
एक राज़ अनसुलझी पहेली – 13
दुर्गम पहाड़ी से किले तक कोई रस्सी के बीच चला हो ये किसी आश्चर्य से कम नही था| पलक अभी भी उसी ओर देख रही थी, देखते देखते अचानक उसके कानों में डमरू की आवाज कौंध गई जिसके बीच कोई धुंधली सी आकृति उसे उस पहाड़ी पर नजर आने लगी| कुछ पल को पलक की झुरझुरी छूट गई|
“पलक..|” किसी स्पर्श से उसका ध्यान टूटता है| वह अपने हाथ की ओर देखती है, नवल ने उसे थाम रखा था|
“कहाँ जा रही हो – आगे रास्ता सही नही है |”
नवल की बात सुन पलक का ध्यान अब अपने आस पास की स्थिति की ओर जाता है तो उसे पता चलता है कि वह चलते चलते किसी खंडर जैसे स्थान पर आ गई थी जिसके उबड़ खाबड़ जगह में वह टकरा कर गिर सकती थी अगर नवल उसे थाम न लेता| ये देख पलक नवल का हाथ पकडे सावधानी से उतर आती है|
“आप तो इस जगह से कुछ ज्यादा ही सम्मोहित हो गई – ये तो बस एक कहानी है|”
पलक उतरकर अब ठीक नवल के सामने खड़ी थी जिससे वह अपना सम्पूर्ण ध्यान उसकी ओर से न हटा सकी|
“वो जब चल रही होगी तो कितना डरा होगा उसका मन !” पलक उस पल यूँ कह उठी मानो उसकी आवाज किसी दूर घाटी से आ रही हो|
“हाँ कोई भी डर जाएगा ऐसी ऊंचाई से पर आपको डरने की जरुरत नही है आपका हाथ हम पकड़े रहेंगे |”
नवल की बात सुन पलक को ख्याल आता है कि नवल अभी भी उसका हाथ पकड़े था जिससे वह हौले से अपना हाथ छुड़ा कर थोड़ा पीछे हटकर खड़ी हो जाती है इससे नवल मुस्कराकर दो कदम और उसकी ओर बढ़ जाता है| उस खुले वातावरण में हलके हलके हवा चलने लगी थी जिससे पलक के बाल हवा संग अठखेलियाँ करते उसके चेहरे पर बार बार छा रहे थे| ये देख नवल आगे बढ़कर उसकी झुल्फ समेटकर उसके कानो के पीछे धकेलता हुआ कह रहा था – “काश इन जुल्फों की तरह हम भी खुशनसीब होते आपके करीब होते |” नवल एकटक उसकी गहरी गहरी आँखों में देख रहा था पर ये पल पलक के दिल में एक धक् सी छोड़ गया| इससे पहले कि वह इस पल में अपनी कोई प्रतिक्रिया करती हॉर्न की आवाज ने उन दोनों का ध्यान कार की ओर कर दिया| उस ओर देखते उन्हें ख्याल आया कि वे चारों मुस्कराती निगाहों से उन्ही की ओर देख रहे थे| इस पल पलक जहाँ झेंप गई वहीँ नवल मुस्करा कर उनकी ओर बढ़ गया| अब तक काफी समय होने और वैभव का फोन आने से उन्हें वापस महल जाना पड़ा क्योंकि उन्हें अब लखनऊ के लिए भी निकलना था| पूरे रास्ते भर साँसे भरते हुए नवल पलक की ओर देखता रहा पर पलक ने एक बार भी उसकी ओर सीधी नज़र करके नही देखा लेकिन कन्खनियों से देखते उसे नवल की नज़र का आभास हो चुका था| महल लौटकर पलक झलक अपने परिवार संग लखनऊ लौटने की तैयारीयों में लगी थी तो आदर्श शर्लिन के साथ वापस अपने रेस्टोरेंट के लिए उदयपुर निकलने को तैयार था| पलक की उदासी अब वैभव को कुछ खटकने लगी थी और वे इसी सोच में लिपटे सामान भी रखते जा रहे थे| ऐसा करते वैभव उलटे सीधे कपड़े रखने लगे ये देख पत्नी ने आकर उनकी तन्द्रा भंग की|
“किस ख्याल में गुम है ?”
वे उनके पास आकर बैठती है तो वैभव अदनी मुस्कान से देखते हुए कहते है – “यूँही बस पलक के बारे में सोचने लगा |”
“वो तो दिख ही रहा है |” वह बैग के कपड़ों को निकालकर ठीक करती हुई बोली तो वैभव स्थिति समझ मुस्करा दिए|
“मैं तो कहती हूँ कुछ दिन बाहर कही चलते है !”
“हाँ ठीक कहा पर घर बहुत दिन के लिए खाली हो जाएगा |” फिर अपनी ही बात का खंडन करते हुए बोले – “ऐसा करते है पलक झलक को उदयपुर भेज देते है – कुछ दिन जगह बदलेगी तो उसका मन भी बदल जाएगा |”
“हाँ जी सही कहा |” पति की बात का अनुमोदन करती वह तुरंत खड़ी होती हुई बोली – “अभी आदर्श को बोलती हूँ – यही से दोनों साथ में चली जाएगी – यही ठीक रहेगा |”
इस तरह सब तय हो गया और वैभव नीतू यही से लखनऊ निकल गए तो आदर्श के साथ पलक झलक चली गई और अनामिका यही से जैसल चली गई|
उदयपुर जाते कार आदर्श चला रहा था तो उसके बगल की सीट पर शर्लिन बैठी थी वही पीछे दोनों बैठी हुई थी| रास्ते भर आदर्श पलक झलक के बचपन के किस्से सुनाता रहा तो वही झलक भी बीच बीच में आदर्श के बचपन की शैतानियां याद करती सुना देती जिससे लम्बा रास्ता पल में कट गया उदयपुर आते सच में कुछ पल को पलक का मन कुछ हल्का हो गया| यूँही हँसते हँसते कट गए रास्ते से वे आदर्श के रेस्टोरेंट में आ गई| कुछ दिन रेस्टोरेंट छोड़ने से अब उनके सामने बहुत सारे काम थे जिससे आदर्श और शर्लिन अपने अपने काम में जुट गए| उसी बीच उनकी मदद कराने झलक पलक के साथ किचेन में आ गई फिर झलक को किचेन में छोड़कर पलक शर्लिन के साथ बाहर उसकी कुछ मदद कराने लगी जहाँ कुछ देर में बातें करती करती झलक भी आ गई कि कोई धड़ाम की आवाज पर उनका साथ में ध्यान गया तो तुरंत ही वे एकदूसरे का मुंह देखते अन्दर की ओर चल दी| आवाज की दिशा तय थी आवाज किचेन की ओर से आई थी| किचेन की ओर दौड़कर आती पलक झलक के साथ शर्लिन और पीछे पीछे आदर्श भी चला आया| अगले ही पल किचेन के अन्दर का नज़ारा देखते सबको बात समझ आई और सभी कसी आँखों से झलक की ओर देख रहे थे ओ दांत दिखाती हुई धीमे से कह रही थी –
“वो कुकर मैंने चढ़ाया था – सोचा खाना जल्दी बनेगा सो सेपरेटर में चढ़ा दिया पर उसमें पानी डालना भूल गई|”
सभी उसकी ओर घूरकर देख रहे थे तो झलक दांत दिखाती किनारे हो गई| शर्लिन आगे बढ़कर कुकर को गैस से उतारती है जिसकी प्रेशर वाल टूटने से उसका खाना बाहर फ़ैल गया था|
पलक भी अन्दर आकर कुकर में झांकती हुई पूछती है – “कुकर खाली है इसका खाना कहाँ गया ?”
आगे बढ़कर झलक उंगली से ऊपर छत की ओर इशारा करती है जिसे देख सबकी ऑंखें हैरानगी से चौड़ी हो जाती है तो वही आदर्श अपने सर पर हाथ मारते कह उठा – “अभी तो खाना ही छत पर चिपका है – गनीमत है छत नही उड़ी|”
ये सुनते झलक को छोड़ सभी की हँसी छूट गई|
“अभी देखते जाओ भईया – आज तो पहला दिन है इसका |”
पलक बीच में चुटकी लेती मुस्कराई तो आदर्श झलक के आगे हाथ जोड़ते हुए बोलता है – “न देवी कृपा करो – अभी आपका भाई नया नया शेफ बना है अभी से उसकी लुटिया न डुबाओ |”
“मैंने क्या किया !! मैं तो मदद ही कर रही थी|” बच्चों का मुंह बनाती झलक बोल पड़ी|
“आप मदद न करे यही हमारी मदद होगी |”
“जाओ मुझे नहीं करानी किसी की मदद |” आदर्श की बात पर झलक पैर पटकते बाहर निकल गई तो शर्लिन और पलक एकदूसरे का चेहरा देख मुस्करा उठी|
“झलक…|”
आदर्श वही खड़ा उसे पुकारता है ये देख शर्लिन कहती है – “ऐसा करो आदर्श तुम अब झलक को मनाओ मैं तब तक किचेन ठीक कर लेती हूँ|”
“हाँ ठीक है – ऐसा करता हूँ उसे लेकर मैं सुपर मार्किट चला जाता हूँ – सामान भी आ जाएगा और उसका मूड भी ठीक हो जाएगा |”
आदर्श की बात पर मौन स्वीकृति देती शर्लिन स्लेप की ओर मुड़ जाती है|
“मैं भी आपकी मदद कराती हूँ |” पलक भी अब वही रुकी किचेन में उसकी मदद कराने लगती है|
शर्लिन को भी पलक का साथ अच्छा लग रहा था, काफी देर इधर उधर की बात करते पलक एकाएक कुछ ऐसा शर्लिन से पूछ पड़ी कि एक ह्या की लाली सी शर्लिन के गालों पर झलक आई|
“बताईए न – आपको कैसे पता लगा कि आपको आदर्श भईया से प्यार है !”
शर्लिन स्लेप साफ़ कर अब खाना बनाने की तैयारी करने लगी थी| वह कुकर का ढक्कन बंद करते पलक की ओर मुड़ती उसकी आँखों में देखती हुई कहने लगी – “पलक सच कहूँ तो ये सवाल एक बार मैंने खुद से भी पूछा था |”
शर्लिन की बात पर पलक आंख झपकाती उसकी ओर देखती रही|
“हाँ पता है तुम्हें ये सुनकर अजीब लग रहा होगा पर यही सच है – पहले पहल आदर्श का साथ अच्छा लगा पर अच्छा लगने को क्या मैं इसे प्यार मान लूँ इस पर बहुत सोचा फिर कुछ चीजे ऐसी रही जिससे सच में मुझे यकीन हो गया कि हम साथ में खुश रह सकते है |”
“और वो क्या चीज रही ?” पलक के हाव भाव में गहन जिज्ञासा दिखाई देने लगी|
“देखो पलक अकसर लोग पहले आकर्षण को ही प्यार मान लेते है पर मेरी नज़र में ये महज एक आकर्षण भर ही होता है – प्यार का अर्थ तो बहुत गहरा होता है – इसे समझकर ही आगे बढ़ना चाहिए |”
“तो वो क्या होता है ?”
पलक की बात पर शर्लिन मुस्कारते हुए बोलने लगी – “क्या अपने प्यार को परखना है तुम्हें ?”
“कुछ ऐसा ही समझ लीजिए – कुछ उलझ गई हूँ मैं इसलिए तो आपसे पूछ रही हूँ |”
“ठीक है – मैं अपने अनुभव से तुम्हारी जो सहायता कर सकती हूँ वो जरुर करुँगी |”
पलक भी अब अपना सारा ध्यान शर्लिन की बातों में लगा देती है|
“पहले पहल जो होता है वो आकर्षण ही होता है और ये लगभग के साथ होता है पर ये तो बस प्यार की शुरुआत भर है पर इसके बाद जब कोई किसी के लिए बिना स्वार्थ कुछ करे उसका हर पल साथ दे और बदले में उससे कुछ न चाहे यही सच्चा प्यार है – आदर्श ने भी कभी मुझसे कुछ नहीं चाहा और न मैंने ही बस हम साथ में चलते एकदूसरे का साथ देते कब एकदूसरे के हो गए पता भी नही चला – मेरे पापा ही मेरी सारी दुनिया थी उनके साथ मैं भी शेफ बनने का उनका सपना जी रही थी पर उनके जाने के बाद जब मैं टूटने लगी तब आदर्श ही था जिसने मुझे संभाला एक दोस्त की तरह – आज लगता है जैसे बिन कहे वह मुझे और मैं उसे जान लेती हूँ – बहुत केयरिंग है वह|” एक सांस में कहती शर्लिन अब खामोश खड़ी बाहर के गेट की ओर देख रही थी जहाँ से ठुनकती हुई झलक आ रही थी और उसके पीछे पीछे सामान लिए आदर्श उसे कुछ कहता हुआ चला आ रहा था|
शर्लिन अब किचेन से बाहर जाती उनकी ओर चल दी पर अपनी जगह खड़ी पलक जैसे और भी खुद में उलझ गई| अनिकेत ने आखिर सदा ही तो बिन कहे उसका साथ दिया तो क्या उसे भी उससे प्यार था या नही !! वह समझ ही नही पा रही लेकिन आज उसके साथ न होने पर वह उसकी कमी सी महसूस कर रही है पर शायद हर प्यार करने वाले की किस्मत शर्लिन और उसके आदर्श भईया जैसी नही होती जिसे उनका अपना प्यार मिल जाए, उसे तो उसका प्यार नही मिला तो नवल को भी उसका प्यार मिल जाना चाहिए हाँ शायद यही वक़्त को मंजूर है, वह सबकी ख़ुशी के लिए इस अनचाहे रिश्ते को अपना लेगी अब यही उसकी नियति बनेगी| सोचते हुए पलक की ऑंखें कुछ मिचमिचा जाती है मानो आँखों के बीच कोई सपना कांच सा छिटककर चूर हो गया हो, वह कसकर अपनी ऑंखें बंद कर लेती है|
क्रमशः……………
Very very😊😊😊👍👍👍🤔🤔🤔🤔🤔