
एक राज़ अनसुलझी पहेली – 12
Recap : अब तक आपने पढ़ा वैभव और नीतू की बेटियां पलक और झलक की शादी जैसलमेर के राजघराने में जुड़वाँ राजकुंवर नवल और शौर्य से तय हो जाती है| नवल और शौर्य के बड़े भाई रूद्र की शादी पहले ही पलक और झलक की सखी अनामिका से हो चुकी है और उसी की शादी से वे दोनों उस राजपरिवार के संपर्क में आई थी| अब पलक जो अनिकेत को पसंद करती है उसका इंतजार करती काफी निराश हो चुकी है…आगे क्या होगा ? क्या उसका इंतजार खाली रह जाएगा ? क्या उसकी शादी नवल से हो जाएगी ? ऐसे ही बहुत से सवालों के साथ कहानी आगे बढ़ रही है…जो एक राज़ सीजन 1 और एक राज़ अनुगामी कथा सीजन 2 पढ़ चुके है वे अच्छे से पिछली कहानी से जुड़ पा रहे होंगे पर जिन्होंने नहीं पढ़ा है वे जरुर पढ़े इससे कहानी से जुड़ कर आगे की कथा रुचिपूर्ण रहेगी..वैसे अपनी ओर से किरदारों की काफी व्याख्या मैं दे ही दे रही हूँ…पिछले भागों में आप जान चुके होंगे कि अपने अतीत से वापसी के बाद से पलक में एक बदलाव आ चुका है और अनायास ही होने वाली घटना वह देख लेती है पर अपनी मर्जी से नही…अब आगे कहानी इसी दिशा में बढ़ेगी जहाँ पलक के जीवन के बदलाव के साथ साथ जानेंगे कि राजघराने का राज़ कि क्यों उस राज परिवार के राजाओं की पहली पत्नी मृत्यु की ग्रास बन जाती है अगर ये सच है तो क्या अनामिका के साथ साथ पलक और झलक के जीवन पर भी मृत्यु मंडराएगी या होगा कुछ और होनी…..कहानी से जुड़े रहे और अपने विचार जरुर कहे क्योंकि पाठकों की चुप्पी कलम को हतोत्साहित कर देती है और कहानी बेजान होने लगती है……………………..क्योंकि कहानी की आत्मा है पाठकों की पसंद….
अब आगे….
पलक की निगाह जैसे दरवाजे पर खड़े आगंतुक पर टिक सी गई थी इससे सभी का ध्यान भी उसी ओर चला गया था| द्वार पर पंडित जी सभी को ओर देखते हाथ जोड़े खड़े थे|
“आइए पंडित जी बिलकुल सही समय पहुंचे आप – अभी अभी बस मंगनी की रस्म हो ही रही है फिर पूजा हो जाएगी |” वैभव आगे बढ़कर उनका अभिवंदन करते है|
“जी जजमान मैंने बताया था न निजी कारण से बस थोडा विलंब हो जाएगा – असल में मेरा भांजा गाँव से आया था फिर उसी की गाड़ी से आ गया इसी कारण आपसे आपकी गाड़ी भेजने को मना किया था|” पंडित जी जल्दी से अपना झोला थामे अन्दर की ओर आते कहने लगे|
“ओह मुझे लगा बेटे को लिवा कर आ रहे है |”
“नही नही वह नही आ रहा – चलिए जजमान रस्म पूरी करिए मैं पूजन की तैयारी करता हूँ |”
पंडित जी पूजा के स्थान की ओर बढ़ गए जहाँ पहले से राज घराने के दो पंडित बैठे पूजा की तैयारीयों में लगे थे| सभी के लिए जो सब सामान्य था वो पल पलक पर भारी गुजर गया, पंडित जी का आखिरी शब्द जैसे गर्म सीसे सा उसके कानों से होता उसके अंतर्मन तक को छलनी कर गया और इसी अतिरेक भाव में कब पलक नवल की उंगली में अंगूठी पहना गई ये उसे तालियों की गडगडाहट से अपनी टूटती तन्द्रा से आभास हुआ इससे उसके दिल में एक हूक सी उठकर रह गई| उस पल सभी खुश होते खिलखिला रहे थे तो वही पलक का मन इतना भारी हो उठा कि उसका सर चकरा गया और वह लहराते बस गिरने ही वाली थी कि वैभव जिनका सारा का सारा ध्यान पलक पर था वे तुरंत उसे संभाल लेते है| अगले ही पल वहां अजब सी भगदड़ मच जाती है| वे पलक को अपना सहारा दिए आराम से बैठाते है तो पलक संकोच से सिकुड़ती सबसे ऑंखें बचाती खुद को सँभालने लगती है, इस पल के बाद से सबका ध्यान पलक की ओर ठहर गया| तरह तरह से प्रश्न उठने लगे जिनपर विराम लगाते हुए वैभव बोल उठे –
“आज ही सफ़र से आए फिर तब से खड़ी थी हो सकता है इससे थक गई हो – थोड़ा आराम से बैठेगी तो ठीक लगने लगेगा |”
वैभव की बात पर नवल जो वही बगल में खड़ा था सहमती भरता हुआ कह उठा – “जी बिलकुल |” वह मुस्करा कर एक नज़र पलक की ओर देखते हुए माँ सा की ओर देखता है जो अपनी मुस्कान से उसकी बात पर अपनी सहमति दे रही थी फिर पलक को बैठा छोड़कर नवल अलग बैठ जाता है तो वही झलक शौर्य के साथ बैठी थी| उनके बीच की रस्म हो चुकी थी| अब सभी कुछ सामान्य हो चला था पर सारी की सारी हलचल तो पलक के मन में मची हुई थी जिसे मन में दबाए वह पलके झुकाए बैठी रही|
रस्म और पूजा के सम्पन्न होते रात्रि के भोजन और महल देखते काफी समय हो गया जिससे उस रात सभी वही रुक गए| इस बीच नवल ने कई बार पलक से एकांत में मिलने का प्रयास किया पर ऐसा संभव ही नही हुआ और होता भी कैसे जब वह खुद ऐसा चाहती ही नही थी| सभी कार्यक्रम पर जत्था बनाए आपस में बातचीत करते मशगूल रहे वही पलक अपनी तबियत का बहाना बनाकर सीधे कमरे में आती लेट गई| देह के साथ मन भी उसका बोझिल हो उठा था जिससे बहुत जल्दी ही उसे नींद आ गई|
वह शांत सोना चाहती थी पर लगातार कि एक डमरू की आवाज ने जैसे उसे झंझोड़ कर उठा दिया| अचानक आंख खुलने से उसके सर में एक भारीपन महसूस हुआ जिससे वह एक हाथ से अपना सर थामे उठकर बैठ जाती है| कमरा बिलकुल शांत लगा वह चारोंओर नज़र घुमाकर देखती है वहां तो कोई नही था फिर ये कैसी आवाज थी जो उसने सुनी वह ये सोची असमंजस में पड़ी थी कि एकाएक फिर वही आवाज उसे अपने कानों के बहुत ही समीप सुनाई पड़ने लगी, वह एकाएक चौंक गई आवाज इतनी करीब थी पर उस एकांत कमरे में उसके सिवा तो कोई नही था| वह परेशानी में अपने होंठ चबाती अभी कुछ सोच ही रही ही कि अब कोई बोलचाल की आवाज भी सुनाई पड़ने लगी| वह सांस रोके अब अपना समस्त ध्यान उस आवाज की ओर लगा देती है पर मर्दानी जनानी आवाज आपस में इतनी घुलमिल थी कि उसे कुछ समझ नही आया कि क्या कहा जा रहा है ? वह तुरंत बिस्तर छोड़कर उतरती आवाज की दिशा को समझने की कोशिश करने लगती है| ऐसा करते अपनी नज़र चारोंओर घुमाते एकाएक उसकी नज़र कमरे की खिड़की तक लाती है जहाँ का दृश्य देख उसकी जैसे साँसे ही उच्च पल को थम जाती है| उसे समझ नही आता कि वो जो भी देख रही है वह सच है या भ्रम !! हतप्रभता वह एकटक उधर ही देख रही थी और उसकी नज़रों की सीध में वह खिड़की जिससे उसे कोई रस्सी बंधी दिख रही थी, वह धीमे और सहमे कदमों से उस ओर बढ़ने लगी अब उस ओर का दृश्य उसकी आँखों के सामने ओर स्पष्ट हो उठा| वह देख रही थी खिड़की के एक छोर पर बंधी रस्सी जिसका दूसरा छोर जाने कहाँ बंधा था उसे स्पष्ट नही हुआ पर उस रस्सी पर तनकर चलती एक छाया देख उसका समस्त खून ही सूख गया, उस खिड़की पर तनी रस्सी के नीचे अनंत गहराई नज़र आ रही थी पर उस सबसे बेखबर उस पर चलती कोई स्त्री सहज ही चली जा रही थी| पलक उसे और गौर से देखती है तो उसकी वेशभूषा पर उसका ध्यान जाता है, उसने काले रंग के वैसे कपड़े पहने थे जो शायद किसी नटनी के हो सकते थे, वह नटनी जाने किस धुन में सर पर घड़ों की कतार लिए बस चली जा रही थी मानों वह रस्सी पर नही बल्कि खेत की मेंढ़ पर चल रही हो| पर ये सब देखते पलक की धड़कने बढ़ गई थी मानो उस रस्सी पर वह स्त्री नही बल्कि पलक ही चल रही हो, वही साँसों का उतार चढ़ाव और धक् धक् डोलती सांस वह लगातार महसूस कर रही थी| उसका शरीर हिलने लगा धीरे धीरे फिर थोड़ा तेज…
“पलक …पलक – पल्लो सुन न !”
एक तेज कम्पन के साथ वह अपनी जगह थमी रह गई| वह अपलक अब सामने देख रही थी, उसके सामने झलक का चेहरा था| धीरे धीरे वह अपनी झपकती आखों के साथ अपनी तन्द्रा में वापिस आती है तो उसे पता चलता है वह अभी भी उसी कमरे में है पर खिड़की !! अचानक खिड़की का ख्याल आते वह पलटकर उस ओर देखती है पर अब वहां का दृश्य कुछ बदल चुका था, खिड़की तो अभी भी वही थी पर उसके पार उसे सफ़ेद नीले खुले बादल नज़र आ रहे थे|
“नौ बज रहे है और पल्लो महारानी अभी भी सोई पड़ी है – चल उठ न |” झलक उसे उठा रही थी, अब अगले ही पल वह सब कुछ साफ़ समझ गई कि इससे पहले वह अपने सपने में उठी थी मतलब सपने के अन्दर ही एक और सपना पर कितना अजीब सपना था बिलकुल हकीकत जैसा…वह अभी ऐसी लग रही थी मानों सच में किसी रस्सी से कूदकर वह यहाँ आई हो फिर एक गहरा उच्छवास छोड़ते खुद को सयंत करती झलक की बातों पर अपना ध्यान ले जाती है|
“इतनी देर से उठी पर चेहरा देखकर ऐसा लग रहा है जैसे सोई ही न हो – अब चलो उठो – सभी बाहर तुम्हारा इंतजार कर रहे है – चलो जल्दी से तैयार हो जाओ |” कहती हुई झलक पलक को उसी अवस्था में छोडती हुई बैग से उसके कपड़े निकालने लगती है|
“ये देखो मैंने ये दो ड्रेस निकाल दी है इन्ही में से कोई भी पहनकर जल्दी से आ जा बहन हम सब कबसे तुम्हारा वेट कर रहे है |” कहती हुई झलक पल में कमरे से बाहर भी चली गई|
पलक सब अचरच भरी निगाह से देख रही थी मानों एक ही पल में बहुत कुछ उसकी आँखों से गुजर गया|
अगले ही पल किसी तरह से खुद को खींचकर उठाती वह बाथरूम की ओर चल देती है|
सभी गार्डन के बहुत ही खूबसूरत हिस्से में बैठे थे, जिसके ऊपर बड़ी सी छतरी लगी थी जिससे छनकर हलकी हलकी धूप नीचे बैठे लोगों पर पड़ रही थी| वहां वैभव, नीतू, माँ सा, नानी सा के साथ रूद्र, नवल और राजा साहब बैठे थे| बाकि मेहमान या तो जा चुके थे अथवा किसी और हिस्से में बैठे थे| यहाँ नाश्ते के दौर के साथ बाते भी खुदबुदा रही थी| नवल की नज़र बीच बीच में अपने आस पास घूम जाती थी, कुछ दूर गार्डन के एक दूसरे हिस्से पर फूलो की क्यारियों के बगल में टहलती हुई अनामिका और झलक थी जो अपने एकांत में बीच बीच में खुलकर हँस लेती थी|
बातो के सिलसिले में माँ सा अब नवल और रूद्र की ओर देखती हुई कुछ कहती है जिससे दोनों सहमति में सर झुकाते अब वहां से उठकर अनामिका की ओर चल देते है| उनको अपनी ओर आते देख वे दोनों भी अब उनकी ओर मुड़ जाती है| तभी वे सभी देखते है कि पलक वहां आती हुई माँ सा, नानी सा और राजा साहब को नमस्ते कर रही थी| कुछ पल उसका हाल चाल लेने के बाद उसका ध्यान अनामिका की ओर जाता है जो उसे अपनी ओर बुला रही थी| ये देख सबसे अनुमति लेती वह उनकी ओर आने लगती है, आते हुए वह देखती है कि अब कारिंदों ने वहां अगल ही एक गोल बड़ी मेज और उसके आस पास कुर्सियां सजा दी थी जिनपर अनामिका, रूद्र, नवल और झलक बैठे थे और बची कुर्सी शायद उसी के लिए थी| नवल की नज़र बहुर देर से लगातार पलक पर थी ये जानते हुए भी वह जानकर उसकी ओर नही देखती|
“कैसी है अब आप !” उसके बैठते ही रूद्र जल्दी से पूछता है|
“हमे तो लाजवाब लग रही है |” पलक के कुछ कहने से पहले ही कनखनी से देखता नवल मुस्कराते हुए कह उठा जिससे एक घुमती नज़र पलक की नज़र नवल से टकराई और उसे जबरन मुस्कराना पड़ा| क्योंकि उसे आभास हो रहा था कि अभी उसका लटका चेहरा बाकी सबका मन खराब कर सकता था इसलिए अपने मनोभाव को इस समय उसने दबाना ही उचित समझा|
“चलो अच्छी बात है – अब आपको लखनऊ वापसी भी करनी है तो आपको अच्छा फील होना चाहिए |” रूद्र पलक की ओर देखता हुआ कहता है|
तभी वहां आते शौर्य की ओर सबका ध्यान जाता है जो उँगलियों के बीच चाभी फसाए घुमाते हुए वही आ रहा था उसे देखते हुए नवल कहने लगता है – “लगता है आपकी प्रिय गाड़ी सर्वसिंग होकर आ गई|”
शौर्य नवल की बात पर बस मुस्करा कर प्रतिक्रिया देता वही बैठ जाता है|
“आपके जाने से पहले इन्हें जयपुर तो घुमा दे आप |” रूद्र की बात पर झलक की आँखों में चमक उतर आती है पर पलक यूँही शांत बनी रही|
“”चलिए सभी – हम तो तैयार है |” शौर्य मुस्करा कर सभी के चेहरों की ओर एक सरसरी निगाह दौड़ाता है|
“चलिए |” अबकी नवल अपनी नज़र की सीध पलक की ओर करता हुआ उससे कहता है|
“पर..|” पलक न करने का कारण ढूंढने लगी पर शायद देर हो गई और अनामिका और झलक पूरे उत्साह में हामी भर गई अब उसके इंकार की कोई जगह नही|
अगले ही पल सभी ने बड़ों की रजामंदी से जयपुर घूमने का प्रोग्राम बना लिया| पलक के मन न होने पर भी सभी के साथ जाना पड़ा| एसयूवी में ड्राइविंग सीट पर शौर्य था तो बगल में रूद्र था तो बीच की सीट में पलक और नवल बैठे थे तो उसके पीछे की सीट पर अनामिका और झलक बैठी थी| वे सभी अब आमेर के किले की ओर जा रहे थे, बीच बीच रूद्र कार के शीशे के पार दिखते दृश्य पर बताता जाता कि ये सभी किले अभी भीड़ से भरे होंगे तो लौटते वक़्त वे वहां आएँगे अभी वे किसी बाहरी हिस्से के पहाड़ी स्थान पर जा रहे थे| अब रास्ते के अगल बगल हरियाली और दूर दिखती पहाड़ी आ गई|
अगले ही क्षण कार जहाँ रूकती है वह कोई ऊँचा हिस्सा था जहाँ से नीचे बहती नदी और दूर पहाड़ी दिख रही थी साथ ही किसी किले की दीवार भी|सभी कार से उतरने लगते है| नीचे जमीं थोड़ी कच्ची थी जिससे उसे सँभालने रूद्र अनामिका का हाथ थाम लेता है ये देख झलक झट से शौर्य की बाजु पकड लेती है, वह धीरे से मुस्करा देता है| सबको अपने अपने जोड़े के साथ देख नवल अब अपना हाथ पलक की ओर बढ़ाता है पर उसे अनदेखा कर वह आगे बढ़ चुकी थी| बाकी सभी पहले ही आगे जा चुके थे|
दूर का नज़ारा बेहद अच्छा था रूद्र वहां का इतिहास बता रहा था कि उस किले के ऊँचे हिस्से पर उनकी कुल देवी का मंदिर है, जहाँ शादी के बाद वे गए थे| ये सुन झलक मुस्करा दी तो पलक उस ओर देखती रही|
“और एक ख़ास बात भी है वो पहाड़ी आप देख रही है न वहां की एक कहानी है|”नवल आगे बढ़ता हुआ कहता है|
“कहानी – सच्ची में !!” झलक उत्साह में बच्चों सी उछल गई|
“हाँ कहा जाता है कोई नटनी वहां किले से पहाड़ी के बीच बंधी रस्सी पर चली थी पर गिर गई – उसकी याद में नटनी का चबूतरा भी बना है |”
नवल की बात पर अनामिका हतप्रभता से बोली – “माई गॉड – इज इट ट्रू – कोई इतनी ऊँची पहाड़ी पर चल ही नहीं सकता |”
“क्यों नही – ये सच है |” रूद्र जल्दी से कहता है|
वे सभी आपस में कभी आश्चर्य से तो कभी हँसते हुए इसी बात पर बहस कर रहे थे कि कोई इतने ऊँचे से कैसे ये करतब कर सकता है !! पर इन सबके बीच किसी का ध्यान इस पर नही गया कि ये सब सुनते पलक की आंखे हैरानगी से चौड़ी हुई जा रही थी वह मन ही मन बुदबुदा उठी –‘आज सुबह ही तो उसने ऐसा ही कुछ सपना देखा था – क्या वह वर्तमान के साथ अब बीता हुआ कल भी देखने लगी है !!!’ पलक अपलक उस ऊंचाई की ओर देखती रही जबकि सभी वहां खड़े खिलखिलाकर हँस रहे थे|
क्रमशः…………………
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