
एक राज़ अनसुलझी पहेली – 10
बहुत ही खूबसूरत नज़ारा था जिसे नवल नज़र घुमाकर चारोंओर देख रहा था| कांच की दीवार के पार आधा रिसेप्शन का हिस्सा तो आधा प्रवेश का स्थान दिख रहा था जो कृत्रिम फूलों से बेहद बेहतरीन तरीके से सजाया गया था| ये लन्दन का एक सेवन स्टार होटल था जहाँ बहुत देर से नवल को किसी का इंतजार था फिर घडी में समय देखकर नवल वेटिंग रूम से लॉबी की ओर चल देता है जहाँ आखिर वह उसे मिल गया जिसका वह काफी देर से इंतजार कर रहा था|
दोनों घरों में मंगनी की तैयारी शुरू हो चुकी थी| सभी को जयपुर पहुँचना था तारिख तय हो चुकी थी| अनामिका तो जैसे सबसे ज्यादा जोश में थी आखिर उसकी सबसे पक्की सहेलियां अब हमेशा उसके साथ ही रहने वाली थी| अनामिका पलक और झलक के कमरे में मौजूद थी जो कमरा कम और कपड़ों की दुकान ज्यादा नज़र आ रही थी| बिस्तर से लेकर स्टडी टेबल और चेअर तक में बेतरतीबी से कपड़े पड़े थे जिनमे से कई कपड़े झलक पहनकर ट्राय कर चुकी थी पर अभी तक तय नही कर पाई थी कि मंगनी में क्या पहनने वाली है इसके विपरीत पलक अनमनी सी अपनी अलमारी ठीक करती खुद को उनकी बातोंसे हटाने की कोई भरसक कोशिश कर रही थी|
“अनु समझ ही नही आ रहा आखिर क्या पहनू अगर ये गोल्डन लहंगा पहनती हूँ तो इसके साथ मुझे ये हल्का दुप्पटा लेना पड़ेगा और अगर ये गुलाबी पहनती हूँ तो इसके साथ मैं ये न्यू इयरिंग नही पहन पाऊँगी |” झलक उलझती बिस्तर के पैताने बैठती तुनक उठी|
“ओहो ऐसे तैयार होने में तुम्हें सदियों लग जाएँगे – अगर तेरी तरह मैंने एक दिन भी रूद्र जी के साथ किया होता तो पक्का वो तो सर पकड़ कर बैठ जाते – वे तो पांच मिनट पहले बताते है कही जाने की बात तब मुझे दो मिनट में तैयार होना पड़ता |”
अनामिका की बात सुन झलक मुंह खोले रह जाती है|
“तो वहां तुझे कोई तैयार नही करता !! महल में तो तुझे तैयार करने वाली दासियाँ थी !”
“हाँ तो महल की बात अलग है पर पेरिस में सब कुछ बिलकुल अलग है – महल की तो बस याद ही रह गई है |”
“क्यों !! तुम वहां नही जाती !” झलक बिस्तर पर बैठी बैठी ही अनामिका की ओर पूरी तरह से मुड़ी उसकी ओर देख रही थी|
“जाना तो चाहती हूँ पर पता नही क्यों रूद्र जी हमेशा कुछ न कुछ व्यस्तता दिखाते जैसल जाना ही नही चाहते – पता है मेरा तो बहुत मन है कि हम तीनो वहां साथ में रहे – सोचो क्या नज़ारा होगा |”
ख़ुशी से उछलती हुई अनामिका कहती है जिसका अनुमोदन करती झलक भी अतिरेक जोश में उसका हाथ थाम खिलखिला कर कह उठती है – “हाँ बिलकुल हॉस्टल की तरह |” हॉस्टल और फिर साथ रहने के ख्याल से दोनों का ध्यान पलक की ओर जाता है जो उनकी ओर पीठ करे अब अलमारी में नीचे की ओर झुकी सामान रख रही थी|
“लगता है इसने तुमसे पहले ही सारी तैयारी कर ली |”
अनामिका की आवाज सुन झलक भी चुटकी लेती हुई बोली – “हाँ लगता तो ऐसा ही है कि कुंवर नवल की शायरिया असर दिखाने लगी है|”
दोनों साथ में खिलखिला रही थी पर इसके विपरीत पलक अभी भी उनकी ओर नही मुड़ी थी|
“अच्छा सुन झल्लो – तुम दोनों अपने अपने वाले राजकुमारों को पहचानोगी कैसी – कही फर्स्ट नाईट में कुछ गड़बड़ हो गई तो !” अनामिका झलक को छेडती हुई होंठ दबाकर मुस्कराई|
“अभी तक तो नही हुई तो आगे भी कैसे होगी – मैं तो आसानी से पहचान लेती हूँ |” गर्दन उचकाती झलक बोली|
“वो कैसे – बल्कि मुझसे ही कभी कभी भूल हो जाती है उनको पहचानने में |”
झलक अपनी रौ में कह रही थी – “बहुत आसान है – पहली बात तो दोनों कपडे कभी एक से नही पहनते फिर उनके फेस एक्सप्रेशन हमेशा अलग ही रहते है |”
“हाँ ये तो सही कहा – कुंवर शौर्य तो बड़ी मुश्किल से मुस्कराते है जबकि नवल सा का चेहरा हमेशा मुस्कराया हुआ लगता है पर आजकल कुंवर शौर्य भी कुछ मुस्कराने लगे है तेरा कमाल है क्या !!” अनामिका होंठ के किनारे दबाती झलक को तिरछी नज़र से देखती है|
“एक फर्क और है जो मैंने पहले दिन से ही नोटिस कर लिया था और वो है उनके कानों का इयरिंग जहाँ कुंवर नवल बाली टाइप का पहनते है वही कुंवर शौर्य टॉप्स जैसा कुछ पहनते है |” भौं उचकाती हुई झलक बोली|
“हम्म – तुम तो पहचान लोगी लगता है पल्लो से ही गड़बड़ होगी |”
कहती हुई अनामिका मुस्करा कर अब पलक की ओर अपना ध्यान ले जाती है जो अभी भी अलमारी की ओर झुकी थी|
उसकी नीरवता देख झलक झल्लाती हुई बोली – “क्या कर रही है पल्लो तबसे – आज ही सारी अलमारी ठीक कर लेगी क्या – आ न इधर |”
“लगता है जैसल जाने की कुछ ज्यादा ही जल्दी है – आज ही सारा पैक कर लेगी |” बीच में जल्दी से बोलती अनामिका मुस्करा दी|
“जल्दी तो इसे है |” पलक एकदम से फट पड़ी जिससे वे दोनों ऑंखें फाड़े उसे देखती रह गई और पलक बिफरती रही – “इतनी जल्दी क्या थी हाँ कहने की – |” पलक जैसे रुआंसी हो उठी पर इससे पहले कि दोनों नज़रे उसका चेहरा पढ़ पाती पलक तुरंत ही उस कमरे से बाहर चली गई|
“इसे हुआ क्या है ?” अनामिका अवाक् पलक को जाता हुआ अभी भी देख रही थी|
झलक भी पलके झपकाती उधर ही देख रही थी|
लन्दन के खुशनुमा दिन का ये एक वक़्त था जब नवल और शौर्य दोनों सेवन स्टार होटल के एक स्वीट के आगे के लग्जरी रूम में आमने सामने बैठे थे| नवल के चेहरे पर गहरा तनाव था तो शौर्य बहुत ही हलके मूड में वाइन का घूँट भरता हुआ कह रहा था –
“बहुत जल्दी बहुत कुछ सोच लेते है आप भाई – आपको पता है कि हम वैजन्ती से मिलने यहाँ कुछ दिन तो आते है फिर वे भी अपनी स्टडी में व्यस्त हो जाती है |”
“हमे तो पता ही है पर अब माँ सा को भी पता है – उन्होंने ने ही हमे आपके पास आने को कहा |”
नवल की बात सुन कोई तनाव आने के बजाये बहुत ही सहज भाव से कहता है शौर्य – “वो तो समय आने पर उन्हें पता चलना ही था खैर आप बेफिक्र रहे – हम माँ सा से मिल भी लेंगे और समझा भी लेंगे |”
“लेकिन ये ठीक नहीं शौर्य – अब आप की शादी झलक से..|”
नवल की बात बीच में ही काटते हुए शौर्य सधे शब्दों में कह उठा – “तो हमने कब कहा कि शादी नही होगी – भाई नवल ये शादी सबके होशोहवाश में हो रही है – हम कोई अपना फैसला जबरन तो झलक पर थोप नही रहे जो झलक को चाहिए उन्हें वो मिलेगा और जो हमे चाहिए वो तो हम ले ही लेंगे |” कहते हुए शौर्य की नज़र घूमती हुई बगल के रूम की ओर जाती है जिसके झीने परदे के पीछे किसी की आकृति लहराती है|
“वैसे आपको पलक जी के बारे में दुबारा सोचना चाहिए – मुझे वे कुछ ज्यादा खुश नही लगी – कहीं अनिकेत….|” शौर्य जानकर अपनी बात अधूरी छोड़ कर अपने चेहरे पर आई मुस्कान छुपाने गिलास होंठो से लगा लेता है|
पर नवल का चेहरा सख्त हो चुका था|
“उस बात की फ़िक्र आप न करे बल्कि इसकी करे कि अगर श्राप काम न किया तो आगे क्या करेंगे आप ?” अबकी नवल अपने होंठो की तिरछी मुस्कान छुपाने गिलास अपने होंठों से लगा देता है पर निगाह शौर्य के चेहरे पर टिकी रहती है|
“ऐसा हो ही नही सकता |” एकदम से शौर्य के चेहरे के भाव तन गए जिससे वह गिलास साइड टेबल पर रखते सोफे की पुश्त से पीठ हटाता हुआ कहता है – “जिस श्राप पर राजा साहब का भी बस न चला उसे क्या आप झुठलाएंगे बस फ़िक्र रखिए कि शादी से पहले ये बात उनतक न पहुंचे – हमे क्या है हम वैजन्ती को बचाने किसी और लड़की को चुन लेंगे |”
“लेकिन याद रहे कभी कभी होनी पलट भी जाती है – आपके लिए झलक क्या है हमे नही जानना पर पलक हमारी जिद्द है और हम अपनी जिद्द हर हाल में पूरी करते है |”
“तो करिए अपनी जिद्द पूरी और हमे हमारे हाल में छोड़ दीजिए |”
अब दोनों के शब्दों में तल्खी आ गई थी जिससे नवल खड़ा होता हुआ कहता है – “हम तो बस माँ सा का हुक्म सुनाने आए थे और अगर…|”
“नवल सा !” इससे पहले की नवल गुस्से में आगे कुछ कहता कोई महीन आवाज झीने परदे के पीछे से चलती हुई अब उनके सामने आ गई, नवल एकदम से चुप हुआ अपने सामने देखता है, वो लाल स्लिट ड्रेस में खूबसूरत लड़की राजकुमारी वैजन्ती थी जो बेहद आराम से मुस्कराती हुई नवल से कहने लगी –
“आपको रुकना था न – आज हमारा जन्मदिन है |”
वैजन्ती की मुस्कान गर्म माहौल को एकदम से ठंडा कर देती है जिससे नवल अब संभलता हुआ कहता है – “जन्मदिन मुबारक हो आपको पर हमे कुछ जरुरी काम है |” वह जल्दी से वैजन्ती से हाथ मिलकर बधाई देता तुरंत ही कमरे से बाहर हो जाता है|
क्रमशः………………
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