
एक राज़ अनसुलझी पहेली – 16
राजमहल के मुख्य द्वार से अन्दर आते वे दोनों चेकिंग हिस्से से गुजरते अपना सामान लेते आगे पीछे चल रहे थे| चेकिंग करता दरबान उन सबके ऊपरी वस्त्र पर लिखा उनका नाम पढ़ पढ़कर कागज पर लिखता हुआ उन्हें अन्दर जाने दे रहा था| जिसमे बुलेरो से उतरे वे दो आदमी भी दालान से होते बाकि सभी सात आठ लोगों के साथ महल के बड़े हिस्से के किनारे चलते चलते उसे पार कर रहे थे| महल के पीछे के बगीचे के हिस्से को पार करते महल का पिछला हिस्सा आता जो महल से सिर्फ एक रास्ते द्वारा जुड़ा था, उसी महल के पिछले हिस्से में सभी कारिंदे निवास करते थे, महल की बड़ी रसोई भी वही थी बाकी एक छोटी रसोई मुख्य महल में थी| वे दोनों आगे पीछे थे जिससे आगे वाला आदमी पीछे वाले को मुड़कर देखता कहता है – “अट्ठे आवो |” उसे हुंकार लगाता अपनी मस्मौला चाल से अब आगे आगे चल रहा था| महल का रास्ता इतना लम्बा था कि अभी वह मुख्य महल को पार भी नही कर पाए थे| वह आदमी अपने साथ चल रहे अन्य आदमियों संग बातें करता हँसता हुआ कहता है – “एक फुहारा सुण भाई – |” वह ज्योंही ये कहता है सभी की चाल धीमी होते ध्यान उसकी ओर चला जाता है|
“एक घना मूंछर साईकिल से जा रिया था कि आगे जाकर एक छोरी से उसकी साईकिल टकरा गई तो छोरी नाराज़ होकर उससे बोली रे ताऊ थारे इतनी बड़ी बड़ी मुच्छा है सामने जा रही मिह न दिखी काई |” वह मजेदार ढंग से सुना रहा था जिससे अब सभी का ध्यान उसी की ओर था जबकि वह अपनी गोल गोल घूमती आँखों से आस पास का जायजा लेता आगे बढ़ रहा था| महल के ख़ास हिस्से के पास दरबान खड़े थे ताकि कोई उधर न जा सके और वह सभी को पीछे की ओर जाने का संकेत दे रहा था पर अब उनका ध्यान भी उसके जोक पर चला गया था| वह अभी भी उसी मजाकिया ढंग से सुना रहा था|
“छोरी आँखा तरेरती खड़ी थी तो ताऊ बोलिया ब्रेक कदों लगावे म्हारी मुच्छा में ब्रेक लगो है काई |” कहकर वह कसकर हँस पड़ा जिससे बाकि के भी अपनी हँसी नही रोक पाए, उस पल में एक हँसी का फुहार छूट गया कि दरबान चौंक पड़े अब वही मुछो वाला आदमी मुख्य महल की ओर तेजी से बढ़ गया था क्योंकि उस पल कि हँसी ठिठोली ने उसका ध्यान कुछ पल को भंग कर दिया था|
वह उसे रोकने उसकी ओर तेजी से उसके पीछे दौड़े पर वह अपनी तेज चाल से क्यारी लांघता हुआ बगीचे की ओर चला जा रहा था जहाँ धूप के एक टुकड़े के नीचे छत्री के नीचे राजा साहब बैठे थे| उनके साथ की गोल मेज पर शतरंज की बाजी सजी थी जबकि उनके सामने कोई नही था पर कुछ दूरी बनाकर सेवक शायद उन्हें एकांत देते अपनी जगह डटे थे| पीछे के दरबान की आवाज सुन अब उनका ध्यान भी उधर जाता है| उस पल कई चीजे एकसाथ हुई उन दरबान ने उस आदमी को पकड़ा और सेवकों का राजा साहब की ओर आना जिसके अगले की क्षण वे सेवक राजा साहब को थामे और सेवकों को भी आवाज लगाते है| जिसके अगले ही क्षण महल में गहन शोर छा जाता है, आनन् फानन में रानी साहिबा को खबर की जाती है तो दूसरी ओर डॉक्टर को लाने गाड़ियाँ भागती है|
राजा साहब को सेवक जल्दी से आराम स्थिति में लाते हुए उनके आस पास मौजूद रहते है तो डॉक्टर के आते उनका चेकअप किया गया| जल्दी ही सब शोर शांत हुआ और उनका पूरा चेकअप करने के बाद डॉक्टर रानी साहिबा के पास आते हुए कहते है – “बस उनका बीपी लो हो गया था पर अब राजा साहब बिलकुल ठीक है |”
“धन्यवाद आपका |” रानी साहिबा अपनी बेचैन साँसों को नियंत्रित करती हुई धीरे से कहती है|
“जी सही समय पर मुझे बुलवा लिया वैसे अभी आप उन्हें अकेले मत छोड़ियेगा |”
डॉक्टर हाथ जोड़ता विदा लेकर चला जाता है|
रानी साहिबा अब राजा जी के कक्ष में आती है तो बाकी के सेवक हाथ जोड़े दरवाजे के बाहर निकलकर खड़े रहते है| अब वहां राजा साहब और उसके पास उनका हाथ थामे बैठी रानी साहिबा ही थी जिनके चेहरे पर उस पल की ढेरों परेशानी नज़र आ रही थी| राजा साहब ऑंखें खोले उनकी ओर हौले से देखते हुए मुस्करा देते है|
ये देख वे भी अपने चिन्तितं मनोभावों को मरहम लगाती हुई कह उठी – “अब आपको कैसा लग रहा है ?”
वह आँखों को झपका कर हाँ में सर हिलाते है|
“जी डॉक्टर ने भी बोला है कि अब आप बिलकुल ठीक है – बस अब हम आपको एक पल को भी अकेला नही छोड़ेंगे वो तो कहिए सेवकों ने आपको कसमसाते हुए सही समय पर देख लिया – नही तो..|”
वे कहते कहते रुक गई और उनका हाथ हौले हौले सहलाने लगी|
“जी वो हम ने ही उन सबको एकान्त में रहने को कहा था |” वे एक एक शब्द सावधानी से बोलते है|
“पर अचानक वो कौन था जिसकी वजह से सेवकों का ध्यान आपकी ओर गया -!”
“पता नही हम तो देख नही पाए – पता कराईऐ आप |” कहकर राजा साहब अपनी साँसों को धीमे धीमे लेते रहे|
“जी हमने नागेन्द्र जी को बोला था…|” वह अपनी बात पूरी भी नही कर पाई तभी सेवक ने नागेन्द्र जी के आने की सूचना उन्हें दी|
नागेन्द्र जी इस महल के सबसे पुराने और विश्वस्त सेवक थे जिनकी बात पर राजा साहब से लेकर कुंवर तक यकीन कर लेते| वह आते दोनों का झुककर अभिवादन करते नजरे नीची किए हुए कहते है – “हुकुम उस आदमी को लायो हूँ सा |”
“कौन है वो !! वैसे बाहरी व्यक्ति के लिए निषेध स्थान पर आने पर सजा की जगह हम उन्हें इनाम देंगे – उनकी वजह से राजा साहब की आज जान बची है – आप बुलाईए उन्हें |” अपनी बात अत्यधिक मुस्कान से वे कहती एक नज़र मुस्कराती हुई राजा साहब की ओर देखती है पर उस पल ये सुन नागेन्द्र के चेहरे के भाव उड़े उड़े हो रहे थे, मानो वह कुछ कहना चाह रहा था पर कह नहीं पा रहे| रानी साहिबा के हुकुम को सुन चुपचाप सर झुकाए दरवाजे की ओर पीछे मुड़कर कुछ इशारा करते है जिसके अगले ही पल एक सेवक किसी व्यक्ति का बाजु पकडे अन्दर प्रवेश करता है| वह मूंछों वाला शख्स अन्दर आते किसी की ओर नज़र न उठाते बस सर झुकाए उनकी नज़रो की सीध में आकर खड़ा हो जाता है| नागेन्द्र जी को शायद उस शख्स की उपस्थिति के परिणाम का पहले से ही भान था जिसका तुरंत असर वह रानी साहिबा के चेहरे पर स्पष्ट देखता है|
“भुवन सिंह तुम !!!” रानी साहिबा की आंखे तुरंत लाल होती चेहरा गुस्से में तन गया|
“खम्मा घणी हुकुम |” वह थोड़ा झुककर अभिवादन करता है|
पर उस पल का माहौल गर्म लावे सा उबल उठा जिसका आभास होते नागेन्द्र तुरंत भुवन सिंह को पीछे से थाम लेता है|
“तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई यहाँ वापस आने की और तुम राजमहल के अन्दर तक आ गए -!!” रानी साहिबा गुस्से में उबल उठी|
नागेन्द्र भुवन को इस तरह पीछे से पकडे रहा मानो एक इशारा होते वह उसे गर्दन से पकडे बाहर कर देगा| पर अपने गुस्से को कुछ दबाती हुई रानी साहिबा बस उसे हिकारत भरी नज़र से देख रही थी|
राजा साहब लेटे लेटे ही उसे घूर रहे थे|
उसी पल शारदा भी वहां आ पहुंची और अब जैसे चौकने की बारी उसकी थी वह अवाक् भुवन सिंह की ओर देखती रही जो हाथ जोड़े रानी साहिबा की ओर देखता कह रहा था – “राणी सा म्हारी गालती थी, पता है जिसकी माफ़ी कोणी सा पर फिर भी हाथ जोड़े दया की भीख मांगने आइया हूँ – बखत की बड़ी मार खाई – दर दर भटका हूँ पर आपणे बडेरा से दूर जाकर चैन न मिला – घर से उठ वन में गया वन में लग गई लाइ इसलिए अब आपकी शरण आया सु |” कहकर वह सर झुकाए रहा| शारदा अब उसकी ओर सीधा न देखती हुई नज़रो के कोनो से देखती चुपचाप खड़ी थी जबकि रानी सा अभी भी उसे घूर रही थी|
राजा साहब अपना हाथ रानी की ओर बढ़ाते उन्हें कुछ इशारा करते है जिससे मौन ही वे कुछ समझती हुई अपने चेहरे का भाव बदलती हुई कहती है – “मन तो करता है अभी सजा दे दूँ पर तुमने राजा साहब की जान बचाकर हमे अपना ऋणी बना लिया इसलिए हम तुम्हें एक मौका और देते है |” उनकी सुनते भुवन का चेहरा खिल उठा पर बाकी के चेहरों के भाव अजीब से होने लगे|
“बड़ी दया राणी सा – जय हो राजा साहब जय हो राणी सा |”
“अभी हमारी बात पूरी नही हुई है भुवन सिंह – |”
रानी सा की बात पर अब सबका सीधा ध्यान उनकी ओर चला गया|
“ये समझो तुम्हारे जीवन का सबसे आखिरी मौका है – उसके बाद की गई तुम्हारी गलती तुम्हारे जीवन की आखिरी गलती होगी |” तेज स्वर में वे अपनी बात खतम करती है|
“सपत खाता हूँ अब ऐसा मौका न दूंगा राणी सा |” भुवन हाथ जोड़े खड़ा रहा|
“ऐसा ही होना चाहिए भुवन सिंह क्योंकि पिछली बार भी तुम शारदा के कारण बच गए थे समझे – नागेन्द्र जी अभी इनके रहने का प्रबंध महल में ही कर दीजिए – इनके लायक काम हम बाद में बताएँगे – अब आप सभी जाए |”
उनका हुकुम पाते सभी हाथ जोड़े बाहर चल दिए| कक्ष के बाहर आते नागेन्द्र भुवन की ओर देखता कुछ कहने ही वाला था कि शारदा जो उन सबके पीछे थी भुवन को टोकती हुई सख्त आवाज में बोल उठी – “शक्ति कठे है ?”
अब दोनों रूककर शारदा की ओर देखते है जो रूककर उनकी ओर ही देख रही थी| भुवन उसको देखता हुआ हलके से मुस्कराकर कह रहा था – “बाप जहाँ वही बेटा – बाहर है – देखना सात साल बाद अपने शक्ति को |”
“हाँ अगर तुम्हे उसे अपनी तरह नही बना दिया हो तो – कैसे बाप हो !! थे जो म्हारे बेटे को नींद में उठा ले गए |” कहते कहते शारदा की आँखों में कुछ नमी उतर आई थी|
“किया करता – आपणा जीने का कोई सहारा भी तो चाहिए था पर अब वादा करूँ हूँ थारे से अब सारा परिवार साथ रहवेगा |”
ये सुन शारदा का जैसे जी अंदर अंदर जल उठा पर वह आगे कुछ न बोली बस उसे वही छोड़ बाहर की ओर चल दी|
उसे जाता देख अब नागेन्द्र जी भुवन की ओर देखते हुए कहते है –“चालो – रेहन की व्यवस्था दिखाता हूँ |”
“सात बरस में कोणी बदलेगा महल – बस आप दिशा बता दो बाकी मैं खुद चला जाऊंगा |
“सात बरस में महल की नही थारी दिशा तो बदल गई होगी इसलिए रास्ता देखकर चलना भुवन |” तीखा बाण छोड़ते नागेन्द्र आगे आगे बढ़ गए जिससे अनजाने भाव से भुवन भी उनके पीछे पीछे बाहर चल दिया|
उसी समय महल के गुप्त स्थान के अँधेरे में खड़ा नवल किसी को कह रहा था – “अब वक़्त बहुत कम है – आप अनुष्ठान शुरू कर दे |”
“एक बार और सोच लीजिए कुंवर सा – एक बार जो प्रारंभ हो गया फिर उसकी वापसी नही होगी |”
“हमने सब सोच लिया है – आप बस आरम्भ करे |” कहकर नवल हाथ जोड़कर वापस हो लेता है पर सामने खड़ा शख्स अपनी सपाट आंख से देखता हुआ बुदबुदाता है – ‘अब सब कुछ बदल जाएगा जिसे कोई नही रोक पाएगा..|’
क्रमशः……………
Very🤔🤔👍