
इस कदर प्यार है – 6
सुबह किसी के झंझोड़ने पर उसकी नींद खुलती है, वह निन्दासी ऑंखें जबरन खोलते हुए देखता है वो कार्तिक था जो उसे बुरी तरह से हिलाते हुए उठा रहा था|
“अबे गधे बेचकर सोता है क्या – कब से उठा रहा हूँ |”
“हाँ वो – देर से सोया होगा इसलिए|” जमाही लेता हुआ देव उठते हुए पूछता है -“कल कहाँ मर गया था ?”
“समझ ले मर ही गया था – पूरी दुकान मेरे हिल्ले छोड़कर पापा और भईया शहर से बाहर चले गए – साला पूरा दिन कस्टमर मेरा खून पी गए – सारे मोबाईल खुलवा लेते और भाग जाते – मन तो कर रहा था बोल दूँ नहीं है कुछ जाओ यहाँ से पर मरता क्या न करता एक दिन में सारा खून पानी हो गया इसीलिए तुझसे बात भी नहीं कर पाया – पर तू बता तेरा नीमा खोजी अभियान कहाँ तक पहुंचा ?” भौं उचकाते हुए वह देव के चेहरे के हाव भाव पर नज़र गडा देता है|
“कुछ भी नहीं – सब फुस्स रहा – तू सही है यार – सोचता हूँ सब बुरे सपने की तरह भूल जाऊ मैं |”
“भाई अब तू ठीक कर रहा है – साला अच्छी खासी जिंदगी चल रही थी हमारी – भाई लोग साथ में खाते घूमते थे उसमे ये जासूसी का रोग कहाँ से पाल लिए – चल मुंह धोकर आ फिर बाहर चलकर कुछ खाते है|”
“रुक भाई आज नहा तो लूँ – दो दिन से नही नहाया |” बिस्तर से नीचे उतरते हुए देव कहता है|
“अबे दो दिन ही तो हुए है – मैं खुद पांच दिन बाद आज नहाया – कसम से बहुत बदन टूट रहा है – अगली बार सात दिन बाद नहाउंगा – चल पांच मिनट में बाहर आ मैं तेरा वेट कर रहा हूँ|” कहते हुए कार्तिक उठने लगता है तभी उसकी नज़र किसी चीज से टकराई जो शायद इस कमरे में नही होनी चाहिए थी, वह लपककर उसके पास पहुंचता है वह कोई मिटटी का धेला था जिसे कागज में लपेटकर डाला गया था और अब उससे बाहर निकली मिटटी से कमरे का सफ़ेद फर्श कुछ अलग ही दिख रहा था|
“ये क्या है भाई ?” उसे उठाते हुए कार्तिक देखता है कि लाल रंग से बड़ा बड़ा कुछ लिखा गया था उसमे – “भाई कुछ लिखा है इसमें |”
देव भी अब उस ओर लपकता है|
कार्तिक खोलकर उसे पढने लगता है – “तुम नीमा से दूर रहो यही तुम्हारी सेहत के लिए अच्छा रहेगा….|” पढ़ते हुए वह देव की ओर देखता हुआ दांत भींचते हुए बोलता है – “रसाला कौन है बे जो हमे धमकी दे रहा है – देव इसको तो मैं …|” कार्तिक बोलते बोलते देखता है कि कुछ देर पहले देव के चेहरे पर आए परेशानी के भाव की जगह अब एक मुस्कान तैर रही थी जिससे वह कुछ उलझ सा जाता है कि गुस्सा होने के बजाए वह हँस रहा है आखिर क्यों !!
“पागल हो गया है तू जो धमकी पढ़कर हँस रहा है |”
“ये खुश होने की बात है |”
“खुश होने की !!! वो कैसे अब मुझे भी समझा तू |”
“अब तक हम अपनी खोजबीन से पूरी तरह से निराश हो चुके थे और आज तो शायद हम वो रास्ता भी छोड़ देते लेकिन इस चिट्ठी ने हमे दिशा दे दी कि हम बिलकुल सही दिशा की ओर बढ़ रहे थे तो इसका मतलब साफ़ है कि हमे उसी दिशा में अपनी खोज जारी रखनी है – नीमा की खोज…|” कहते हुए देव के चेहरे पर एक विश्वनीय मुस्कान तैर गई|
देव और कार्तिक टपरी पर बैठे चाय सुड़कते सुड़कते किसी गहन सोच में थे| फिर अचानक जैसे कोई विचार आते देव झटके से खड़ा हो जाता है, कार्तिक उससे पूछता रह जाता है और देव बिना कुछ कहे बाइक स्टार्ट कर देता है| कार्तिक देखता रह जाता है देव को जो किसी प्रिंटिंग प्रेस में खड़ा होकर कोई पैम्पलेट छपवा रहा था, कुछ देर के इंतजार के बाद कुछ पैम्पलेट लिए वे फिर उसी गली के मुहाने पर खड़े थे इस वक़्त तक शाम से रात घिर आई थी और उनके आस पास लोग कम होते जा रहे थे| कार्तिक कई बार पूछता रहा पर देव कुछ कह ही नही रहा था और अपने हाथ में पकडे पैम्पलेट देव उन सभी गली में चिपका देता है जहाँ जहाँ अब तक वह गया था| सुनसान होती गली के लगभग हर हिस्से में वे पैम्पलेट्स लगाकर एक सरसरी निगाह डालते है| देव भी गर्दन उठाकर पैम्पलेट को पढने लगता है जिसके हर हर्फ़ में नीमा की तलाश लिखा था|
“आखिर देव इससे तुम करना क्या चाहते हो ?” ये पूछते कार्तिक संशय भरी नज़र उसपर घुमाता है|
“वो जो भी है उसे तंग करना चाहता हूँ |”
“और उससे क्या होगा ?”
“वो चिढ़कर कोई न कोई गलती करेगा और मेरा काम हो जाएगा|”
कार्तिक अभी भी समझ नही पाया था इस तरह का भाव उसके हाव भाव में चस्पा बना रहा| रात गहराते कार्तिक को उसके घर छोड़कर देव अपने घर वापिस आ रहा था| उसकी गली सुनसान हो चली थी, रात के ग्यारह बजे सड़क में नामालूम आवाजाही थी| कभी कोई कुत्ता भौंकता गुजर जाता कभी सर्र की आवाज करती कोई गाड़ी| घर के सामने बाइक खड़ा कर वह घर में प्रवेश करने जा रहा था कि तभी उसे लगा उसने किसी को देखा, कोई तो है जो गली के मुहाने पर मौजूद है| पहले भी उसे किसी के अपने आस पास होने का अहसास हुआ था| इस बार मन का भ्रम समझने के बजाये देव उसे सुनिश्चित करने वापिस पैदल ही उस ओर चल देता है| गली के मोड़ पर खड़ा वह नज़र घुमाकर अपने आस पास देखता है पर कोई नज़र नही आता| वह थोड़ा आगे बढ़ता है तो सड़क पर जमीन पर बैठा कोई उसे दिखता है, देव उसके पास आता नजदीक से देखता है वह कोई था जिसने खुद को कम्बल से ढक रहा था और बगल में उसके कटोरा रखा था जिसमे कुछ चिल्लर पड़े थे| देव कुछ क्षण तक उसे देखता रहा फिर भिखारी जान अपनी गली तक बढ़ जाता है| गली तक वह सोचते सोचते चला जा रहा था कि फिर उसे अपने पीछे किसी के होने का आभास हुआ और वह पलटने ही वाला था कि सहसा कुछ भारी सा उसके सर पर पड़ा जिससे उसके आँखों के सामने अँधेरा छा गया और वह लहराते हुए जमीन पर गिर पड़ा|
उस कमरे में पूरी तरह से अँधेरा था इतना कि हाथ को हाथ न सूझे, आंखे फाड़ने पर भी कमरे में किसी भी चीज का आभास नही हो रहा था, उस अँधेरे कमरे में देव कराहते हुए अपनी आंख खोलता है| वह बार बार बंद कर आँख खोलकर देखता हुआ अपना सर झटकता है पर कुछ भी उसे नहीं दिखता, अपने शरीर को हिलाने पर उसे अहसास होता है कि उसके हाथ और पैर किसी चीज से कसकर बंधे है और मुंह पर कपड़ा बंधा था| वह खुलने की इच्छा से खुद को बार बार भरसक हिलाने की कोशिश करता रहा पर अपने स्थान से वह जरा भी नही हिला| बहुत देर इसी तरह करने से उसमे थकावट सी तारी होने लगती है जिससे वह पसीने से नहा जाता है फिर खुद को शांत करता वह चुपचाप बैठ जाता है|
वह कब से यहाँ था उसे कोई अहसास नही था, कमरे के अँधेरे से न उसे दिन का पता चल रहा था और न रात का| बहुत देर ऐसे बैठे रहने थकने से वह धीरे धीरे ऑंखें बंद कर लेता है| किसी आहट पर धीरे से सर उठाते वह आंखे खोले सामने देखता है| अपनी तन्द्रा में वापिस आते आते उसे सामने हलकी रौशनी दिखाई देती है जिसे गौर से देखने पर पता चलता है कि रौशनी कोई आकार लिए हुए थी| जो धीरे धीरे उसी की ओर बढ़ रही थी| अब वह छाया उसके बहुत पास थी इतनी कि वह उसको काफी अच्छे से देख पा रहा था पर उस छाया ने अपना चेहरा किसी कपड़े से ढक रखा था| अँधेरे में सफ़ेद आखों को वह गौर से देखता रह गया|
“नीमा से दूर रखो – समझ नही आता – तुम सुन रहे हो न – मैंने कहा कि नीमा से दूर रखो |” परछाई को लगा शायद वह अभी भी तन्द्रा में है इसलिए वह उसे बुरी तरह से झंझोड़ते हुए बोल रहा था|
देव अब और ध्यान से उसकी ओर देखता है|
“तुमने सुना मैंने क्या कहा – तुम नीमा की परछाई से भी दूर रहोगे – समझे|”
उसके बार बार दोहराव से जैसे देव अन्दर ही अन्दर खीज गया था जिससे जवाब देने की तड़प से वह अपने स्थान से खुद को हिलाने लगा तो वह परछाई देव के मुंह पर बंधा कपड़ा खींचकर उसकी ठोड़ी तक कर देता है|
तब से हलकान देव अचानक जोर से चीख पड़ता है –
“कहाँ है नीमा – मुझे उससे मिलना है |” देव ने ये बोला ही था कि परछाई का जोरदार हाथ उसके सर पर पड़ा और फिर से उसकी आँखों के सामने अँधेरा छाने लगा, उसे अपनी डूबती तन्द्रा में लगा जैसे वह परछाई अभी भी कुछ बोल रही है पर अब उसके कानों में आज़ान की आवाज सुनाई पड़ने लगी और वह पूरी तरह फिर से बेहोश हो गया|
कार्तिक सुबह होते ही घर से निकलने ही वाला था कि अपने मोबाईल में देव का मेसेज देख दो पल रुकता है फिर घर में से कोई सामान खोजकर उसे पन्नी में रखते अपनी बाइक लिए बाहर निकल पड़ता है|
ताल के पास बाइक रोककर कार्तिक लगभग दौड़ते हुए पहुँचता है जहाँ देव किसी ऊँचे स्थान पर पेट के बल लेटा हुआ था|
“देव !!” कार्तिक की पुकार पर भी देव अपनी जगह से नही हिलता तब कार्तिक उसके पास पहुँचता उसका कन्धा छूता हुआ फिर उसे पुकारता है| अब देव हलके से आंख खोलकर कार्तिक की ओर देखता है|
“ये सब क्या है – क्या हुआ तुझे – तूने बोला फर्स्ट एड का सामान ले आ तो मैं ले आया – पर तेरी ये हालत हुई कैसे ?” परेशान कार्तिक देव का कन्धा पकड़ते उठाता हुआ कहता है तो देव कुछ पल के लिए सब पीछे का याद करता उसे बताता है कि अचानक किसी ने उसके सर के पीछे से वार किया जिससे वह बेहोश हो गया और जब उसे होश आया तो वह किसी अँधेरे कमरे में बंधी हुई हालत में था| जहाँ कोई नकाबपोश उसे नीमा से दूर रहने को धमका रहा था और फिर उसकी मार से वह बेहोश हो गया और अबकी उसे होश आया तो यही ताल के पास पड़ा था तब टटोलने पर मोबाईल पाकर उसे फोन करके बुला लिया|
लेकिन ये सब सुनने के बाद भी कार्तिक के दिमाग में कई सारे प्रश्न थे जिसे उझेलता हुआ वह देव की पट्टी कर रहा था|
“पर ये समझ नही आया कि ऐसा करेगा कौन और फिर तुझे यहाँ कैसे छोड़ दिया तेरा मोबाईल भी नही लिया आखिर चाहता क्या होगा वह ?”
“वह जो भी है बस नहीं चाहता कि हम नीमा की खोज न करे – क्योंकि मुझे पकड़ते वक़्त यही बात बार बार वह दोहरा रहा था|”
“अरे तो तूने आवाज सुनी उसकी ?”
“नही यार वह कोई शातिर था मुंह में कपडा बांधे था जिससे उसकी घुटी हुई आवाज आ रही थी|”
“ओह्ह – काश तेरा फोन साइलेंट में नही होता तो मैं पहुँच जाता वहां |”
“अबे क्या बात करता है – फोन साइलेंट में था तो उसकी नज़र में आने से बच गया नही तो क्या करता – ऐसी हालत में घर भी नही जा सकता मैं|”
घर के नाम पर जैसे कार्तिक को कुछ याद आया तो वो जल्दी से कहता है – “अरे भाई घर के नाम पर याद आया कि कल रात फोन आया था आंटी – तुझे पूछ रही थी ..|”
“फिर !!”
“फिर क्या अपना दिमाग ठनका कि बॉस कुछ तो गड़बड़ है मुझे लगा तू फिर उसी गली के चक्कर काटने गया है तो मैंने आंटी को बोल दिया कि तू मेरे साथ है – मुझे लगा कि देर रात तू घर पहुँच जाएगा लेकिन उसने तुझे यहाँ क्यों छोड़ा ये समझ नही आया |”
“क्योंकि वो जो भी है हमारे आस पास है और हमे लगातार फ़ॉलो कर रहा है|”
“क्या सच में !!”
कार्तिक चौककर देखता है तो देव हाँ में सर हिला देता है|
देव की मरहमपट्टी कर कार्तिक उसे अपने घर ले गया और वही से फोन कर देव ने घर में बता दिया कि एक दिन बाद वह घर आएगा वहीँ कार्तिक ने अपने घर में बता दिया कि देव का एक्सीडेंट हुआ है और इस वक़्त उसके घर पर कोई नहीं है इसलिए एक दिन के लिए वह उसके पास रुक रहा है…हालाँकि बेकार की घुम्मकड़ी करते दोस्तों के जीवन की घटनाओ को उनके ही घर वालों ने सहज ही लिया और इससे देव उस पूरा दिन आराम करते हुए खुद को जल्दी ठीक करने का प्रयास करने लगा लेकिन नीमा का ख्याल किसी पल भी उसके दिमाग से न निकला वह हर पल आगे क्या करना है यही सोचता रहा|
आखिर कहाँ है नीमा ? क्या देव कभी उस तक पहुँच पाएगा ? या नीमा की खोज में वह यूँही खतरे उठाता रहेगा !! जानने के लिए पढ़ते रहे…..
क्रमशः…….
बहुत ही रोचक भाग