
इस कदर प्यार है – 44
कार्तिक चिढ़ी हुई नज़र से दरवाजे पर खड़े प्रथम को घूर रहा था जो अभी अभी उनके घर आया था| प्रथम के हाव भाव में दोस्ती भरी मुस्कान थी पर इसके विपरीत कार्तिक अपने हत्थे से उखड़ा उसपर बरस ही पड़ा –
“क्या है – क्यों आए हो -?”
“कार्तिक की तेज रुखी आवाज सुन अन्दर से ही देव उसे पुकारता हुआ बाहर की ओर आता है – “कौन है कार्तिक ?” जबतक कार्तिक उसकी बात का जवाब देता देव बाहर तक आता दरवाजे के पार प्रथम को देख रहा था|
“देव मुझे तुमसे मिलना था |” प्रथम अब कार्तिक के पीछे खड़े देव की नज़रो की सीध में देख रहा था|
इससे पहले कि कार्तिक कुछ बोलता देव आगे आता हुआ प्रथम को अन्दर बुलाता है, ये बात अलग थी कि कार्तिक को देव का ये व्यव्हार बिलकुल नागवारा गुजरा पर आँखों से देव की इल्तिजा पर वह चुपचाप अन्दर आता कोने में बैठ गया| प्रथम समझ रहा था देव के दोस्त की नाराजगी इसलिए बिना मुस्कान खोए वह अन्दर आकर भी खड़ा रहा|
“बताए |” देव सीने पर हाथ बांधे उसके सामने खड़ा था|
“पता है मेरा आना तुम लोगो को अच्छा नही लगा – मैं बिना नीमा को खोजे तुम्हारे सामने आना भी नही चाहता था पर कुछ ऐसा था जिसे मैं देव तुम्हे देना चाहता हूँ |”
प्रथम की बात पर देव हैरानगी भरी निगाह से उसे देखता रहा|
“कुछ जो नीमा का है पर अब उसे तुम्हारे पास होना चाहिए |” प्रथम कहे जा रहा था और दोनों की हैरान नज़रे उसे आश्चर्य से देखे जा रही थी|
कुछ था जिसे देव की ओर बढ़ाता हुआ प्रथम कह रहा था – “ये नीमा की डायरी – मुझे लगा इसे अब तुम्हारे पास होना चाहिए शायद उसे ढूंढने में ये कुछ सहायता करे |”
देव एक क्षण तक फैली आँखों से उस चीज को देखता रहा जो डायरी थी जो प्रथम के हाथ में थी उस वक़्त |
“लो देव |” प्रथम अब उसे देव की तरफ बढ़ा रहा था|
देव डायरी ले लेता है| उस पल डायरी को छूते जो अनकहा अहसास उसके मन से गुजरा वो उस वक़्त उसके अलावा कोई नही समझ सकता था|
डायरी को देकर प्रथम एक पल भी वहां नही रुका बस जाते जाते कह गया – “अब जब नीमा को खोज लूँगा तभी तुम्हारे सामने आने की हिम्मत करूँगा देव |”
प्रथम तुरंत बाहर चला गया पर देव अपने स्थान पर बुत बना उस डायरी को लिए खड़ा रह गया जब तक कर्तिक ने आकर उसे झंझोड़ नही दिया|
नीमा के जीवन में अजब बदलाव आ चुका था जहाँ उसे सम्मान की जिंदगी जीने का हक़ था वह कुछ हद तक खुश भी थी पर कुछ था को रीता सा उसके मन को बार बार साल रहा था| वह स्नोई को अपने ऊपर रखे हौले हौले उसे सहलाती कही गुम थी ख्यालों की दुनिया में| आखिर वह जिसके लिए दीपा के घर से निकली अभी तक वो शख्स उसके लिए ही अनजान और उससे बहुत दूर था| सिर्फ अभी तक वह इतना ही जान पाई थी कि कोई है जो उसे दीवानों की तरह चाहता है….कोई है जो उसका इंतज़ार कर रहा है…कोई है जो उसके लिए ही बना है…पर अभी तक वह उसी शख्स से अनजान थी| यहाँ तक कि वह उसका नाम भी नही जान पाई थी| वह इंडिया में उसका इंतज़ार कर रहा होगा…क्या अभी तक भी !! जाने कैसा दिखता होगा वह !! क्या उसे अभी भी उसका इंतज़ार होगा !! क्या होगा उनका भविष्य !!…वह सोचते सोचते अपनी कलाई पर प्यार से हाथ फेरती उसे देखती रही…अब निगाह अपनी कलाई के उस टैग पर भी जिसमें न अक्षर लिखवाते वह हिल गई थी और गलती से वह न टेढ़ा होता अब द जैसा कुछ दिखता था…तुम्हारा नाम जो भी हो पर मेरा इश्क का नाम द से ही होगा…ये अनजाना इतफाक ही मेरा इंतज़ार है…उस अक्षर को निहारते कुछ अंतरस उसके मन में गहरे से उतरा जा रहा था…जिससे उसका मन कुछ गुनगुना उठा…..
ढूंढ कर मुझकों किसने नायाब बना दिया
जज़्बातों के समंदर में नया तूफान जगा दिया..||
गुनगुनाते हुए वह उस अक्षर को चूम लेती है….!!
“हाँ…!!” देव चौंककर कार्तिक की ओर देखता है जो बिस्तर के कोने में तकिया चिपकाए बच्चों सी गहरी नींद में था| देव को लगा जैसे किसी ने उसका नाम लेकर उसे पुकारा, वह फिर कार्तिक की ओर गौर से देखता है पर उसको निश्चिंतता से सोता देख हौले से मुस्करा देता है| इस वक़्त वह नीमा की डायरी अपनी बाँहों से समेटे आंख बंद किए लेटा था| लेटा क्या था वह तो नीमा के ख्यालों में गुम था…उसकी डायरी थी या उसका खुशबू भरा अहसास जिसे अपनी पुष्ट बाँहों में समेटे वह प्यार के समन्दर में खो जाना चाहता था…कही अनंत प्यार के गगन में उसे लिए दूर चला जाना था….
अलग अलग स्थान पर मौजूद दो दिल इश्क में डूबते हुए करवट लिए मुस्करा देते है….
सुबह उठते ही देव सबसे पहले घर फोन लगाता है, आज माँ से बात करने का उसका बहुत मन था आखिर कितना समय हो गया था घर से दूर रहते| उसे सबकी बहुत याद आती| पापा, अवनि सब के साथ बिताए हर पल उसकी आँखों में किसी एल्बम के चित्र से सुरक्षित थे| पलके बंद किए वह रोजाना उन्हें याद कर लेता था| फोन माँ ने ही उठाया| आवाज सुनते बेटे को ढेरों आशीष देती उनकी आवाज थोड़ी भर्रा गई तो जल्दी से पापा को फोन देकर वे खुद को सँभालने लगी|
“बेटा बहुत दिन हो गए अब कब वापस आओगे ?” पापा भी नम शब्दों से पूछ रहे थे तो वही खड़ी अवनि माँ का हाथ थामे जैसे खुद को भी संभाल रही थी|
“जल्दी आऊंगा पापा – बहुत जल्दी पर माँ…. !” देव माँ को लेकर कुछ ज्यादा ही परेशान हो उठा था|
पापा सब जान समझ रहे थे देव की मनस्थिति भी तो माँ की बेटे के प्रति भावना भी| दोनों में न कोई विरोध था और न अंतर बस एक से लम्हे दो अलग अलग हालात में थे इसलिए वे उसे ढांढस देते हुए बोले – “अरे तुम्हारी माँ ठीक है बस आजकल रामचरितमानस में पुत्र वियोग पढ़कर कुछ ज्यादा ही सेंटी हो गई -|” कहते हुए पापा अपनी चिरपरिचित हँसी से सब संयंत कर लेते है|
पापा फिर से फोन पत्नी की ओर बढाकर किनारे हो जाते है| माँ की हालत ये थी कि बेटे की आवाज ही जैसे उनकी ऊर्जा बन गई, वे खुद को संभालती हुई कहती है – “अब इंतजार नही होता न – जल्दी से हमारी नीमा को वापस लेकर आओ – बड़ा मन है तुम दोनों को साथ देखने का –|”
माँ की बात सुन देव के चेहरे पर हलकी मुस्कान तैर गई|
“मेरा मन कहता है बस अब ये दिन जल्दी ही आएगा जब तुम उसको ढूंढ लोगे और माँ का मन कभी झूठा साबित नही करेंगे भगवान् |”
देव हौले से हामी भरता जैसे माँ का आशीष ग्रहण कर रहा था|
नीमा सुबह से ही अपने काम में मुस्तैद थी| वह फोन रिसीव करती और उनकी जरुरत के अनुसार उनको सहायता पहुंचाती| सभी फोन करने वाले बुजुर्ग थे| नीमा को उनकी सहायता करके बहुत अच्छा लग रहा था| कुछ सन्देश द्वारा भी मदद मांगी जाती| ऐसा ही एक सन्देश नीमा को मिला जिसमे इंडियन स्टोर से केक की डिमांड की गई थी| कहा गया था कि उन बुजुर्ग दम्पति के लिए केक बहुत जरुरी है क्योंकि वे किसी अपने का जन्मदिन आज सेलिब्रेट करना चाहते है| रिक्वेस्ट को इमोजी के साथ भेजा गया जिसे देख नीमा को उनकी जरुरत सबसे ज्यादा लगी जिससे वह सब छोड़ कर पहले उनके लिए केक के ऑर्डर के लिए रौशन से मिले नंबर डायल करने लगी| उसने लगातार कई नंबर डायल किए पर दुर्भाग्य से किसी का नंबर भी न लगा| कही फोन रिसीव भी किया गया तो आज की डिलवरी के लिए मना कर दिया| वह फिर से न उठाए जाने वाले नंबर को दुबारा मिलाती है आखिर फोन दूसरी ओर से उठा लिया जाता है|
“हेलो यस…!”
ये इंडियन स्टोर में मिलाया गया नंबर था| नीमा जानती थी अब इंडियन स्टोर से ही रिक्वेस करके वह केक के लिए मदद मांग सकती है|
“देखिए आज की डिलवरी पोसिबल नही है – एक्चुली में उस एरिया का डिलवरी बॉय नही आया है|”
“मैं समझ रही हूँ पर आप भी समझिए – ये बहुत अर्जेंट है – ये किसी बुजुर्ग की भावना की बात है |” नीमा जिद्द करती रही|
आखिर स्टोर वाले ने बात खत्म करते हुए कहा – “ओके मैम – मैं खुद डिलवरी बॉय को फोन करके बोलता हूँ पर अगर वह फिर भी नही माना तो सॉरी इससे ज्यादा मैं आपकी मदद नही कर सकता- हाँ स्टोर में आकर खुद आप ले सकती है |”
“मुझे उम्मीद है आप मेरी मदद जरुर करेंगे – क्या आप उस डिलवरी बॉय का नंबर दे सकते है – मैं भी अपनी ओर से रिक्वेस्ट कर दूंगी – बहुत अर्जेंट है |”
आखिर नीमा की बात न पोसिबल होने पर भी उसे माननी पड़ी|
“वैसे बिना कंफर्म हुए हम सीधा डिलवरी बॉय का नंबर नही देते पर फिर भी आपकी रिक्वेस्ट किसी और के लिए है इसलिए मैं आपकी मदद कर रहा हूँ|”
“थैंकयु सो मच |”
नीमा को अब समझ आ रहा था कि जिस काम को वह बहुत आसान समझ रही थी वह उतना आसान भी नही था| किसी तक मदद पहुँचाना भी आसान काम नही था| नीमा अब डिलवरी बॉय को खुद फोन मिलाने लगती है| फोन आखिर उठा लिया जाता है|
उस पार किसी लड़की की मधुर आवाज के लिए देव बिलकुल तैयार नही था, वह अचकचाता हुआ पूछता है क्योंकि आवाज से वह भारतीय स्वर लग रहा था|
“कौन !!”
“एक डिलवरी पहुंचानी है और मैं आपसे पर्सनली रिक्वेस्ट कर रही हूँ |”
“जी हाँ मेरे पास फोन आया था पर अब मैं वो काम छोड़ चुका हूँ तो..|”
देव की बात अधूरी सुनती ही नीमा कह उठी – “आज बहुत अर्जेंट है तो प्लीज आखिरी समझकर कर दीजिए – आप भारतीय है इसलिए मुझे उम्मीद है आप मदद से पीछे नही हटेंगे – आज का दिन मेरे लिए भी बहुत ख़ास है तो प्लीज…|”
देव मौन रह गया जिसे नीमा ने स्वीकृति मान लिया|
“ओह शुक्रिया – मैं आपको एड्रेस और अमाउंट भेजती हूँ – |”
“ठीक है – |” बेहद कम शब्दों से वह हामी भरता है जिससे उस पार से कॉल डिस्कनेक्ट हो जाती है लेकिन देव मोबाईल कान से लगाए खड़ा रहता है| तब से कार्तिक जो उसे देख रहा था वह उसे टोकता हुआ पुकारता है |
“देव..|”
“हाँ !!” देव की तन्द्रा टूटती है|
“फोन कट गया या कोई होल्ड करा कर गया है |”
कार्तिक की बात सुन देव को अपनी बेखुदी का अहसास होता है और वह मोबाईल अपनी पॉकेट के हवाले करता हुआ कहता है – “मुझे डिलवरी करने जाना है |”
देव को जाता देख कार्तिक अपनी जगह से उछलते हुए पूछता है – “लेकिन तूने तो बोला था कि तूने ये काम छोड़ दिया है – अब क्यों !”
“जरुरी है शायद लास्ट हो |”
“मतलब !!”
“मतलब कुछ नही – पता नही मैं कर क्या रहा हूँ और करना क्या चाहता हूँ – एक – एक कोशिश थी उसमे भी असफल रहा – लौट के क्या कहूँगा सबसे कि मैं किसी की भी उम्मीद पर खरा नही उतरा -|” देव एकदम से बिफर पड़ा था उसका ये रूप देख कार्तिक दंग उसे देखता रहा|
“कम से कम जो कर सकता हूँ वो तो कर दूँ – अब तो खुद पर से भी विश्वास हटता जा रहा है – बिलकुल नक्करा साबित हो गया मैं – काश वो अनजाना खत नही पढ़ा होता तो नीमा को न तलाश पाने के गुनाह से आजाद तो होता आज |” आखिरी शब्द बेहद टीस के साथ कहता देव बाहर की ओर निकल गया| उसे इस तरह जाता देख कार्तिक कुछ न कह सका| वह खिड़की से उसे जाता हुआ देख रहा था| उसने इससे पहले कभी देव को इतना उदास और हताश नही देखा था| अब तो उसका खुद का हौसला भी पस्त होता जा रहा था| न नीमा के मिलने की कोई सूरत बनती दिख रही थी और न कोई उपाय ही सूझ रहा था आखिर कब तक वे अँधेरे में तीर चलाते रहेंगे !!
कार्तिक अब खिड़की से दिखते खुले आसमान की ओर नज़र करता हुआ मन ही मन कहता है – ‘भगवान आप कहोगे कि बुरे वक़्त ही याद करता है पर करूँ क्या लास्ट आप ही हमारा सहारा हो – मेरी गर्लफ्रेंड वाली अर्जी कैंसिल कर दो पर मेरे यार के लिए कुछ कर दो – सच कहता हूँ – रोज नहाऊंगा – सच्ची – उसे किसी से भी मिलवा दो जिससे उसका गम तो कम हो भगवान |’ कहता हुआ कार्तिक उठकर बाथरूम की ओर चल देता है| अब बर्फ पिघलने की ठण्ड थी तो कार्तिक वाशबेसिन के सामने खड़ा होकर अपने सर के आस पास पानी की छींटे मारता हुआ कहता है – ‘आज की बस छूट दे दो कल से पक्का नहाऊंगा भगवान|’ एक उदास स्वर में कहता वह बाथरूम से अपना सर झाड़ता हुआ यूँ आता है मानो नहाकर आया हो|
देव का मन आज कुछ ज्यादा ही नाउम्मीद हो रहा था| वह बस यांत्रिक भाव से स्टोर से केक लिए नीमा के बताए पते पर ऑर्डर करने जा रहा था|
कैसा होगा देव के आगे का सफ़र क्या वह नीमा को खोज भी पाएगा या नीमा खोज लेगी उसे ?
क्रमशः…………