक्सी से उतरती नीमा बेचारगी से उसके सामने खड़ी होती हुई कहती है – “भैया तुम इंडियन लगे इसलिए हौसला करके बैठ गई – मुझे बेबी का दूध लेना था और मुझे डॉलर पहचाना भी नही आता – मेरे पास यही डॉलर है बस !” वह उस पल अपने हाथ में कुछ डॉलर लिए उसके सामने शर्मिन्दागी से सर झुकाए खड़ी रही|
वह गाड़ी से बाहर निकलकर उसके मासूम चेहरे की ओर देखता है| पहली बार उसे किसी के सामने विनती करना पड़ रहा था जिससे वह बस रोने को हुई|
ड्राईवर उसके हाथ में से सारे डॉलर लेता हुआ उसकी ओर देखता है तो नीमा एक हाथ से बेबी को संभालती हुई उसकी ओर नज़र उठाकर देखती है, वह उसे डॉलर वापस देता हुआ कितना है ये समझा रहा था|
“वो सामने है इंडियन स्टोर – जाकर सामान ले लाओ जी – मैं यही वेट करता हूँ – वापस घर छोड़ दूंगा |”
नीमा हैरानगी से उस चेहरे को देखती है जो उस पल उसका सबसे बड़ा मददगार बनकर खड़ा था| नीमा हलके से आँखों के कोरे पोछती जल्दी से बेबी को लिए स्टोर की ओर बढ़ जाती है| रोड क्रॉस करते वह अपने को और बेबी को और कोट में कस लेती है|
वह बहुत जल्दी में थी, स्टोर से दूध को लेती काउंटर में बैठे आदमी के सामने डॉलर रख देती है तो वह उनमे से दूध का लेता उसे बाकी वापस कर देता है| नीमा दूध लेकर जल्दी से बाहर की ओर निकलती है|
यही वो पल था जब देव भी स्टोर से निकल रहा था और दोनों आपस में टकरा जाते है अगर देव उसे संभाल नहीं लेता तो शर्तिया नीमा गिर जाती| गिरने से बचने के लिए नीमा एल हाथ से बेबी को तो दूसरे हाथ से देव की बांह का स्वेटर कसकर थाम लेती है| देव उसको कमर से कसकर पकडे था, उसे खुद भी अंदाजा न रहा कि उससे कैसे ये हुआ| एक ही पल में सब कुछ थम कर रह गया| देव नीमा को थामे था बिलकुल अपनी उखड़ती साँसों की तरह, उन गहरी गहरी आँखों में वह देखता रह गया| मीलो बिछा समन्दर कभी दो आँखों में भी समाता है क्या !! वे उस पल यूँही वक़्त में ठहरे रह गए| उनके बीच बच्चा भी यूँ खामोश था मानो उनकी सरगोशी वह भी तोड़ने को तैयार नही था|
देव नीमा को अपनी बलिष्ट बांह में थामे था पर उस पल उसे ये कहाँ पता था, वे दोनों तो बस अजब हालात के दोराहे में आते टकरा गए थे| नीमा के शरीर के साथ उसका चेहरा भी ढंका था, वह ठंड से बचने के लिए आधे चेहरे पर स्कार्फ बांधे थी जिससे बस उसकी आंखे ही दिख रही थी| देव उसे थामे लगातार उन आँखों को देख रहा था, गहरी नदी का ठहराव था या कोई तूफ़ान का आगाज, आँखों के काले डोरों में उसका मन उलझकर रह गया था लगा कुछ पल के लिए धड़कने धडकना ही भूल गई| वह भी तो उसी स्थिति में उसकी बांहों में झूलकर खामोश रह गई, मानो उसके लिए वो चेहरा कोई अजनबी न हो, मानो उसको ताकती वो निगाहे उसकी अपनी हो, ये क्या बदल गया पल में उसमे, वह खुद ही उस पल में खो गई पर तबसे उनके बीच स्टैचू बना बच्चा अब चुप न रह सका और अगले ही पल किलक उठा जिससे एकसाथ दोनों की तन्द्रा भंग हुई तो देव धीरे से नीमा को छोड़कर अलग खड़ा हो गया इससे संभलती नीमा भी उसकी बांह की पकड़ ढीली करती सीधी खड़ी होती दोनों हाथों से बेबी को संभालने लगी| दोनों अपनी अपनी तंद्रा में वापिस आते अब अपनी हालत देखते है, नीमा देखती है कि उसके हाथ का पकड़ा पैकेट छिटककर नीचे गिरा था तो उसे उठाने वह बिना समय गवाए देव की ओर बिना देखे बेबी को उसकी ओर बढ़ा देती है और देव मौन ही सब समझता बेबी को अपनी गोद में लेता हुआ देखता है कि वह पैकेट से निकला सामान सही से रखती हुई झट से बेबी को उसके हाथ से ले लेती है लेकिन ऐसा करते एक बार फिर दोनों की निगाह आपस में मिलती है, आखिर कैसा खिचाव था कि बार बार उन आँखों की ओर मन चुम्बक सा खिंचा चला जाता, मन करता कि उन्हें यूँही देखते रहे बस….
“देव……….!”
कार्तिक की पुकार पर देव पलटकर उसे देखता है साथ ही उसके आस पास खड़े लोगों को भी जो उनकी क्षणिक हालत पर खड़े मुस्करा रहे थे इससे झेंपता देव फिर से नीमा की ओर देखता है…ये क्या अब वहां कोई नही था..देव सकपकाया अपने चारोंओर देखने लगता है…
“चली गई |” उसके पास आते सलीम कहता है|
देव अभी भी जाने वाले रास्ते की ओर देख रहा था|
“वहां क्या देख रहा है अब क्या बेबी सिटिंग करने का इरादा है |”
झक मारे देव अब उनकी तरफ मुड़ जाता है पर नज़र मिलाकर उनकी तरफ नही देखता पता था दोनों उसी पर हँस रहे थे|
“अपना देव तो गया – लगता है नीमा जी को जल्दी से ढूंढना पड़ेगा |” सलीम हँसते हुए कह रहा था|
उनकी हँसी से बेखबर देव हलकी सरगोशी में कहता है – “वो जो भी थी पर इतनी अपनी सी क्यों लगी – कही नीमा तो नही !”
“क्या बात करते हो – वो तो उस बच्चे की माँ थी – तुम्हारी नीमा तो…!” सलीम सोचते हुए धीरे से कहता है|
तभी कार्तिक जो कुछ समय पहले हँस रहा था अचानक सीरियस होता देव के पास आता हुआ कहता है – “बच्चा – बच्चा तो उसकी बहन का भी था न !! देव कहीं सच में वो नीमा तो नही !!”
अब तो देव को लगा उसकी धडकन ही क्षण भर को थम गई| वह तुरंत ही बाहर की ओर भागता है पर सडक तक आते नज़र चारोंओर घुमाते उसे वह दुबारा नही दिखती|
तब तक दोनों भी उसके पास आ गए थे, कार्तिक उसके कंधे पर हाथ रखता हुआ कह रहा था – “तुमने उसका चेहरा देखा !”
“अरे देखा नही था उसका चेहरा आधा ढका हुआ था|” सलीम जल्दी से बोलता हुआ कहता है|
देव जो अब भी सड़क पर नजर किए था धीरे से बुदबुदाया – “उन आँखों के सिवा इस दुनिया में रखा क्या है…|”
देव…!! दोनों अगल बगल होते उसे हिलाते हुए उसकी तन्द्रा भंग करने की कोशिश करते है पर वह तो उन आँखों की नदी में बहता कही दूर निकल चुका था|
सलीम पैक किया सामान लेता हुआ उनके साथ वापस निकलने लगता है, अब वहां रुकने का कोई कारण नही बचा था| वहां से निकलते हुए कुछ शाम होने लगी थी जिससे शहर की जगमगाती लाइट अपने अस्तित्व में आती बर्फ पर जुगनुओं की तरह जगमगा रही थी| इस करिश्माई रौशनी की आभा के बीच कुछ और लोग नजर आने लगे थे| टोरंटो लिखे के आगे सफ़ेद फर्श पर स्केट करते लोगों का उत्साह उस महौल को गर्मजोशी से भर रहा पर इसके विपरीत देव का मन सर्द होता अपनी ही ओट में जा छुपा था, उसका मन बार बार कह रहा था वह नीमा ही थी जो उसके इतने करीब आकर चली भी गई, मानो जिन्दगी की धूप से झुलसते मन को ठंडी हवा का झौका कुछ पल की तरावट दे गया और उसके जाते मन फिर उदास हो चला| पूरे रास्ते भर कार्तिक और सलीम बातें करते रहे वही देव अपनी ख़ामोशी में गुमशुदा बना रहा|
नीमा को जहाँ से उस ड्राईवर ने बैठाया था उसी गंतव्य में छोड़ कर जाने लगता है तो नीमा उसे रोकती हुई बचे हुए डॉलर उसकी और बढ़ाती हुई कहती है – “प्लीज़ आप ये ले लीजिए – मना मत करियगा – मैं अभी आपका पूरा किराया भी नही दे सकती –|”
वह नहीं लेना चाहता था पर नीमा उसके हाथो के बीच रखती हुई अब ठीक से उसे देखती है वह अधेढ़ उम्र का था अगर उसके पापा जिन्दा होते तो उन्ही की तरह दिखते| वह अब कह रहा था – “किसी का उधार शेष नही रहता – तुम कुछ अच्छा कर रही होगी तो तुम्हारे साथ भी अच्छा हो गया और मैंने जो अच्छा किया तो मेरे साथ कोई और अच्छा कर देगा – बेटी ये सिलसिला कभी नही रुकता – चलता रहता है – इसलिए जब मौका मिले तो अच्छा जरुर करना चाहिए |” वह अपनी मुस्कान छोड़ते वहां से चला जाते है|
नीमा नम मन से उसको जाता हुआ देखती हुई घर में वापस आ जाती है|
देव जैसे पूरा वापस आया ही नही कही छूट गया था उसका मन, बार बार उसका मन खुद से प्रश्न कर रहा था क्या वो नीमा थी….!! वह खुद में उलझता रहा…नीमा नही थी ये मन मान ही नही रहा था तो वह उसके इतने पास थी और वह पहचान भी नही पाया..उफ़ काश फिर कोई ऐसा लम्हा हो और वो उसके इतने पास आ जाए तो उसे खुद से फिर कभी दूर नही जाने देगा…कभी नही…एक ठंडी आह उसके दिल से निकलती है और निगाहे फिर खिड़की के पार दूर तक चली जाती है…पता नही कहाँ होगी..!! किस हाल में होगी !!! एक शहर अचानक से कितना बड़ा हो गया जहाँ वह अभी तक उससे अनजाना बना हुआ था…
बेबी के सो जाने पर नीमा गर्म लिहाफ में बहुत देर लेटी रही पर नींद का एक कतरा भी आज उसकी आँखों में नही था…जैसे कुछ ठहरा रह गया था उसकी पलको में कोई याद का टुकड़ा….कौन था वह अजनबी जो अजनबी सा न लगा…लगा जैसे बरसों से जानती है उस चेहरे को वह…कैसी असब्र सी कशिश थी लगा उन बाजुओ की पकड़ से कभी अलग ही न होहूँ…कैसा ये अनजाना सा अहसास हुआ उसे…उसका मन क्यों बेचैन हुआ जा रहा है….खुद को ही डांटती बार बार उस चेहरे से अपना ध्यान खींचती रही और उसका मन बार बार भटकता रहा…उन दीप्त सी जगमगाती निगाहों के आस पास..
बहुत देर जब मन स्थिर न हुआ तो नीमा फिर से डायरी लेकर बैठ गई…
अजनबी निगाहों वाले
सिर्फ तुम
तुम्हारी आँखों के झरने
दिखते है मुझको
किसी घाटी के
गुप्त
जल प्रवाह से
जिन्हें मेरे विप्लप मन
की झाड़िया
पार कर के भी नहीं
तलाश पाती कभी
पर
दूर तलक भी
महसूसती हूँ
झरने के वेगमय धमक को
अपने सीने पर
जिसकी छुअन से
उठते कुहासे में
जैसे मेरा ही नाम लिख कर
मिटाया गया होता है ||
क्रमशः…………………