
एक राज़ अनसुलझी पहेली – 2
जैसलमेर से वापस आती पलक झलक अपने घर बाराबंकी आ गई अब उन्हें जल्दी से अपनी पढाई पूरी करने के लिए वापस अपने हॉस्टल और लखनऊ यूनिवर्सिटी जाना था तो वे पैकिंग में लग गई| आदर्श उनका ममेरा भाई वापस उदयपुर चला गया अब सब कुछ अच्छा होते उनके पिता वैभव और माँ नीतू ढेर सुकून से भर उठे| सारे रहस्यों की परते खुल चुकी थी ऐसा पलक को लगता जिससे अब उसकी जिन्दगी में सुकून आ गया पर नींद फिर वही अधकचरी सी आती| हर बार जगकर उसे लगता जैसे उसने नवजीवन में कदम रखा हो| यही मनस्थिति के साथ हॉस्टल में उसके एक महीने बीत रहे थे और इस बीच वह और झलक वापस बाराबंकी में अपने घर नही गई| पापा मम्मी ने जिद्द भी नही की क्योंकि उस बीच उनके प्रैटिकल और एग्जाम आ गए थे, उन्हें अपने छूटे हुए बहुत सारे असाइनमेंट भी पूरे करने थे| अनामिका की शादी से वापस आने की वजह से कुछ दिन तो उनका पढ़ने में बिलकुल मन नही लगा लेकिन इतने सारे असाइनमेंट देखते अगले कुछ पल बाद उन्हें कुछ याद नही रहा बल्कि अनामिका को फोन भी करना था ये भी उन्हें ख्याल नही रहा| अनामिका जिसकी पढाई काफी छूट गई थी लेकिन वह अपनी शादी के बाद वापस ही नही आई, बस ये खबर आई कि वह अब अपने पति रूद्र प्रताप सिंह चौहान के साथ पेरिस में है| सबने मान लिया कि अब शायद ही वह वापस आकर अपना फाइनल एग्जाम ही दे| खैर सब कुछ भूलकर पलक और झलक की जोरदार पढ़ाई शुरू हो चुकी थी|
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हॉस्टल में पलक और झलक अपनी पढाई में इतनी तल्लीनता से जुटी रही कि कब एक महीना बीत भी गया उन्हें पता भी न चला और इसका परिणाम भी बिलकुल उनकी मेहनत की तरह रहा शत प्रतिशत| उनकी दोस्त अनामिका वापस नही आई पर अपने रिजल्ट की ख़ुशी में उन्हें ये ख्याल ही नही रहा, वे तो बस अब अपने घर वापस लौट जाना चाहती थी इसलिए बाराबंकी वापस लौटने से पहले वे लखनऊ घूमने का प्रोग्राम बनाती है| उसकी और भी कई फ्रेंड्स थी जो लखनऊ छोड़कर अपने घर वापस जाने वाली थी इसलिए सभी एकसाथ लखनऊ भ्रमण का इरादा करती है| वे एक कैब बुक करके पहले इमामबाड़ा की भूलभुलैया की सीढ़ियों में भटकती खिलखिलाती रूमी दरवाजे से गुजरी और ये देख रोमांचित हो उठी वो किसी रानी के हार का प्रतिरूप है फिर वहां से रेजीडेंसी गई अब आगे सबका मूड जू जाने का हो गया सिवाए पलक झलक के क्योंकि वे वहां पहले ही घूम चुकी थी और बिलकुल नही जाना चाहती थी पर बाकि वहां घूमने को इतनी उत्साहित थी कि लंच तक उसके लिए सबने स्किप कर दिया| आखिर दोनों को समूह की सहमती के आगे अपनी हाँ करनी पड़ी| सभी जू में आती इत्मीनान से घूम रही थी वही पलक झलक झटपट घूमकर किसी बैंच पर आकर बैठ जाती है जहाँ की पिछली यादें आकर उन्हें घेर लेती है|
“पलक तुझे नही लगता जैसे ये कल की ही बात हो जब हम सब साथ में यहाँ आए थे अनामिका, रूद्र जी, कुंवर नवल, कुंवर शौर्य और अनिकेत जी – कितना मजा आया था न !”
झलक पिछला वक़्त याद करती रही पर पलक भी जैसे सच में गुजरे वक़्त में खो गई जब अनामिका की शादी में जाने को वे दोनों कितनी उत्साहित थी और साथ ही कुलधरा के रहस्य को समझने को बेसब्र तब अनिकेत ही था जो हर पल में उसके साथ खड़ा था| सब कुछ किसी लम्बे स्वप्न सा उसके सामने से गुजर गया| अनामिका की शादी रूद्र जी के साथ हो गई और वो इतनी बड़ी रियासत का हिस्सा बनती उनसे दूर भी चली गई| अब सब कुछ धीरे धीरे याद आते पलक को उनकी कमी का अहसास करा रहा था| तब से न अनामिका से उन्होंने बात की और न अनिकेत से ही कोई सम्पर्क हुआ| आखिर अब सब कहाँ होगे और क्या कर रहे होंगे ? अनिकेत जी तो खुद लखनऊ यूनिवर्सिटी का हिस्सा है उसे लगा था कभी कॉलेज आते जाते वह उनसे कभी तो टकरा ही जाएगी पर ऐसा कभी नही हुआ शायद एग्जाम की वजह से अब कॉलेज में बिना एग्जाम कोई आता ही नही था, उनकी तो पीएचडी कम्पलीट होने वाली थी जाने क्या हुआ होगा !! बहुत से सवाल खुद में खंगालती वह झलक की ओर मुडती कुछ कहने वाली थी तभी वह भी उससे पूछने वाली थी और दोनों एक ही प्रश्न एकसाथ बोल पड़ी –
“तेरी अनिकेत जी से बात हुई ?”
अब दोनों एकदूसरे का मुंह देखती कसकर हँस पड़ी|
“लगता है एक साथ हम एक ही बात सोच रहे थे|”
झलक की बात सुन पलक भी मुस्कराती हुई बोल पड़ी –
“हाँ लगता तो ऐसा ही है – वैसे तुझे क्या लगता है अभी सब कहाँ होंगे ?”
पलक की बात सुन झलक बैंच पर अच्छे से पीठ टिकाती सोचने की मुद्रा में बैठती हुई बोलती है – “अनामिका और रूद्र जी तो साथ होंगे और कुंवर शौर्य घुड़सवारी कर रहे होंगे तो कुंवर नवल तो तेरे ख्वाब में डूबे कोई शायरी लिख रहे होंगे और रही पंडित जी बात अगर लखनऊ में नही है तो बाराबंकी में अपने पिता के साथ मन्दिर में कोई यज्ञ या हवन कर रहे होगे और क्या !” कहती हुई झलक अपनी चिरपरिचित खिलंदड़ हँसी से हँसी तो पलक उसकी बात सुन मुंह बनाती बैठ गई|
सच में दोनों को नही पता था कि वे सब कहाँ है !! अब घर वापस लौटने की चाह में इन सब बातों से ध्यान हटाते वे हॉस्टल में अपना सामान पैक करने लगी| उन्हें बस से घर जाना था क्योंकि घर पर पापा की तबियत कुछ खराब थी इसलिए वे उन्हें परेशान नही करना चाहती थी|
अगले दिन सुबह ही वे हॉस्टल से निकलने की तैयारी कर रही थी कि तभी हॉस्टल की वोर्डन की ओर उन्हें तुरंत बुलाने की खबर आई, वे आश्चर्य में डूबी उनके ऑफिस तक पहुंची ही थी कि सामने जिसे देखा उनकी ऑंखें ख़ुशी और हैरानगी से चमक उठी| सामने आदर्श था, उनकी मामी का बेटा| वह उन्हें लिवाने आया था ये देख दोनों ख़ुशी से उछल ही पड़ी लेकिन आदर्श उनकी ख़ुशी देख बिदक गया और आखिर हुआ वही घर लौटने से पहले उन दोनों से जाने कहाँ कहाँ उसकी गाड़ी नही घुमवाई, कभी कुछ खाने तो कभी कुछ खरीदने| ये देख आदर्श उनपर बनावटी गुस्सा दिखाता रहा, आखिर उसकी प्यारी बहनें जो थी|
घर पर उनका जबरदस्त इंतजार किया जा रहा था, वापस आते पापा मम्मी से मिलते वे ढेरों बातें करती रही| अपने किस्से सुनाने को पूरी रात भी कम पड़ गई उन्हें|
“दोनों खाने में मिर्ची ज्यादा खाती हो क्या – तोते की तरह पूरा दिन लगी रहती हो – मुंह नही थकता तुम्हारा – तुम दोनों का जन्मदिन आने वाला है उसमे तुम दोनों को मिर्ची ही देने वाला हूँ वो भी लाल वाली |” आदर्श उन्हें चिढ़ाते हुए बोला पर चिढ़ने के बजाये झलक ख़ुशी से उछलती हुई चिल्ला पड़ी – “अरे हाँ मेरा जन्मदिन आने वाला है |”
“पर मेरे बाद |” उसे बीच में टोकती हुई पलक जल्दी से बोली |
“हाँ हाँ तुम्हारे बर्थडे के चार दिन बाद ही बस |”
उनको आपस में मुंह बनाते देख आदर्श जोर से हँस पड़ा|
पलक के चार दिन बाद ही झलक का जन्मदिन आता था जिसके लिए झलक हमेशा अत्यधिक उत्साहित रहती थी और जाने क्या क्या प्लान बनाती रहती पर इस बार किसी और को भी उनके जन्मदिन का इंतजार था|
माँ के प्यार भरे स्पर्श और घर भर में फैली सुगन्धित अगरबत्ती के बीच आंख खुलते ही पलक को अपने खास दिन का अहसास हो गया| ये माँ ही थी जो सबसे पहले उठकर उसे प्यार से चूमकर उसके जन्मदिन की बधाई देती थी तो वही पापा के गले लगते गिफ्ट की झलक पा लेती वही झलक बर्थडे बम के साथ हमेशा तैयार रहती लेकिन जल्दी ही झलक को उसके बर्थडे का बर्थडे बम का डर दिखा कर आपस में दोनों किसी को भी न मारने का हमेशा वाला प्रोमिस कर लेती, ये उनका हार बार का काम था, ये देख उसकी कमी आदर्श उनकी पीठ पर घूसे जमाकर पूरी करता|
पलक को अपने जन्मदिन का पता नही इस बार कुछ ज्यादा ही इंतजार था| वह सुबह से ही तैयार होकर मंदिर के लिए निकल गई| वह उसी मंदिर पहुंची जहाँ अनिकेत के पिता पुजारी थे| वे उसे देखते ही पहचान गए और जल्दी से उसका प्रसाद चढ़ा कर उसे ढेर सारे आशीर्वाद दे डाले| वह कुछ देर प्रतिमा के आगे हाथ जोड़े खड़ी रही, पंडित जी ओरो क प्रसाद लेते बीच बीच में उसे देख लेते क्योंकि पलक बार बार पलक खोलकर नज़र घुमाकर चारोंओर देख लेती|
“कोई बात है बिटिया – किसी का इंतजार है क्या ?”
अचानक पंडित जी की दुविधा भरी आवाज पर पलक का ध्यान गया तो झट से वह अचकचा गई| उसे इंतजार तो था पर किसे पूछे उनसे उन्ही के बेटे के बारे में, मन अधीर होने पर भी उससे संकोच की सीमा नही लांघी गई|
मन को समेटे आखिर वह वापस लौटने लगी| उस पल एक गहन उदासी उसके चेहरे पर छा गई| वह सच में अनिकेत से मिलने को बहुत ही उत्साहित थी पर अब उसी उत्साह पर पानी फिरता देख चुपचाप ही वापस घर की ओर लौटने लगी तभी अपने विपरीत किसी को हडबडाते हुए पंडित जी ओर उन्हें पुकारता हुआ भागता देख वह थोडा चौंकी|
“अरे अरे रजत इतना हकबकाए कहाँ से आ रहे हो ?”
पंडित जी जिस बात को इत्मीनान से पूछ रहे थे उसे हडबडाते हुए वह तुरंत पूछ बैठा – “अंकल जी अनिकेत कहाँ है – मैं पिछले दस दिन से उसे फोन मिला रहा हूँ पर फोन नही मिल रहा और न ही वह मुझसे मिलने आया जबकि दस दिन पहले उसने मुझसे मिलने को कहा था – है कहाँ ?”
उसकी तेज आवाज अच्छे से पलक तक पहुंची तो वह भी अपनी जगह जम कर रह गई, मन तो हुआ कि पलटकर तुरंत वह भी यही प्रश्न कर ले पर संकोच से वह बात सुनने झुककर अपनी पायल ठीक करने का नाटक करने लगी|
पंडित जी के चेहरे पर अब कोई प्रश्न सा छा गया था| वे सधी हुई आवाज में कह रहे थे – “मुझे भी नही पता – पिछले एक महीने से जाने कहाँ कहाँ भटक रहा है और पिछले पंद्रह दिन से तो कोई संपर्क भी नही हुआ – जाने कहाँ है अनिकेत ?” एक गहरी साँस छोड़ते हुए वे कहते है|
“असल में जब दस दिन पहले बात हुई थी तो उसने अपना पासपोर्ट बनवाने को कहा था पर जा कहाँ रहा है कुछ नही बताया|”
“राम जाने – कुछ समय से ऐसा हो गया नहीं तो बिना कहे तो शहर भी नही जाता था|”
“ठीक है अंकल – अगर मुझसे बात हुई तो मैं आपको बताता हूँ |” वह हाथ हवा में लहराता वापस जाने लगा तो पलक भी बिना समय गवाए तेजी से बाहर की ओर चल दी|
क्रमशः…………………