Kahanikacarvan

एक राज़ अनसुलझी पहेली – 24

पहाड़ी के एक हिस्से में गुफानुमा स्थान में संगमरमर के मदिर का वह छोटा सा चबूतरा था जहाँ रानी साहिबा के साथ अनामिका, शारदा, नंदनी और तीन चार सेविका मौजूद थी| पाली जिले में रानी साहिबा कुलदेवी की पूजा के लिए आशापूरा माता के मदिर में मौजूद अनामिका से कुछ पूजन करवा रही थी जिसमे सहायता के तौर पर शारदा उन्हें कुछ कुछ सामन देती जा रही थी| मंदिर में मौजूद एक पंडित अनामिका की झोली में नारियल और सुहाग का सामान रखते  हुए आशीष देते है| रानी साहिबा पूजन समाप्त कर बाहर आती हुई शारदा को कुछ आँखों से समझा देती है जिससे वह अनामिका के बाहर निकलते पंडित जी से कुछ कहने लगती है| उसकी बात के फलस्वरूप पंडित मन्त्र पढ़कर कुछ रक्षासूत्र उसके हाथो में रख देते है| जिसे एक कपडे में बांध शारदा चुपचाप अपने पास रख लेती है| बाहर आकर वह एक सेविका को घड़े में मंदिर के आंगन की मिटटी लेने का निर्देश देती रानी साहिबा के पास चली आती है, उसे अपने पास आता देख वे कहती है –

“अब हमे बाकी विधि महल जाकर पूरी करनी होगी – चलिए अनामिका |”

वे सभी उनके निर्देश सुन बाहर निकलने लगती है| महल पहुंचकर शारदा पहला काम ये करती है कि उन रक्षासूत्र को निश्चित दरवाजों पर बाँध देती है और साथ में लाइ मिटटी को महल के पूजा स्थान के कोने में रख देती है| सभी के जाते राजमाता शारदा को समझाती हुई कह रही थी – “शारदा अब आपको ये ख्याल रखना है कि आने वाली बिन्दनियाँ भी इस रक्षासूत्र का अनामिका की तरह ही पालन करे – हमे गलती की गुंजाईश नही रखनी है|”

“जो हुकुम सा |” वह आदर से सर झुकाकर अपनी सहमति देती है|

शारदा को जाते देख वे शांत खड़ी कुछ सोचती लगी थी| जब शारदा उनकी आँखों से पूरी तरह ओझल हो गई तो वे अपनी कमर को टटोलकर एक छोटा पाउच निकालती है जिसके अन्दर से वे एक चाभी निकालती हुई उसे हथेली के बीच रखती हुई बुदबुदाती है – “ये हमे विवाह वाली रात को ही करना होगा |” उसे मुट्ठी में कसती हुई वे सामने की ओर दिशाहीन देखने लगती है|

बड़ी ख़ामोशी से पलक उन अँधेरे रास्ते में चली जा रही थी, वह सधे क़दमों से बस चली जा रही थी| अँधेरा इतना घना था चलते पैरों की आहट के सिवा कुछ नज़र नही आ रहा था| पलक अनजान रास्ते पर तेजी से बढ़ी चली जा रही थी कि कोई दबी की आवाज चीखती हुई उसकी ओर बढ़ने लगी, अगले ही पल रास्ते के सामने की ओर कोई धडाम की आवाज के साथ कोई गाड़ी डिवाइडर से टकराई हुई उसे नजर आती है जो पलक का ध्यान अनायास ही उस ओर ले जाती है| लग रहा था उस कार का एक्सीडेंट अभी बस थोड़ी देर पहले हुआ था उसका बोनट एक तरफ से उचककर खुल गया था जिससे धुँआ निकल रहा था, ये दृश्य देख पलक अब उस ओर चल देती है, कुछ भयावह होने का डर साक्ष्य बन उसके सामने खड़ा था, वह कार की ओर बढ़ रही थी बस दस मीटर का फासला रह गया था कि कार का बाई ओर का दरवाजा एक झटके से खुल गया मानों बड़ी देर से सहते दवाब से वह झटके के साथ खुला हो, दरवाजे के खुलते कोई घायल भी अब सड़क की ओर गिरा दिख रहा था, पलक ध्यान से उस ओर देखने लगी| दरवाजे को धकेलता उसका आधा शरीर कार में तो आधा सड़क पर था और सर से कंधे तक खून की धार सी बह रही थी| पलक की ऑंखें अब उस शक्स के चेहरे को पहचानने में लगी थी| घायल चेहरे पर खून इस कदर पसरा था कि चेहरा पहचानना भी मुश्किल हो रहा था| पलक वही ठहरी लगातार उस चेहरे को देख ही रही थी कि उसके चेहरे के भाव में कुछ बदलने लगा| अब तक जहाँ आश्चर्य और संशय के भाव थे वही डर और दहशत समाने लगा, इस डर से उसके हलक से दबी चीख उभर आई और झटके से उसकी ऑंखें खुल गई, अभी भी उसकी आँखों के सामने घना अँधेरा था जिसे ऑंखें फैला फैलाकर वह देख रही थी, झलक उसके बिलकुल बगल में सोई थी जो उसकी चीख सुन हडबडाकर उसकी ओर देखने लगी|

पलक अब उसकी आँखों में झांकती हुई बिफर पड़ी – “झ झलक – वो वो एक्सीडेंट…पता है वो कौन था ….वो अ..अनिकेत…अनिकेत – तुझे नही पता वो वो ..|”

“मुझे पता है वो मर गया है…|” पलक की अधूरी बात झलक सपाट स्वर में पूरा करती है जिसे सुनते पलक के होश ही गुम हो जाते है, वह लगभग रुआंसी होती उसकी ओर देखती रही ऐसा करते पलक हलके से कांपने लगी थी|

“पलक…|” वह एकदम से अपनी आँखों के सामने देखती है, उस पल उसका चेहरा हकबकाया हुआ हो जाता है|

झलक उसे झंझोड़ती हुई कह रही थी – “तू सोती है या बेहोश हो जाती है – कब से उठा रही हूँ |”

पलक ऑंखें झपकाती हुई झलक को देखती हुई सब पुनः स्मरण करने लगती है| उसे अंदाजा हो जाता है कि एक बार फिर उसने सपने में सपना देखा जिसमे वह उठी थी| मतलब सब कुछ एक सपना था, उसका सुनसान रास्ते पर जाना, कार एक्सीडेंट और तेजी से उसके हाव भाव बदल जाते है और उसमे एक उदासी तारी हो जाती है| क्या उसने अनिकेत को घायल देखा और फिर सपने में ही वह उठ कर झलक को यही बता रही थी तब उसने क्या कहा था, ये याद करता उसका मन उन शब्दों को डर से मन में दोहरा नही पाया| झलक अवाक् अभी भी उसका चेहरा देख रही थी|

“क्या हुआ कोई डरावना सपना देखा क्या !!”

झलक पूछती है|

जिससे पलक बस हाँ में सर हिला देती है|

“क्या देखा कोई भूत तेरे पीछे पड़ा है ..|” कहती हुई झलक तेजी से हँस रही थी जबकि पलक के होश उड़े हुए थे आखिर वह कैसे बता दे कि उसने क्या देखा क्योंकि अभी भी उसके मष्तिष्क में झलक की बात गूँज रही थी जो उसने सपने में कही थी|

“व वो झल्लो मैंने एक्सीडेंट जैसा कुछ देखा..|” घबराता स्वर धीरे से उसके कंठ से फूटा |

“अरे तो सपने में देखा न – सपना तो सपना ही होता है|” हमेशा की तरह अपने लापरवाही भरे स्वर में वह बोली|

लेकिन पलक पर सपने का असर अभी भी शेष था जिससे वह चादर में खुद को समेटती हुई धीरे से पलके झुकाती हुई कहती है – “ये सपना सच में बहुत बुरा था – बहुत बुरा |”

“अच्छा कितना बुरा !! किसी के मरने से ज्यादा बुरा क्या होता होगा |”

झलक का स्वछंद स्वर सुन एकदम से उसकी ओर नज़रे उठाकर देखती रह गई पलक|

“चल छोड़ न हमेशा हर बात को बहुत दिल से लेती हो तुम – वैसे भी बड़े बुजुर्ग का मानना है कि किसी को सपने में मरा देखना उसकी उम्र बढ़ा देता है तो मैडम ज्यादा मत सोचो आपने बैठे बिठाए किसी की उम्र को रबड़ की तरह खींचकर बड़ा कर दिया – समझी |”

कहती हुई झलक उससे चादर लेती तय करने लगी, ये देख पलक कुछ पल गहरी गहरी साँसे लेकर छोडती खुद को सयंत करती हुई उठकर बाहर चली जाती है| झलक कमरे में थी और कमरा जल्दी जल्दी ठीक कर रही थी जबकि पलक कमरे से यंत्रवत बाहर जाती सोचती हुई चली जा रही थी कि एकाएक कोई मिश्रित स्वर उसके कानो से टकराया| वह अब आवाज की ओर बढ़ने लगी| आवाज मुख्य कमरे से आ रही थी, गलियारे से बढते हुए कमरे के काफी पास जाकर उसके कदम रुक गए, उसकी माँ की आवाज काफी तेजी से बाहर तक आ रही थी| पलक अब वही खड़ी सुनती रही|

“आपने हाँ भी कर दिया और हमे आज निकलना है – सब कैसे होगा – ?”

नीतू की बात सुन वैभव उन्हें आराम से बैठाते हुए कहने लगे – “बात समझो नीतू – पहले हडबडाओ मत – कल शाम तुम्हारे सामने तो सारी बात हुई और सब सुनने के बाद ही तो मैंने स्वीकृति दी – राजा साहब की अमेरिका में इस महीने के अंत में मेडिकल अपोइंटमेंट है जिसे वे चाहकर भी आगे बढ़ा नही सकती इसलिए बस एक हफ्ता पहले ही सब कार्यक्रम करना चाहती है |”

“पता नही मुझे अब तो बड़ी घबराहट सी हो रही है वैसे भी शादी कुछ ज्यादा ही जल्दी हो रही है उसमे भी अब एक हफ्ता पहले और हो गया – क्या ये ठीक होगा ?” नीतू की घबराई सी आवाज के बाद कुछ क्षण तक माहौल में सन्नाटा छा गया|

“नीतू – क्यों बेवजह परेशान होती हो – जो हफ्ते बाद शादी होनी थी वो बस छः दिन पहले हो रही है और रही तैयारीयों की बात वो तो हम लगभग कर ही चुके है अब जो हो रहा है उसे होने दो |” आदर्श की माँ अपनी ननद को समझाती हुई कह रही थी – “चिंता मत करो – ईश्वर की यही मंशा होगी|”

पलक हैरान खड़ी रह गई अब उसके लिए आगे सुनने को कुछ नही रह गया वह तुरंत छत की ओर चली गई|

“लेकिन हम इतनी जल्दी पहुंचेंगे कैसे ?” नीतू परेशान स्वर में बोली|

“वो सब मैंने सोच लिया है – आज शाम तक हम फ्लाइट से जोधपुर पहुँच जाएँगे फिर वहां से टैक्सी से जैसलमेर – बहुत आराम से सब हो जाएगा|”

“और सामान !!” वह अभी भी दुविधा में थी|

“वो सब आज ही पैकर्स से भिजवा देंगे इससे हमारे साथ ज्यादा सामान भी नही होगा – तुम बस अपनी तैयारी करो बाकि सब मैं देख लूँगा |” वैभव सांत्वना देते हुए मुस्करा दिए पर नीतू के चेहरे पर कशमकश बनी ही रही|

क्रमशः…………

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