
एक राज़ अनसुलझी पहेली – 14
जैसलमेर की बलुई धरा पर सीना ताने खड़ा था चौहानों का सोन किला, कौन नही जानता था उस किले को जिसका विशाल प्रांगण आज तक कोई पूरा नही चलकर पार कर पाया जो इतना विशाल था| जहाँ जैसलमेर के स्वर्ण किले जिसे सोनार किले के नाम से भी जानते थे कभी कभी उससे सोन महल की तुलना कर बैठते लोग पर दोनों महल अलग अलग रियासत के हाथों में थे इसी कारण एक मुंह से दूसरे तक आती बातों से चौहानों के सोन महल को लोग सोनार किला ही कह देते थे पर फर्क साफ़ था जहाँ जैसल का सोनार किला आधे से ज्यादा धूसल पड़ा था वही चौहानों का सोन महल आधा होटल और बाकी का आधा उनका निवास था जो सदैव ही दमकता रहता |
रेतीले रेगिस्तान में किसी चमकते सोने सा चमकता था वह सोन किला जो अपनी आलिशान भव्यता और आकर्षण में यूँ खिला रहता कि बरबस ही सबका ध्यान उसपर चला जाता यही कारण था कि वहां टूरिस्ट की अच्छी खासी भरमार रहती थी| उस किले के होटल की जिम्मेदारी जहाँ रूद्र और नवल के हाथ में थी तो जैसल का सैंड ड्युन्स रिसोर्ट शौर्य संभालता था| कुछ एक आध उनके अपने पर्सनल इन्वेस्टमेंट भी थे जैसे कई शहरों में उनके अपने अपने पांच सितारा होटल और विदेश में भी उनके एक दो होटल थे| इस रियासत का सारा का सारा धन उपार्जन केवल होटल व्यवसाय पर ही निर्भर था| रचित सोन होटल का मेनेजर था जिससे वह वही रहता और जब से उसकी मंगनी शारदा की इकलौती बेटी नंदिनी से तय हुई थी तब से उसका रुतवा कुछ और बढ़ गया था | नंदिनी भी उसी महल में अपनी माँ के साथ रहती थी| उसका बालपन ही उस राजमहल के आंगन में बीता जिससे उसका जीवन राजकुमारों के जीवन से इतर न रहा लेकिन कुंवर नवल के प्रति वह कुछ अलग ही भाव रखती थी| कुंवर नवल अपने बालपन से ही किस्सों कहानियों के शौकीन थे तब महल में नंदिनी ही उन्हें मिलती जिसे पकड़कर वे अपने तरह तरह के किस्से कहानी सुनाते और नंदिनी जिसका पढाई में कभी मन नही लगा पर नवल को सुनना कब उसकी आदत में शरीक हो गया वह खुद भी नही जान पाई और तभी से उन्ही कविताओं की बेल के नीचे कच्चे भाव का पौधा भी जन्म ले लिया जो उम्र के साथ साथ ही पल्लवित होता रहा भलेही नवल इससे अनभिग्यज्ञ रहा पर नंदिनी तो नवल की दीवानी बनी रही और जब भी उसे मौका मिलता उसके कमरे में जाकर उसकी तस्वीर निहार आती पता था नवल को पाना कोई ख्वाब सरीखा है वह ख्वाब जो सपने में भी उसका पूरा नही होगा कम से कम उसके सानिध्य के भाव में तो वह जी ही ले| यही कारण है कि उसने रचित से रिश्ता सर झुकाकर मंजूर कर लिया ताकि वह कभी भी इस महल से दूर न हो पर शारदा हर बार उसे उसकी हद चेता देती फिर भी वह खुद को नवल के आस पास होना रोक नही पाती|
अनामिका जो जैसल वापस आकर बेहद खुश थी उसे राजमहल में रहना पेरिस में रहने से ज्यादा भाता था पर रूद्र को शायद ये नही पसंद था जिससे वह नवल और शौर्य के विवाह के बाद से कोई न कोई संजोग बनाकर वहां से जाना ही चाहता था पर इससे बेखबर अनामिका अपनी ही रौ में बगीचे की मखमली घास पर टहल रही थी जब रूद्र ने आकर उसे टोका|
“अनामिका आप इस बात को बिलकुल भी हलके में मत लीजिए जो मैंने आपको कही है |”
रूद्र की संजीदा बात पर वह टहलना बंद करके उसकी नज़रों में देखती हुई पूछती है – “कौन सी बात ?”
“जो सुबह मैंने आपको बताई थी कि आप इस बात का ख्याल रखे कि बिना रक्षासूत्र वाले द्वार से न निकले आप |”
रूद्र की बात पर अनामिका उसे अजीब तरह से देखने लगी मानों उसकी इस बात को उसने सच में याद न रखा हो इससे रूद्र अपनी बात कहता रहा |
“देखिए ये कुछ नियम है यहाँ रहने के जिनका आपको ख्याल रखना ही होगा क्योंकि माँ सा को महल के नियम का टूटना कतई गंवारा नहीं और हम भी आपसे यही उम्मीद करते है कि ये भूल कम से कम आपसे तो न हो |”
“नहीं रूद्र जी हम इसका पूरा ख्याल रखेंगे पर ये कितनी अजीब बात है कि हम रक्षासूत्र वाले द्वार से ही आए जाए – भला क्यों ?”
अबकी रूद्र उसकी हथेली अपने हाथों के बीच थामता हुआ उसे समझाता हुआ कहता है – “आप बस ये समझ लीजिए कि ये माँ सा की इच्छा है और हम कतई नही चाहेंगे कि आप उनकी इच्छा के विरुद्ध जाए आखिर इसमें आपकी भलाई ही है क्योंकि बहुत कुछ ऐसा है जिसे आप या हम समझ नही सकते पर माँ सा जानती है और इसमें से एक ये बात है कि नई बिन्दनी को सवा साल इस नियम का ख्याल रखना होता है क्योंकि यहाँ की मरू भूमि में ऐसे बहुत से राज़ है जिनतक हम पहुँच भी नही सकते तब क्या अपनी भलाई और बड़ो के सम्मान के लिए हम उनकी इतनी बात भी नही रख सकते क्या ?”
रूद्र की बात सुन अनामिका थोड़ा सकपका जाती है – “नही नही रूद्र जी आप ऐसा क्यों सोचते है अगर इतनी सी बात है तो हम इसका ख्याल रखेंगे – ठीक !”
“हाँ |” कहकर रूद्र मुस्करा दिया|
“अच्छा हम आपको ये बताने आए थे कि नवल और शौर्य के विवाह की तारिख तय हो गई बस पन्द्रह दिन बात विवाह है आपकी सखियों का |”
अबकी रूद्र की बात सुन अनामिका जैसे ख़ुशी से उछल ही पड़ी – “क्या सच ओह हम बता नही सकते कि हम कितने खुश है अब सदा हमारी सखियाँ हमारे साथ ही रहेंगी यहाँ महल में |”
पर अनामिका की बात सुन रूद्र के चेहरे के भाव बदल चुके थे|
“हो सकता है हमे विवाह के तुरंत बाद ही पेरिस जाना पड़े |”
“क्या |”
इस पल में अनामिका का उदास चेहरा देखते हुए रूद्र मुस्कराते हुए कहता है – “अरे हमने कहा हो सकता है पर जरुरी नही |”
“ओह क्या सच्ची !”
अनामिका की मुस्कान पर रूद्र भी अपनी मुस्कान का लेप लगाकर अपने मनोभावों के तूफ़ान का वेग शब्दों में आने से रोक लेता है क्योंकि ये उसका मन ही जानता था कि क्यों वह सवा साल अनामिका को इस महल से दूर रखना चाहता था पर ये किसी को जता नही सकता था|
शादी की तारिख तय होते जब ये खबर सनसनाती हुई लखनऊ से उदयपुर पहुंची तो सभी में अलग अलग प्रतिक्रिया हुई जहाँ नीतू ख़ुशी ख़ुशी सारी तैयारियों में लग गई वही पलक के होश उड़ गए पर धनुष से निकला बाण कैसे वापस आता उसी तरह मंगनी जिस शख्स के साथ उसने मंजूर की तो अब शादी कैसे रोक पाएगी?
एक बुलेरो झटके से चाय की गुमटी पर आकर रूकती है जो सड़क के उस हिस्से पर बनी थी जहाँ दूर दूर तक कोई दूकान नज़र नही आ रही थी, ये जैसलमेर पहुँचने की लिंक रोड थी| बुलेरो में आगे की ओर बैठे दो आदमी थे जो साथ में एक ओर की खिड़की की ओर झांककर रास्ता पक्का करते पूछ रहे थे –
“भाईलो जैसल जाणे का रास्ता यही है !”
उनकी आवाज से गुमटी के किनारे बैंच पर बैठे एक वृद्ध और युवक का ध्यान तेजी से उनकी ओर गया| चाय वाला भी अपना पतीला हिलाते हिलाते रूककर उनकी ओर देखने लगा| सफ़ेद रंग की गाड़ी धूल से सनी थी शायद वे काफी दूर से आ रहे थे साथ ही सफ़र की थकान उनके चेहरे के उड़े उड़े भाव के रूप में भी साफ़ नज़र आ रही थी| एक नज़र में ही सभी एकदूसरे के वस्त्रों से उनकी स्थिति का पता लगा लेते है| धूल भरी गाडी में बैठे उन दोनों के थके चेहरे लाल साफा और घनी मुछों में काफी रौबीले नज़र आ रहे थे, एक जैसा लिबास और एकसा ढब होने से वे एक नज़र में जुड़वाँ नज़र आ रहे थे साथ ही राजसी भी |
“ठीक जा रहे सा |”
ये सुनते बुलेरो फिर अपनी रफ़्तार से उनकी आँखों के सामने से ओझल हो जाती है|
क्रमशः……………………
Very very🤔🤔🤔🤔👍👍👍😊😊😊👍🤔🤔🤔