
एक राज़ अनसुलझी पहेली – 18
पिछले भाग में अबतक आपने पढ़ा कि लखनऊ में पलक और झलक की शादी की तैयारियां जोरो पर है और उधर जैसलमेर में जहाँ शौर्य इन सब से बेपरवाह है वहीँ नवल कुछ ऐसा कर रहा है जिसकी किसी को कानों कान तक खबर नही जबकि पलक अब तक जान चुकी है कि वह अनिकेत को पसंद करती है पर अब तक उससे कोई संपर्क न होने से वह सब नियति मान स्वीकारती जा रही है वही कोई नटनी का सपना आ आकर उसे कोई संकेत देता उसके जीवन में प्रवेश करता जा रहा है तो अब आगे जानते है कि उन सबके जीवन में इससे क्या बदलाव आएगा….ये शादी होगी या नहीं !! क्या अनिकेत पलक के सामने आएगा या नही !! और भुवन सिंह जो शारदा का पति है वह किस मकसद से वापस जैसल आया है ?? अब हर पाठ में ये अनसुलझी पहेली की खुलती रहेगी गांठ…
अब आगे…
आदमकद आईने के सामने खुद को हर एंगल से देखती हुई झलक खुद में ही मुस्कराती इठलाती कह रही थी – ‘यू टू गुड झलक – उआ पुच |’ अपनी परछाई के लिए फ़्लाइंग किस उछालती झलक हँस पड़ी|
“अब कहाँ चली मैडम |”
आवाज सुन झलक पीछे मुड़कर देखती है, देहरी पर खड़ी पलक उसे ही घूर रही थी|
“माँ ने बोला था न कि तुम्हें उनके संग मार्किट जाना है |” कमर में हाथ रखे एक ओर टेड़ी होती पलक कह रही थी|
“मैं ही क्यों तू चली जा न |” झलक फिर शीशे की ओर मुड़कर खुद को ऊपर से नीचे देखने लगी|
“बताया था न माँ ने कि आज आदर्श भईया मामी जी छोड़ने आने वाले है और मुझे उनके लिए खाना बना कर रखना है इसलिए माँ के साथ मार्किट तुम जाओ – अब समझी कि नही |” तेज आवाज में कहती पलक फिर झलक को घूरने लगी जिसपर उसकी बात का लेशमात्र फर्क नही दिख रहा था बल्कि वह आराम से मुस्कराती हुई उसके पास आकर उसके कंधे पर झूलती हुई कहने लगी –
“प्यारी सीस – मुझे बड़ा जरुरी काम है इशिता से इसलिए उससे मिलने गली तक जा रही हूँ और मेरा काम सबके काम से कहीं ज्यादा जरुरी होता है |”
“अच्छा – तुम्हारी ड्रेस देखकर तो ऐसा लग नहीं रहा कि तुम बस गली तक जा रही हो |” पलक उसका हाथ झटकती उसे ऊपर से नीचे घूरती हुई देख रही थी, वन स्लीवलेस पीस में वह बहुत सजी संवरी लग रही थी|
“ओहो तो क्या चाहती है – होली के कपड़ों में जाऊ उसके घर |” अबकी अपनी ऑंखें गोल गोल घुमाती हुई कहती है|
इस पर पलक कुछ कहने ही वाली थी पर उसकी बात बीच में काटती हुई झलक बोल पड़ी – “देख मुझे देर हो रही है – मुझे जाने दे तभी तो जल्दी वापस आउंगी बाकी तुम संभाल लेना – डियर सीस |” अपना आखिरी शब्द लहराकर बोलती वह एक हाथ से बाय करती हुई हवा में लहराती है तो दूसरे हाथ से बेड के कोने में रखा पहले से ही तैयार पाउच कंधे में लटकाकर उसे अनसुना करती बाहर निकलने लगती है|
“सुन तो मम्मी पापा पूछेंगे तो क्या बताना है उन्हें |” पलक पीछे से बोली|
“अरे कुछ भी अपनी तरफ से बता देना कि मैं जरुरी काम से गई हूँ आ जाउंगी जल्दी|” झलक कमरे से जाती दूर से ही बोली|
इस पर पलक नाराज़ होती हुई बोलती है – “मैं नही बोल रही कोई झूठ समझी..अरे सुना कि नही..!” पलक पीछे खड़ी उसे आवाज लगाती रही और झलक झट से मेन गेट तक पहुँचती बाहर हो गई थी|
वह घर से जल्दी जल्दी भागती हुई बाहर निकली थी ताकि कोई उसे रोक न ले, वह जल्दी ही उसी गली के अंतिम छोर तक जा पहुंची जहाँ उसकी स्कूल की फ्रेंड इशिता रहती थी| आज अपनी पुरानी स्कूल की सहेलियों से मिलने का उसने प्रोग्राम बनाया था| अब वह घर के अन्दर न जाकर इशिता को बाहर से हाथ पकडे पकडे लाई, उसके साथ ही अंशिका भी थी| अब तीनों घर के अन्दर से निकलकर मुख्य सड़क तक आती किसी ऑटो को रोककर उसमे बैठ गई थी| सब कुछ इतनी जल्दी हुआ कि आस पास कहाँ कौन है उनका ख्याल भी नही गया| अगले ही पल वे तीनों किसी अच्छे कॉफ़ी शॉप में बैठी थी, काफी अच्छा और स्पेसियस थी वह जगह| सुबह का समय होने पर भी बहुत ही कम लोग थे वहां और जो इक्का दुक्का लोग थे भी उनका ध्यान भी उनकी ओर नहीं था| वे तीनो अच्छे से तैयार होकर आई थी पर उन दोनों के सूट सलवार पर झलक का वन पीस भारी पड़ रहा था| आज उनके चेहरे कुछ ज्यादा ही चमक रहे थे| वे बात बात पर खिलखिला रही थी|
“कितने कम लोग है न यहाँ !” अंशिका अपनी सरसरी निगाह चारोंओर घुमाती हुई कहती है|
“हाँ और उसका कारण भी देख लो |” अंशिका का ध्यान अपने हाथ में खुले मेन्यु कार्ड की ओर करती हुई इशिता कहती है, इसपर वह भी उसकी उंगली रखे स्थान को घूर कर देखती हुई धीरे से फुसफुसाई – “एक कॉफ़ी 120 की – ऐसा क्या है इस कॉफ़ी में !”
उन दोनों की बात सुनती झलक इत्मीनान से बोलती है – “तुम दोनों इसके रेट की चिंता करना छोड़ो – मैं तुम दोनों को लाई हूँ न तो बिंदास जो चाहे मंगाओ |” चेहरे पर बेपरवाही के भाव लाती झलक मुस्करा रही थी|
“हाँ हाँ अब तू महल की रानी जो बनने वाली है – अच्छा सच सच बता तेरे सो कॉल राजकुमार यहाँ आएँगे न – देख हम बहुत देर नही रुक सकती – हमने अपने घर में बुक स्टाल जाने का बताया है |”
“और ऊपर से आज कामवाली विमला भी नही आई – हमारी मम्मियों का ध्यान अब हमी पर लगा होगा – तेरे घर भी नही आई न विमला !”
अंशिका की सुनती सुनती हुई इशिता बोली – “हाँ नहीं आई – फिर मारा होगा उसके पति ने |”
उन दोनों की मम्मी टाइप बातें सुन झलक अब उनकी ओर झुकती हुई उन्हें चुप कराती हुई फुसफुसाई – “तुम दोनों यहाँ ये बाते करने आई हो – !”
“तो जिस लिए आई है तो वो भी कहाँ है ?” वे दोनों लगभग एकसाथ बोल पड़ी|
इस पर झलक हौले से मुस्कराती अपने मोबाईल की खुली स्क्रीन उनकी आँखों के सामने नचाती हुई कह रही थी – “मेसेज आया है बस अभी आते ही है |”
झलक आज अपनी मोहल्ले की स्कूल फ्रेंड को अपने साथ बाहर शौर्य से मिलवाने लाई थी, मिलवाने क्या वह तो अपनी शान बगारने आई थी| वैसे भी वह उनकी तरह बाराबंकी के ही स्कूल से वही के कॉलेज में पढने के बजाए लखनऊ यूनिवर्सिटी में पढ़ती हुई उनकी नज़रों में खुद को ख़ास बनाए थी| वैसे भी एक छोटे शहर की लड़की के लिए अपने शहर के आस पास जाकर पढना ही अपने आप में बहुत बड़ा अचीवमेंट होता था और उसपर झलक की राजघराने में शादी की बात तो उसे अपनी बाराबंकी की उन सहेलियों के बीच कुछ ज्यादा ही ख़ास बना गई थी| इसी कारण आज वह उन दोनों को जबरन अपने साथ शौर्य से मिलवाले लाई थी, जिसका बढचढ कर वह महिमामंडन भी कर रही थी|
“पता है मैं तो आना भी नही चाहती थी पर शौर्य जी है न मुझसे मिले बिना रह ही नही पाते – रोज हमारी बातें वीडियों कॉल में होती है तब जाकर मानते है |”
“ओहो |”
“हाँ और क्या – आज भी न उन्होंने ही जिद्द किया था मिलने की तभी मैंने सोचा चलो तुम लोगों को भी मिलवा दूँ उनसे आखिर जैसल भी नही आ पाओगी तुम लोग तो यही मिल लो |” झलक अपनी भरसक कोशिश में अपनी ऐठ बनाए हुए थी|
तभी वेटर अदब से उनके कुछ दूर खड़ा होता पूछता है जिसपर झलक उसे चार कॉफ़ी और स्पिरिंग रोल का ऑर्डर देदेती है|
“अरे उन्हें आने तो दो नही तो हमे ही भुक्कड़ समझेंगे |” अंशिका ने वेटर के जाते ही झलक को धीरे से टोका जो फिर से अपने मोबाईल की स्क्रीन में आँखे गड़ाए हुए थी|
इससे पहले कि झलक कुछ कहती सबका ध्यान किसी आहट पर गया जिससे झलक के चेहरे पर कुछ अलग ही चमक छा गई वही बाकि दोनों का मुंह खुला का खुला ही रह गया| शायद अपनी याद से पहली बार ही कोई राजकुमार उनकी आँखों के सामने आया था| शानदार सूट में वह शौर्य था जो अब उसके सामने खड़ा उन्हें अदब से हाथ जोड़कर नमस्ते कर रहा था जिससे वे दोनों बुरी तरह हडबडा गई| इशिता तो खड़ी ही हो गई इसपर झलक जो उसके बगल में थी उसका हाथ पकडे उसे हौले से हिलाती हुई होश में लाने की कोशिश करती है तो वही शौर्य मंद मंद मुस्करा रहा था| उसके बैठते वह भी झलक के बगल वाली चेअर पर बैठ जाता है| बैठते ही उनके बीच कॉफ़ी भी आ जाती है|
“आई होप हमने आपको ज्यादा इंतजार नहीं करवाया होगा -|”
उन दोनों के मुंह से तो कोई बोल नही फूट रहे थे जिससे झलक जल्दी से जवाब देती हुई कहती है – “नही नहीं शौर्य जी – पता है इस समय ट्रेफिक भी बहुत होता है पर क्या करे मेरी सहेलियां आप से मिलना चाहती थी |” वह आँखों से कुछ ज्यादा ही मुस्कराती हुई कह रही थी – “एंड थैंक्स फॉर कमिंग |”
शौर्य अपनी मुस्कान के भीतर समझ रहा था कि क्यों झलक आज के दिन के लिए उसे जिद्द करके बुला रही थी ये सब वह उसकी सहेलियों के सकपकाए चेहरों और साधारण कपड़ों को देख समझ ही गया था| इसलिए वह भी झलक का साथ देता हुआ कहता है – “आप बुलाए और हम न आए ये कैसे हो सकता है |”
ये कहकर शौर्य इस बात की चमक झलक के चेहरे पर पर देख रहा था जो अपनी सहेलियों की ओर आंखे नचाती देख रही थी|
“अच्छा आप हमसे ही मिलने आई है तो चलिए कही और चलते है – |”
शौर्य की बात सुन झलक टेबल पर की कॉफ़ी की ओर इशारा करती हुई पूछती है – “तो इनका क्या करे ?”
शौर्य शब्दों से कुछ न कहकर अपने पर्स से दो हजार का एक नोट निकालकर उसे मेन्यु कार्ड के नीचे दबाते उन सबको अपने साथ चलने का इशारा करता है| वह सब भी बस सब अवाक् उसे देखती उसके पीछे पीछे चल देती है| बाहर आकर शौर्य उन्हें जिस कार की ओर बैठने का इशारा करता है उसे देख कर रही सही कसर भी पूरी हो जाती है| उनके सामने लग्जरी ऑडी खड़ी थी जिसे देखते उन दोनों की ऑंखें फटी की फटी रह गई पर किसी तरह अपने भावों को समेटती वह उन दोनों के आगे बैठते पीछे बैठ जाती है| कार में ड्राइविंग सीट पर बैठते शौर्य व्यू मिरर से पीछे बैठी झलक की सहेलियों का अवाक् चेहरा देख हलकी मुस्कान से स्टेरिंग घुमाता है| झलक के सब मनमुताबिक हो रहा था आखिर ये उसकी वही सहेलियां थी जो कभी बाराबंकी से भी बाहर न निकली थी पर आज झलक की वजह से एक लग्जरी कार का लुफ्त उठा रही थी बस यही धुआ होता चेहरा देख वह मन ही मन खुश थी बाकी शौर्य से मिलना या प्यार व्यार की कसक उससे कोसो दूर थी| ये शादी उसके लिए किसी महंगे खेल स ज्यादा कुछ नही थी| पर उसका अबोध मन नहीं अंता था कि जिस वह साधारण खेल समझ रही है वो उसकी जिंदगी का बहुत बड़ा खेल बनने वाला है| कार किसी मक्खन में गर्म चाकू सी सड़क पर चल रही थी| कोई अहसास ही नही हो रहा था, आरामदायक सीट, ठंडा माहौल और उस पर मंद मंद चलता संगीत का जादू उनकी मुस्कान पर साफ़ झलक रहा था| कार के रुकते जैसे कोई तिलिस्म टूटा और वे कांच की खिड़की के पार का दृश्य देखती रह गई|
“क्या हम आगरा के ताज महल आ गए !!” बरबस ही इशिता और अंशिका के मुंह से निकल पड़ा|
इसपर हलके से उनकी ओर मुड़ता हुआ शौर्य कहने लगा – “माफ़ कीजिए हमने आपको पहले बताया नही पर सोचा कि लखनऊ में जहाँ हम ठहरे है वही आपको ले आता हूँ होटल ताज |”
शौर्य की बात सुन दोनों बुरी तरह झेंपती बस होंठों के अन्दर मुस्करा कर रह गई| कार के पोर्च में रुकते एक दरबान आगे आकर बारी बारी से उनके गेट खोलता है फिर शौर्य उसके हाथ में कार की चाभी पकड़ा कर उन सबको अपने साथ चलने के लिए संकेत देता है| झलक भी अवाक् थी वह इस सरप्राइज के लिए बिलकुल तैयार नहीं थी पर जो हो रहा था उसे बड़ा ही दिलचस्प लग रहा था| उसकी सहेलियों के मुंह से तो बोल ही नही फूट रहे थे वह तो बस संकेतों का पालन करती यांत्रिक भाव से सब कर रही थी| शौर्य झुककर उनसे कुछ समय मांग कर चला जाता है तो कोई वेटर आकर आदर से उन्हें आगे ले जा रहा था| एक बड़े से रिसेप्शन के एरिया को पार कर वे एक बड़े से ग्लास डोर के सामने खड़ी थी जिसमे कोई हैडिल नही था जब तक वे उसे खोलकर उसके पार जाने का सोचती वह वेटर आगे बढ़ गया जिससे वह डोर ओटोमेटिक खुल गया| उस पार तो जैसे कोई जन्नत थी, एक बड़ा सा स्विमिंग एरिया के आस पास कई टेबल चेअर सजी थी और उसी अनुपात में उनके ऊपर छतरी लगी थी| वहां किसी टेबल में उन्हें बैठाकर वह वेटर चला गया| उसके जात जैसे वे सभी होश में आई|
इशिता झलक का हाथ खींचकर अपने बगल की कुर्सी पर बैठाती हुई धीर से फुसफुसाई – “झलक ये कहाँ आ गए हूँ – अगर घर पहुँचने में देर हो गई तो मम्मी तो आज मार ही डालेगी मुझे – अभी तक कोई किताब भी नही ली – अब क्या कहेंगे वापस लौटकर ?”
“अरे वो सब छोड़ो – मैं कोई न कोई आइडिया बता दूंगी – अभी तो बस मजा लो|” झलक य कहकर अब स्वीमिंगपूल की ओर देखने लगी तो तब तक अंशिका ने टेबल पर रखा ब्रोचर देख लिया जिससे उसके बचे होश भी उड़ गए|
“एक चाय 450 की – क्या मिलाते है इस चाय में !!”
अब दोनों उसकी ओर मुड़कर उसके उड़े उड़ हाव भाव देखने लगी| तभी वेटर आकर पानी की छोटी छोटी मिनरल बोतल लाकर उनके बीच रख कर खड़ा रहा| वे समझ गई कि कुछ ऑर्डर चाह रहा होगा| झलक उसकी ओर मुडती उसे अभी भेज देती है|
“झलक चलते है अब |” अबकी अंशिका उसके आगे गिडगिडाई
“अरे अभी तो आए है रुको तो |” झलक अपनी दबी आवाज में उसे चुप कराती है|
“आई एम् सॉरी – हमारी वजह से आपको इंतजार करना पड़ा – |” शौर्य वहां आते बैठता हुआ कहता है – “आपने कुछ ऑर्डर नही किया |”
“नही वो थोड़ा जल्दी है घर जाने की |” झलक धीरे से बोली|
“प्लीज़ थोड़ी देर रुकिए – हमे आपकी सखियाँ की खातिर करने का मौका तो दीजिए |” कहते हुए शौर्य वेटर को जो दो तीन डिशेज का नाम लिखवाता है जिनके नाम उससे पहले उन्होंने नही सुने थे ये उनके हाव भाव साफ़ साफ़ झलक रहा था|
पर झलक खूब मुस्करा रही थी आखिर अपनी सहेलियों के सामने शान बघारने का खूबसूरत मौका जो मिला था उसे|
क्रमशः………
Very very👍👍👍😊👍🤔🤔🤔