Kahanikacarvan

इस कदर प्यार है – 41

हॉस्पिटल में उस टैक्सी ड्राईवर की तबियत में अब काफी सुधार आ गया था| दोपहर तक वह उठकर बैठ भी गया ये देख नीमा को बहुत अच्छा लगा| शाम होते होते होते उसे डिसचार्ज भी कर दिया गया| वह नीमा के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करता जाने की तैयारी करने लगा पर उसे अहसास भी नही था कि इस वक़्त नीमा किस मुश्किल में है !!

“बेटी कभी भी किसी वक़्त कोई भी जरुरत हो तो आधी रात में मुझे फोन करना हाजिर हो जाऊंगा – ये मेरा कार्ड है – रख लो बेटी |” वह अधेड़ उम्र का भारतीय भरपूर अपनत्व से नीमा को देख रहा था|

“आप भी अपना ख्याल रखिएगा |” कार्ड लेती हुई कहती है|

वह हॉस्पिटल से बाहर निकलते निकलते नीमा से फिर पूछता है – “बेटी कही जाना हो तो मैं छोड़ सकता हूँ – हाँ पर इसे कोई अहसान मत समझना – ये शायद बिन खून का रिश्ता है जिससे हम किसी पल एक दूसरें के काम आ जाते है |”

ये सुन नीमा कुछ पल देखती रही, उसे खुद समझ नही आ रहा था कि आगे आखिर क्या करना है उसे लेकिन किसी के लिए बोझा अब वह कतई नही बनना चाहती थी| उसने मन ही मन तय कर लिया कि वह इंडियन एम्बेसी से संपर्क करके अपने देश वापस लौटने का प्रयास करेगी|

नीमा को खामोश देख वह कुछ तय नही कर पाया तो फिर से पूछता है – “कुछ परेशानी है बेटी !! क्या कुछ मदद कर सकता हूँ !!”

“नही – मैं ठीक हूँ |” नीमा आगे कुछ नही कहती बस आँखों की मुस्कान से विदा देती कुछ पल तक हॉस्पिटल में खड़ी रहती है ताकि वह निकल जाए तब वह कुछ आगे का तय करे|

नीमा हास्पिटल की तरफ पीठ करे बाहर देख रही थी, वह व्यक्ति भी जाते हुए उसकी ओर बार बार देख लेता था| तभी भौकने की हलकी आवाज से नीमा का ध्यान अपने पीछे जाता है| कोई और भी था जो उसे बड़ी उम्मीद से देख रहा था| उस जर्मन स्प्लिट को गोद में लिए अपने गालों से उसे सहलाने लगती है जिससे वह भी अपनी नन्ही जीभ से उसका हाथ चाटने लगता है|

“इस वक़्त लगता है तुम्हारी और मेरी एक सी हालत है – न तुम्हारा कोई ठिकाना है और न मेरा – तभी शायद ईश्वर ने हमे मिलाया |” हलके से बुदबुदाती नीमा उसे लगातार सहलाने लगती है और वह भी नीमा के पास यूँही सिमटा रहता है मानों उसे भी अब कही नही जाना हो|

एक ही पल में देव के मन में उम्मीद जगी और तुरंत ही बुझ भी गई| देव आगे आगे तो कार्तिक उसके पीछे पीछे था वे दोनों दीपा के घर पहुँच चुके थे लेकिन अगले ही पल नाउम्मीद से वापस भी लौट गए| नीमा उस घर से कहाँ गई किसी को नही पता था, उस पल ये सुनते उसका खून खौल गया कि कोई किसी के प्रति इतना निर्मम कैसे हो सकता है !! वह नाराज़ तो बहुत होना चाहता था पर अब उसका कोई फायदा नहीं था जब नीमा ही नहीं तो उनपर नाराज़ होकर भी क्या फायदा| वह थके कदमो से वापस लौट गया जैसे सब कुछ हार कर जुआरी लौट गया हो|

चलते चलते कार्तिक देव पर बिगड़ रहा था –

“ये क्या है देव – तू कुछ बोला क्यों नही – तूने तूने..|” कार्तिक बुरी तरह बौखलाया हुआ था| उसे देव की ख़ामोशी चुभ रही थी| घर वापिस आते रूम में देव जहाँ कोना पकड़कर बैठ गया वही कार्तिक के सर पर तो खून सवार था|

“अभी चल – अभी तुरंत चलकर पुलिस में कम्प्लेंट करते है – उस सुशीलादेवी को बेटी सहित जब हैरेसमेंट की चार्जशीट पर जेल भेजा जाएगा तब दोनों को पता चलेगा – ये कैनेडा है यहाँ इस तरह का केस बहुत सीरियस लिया जाता है – अब तू बस चल |” कार्तिक देव को घसीटता हुआ उठाता है|

देव उसका हाथ धीरे से छुडाते हुए कहता है – “और उसकी बच्ची – उसे भी जेल भेज दोगे !!”

देव की बात सुन कार्तिक अपनी जगह जमा रह गया, वह आश्चर्य से उसे देखता रहा|

“बात को समझ कार्तिक – गुस्सा तो मुझे कितना आया ये तुझे क्या बताऊँ – उसकी लापरवाही में नीमा इस अनजान देश में कहाँ गई ये सोचते मेरा दिमाग फटने लगता है पर तूने दीपा के पति को नही देखा – हम उस वक़्त ये कदम उठा भी लेते तो वह चुपचाप सर झुकाकर सब स्वीकार कर लेता लेकिन उनकी छोटी बच्ची है उसके कारण मैं रिपोर्ट लिखाने से रुक गया – मेरे यार |”

देव कार्तिक के कंधे पर हाथ रखे अपना दर्द बयाँ कर रहा था – “नीमा को सोचकर इस वक़्त जो मेरी हालत है वो मैं शब्दों में भी नही बता सकता लेकिन ये सब जानने के बाद भी पता नही क्यों मेरे दिल को ये यकीन है कि वह सुरक्षित है और मैं बहुत जल्दी उसे ढूंढ़ लूँगा – |”

देव की बात सुन कार्तिक हैरान नज़रों से देव की ओर देखता रहा जो कह रहा था – “कार्तिक जब इन्सान को लगता है कि उसके लिए सभी तरह के रास्ते बंद है पर उस वक़्त भी एक अदना रास्ता खुला रहता है और वो है विश्वास का आस्था का इसलिए इस वक़्त मुझे अपने भगवान पर विश्वास है कि नीमा जहाँ भी होगी वे उसकी रक्षा करेंगे – मुझे उनपर पूरा भरोसा है|”

नीमा का सच जानने के बाद जहाँ देव के जीवन की नाउम्मीदी कई गुना बढ़ गई वही दीपा पर प्रथम लगभग फट ही पड़ा वह इजा को तुरंत ही अपने घर से वापस जाने को कहता है जिससे दीपा तुरंत ही नाराज़ हो उठती है –

“ये क्या कह रहे हो – इतनी दूर से आकर वे तुरंत कैसे जा सकती है – कुछ तो सोचो प्रथम |”

सुशीलादेवी अवाक् खड़ी सब चुपचाप देखती रही|

“ये बात तुम्हारी माँ को दूसरों के बारे में भी सोचना चाहिए कि बिचारी नीमा इस अनजान देश में जाने कहाँ भटक रही होगी !! वो तो गनीमत मानों देव का वह चाहता तो इस बात की पुलिस में रिपोर्ट लिखा सकता था तब सोचती कि यहाँ की पुलिस तुम्हारे साथ क्या करती !!”

“क्या !! क्या कह रहे हो प्रथम – क्या तुम ऐसा होने दोगे !!” दीपा हक्लाती हुई बोलती है|

“फिर भी मैं तुम्हे और तुम्हारी इजा को कुछ दिन की मौहलत देता हूँ जब तक मैं डाईवोर्स पेपर नही फाइल करवा लेता |” कहकर प्रथम अन्दर की ओर वापस मुड़ जाता है पर ये सुनते दीपा और इजा की तो सांस ही गले में अटक गई, वे कभी सपने में भी नही सोच सकती थी कि प्रथम इस बात के लिए इतना बड़ा कदम उठा लेगा |

दीपा तुरंत ही प्रथम के आगे आती उसका रास्ता रोकती हुई चींखी – “ये क्या कह रहे हो प्रथम – इतनी सी बात के लिए इतना बड़ा कदम !!”

“हाँ जिसके लिए ये बात इतनी सी है उसकी सेन्सटीविटी का अंदाजा लगा सकता हूँ और इसलिए मैं बिलकुल नही चाहूँगा कि मेरी बेटी तुम्हारे या तुम्हारी इजा जैसी बनी |”

दोनों मौन अपने अपने स्थान पर बुत बनी खड़ी रह गई, आज उनके पास अपनी बात साबित करने के लिए कोई चालबाजी या कोई झूठ नही था…वही देव उदास तो नीमा अनजान जगह थी|

दीवार का टेक लिए देव कुछ सोच रहा था कि उसे आगे क्या करना है तो वही प्रथम के निर्णय के बाद से दीपा और उसकी इजा की आँखों की नींद ही उड़ गई थी| वह किसी तरह से भी प्रथम को मनाना चाहती थी|

“प्रथम अब जो हो गया सो हो गया उसके लिए अब मैं क्या कर सकती हूँ – मुझे कम से हमारी बच्ची के लिए माफ़ कर दो – प्लीज़ |” दीपा के स्वर में गहरी इल्तजा थी|

“ठीक है अगर तुम्हे ऐसा लगता है तो डाइवोर्स पेपर फाइल होने से पहले नीमा को खोजकर उससे माफ़ी मांग लो और अगर वो तुम्हें माफ़ कर देती है तो शायद मैं भी तुम्हें माफ़ कर सकूँ |”

“है !!” ये सुनते दीपा की ऑंखें हैरानगी से फ़ैल गई|

“नीमा को ढूंढने के सिवा कुछ नही हो सकता |” कहता हुआ प्रथम दीपा से दूर चल दिया पर अपने स्थान पर खड़ी खड़ी दीपा समझ नही पा रही थी कि अब वह नीमा को आखिर ढूंढे भी तो कैसे !!

नीमा अपनी ही सोच में अभी भी वही खड़ी थी कि रौशन तेज कदमों से उसकी तरफ आता हुआ उसे कोई पैकेट पकड़ाते हुए विनती के स्वर के कहता है – “आप प्लीज़ इस पैकेट को रूम नंबर ट्वेंटी वन में मिस्टर माइकिल तक पहुंचा देंगी – प्लीज़ |” वह नीमा की हाँ या न की परवाह किए बिना उसके हाथ में पैकेट पकड़ाकर उसके विपरीत हॉस्पिटल में चला गया| नीमा को ये सब बड़ा अजीब लगा, उसे समझ नही आया पर वह मिस्टर माइकिल को जानती थी| असल में वह टैक्सी ड्राईवर रूम नंबर ट्वेंटी वन में ही उनके साथ था और अगल बगल अपने अपने पेशेंट होने से वे हलके से एकदूसरे को जान गए थे| नीमा निश्चित रूम में जाकर वह पैकेट देने पहुंची तो देखा वह बुजुर्ग व्यक्ति जो फादर थे अभी अपना सामान बांध रहे थे| इससे पहले भी नीमा चलते फिरते उनका हाल चाल ले चुकी थी तभी उसे पता था कि वे हिंदी अच्छे से जानते है| नीमा उनका हाल लेती हुई उनकी ओर पैकेट बढ़ा देती है|

“थैंकयु माई सन – अब मैं बिलकुल ठीक हूँ और अपने मिशन के लिए भी तैयार हूँ  – क्या तुम भी रोशी के साथ हो !!”

“मिशन !! कैसा मिशन !!”

“ओह्ह !! शायद नही पर मुझे ऐसा लगा था |” वे अब अपना सामान बाँध चुके थे और बाहर निकलने को तैयार थे|

“मैं रोशी के लिए रुक नही सकता पर क्या तुम मेरी ओर से उसे थैंक्स बोल सकती हो – मुझे थोड़ा जल्दी है निकलने की |”

वे सच में बहुत जल्दी में थे क्योंकि अपनी बात कहकर वे नीमा की प्रतिक्रिया भी देखने दो पल को नही रुके जो अजीब सा भाव लिए हाँ में सर हिलाती अपनी सहमति दे रही थी|

“ओह क्या मिस्टर माइकिल निकल गए ?” वह रौशन था जो नीमा को रूम नंबर ट्वेंटी वन में देखता हुआ पूछता है|

“हाँ बस अभी ही |”

“ठीक है – आपने मेरी सहायता की उसका शुक्रिया |” वह सोचने लगा कि नीमा अब उस रूम से बाहर में उसके साथ ही निकलेगी पर वह अभी भी वही खड़ी थी इससे वह उससे पूछने लगा – “क्या आप कुछ परेशान है – मैं आपकी कोई सहायता कर सकता हूँ !!”

“आं नहीं – बस मैं फादर की बात ही सोच रही थी कि वे किस मिशन की बात कर रहे थे !!”

“ओह्ह – उन्हें लगा होगा आप मेरे साथ है |” रौशन की बात सुन वह अजीब निगाह से उसकी ओर देखती है|

“चलिए एक कॉफ़ी के साथ मैं आपके प्रश्न को सुलझाता हूँ |” वह नीमा के आश्चर्य पर मुस्कान का लेप लगाता हुआ रूम से बाहर निकलने लगता है तो अबकी नीमा भी उसके पीछे पीछे चल देती है| वे फिर से वेटिंग रूम में आ गए थे|

रौशन दो कॉफ़ी हाथ में लिए उसकी ओर आता हुआ कह रहा था – “यूँ तो लाइफ बिना मिशन के नही होती है पर किसी का मिशन अपना निजी जीवन होता है तो किसी का दूसरों के लिए बस मैं वही दूसरा वाला व्यक्ति हूँ – एक्चुली मैं केयर बीमा का सदस्य हूँ |”

“केयर बीमा !!” नीमा के जीवन में सुना ये सबसे अजीब शब्द था, वह अनभिज्ञ भाव से उसकी ओर देखती रही|

“देखिए इंडिया में क्या होता है – जब माता पिता वृद्ध हो जाते है तब उनके बच्चे उनकी देखभाल करते है और जब वे वृद्ध हो जाते है तो उनके बच्चे ऐसा करते है इसलिए इस तरह के बीमा की वहां कोई जरुरत नही होती लेकिन इंडिया से बाहर बहुत सारे देश में बच्चे इंडिपेंडेंट होते अपने माता पिता से अलग रहने लगते है तब वे अपनी वृधावस्था में अकेले पड़ जाते है उस वक़्त में इस बीमा की संस्था से जुड़े युवा उनकी देखभाल करते है और अपना नाम रजिस्टर्ड कराकर अपना वृधावस्था के लिए केयर बीमा करा लेते है – इससे जब उनका बुढ़ापा आता है तो इस संस्था से जुड़े होने से वे जितनी सहायता दुसरे को पहुंचा चुके होते है उसका लाभ अपने ओल्ड ऐज में लेते है तो है न बीमा की तरह |”

रौशन के अपनी बात अच्छे से समझा देने से नीमा हलके से मुस्करा देती है|

“हाँ आपको सुनकर अजीब लगेगा पर जो इस देश की जरुरत है वो तो हमारे देश में बिना किसी बाउंड के हो जाता है |”

“तो आप भी अपना ओल्ड ऐज का केयर बीमा बुक कर रहे है !”

“हाँ बस ऐसा ही समझ लीजिए – |”

“मतलब !”

“मतलब ये कि फादर के साथ मिलकर मैं इस संस्था को चला रहा हूँ जिसमे रोजाना बहुत सारे यंगस्टर जुड़ रहे है और इसीलिए उन्हें लगा कि आप भी मेरे इस मिशन से जुडी है |”

“ओह्ह – अच्छा है इसी बहाने लोग हेल्पलेस लोगों को समझ तो रहे है |” नीमा मुस्करा कर अपनी सहमती देती है|

“ये तो रही मेरी बात पर अभी तक आपने अपने बारे में तो कुछ बताया नही |”

नीमा थोडा हिचकिचा गई फिर कुछ सोचती हुई बोली – “एक्चुली में मेरा पासपोर्ट खो गया है तो मुझे वापस जाने के लिए इंडियन एम्बेसी जाना है |”

“खो गया !! कैसे !!”

उसके अचानक के प्रश्न पर नीमा चुप होकर इधर उधर देखने लगी जिससे वह उसकी हिचकिचाहट समझता हुआ आगे कहता है – “क्या आपका टिकट कंफर्म हो चुका है ?”

“नही – मैं इस वक़्त खुद के लिए कोई जॉब और शेल्टर भी तलाश रही हूँ |”

इसपर उनके बीच कुछ पल की ख़ामोशी छा गई फिर उसके अगले पल वह तेजी से कहता है – “तब तो आप मेरी सहायता कर सकती है – असल में आपने तो मेरी समस्या हल कर दी |” नीमा अवाक् उसका चेहरा देखती है अब आखिर आगे वह क्या तय करेगी और क्या नया मोड़ आएगा उसके जीवन में !! जानने के लिए पढ़ते रहे..

…….. क्रमशः….

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