
एक राज़ अनसुलझी पहेली – 20
बड़ी मुश्किल से कार से सारा सामान निकालने के बाद आदर्श दो पल बैठा ही था कि बाज़ार से नीतू और वैभव सामानों का और पहाड़ ले आए, अब आदर्श को कार से सामान निकालते छोड़कर नीतू अन्दर आकर अपनी भाभी से गले लगकर मिली तो पीछे से कुछ सामान को हाथ में लाते वैभव का चेहरा थकान से लाल हुआ जा रहा था|
“अब से कोई मुझे बाज़ार ले गया अपने साथ तो उसकी खैर नही – आखिर कैसे तुम सब इतने इतने घंटे शोपिंग कर लेती हो मैं तो पागल हो गया – मुझे समझ नही आता जब एक ही दुकान में सब मिल रहा होता है फिर भी लेडिस चार दुकाने जाने क्यों घूमती है और फिर चार दुकानों में देखने के बाद पहली वाली दुकान में जाने क्यों वापस लौट आती है अरे इससे अच्छा पहले ही सामान ले लो न – फिर साथ में ये मैचिंग वो मैचिंग मिलाते मिलाते अपने चेहरे का मिसमैच हो गया..|” लगातार वैभव बोलते बोलते लिविंग रूम में आकर पसर जाते है|
उनकी हालत पर हँसती हुई मामी जी नीतू की ओर देखती हुई कहती है – “मैं तो पहले ही जानती थी तूफान तो अब आएगा |”
“ऐसा है मैं घर पर रूककर आपलोगों के लिए खाना बना दूंगा पर दुबारा कोई मुझे मार्किट जाने को मत बोलना – उफ़ |” एक गहरी सांस छोड़ते कहते हुए उठकर अन्दर के कमरे में जाते हुए बोलते है – “नीतू मैं अपने कमरे में जा रहा हूँ – मुझे वही खाना भिजवा देना |”
वैभव को जाता देख दोनों ननद भाभी एक दूसरे की ओर चहककर देखती है – “अच्छा पहले सामान तो दिखाओ – क्या क्या शोपिग कर डाली |”
“पूछो मत भाभी – बहुत सारा समय तो शादी का लहंगा ढूंढने में लग गया – अमीनाबाद की बेस्ट दुकान का सबसे बेस्ट वाला लहंगा लिया है |” कहती हुई नीतू झलक की ओर नज़र घुमाती हुई देखती है जो पहले ही पैकेट खोलने में मग्न थी|
अगले ही पल एक एक करके दो बड़े बड़े पैकेट खोल कर भौचक देखती हुई कहती है – “माँ गलती से एक ही तरह के दो लहंगे आ गए !”
“गलती से नही – मैं खुद एक जैसा लाई हूँ |” अब वे भी उन लहंगों को प्यार से देखती हुई कह रही थी – “ताकि शादी के दिन एक जैसा लहंगा पहनो तुम दोनों |”
“एक जैसा !!” मुंह बनाती हुई झलक कहती है|
“नीतू पहले तो दुल्हे जुड़वाँ अब जोड़े भी जुड़वाँ ले लिए – |” अपनी भाभी की बात पर नीतू भी कसकर हँस पड़ी|
राजमहल के उस गुप्त स्थान पर आखिरी आहुति भी डाली जा चुकी थी जिसके सामने वो बड़ा द्वार था जिसे कई अभिमंत्रित सूत्र से लगभग ढका गया था| वहां प्रज्वलित लौ की मध्यम रौशनी में वह दरवाजा स्पष्ट नज़र आ रहा था| जिसकी ओर मुंह करके खड़ा पुजारी सरीखा व्यक्ति कुछ मन्त्र बुदबुदाता हुआ अपनी अंजुली में लिए फूल और चावल को उस दरवाजे की ओर उझेल देता है| तभी वह अग्नि कुछ और दहक उठती है| जिससे उसका ध्यान जाता है कि दरवाजे से टकराकर कुछ फूल और चावल अग्नि में गिर गए थे| उस पल उस दहकती अग्नि की तपन उस व्यक्ति की आँखों में भी उसी प्रकार प्रज्वलित हो उठती है| अब उसका समस्त ध्यान उस दरवाजे के धागों में लिपटे ताले की ओर जाता है, बड़ा लोहे का ताला दरवाजे के ऊपर किसी रक्षक की तरह जड़ा था| वह व्यक्ति किसी तरह से उस ताले की ओर हाथ बढ़ाता है पर उसी क्षण हाथ वही रुक जाता है और वह जाने क्या सोचकर हाथ वापस खींच लेता है| फिर वह उस दरवाजे की ओर आखिरी नजर डालकर पीछे हो लेता है| अगले ही कुछ पल में वह उस जगह से निकलकर सीढियाँ की ओर अपने कदम तेज कर देता है| वह उस मंद रौशनी में भी बड़े अभ्यस्त तरीके से सीढियाँ पार कर रहा था| वह सीढियाँ चढ़ते चढ़ते किसी रौशनी युक्त स्थान पर आकर थमा आगे राहों को देखता आगे जाने का रास्ता तय ही कर रहा था कि किसी परछाई को वह अपनी ओर आता हुआ महसूसता है जिससे उसके कदम अब वही ठहर गए थे| वह कदम सीधे उसीके पास आकर रुकते है| वह अचकचाता सामने नज़र उठाकर देखता है, सामने रूद्र था जो उनके सकपकाए भावों को औचक देख रहा था| रूद्र को देखते वह आदमी बेरोक बोल उठा – “कुंवर नवल सा सही नही कर रहे – एक बार अनुष्ठान पूरा हो जाने पर कुछ भी वापस नही होगा अगर वो दरवाजा एक बार खुल गया तो या तो बहुत अच्छा होगा या बहुत ज्यादा ही बुरा..|” आखिरी शब्द तक उसकी आवाज कांप गई थी|
“तो बहुत अच्छा ही होगा हम यही मान लेते है|” रूद्र धीरे से अपनी बात कहता है जिससे सामने खड़े व्यक्ति के हाव भाव उड़े उड़े हो जाते है, उसे लगा था शायद नवल की बात रूद्र को नही पता होगी पर अब उसके चेहरे के भाव बता रहे थे कि उसे किसी भारी साजिश की बू आने लगी थी|
अगले कुछ पल में वे दोनों उस बंद लोहे के दरवाजे के सामने खड़े थे, कक्ष में अभी भी हवन मध्यम जल रहा था जिसकी क्षीण रौशनी में वह बड़ा ताला भयावह लग रहा था| उसी वक़्त उनके पीछे किसी के खड़े होने का आभास होता है जिसे देखने वह आदमी उस ओर नज़र उठाता है तो पाता है वह कुंवर नवल था जो अपनी अग्निय नजरो से उस बंद द्वार को घूर रहा था|
महल के अन्दर जो हो रहा था उससे बेखबर नागेन्द्र जी भुवन को उसका काम समझाते हुए कह रहे थे – “देखो भुवन राणी सा का हुकुम है कि महल के सभी गमलो की देख रेख अबसे तुम्हे करना है पर किसी भी गमले का स्थान मत बदलना समझे |”
वह हाँ में सर हिलाता अपनी नज़र चहुँओर घुमा लेता है|
क्रमशः……..
Very very🤔🤔👍👍👍👍🤔