Kahanikacarvan

एक राज़ अनसुलझी पहेली – 15

“कल वापस जा रही है पलक झलक तो क्यों न आज हम कही बाहर चले ?” शर्लिन आदर्श की ओर देखती हुई कहती है तो वह भी सहमति में सर हिलाते कहता है –

“यस गुड आइडिया पर कहाँ चले ?” अबकी सामने बैठी झलक और उनसे कुछ दूर बैठी पलक तक वह नज़र घुमाता है| वे सभी रेस्टोरेंट के सभी कस्टमर के जाने के बाद साथ में डिनर करके अभी अभी उठे थे और आपस में बात करते करते किचेन भी समेटते जा रहे थे|

“कही भी चलो भईया पर पूरे दिन का प्रोग्राम बनाना तभी अच्छा लगेगा |” झलक जल्दी से कहती है|

“क्यों न पिछौला चले – बोटिंग के साथ अच्छी खासी आउटिंग भी हो जाएंगी |” सुझाती हुई शर्लिन बोली|

“हाँ ये ठीक है – सच में बहुत दिन से कहीं लम्बी आउटिंग नही की |”

आदर्श की बात सुन झलक उसकी ओर मुड़ती हुई पूछती है – “फिर यहाँ रेस्टोरेंट में कौन होगा ?”

“तुम उसकी चिंता मत करो जब हम नही रहते तब दूसरे केटर्स और वेटर्स संभाल लेते है फिर रेस्टोरेंट में शाम को भीड़ होती है और तब तक तो हम आ ही जाएँगे |”

“वाओ बहुत मजा आएगा |” झलक ख़ुशी से उछलती हुई बोलती है|

तभी सभी का ध्यान पलक की ओर जाता है जो उन सबकी बातों से बेखबर खिड़की से बाहर देखती हुई बैठी हुई थी|

“पलक ..|” आदर्श के आवाज लगाते सभी उसकी ओर देखते है पर उसकी ओर से कोई प्रतिक्रिया न देख आदर्श हँसता हुआ कहता है – “लगता है हमारी पल्लो कुछ ज्यादा ही बोर हो गई है अब तो कल जाना ही पड़ेगा|”

उसकी बात पर बाकी सभी हँसते हुए अपनी प्रतिक्रिया देते है| सुबह की तैयारी के लिए सभी सोने चले जाते है|

आधी रात अचानक पलक की नींद उचटती है, वह चौंककर बैठ जाती है, वह चारोंओर देखती हुई गहरी गहरी साँसे लेने लगती है| वह तुरंत ही दीवार घडी की ओर देखती है जहाँ अभी बारह बज रहे थे| समय देख उसके मन में अजीब सा डर पनपने लगता है| चारोंओर गहन अँधेरे पर फीका सा जलता नाईट बल्ब जल रहा था जिसकी मध्यम रौशनी में वह अपनी स्थिति का जायजा लेती हुई अब अपने बगल में देखती है तो वह चौंक जाती है| उसके बगल में तो झलक सोई थी पर इस वक़्त वह वहां नही थी| कहाँ गई झलक वो भी इस आधी रात में !! ये प्रश्न उसके दिमाग में बुरी तरह से कौंध जाता है| तभी एक आवाज उसका ध्यान अपनी ओर खींचती है वह उस आवाज को ध्यान से सुनती है वह कोई डमरू की आवाज थी, आवाज को पहचानते उसके दिमाग में एकसाथ कई चीजे चलने लगती है जैसे ये आवाज उसने पहले भी सुनी है और आधी रात आवाज कहाँ से आ रही होगी ? फिर उसकी नज़र घूमती हुई दीवार घडी की ओर जाती है अभी घडी बारह बजा रही थी तभी उसे लगने लगता है जैसे कोई उसके बिलकुल बगल में है, वह ये सोचती है पर मुड़कर नही देखती, वह किसी की साँसों की आवाज को अपने कानों के बहुत पास महसूस करती है, किसी की गर्म साँसों को महसूसते अब आवाज आनी बंद हो गई थी| तभी उसका बिस्तर हिलने लगता है जिससे जोर जोर से उसका शरीर थर्राने लगा..

“पलक..|”

वह एकदम से सामने अवाक् देखती रही| वह बड़ी बड़ी ऑंखें फैलाए अपने सामने देख रही थी, उसकी आँखों के ठीक सामने झलक मुस्कराती हुई कह रही थी –

“मैडम आजकल कुछ ज्यादा ही गहरी नींद लेने लगी हो – जागो और तैयार हो जाओ – नहीं तो आज पक्का आदर्श भईया हमे नही छोड़ने वाले – तब से कई बार तुझे आवाज दे रहे है पर एक तू है कि स्नो वाइट की नीद सोई पड़ी है – क्यों अपने राजकुमार का इंतजार है क्या ?” लगातार अपनी आदत अनुसार बोलती झलक उसके सामने खड़ी अब कसकर हँस रही थी जबकि पलक उसे अभी भी हैरान नज़रों से देखती हुई अब धीरे धीरे सब सिलसिलेवार समझ रही थी कि शायद वह फिर कोई सपना देख रही थी ये सोचते हुए वह झलक से निगाह हटाकर फिर दीवार घडी की ओर देखती है तो एकबार और उसकी ऑंखें हैरान रह जाती है, घडी अभी भी बारह बजा रही थी| तभी उसके कानों में झलक की आवाज पड़ी शायद पलक को घडी की ओर देखते हुए उसकी निगाह भी वही चली गई थी|

“ये देखो लगता है घडी भी तेरी तरह सो गई – इसका सेल बाद में बदलती हूँ अभी तू बस जल्दी से तैयार हो जा |”

झलक की बात सुन पलक फिर उसकी ओर यूँ देखती है मानों पूछ रही हो कि वह कहाँ चल दी ?

“मैं चली मोबाईल में गानों की प्लेलिस्ट बनाने – नहीं तो रास्ते भर भईया के पसंद के गाने सुनने पड़ेंगे जो मैं आज होने नहीं दूंगी |” कहकर झलक हवा के झोके की तरह उठकर बाहर चल दी| उसके जाते पलक एक उच्छ्वास छोडती हुई फिर अपनी स्थिति का जायजा लेती है| वह सोचती है कि सच में सपने में सपना देखती हुई वह कितना डर गई थी| इससे पहले कि वह सपने के बारे में और ज्यादा कुछ सोचती उसे ख्याल आता है जो अभी अभी झलक कहकर गई थी इससे उसे कल के घूमने जाने वाली बात भी याद आती है पर उसका मन नही था कही भी जाने का लेकिन शायद अपने जीवन के सारे ऑप्शन वह खत्म कर चुकी है, वह जिस सहजता से सबकी बातें मान रही थी उसके आगे अब कोई और अगला विचार उसके दिमाग में नही आया और वह तुरंत ही बिस्तर छोड़कर उठ गई|

अगले ही कुछ पल में वे चारों उदयपुर की फेमस पिछौला झील के पास थे| कार से उतरते ही आदर्श को भूख लग आई जिससे वह डिक्की खोलकर कुछ खाने का सामान निकालने लगा ये देख झलक भी उसके पास आती अपने लिए कुछ निकालने लगी ये देख शर्लिन उनके पास आती हुई कहती है – “माय गॉड – लगता है भाई बहन को कुछ ज्यादा ही भूख लगी है |”

“हाँ मैंने तो इतनी लम्बी ड्राइव की पर ये पता नही मोटी क्यों आ गई ?” आदर्श जानकर झलक को बिना देखे बोला पर झलक समझ गई कि ये आदर्श ने उसी को बोला है जिससे वह तुनकती हुई बोल उठी – “मैं कहाँ से मोटी लगती हूँ अपना पेट देखा है !”

“वो तो जैकेट मोटी है समझी |”

“सब दिख रहा है कि थोडा थोडा करते कौन खाना टेस्ट करता रहता है ?”

दोनों को आपस में उलझते देख शर्लिन उनके बीच में हाथ लहराती हुई बोली – “ओहो अब लड़ो मत – अच्छा दोनों लोग खाओ |” फिर उसका ध्यान पलक की ओर जाता है जो कार से उतरकर उनसे दूर जा रही थी| अब उसकी ओर देखती हुई वह बोलती है – “मैं पलक के साथ जाती हूँ – जल्दी से पेट पूजा करके दोनों लोग भी आ जाना |”

शर्लिन अब तेज क़दमों से पलक की ओर चल दी और जल्दी ही उसके साथ साथ हो ली| कार झील के पास के मैदान की ओर रोकी थी जहाँ से आगे चलते ऊँचे होते मैदान आगे पहाड़ की ओर जाते थे, पलक उसी ओर चली आ रही थी फिर शर्लिन को साथ आते देख अपने कदम उसके साथ साथ कर लेती है| दोनों साथ चलती हुई कुछ ऊंचाई पर आकर किसी पत्थर पर बैठ गई थी|

“वाह कितना अच्छा नज़ारा है यहाँ का अबकी बहुत दिन बाद यहाँ आई हूँ |” चारोंओर नज़र दौड़ती हुई शर्लिन सामने की ओर नज़र घुमाती हुई कहती है|

इसपर पलक कुछ नही कहती बस इधर उधर नज़र घुमाती वहां का नज़ारा देखने लगती है| वहां का हराभरा नज़ारा उसे बहुत ही अद्भुत लग रहा था जो झील के विस्तार से और भी मोहक लगने लगा था, घास के मैदान आगे जाते जाते कुछ ऊँचे होते जा रहे थे, जो ऊपर के हिस्से में किसी भग्न महल के अवशेषों की ओर जा रहे थे| पलक अब उस ओर देखने लगी थी जिससे शर्लिन की नज़र भी उधर चली गई तो वह कह उठी –

“वो राणा का महल है – कितनी शान हुआ करती होगी पर आज देखो कैसा धूल धूसरित पड़ा है यही होती है वक़्त की मार – नटनी के श्राप ने नाश कर दिया इस राज्य को |”

शर्लिन इतना भर कह पाई और पलक झट से अवाक् उसकी ओर देखने लगी जिससे उनकी आपस में निगाह मिलते वह अब उसकी ओर देख रही थी|

“क्या कहा – नटनी !!” पलक अभी भी शर्लिन को अवाक् देख रही थी|

“हाँ इसकी पूरी कहानी है – नटनी थी जो महल के बुर्ज से पहाड़ी तक चली थी अपने प्रेमी के लिए पर राजा ने धोखे से उसका ताना कमजोर करवा दिया और फिर वह …|”

“नीचे गिर गई |”

पलक ने शर्लिन की अधूरी बात पूरी की जिससे शर्लिन हैरान उसकी ओर देखती हुई पूछती है –

“तुम्हें कैसे पता – क्या पहले भी आई हो यहाँ ?”

“नही पर ये कहानी मैंने सुनी है पहले – जयपुर से बाहर आते किसी जगह गए थे वहां पर रूद्र जी ने बताई थी यही कहानी – ऐसे कैसे हो सकता है एक ही कहानी दो अलग जगह की !!” हैरान पलक बोल उठी|

“मैं समझ गई – असल में एक ही कहानी को दो अलग अलग स्थान से तुमने सुना – पलक ये एक ही जगह की बात हो रही है और ये वही एक ही महल है जो जयपुर से उदयपुर के बीच में पड़ता है – तुम पहले जयपुर से इसके दूसरे हिस्से में आई और ये उदयपुर से उसके विपरीत का हिस्सा है – असल में पहले बहुत बड़े बड़े महल हुआ करते थे न अब उनके बीच सडक आ गई है और पहाड़ो पर बस अवशेष बचा रह गया है -|” शर्लिन बात कह मुस्करा दी|

पर पलक हैरान बनी रही|

“कितनी अजीब बात है एक ही कहानी मैं दो बार सुन रही हो – और सपना भी दो बार आया मुझे |”

“कैसा सपना ?”

“यही कि कोई नटनी ऊंचाई पर चढ़ी करतब कर रही है |”

पलक के हैरान हाव भाव पर शर्लिन अपनी मुस्कान का लेप लगाती हुई कह रही थी – “हाँ कहानी ही ऐसी है कि किसी भी संवेदनशील मन में अपनी छाप छोड़ जाए इसलिए तुम्हें ऐसा लगा होगा – आखिर धोखे और फरेब की कहानी है ये और किसी मासूम निर्दोष को धोखा देकर कोई नही बचा और प्यार वो तो हमेशा अमर रहता है |”

पलक कुछ नही कहती बस मन ही मन मंथन करती रही पिछली गुजरी हर एक बात का कि आखिर ऐसे सपने क्या कोई संकेत है या सच में उसका मन कुछ ज्यादा ही संवेदनशील हो रहा है|

“अरे ये दोनों भाई बहन कहाँ रह गए – अभी देखती हूँ |” कहती हुई शर्लिन अब अपने पीछे देखती हुई वापस नीचे उतरने लगती है|

पलक अभी भी अपने में उलझी थी उस पल उसके मन में कितनी बेचैनी थी ये बस उसका मन ही जानता था| उससे अब वहां नही बैठा गया और वह कुछ और ऊपर की ओर जाने लगी| चढ़ते चढ़ते वह टूटे पेड़ के पास जमी पर पड़े महल के भग्नावशेष के पास खड़ी देखती है तो पेड़ के पीछे के हिस्से के नीचे खाई सी दिखती है, उस पल उसका मन कुछ अजीब सा हो उठा लगा कि वह खाई नही उसका विराम मन है जहाँ उसके बेचैन मन को राहत मिलेगी तभी अचानक उसका सर चकरा गया जिससे पेड़ के दीमक खाए ठूंठ से उसका हाथ फिसल जाता है और अगले ही पल उसका पैर खाई की ओर सरक जाता है, ये सब उसकी बंद हुई ऑंखें नहीं देख पाती कि वह खाई के मुहाने की ओर लुढ़क गई है|

राजमहल के बाहरी हिस्से की पार्किंग में बुलेरो खड़ी कर वे दोनों उतर कर पीछे की सीट से कुछ सामान निकालकर अब राजमहल के मुख्य द्वार की ओर बढ़ रहे थे जहाँ उस गेट से आगे खड़ा एक मुस्तैद सिपाही जैसा वस्त्र पहने आदमी अन्दर जाने वालों के कपड़ो पर लगे बिल्ले चेक कर रहा था जो महल के अन्दर रहने वाले कारिंदों की विशेष पहचान बताते थे| अब वे दोनों एकदूसरे की ओर देखते आगे बढ़ने लगते है| सिपाही उनके कपड़ो को देखता हुआ उन्हें सामान किसी मशीन की ओर रखने को कहता है ताकि सामान की जाँच हो सके साथ ही नज़र उठाकर उनके सीने पर लगा बिल्ला खोजता है और बिल्ला वहां पाकर संतुष्ट होने पर उन्हें अन्दर जाने देता है|

क्रमशः…………………

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