Kahanikacarvan

एक राज़ अनसुलझी पहेली – 25

बलुई जमी में वह शान से खड़ा महल अपने आप में यूँ तो बेहद भव्यता लिए था जिसे सजावट ने और भी आकर्षण बना दिया था| महल का हर एक कोना अपनी खूबसूरती में नायाब बना हुआ था| आज लखनऊ से सभी का आना तय था जिससे महल में सरगर्मी कुछ ज्यादा ही बनी हुई थी| हर कोई व्यस्त नज़र आ रहा था| नंदनी कुछ अनमनी सी बैठी हुई थी, उसके सामने एक थाल में फूल रखे थे शायद पूजा के लिए उसे उनका माला बनाना था पर उसका ध्यान उस ओर नहीं था तभी काम से बचकर मौका देखकर भुवन उसके पास आकर बैठ गया| वह इतना ख़ोई थी कि उसे अपने पिता का आना पता ही नहीं चला| ये देख भुवन उसके हाथ से सुई धागा लेता हुआ बोलता है – “म्हारी लाडो का मन न ये करणे का !”

अचानक आवाज से उसकी तन्द्रा भंग होती है और वह चौंककर अपने पिता की ओर देखती है| भुवन अब उस धागे में फूल पिरोने लगा था|

“न बापू |” कहती हुई वह सुई उसके हाथ से लेने लगती है|

“ये देख |” कहता हुआ भुवन एक साथ कई फूल अपनी हथेली के बीच कतार में रखता एक साथ पिरो देता है जिसे देख नंदनी चौंक जाती है|

भुवन अबकी और ज्यादा फूल रखता हुआ सुई से एकसाथ पिरो लेता है जिसे देखकर अबकी नंदनी खिलखिला कर हँस पड़ती है|

नंदनी को हँसता देख भुवन भी मुस्करा देता है| मुस्कराते हुए भुवन उसका चेहरा गौर से देखते हुए पूछता है – “थारी भी शादी होणे वाली है – थे खुश तो है न !!”

ये पूछते हुए भुवन उसके चेहरे के बदलते हुए हाव भाव देखता रहा, इस सवाल से नंदनी सच में अचकचा गई थी| ये देख भुवन अब उसके सर पर हाथ फिराते हुए कह रहा था – “मिह तो बस थारी खुसी चाहूँ – जब थारा जी करे तब म्हारे से  दिल की कह लेना – थारा बापू वो कर सके है जो कोई न कर सके |” कहकर वह बड़े विश्वास से उसकी आँखों में झांकता रहा|

तभी कोई बीप की आवाज से उनका ध्यान एकसाथ टूटता है, आवाज पहचानता भुवन अपने कुर्ते की जेब से मोबाईल निकालकर उसको देखता है| ये देख नंदनी खुश होती हुई पूछती है – “बापू बड़ा अच्छा मोबाईल है -|”

“ले देख ले |” मोबाईल उसकी ओर बढ़ा देता है|

नंदनी उसकी स्क्रीन में उंगली फेरती स्क्रोल करती हुई बोलती है – “माँ से बोला था म्हारे को दिला दे मोबाईल पर नही दिलाया |” वह बच्चों सा मुंह लटकाती हुई कहती है|

इससे पहले कि भुवन कुछ कहता शारदा वहां आ गई और आते उनको देख उसकी भौं चढ़ गई| माँ को सामने देख नंदनी जल्दी से मोबाईल भुवन की ओर बढ़ाती हुई सुई उठा लेती है| भुवन भी उसे देख कुछ ज्यादा मुस्करा देता है|

“नंदनी जल्दी से कर लो – मैं बार बार आकर थारे को याद नही दिला सकती |”

शारदा की बात सुन भुवन जल्दी से फूलो की ओर मुड़ता हुआ कहता है – “लाओ लाडो मिह मदद करता हूँ |” कहकर वह फिर कई फूल हथेली में क्रम से रखता एक साथ सुई में पिरो देता है जिसे देख नंदनी एक बार फिर खिलखिला पड़ती है| पर शारदा ये नीम करेला की तरह अपनी आँखों में किसी तरह से उतारती वापस चली जाती है|

नीरव सन्नाटे में सिर्फ आवाज से पता चल रहा था कि रूद्र नवल से कह रहा था – “नवल आज ही हमारे पास समय है फिर आप विवाह में बिज़ी हो जाएँगे – आपको क्या लगता है आज वो द्वार खुल जाएगा !!”

अँधेरे में नवल की आवाज गूंजती है – “आप फ़िक्र मत करीए – हमने जो भरोसा आपको दिया है – उसको जरुर हम पूरा करेंगे – |”

फिर अँधेरे में साँसों के उतार के साथ हांमी की आवाज उभरी फिर विपरीत दिशा में पदचापो की आवाज उभरी जिससे पता चला कि रूद्र और नवल अलग अलग दिशा में चले गए| नवल उन्ही काली सीढियों को अँधेरे में ही पार करके नीचे के गलियारे में आ चुका था जिसके मुहाने से हलकी सी रौशनी आ रही थी| नवल उसी ओर तेजी से कदम बढ़ा देता है| कुछ ही पल में रौशनी तक पहुंचकर वह किसी कमरे में प्रवेश करता है, उसके अन्दर आते एक टन की आवाज गूंजती है जो शायद दरवाजे के कोने में टंगी घंटी की आवाज से आई थी| नवल उस आवाज पर ध्यान दिए बिना अन्दर आता हुआ सामने देखता है, जहाँ हवन कुंड जल रहा था और उसके सामने बैठा व्यक्ति आंख बंद किए मन ही मन कुछ कुछ बुदबुदा रहा था| नवल के उस कुण्ड के सामने रुकते वह व्यक्ति झटके से अपनी ऑंखें खोलता सामने की ओर देखता हुआ सख्त आवाज में कहता है – “कुंवर सा आज आधी रात इस द्वार के खुलने का सटीक समय है – मैंने अपना अनुष्ठान पूर्ण कर लिया है – आज रात द्वार खुलने से कोई शक्ति नही रोक पाएगी लेकिन..|”

“लेकिन क्या..!!” नवल भी उतने सख्त भाव से पूछता है|

“द्वार के खुलते आप अन्दर जा पाएँगे ये मैं नही कह सकता |” वह व्यक्ति अभी भी द्वार की ओर देखता हुआ कह रहा था|

नवल उसे अजीब निगाह से देखता हुआ पूछ उठा – “मतलब !! आप जानते है हमे क्या चाहिए फिर द्वार खुलने का क्या फायदा !!”

“कुंवर सा मुझे जैसा लगा मैंने बता दिया हो सकता है ऐसा न हो |”

“तो फिर किस बात की देरी है ?”

“कोई देरी नही – आपने जैसा कहा मैंने किया – मैंने अपना समस्त ज्ञान इस अनुष्ठान में झोंक दिया है |”

इस बात पर नवल थोडा चहलकदमी करते हुए कहता है – “तो आपको भी अपने मतलब का मिल रहा है न – राजगुरु जी – ये मत भूलिए इस द्वार के पीछे सबका मतलब पूरा हो रहा है – खैर हम आधी रात मिलते है आपसे फिर आगे का सोचेंगे |”

राजगुरु अब कुछ नही कहते तो नवल तुरंत ही वापसी की ओर मुड़ जाता है| मुड़ते हुए उसके मष्तिष्क में ढेरों तरह के विचार कौंध रहे थे, वह खुद को ही आश्वस्त कर रहा था कि आज रात उसका मकसद पूरा हो जाएगा फिर भी कही न कहीं कुछ शंका सी उसके मन में चल रही थी वह खुद से ही बातें करता चला जा रहा था – ‘हमने अष्टधाई पुस्तक में अच्छे से पढ़ा है और उसके अनुसार उस द्वार के खुलने में कोई बाधा नही आनी चाहिए – हमने चाभी भी बनवा ली है फिर राजगुरु जी को शंका क्यों है, हमे एक बार फिर उस किताब को दुबारा से खंगालना चाहिए |’ सोचते हुए तय करता नवल अब तक उन सीढ़ियों को पार करके बाहर आ गया था, बाहर आते वह आस पास देखता किसी के न होने को सुनिश्चित करता महल के उस हिस्से से बाहर आ जाता है|

वक़्त अपनी रौ में बहता धीरे से शाम के धुंधलके में वो वक़्त ले आया जिसका पूरे राजमहल के लोगों को इंतज़ार था| पलक झलक को परिवार रिश्तेदारों के साथ आते उनका पूरी गर्मजोशी से स्वागत होता है| अनामिका तो दौड़कर दोनों के गले लग जाती है| अगले दिन से मेहँदी और हल्दी की रस्म साथ होनी थी और उसके अगले दिन विवाह तय था| ये उस महल और पलक के परिवार के लिए उनके जीवन की देखी शादियों में की सबसे जल्दी वाली शादी थी लेकिन राजा साहब की तबियत के बारे में पता चलने के बाद से सभी को सब स्वीकार्य था|

अनामिका तो दोनों को एक ऐसे कमरे मेले गई जहाँ जेवरों और कपड़ो का बाज़ार सा सजा था जिसकी ओर इशारा करती अनामिका झूमती हुई कह रही थी – “तुम दोनों को अपने पास देख हम बता नही सकते हम कितने खुश है – ऐसा लगता है जैसे एक बार फिर वो समय आ गया जब हॉस्टल में हम तीनो साथ में थे – |” वह इतनी खुश थी कि बार बार  दोनों के गले लग जाती|

“झलक तुम्हारे लिए एक सरप्राइज है |”

सरप्राइज सुन झलक की आँखों में चमक सी उतर आती है|

“एक बार हमने वादा किया था न कि तुमको राजस्थानी लहंगा लाकर देंगे – क्या पता था कि ऐसा इस तरह होगा – देखो ये हमने तुम दोनों के लिए लिया है और इसके साथ रखडी, आड़, हंसली, रानी हार…|” अनामिका एक एक जेवर की ओर उनका ध्यान दिला रही थी पर पलक का ध्यान उधर था ही नहीं, वह तो अपने ख्याल में गुम थी| ये देख अनामिका को लगा कि शायद सफ़र की थकान होगी|

“ओह लगता है हम कुछ ज्यादा ही जोश में आ गए – चलो तुम लोग आराम करो – चलो हम ले चलते है|” वह कमरे से बाहर निकलते बाहर आकर इधर उधर देख ही रही थी कि जाने शारदा कहाँ से आ गई, से देख कमरे की ओर वह इशारा करती है जिससे शारदा अपना काम समझती उसे इत्मीनान से जाने को कहती है| अनामिका जिस बात पर आश्चर्यचकित थी वो शारदा का काम था चौकसी रखना वह वही कर रही थी|

झलक जहाँ ख़ुशी में दोहरी हुई जा रही थी तो वही पलक का मन डूबा जा रहा था| वह एक तरफ सभी को खुश देख रही थी वही दूसरी ओर वह जिस दर्द में थी उसकी किसी को कोई खबर ही नहीं थी| वह बस कठपुतली सी सभी की बात मान रही थी उसका अपना मन तो पूरी तरह से मर गया था| जैसे कोई बिन आत्मा के देह बस चली जा रही थी|

आधी रात समय पर नवल उसी द्वार के पास खड़ा था, उसके हाथ में कोई किताब थी जिसके बीच में उसकी उंगली फसी थी| राजगुरु पूजा के फूल और लाल चावल उस द्वार पर मन्त्र पढ़ते हुए डाल रहे थे| नवल की एक दृष्टि उस द्वार पर थी तो दूसरी दृष्टि अपनी कलाई घड़ी पर थी|

“गणना के अनुसार मूल नक्षत्र की यही घडी है – आप 12 12 12 में ताले में चाभी को लगाए – द्वार जरुर खुलेगा |” राजगुरु कह रहे थे|

“हाँ हम समय देख रहे है बारह बजकर बारह मिनट और बारह सेकेण्ड में – चाभी हमारे पास है |” कहता हुआ नवल अपनी हथेली खोलकर उनकी नज़रों के करता हुआ कहता है|

नवल फिर से घडी की ओर देखता राजगुरु की ओर देखता है वे ताले के ऊपर से धागों को हटा रहे थे| धागों को हटाते नवल अब उस ताले की ओर झुक जाता है| हवन कुंड की हलकी रौशनी में वह ताले के छिद्र से एक परत हटाकर उसमे चाभी डाल कर घुमाता है| वह चाभी एक बार..दो बार…तीन बार घुमाते एक खट की आवाज आती है, उस आवाज के साथ नवल के चेहरे पर हलकी मुस्कान आ जाती है जबकि राजगुरु के चेहरा सन्न रह जाता है|

क्रमशः………..

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