
एक राज़ अनसुलझी पहेली – 26
अब तक आपने कहानी में पढ़ा कि नवल किसी रहस्यमय दरवाजे को खोलना चाहता है जिसके अंदर जाना उसकी मंशा है साथ ही उसके उद्देश्य में राजगुरु के साथ साथ रूद्र का भी हित मिला है….वही पलक अब पूरी तरह से अपने जीवन के प्रति निराश हो चुकी है…एक तरफ न अनिकेत से वह कोई संपर्क कर पाई वही दूसरी ओर अजीब सपने उसे चैन से रहने नही दे रहे….वही राजघराना साजिशो का जमघट बना है…राजमाता भी शादी वाली रात कुछ विशेष करने वाली है…तो वही भुवन अपनी बेटी नंदनी का मन समझ रहा है कि नवल के प्रति वह आसक्त है…अब आगे पता चलेगा कि क्या कुछ बदलने वाला है इन सबके जीवन में…..!!
नवल एक हाथ से ही ताला खोल रहा था| ताले के अन्दर से खट की आवाज के साथ नवल के चेहरे पर एक मुस्कान सी छा गई जबकि राजगुरु हतप्रभता से उस ओर देख रहे थे| अपने जीवन के पैतालीस बसंत देख चुकी उनकी नज़रों के लिए अब तक का सबसे अद्भुत नज़ारा था और ये बात उनके चेहरे के हाव भाव से साफ़ साफ़ झलक रही थी| अचानक नवल के हाव भाव से मुस्कान गायब होकर हैरानगी के भाव आ गए| वह पलटकर पीछे राजगुरु की ओर देखता है| इससे आपस में उनकी निगाह मिलती है और साथ में दोनों कह उठते है – “ये खुला क्यों नही !!”
नवल अब अपने दूसरे हाथ में पकड़ी किताब राजगुरु की ओर बढ़ाकर अपने दोनों हाथों से थोड़ी और जोर अजमाइश करता है पर नतीजा वही रहा, ताला जैसा का तैसा लगा रहा| ये देख नवल चाभी वापस खींच लेता है|
“ये खुला क्यों नही जबकि चाभी पूरी घूम गई अब चाभी तो गलत नही हो सकती |” नवल उनकी ओर पूरी तरह से घूमता हुआ धीरे से बोलता है|
“ओह मुझे यही डर था !! मेरा मन पहले ही कह रहा था कि कुछ तो रह गया है|”
राजगुरु की बात सुन नवल जल्दी से पूछता है – “क्या रह गया – हमने तो बिलकुल वही किया जो किताब में था – फिर …!!”
“कुछ तो रह गया है क्योंकि ये अभिमंत्रित दरवाजा है – सिर्फ ताले को खोलने से नही होगा – आप एक बार फिर देख लीजिए – मुझे गणना में कोई भूल लगती है|”
ये सुन नवल कुछ पल खामोश बना रहा फिर चाभी अपनी पॉकेट के सुपुर्द कर उनके हाथ से किताब लेता हुआ कहता है – “ये असफलता नही सिर्फ एक प्रयास का खत्म होना है – हम जल्दी ही मिलते है |” ये कहते हुए नवल के चेहरे के भाव सख्त हो उठते है|
अब नवल वहां से चला जाता है, उसके जाते राजगुरु कुछ क्षण तक दरवाजे को एकटक देखते रहे फिर झुककर निश्चित स्थान से एक झोला उठाकर उसे अपने कंधे में डालकर वे भी बाहर निकल जाते है| वह बड़ी सावधानी से बाहर निकल रहे थे| उनके निकलने से पता चल रहा था कि वे यहाँ के चप्पे चप्पे से वाकिफ थे| आधी रात के अँधेरे और अपनी सतर्कता वे जल्दी ही महल के पीछे की झाड़ियों के पास आ गए अब वहां से महल के उस भाग की ओर चल दिए जहाँ राजवंश के अलावा के व्यक्तियों का निवास स्थान था|
वे अपने घर के अन्दर आने के लिए पहले से उड़के किवाड़ को धीरे से खोलकर अन्दर आते किवाड़ बंद कर लेते है| वह एक नज़र अपने चारोंओर घुमाकर देखते है, कमरे में अँधेरा छाया था ये देख वे हाथ से टटोलकर स्विच ऑन कर देते है| अब कमरे में भरपूर रौशनी थी जिससे पूरा कमरा स्पष्ट नज़र आ रहा था| उनकी नजर अब कमरे के उस छोर पर जाकर अटक गई थी जहाँ बिस्तर पर कोई पड़ा हुआ था, वे उस ओर आते बिस्तर के सिरहाने आते उस देह की ओर झुक जाते है| वह कोई लड़की थी जो चेतन शून्य पड़ी थी| वे अब उसका माथा सहलाते धीरे धीरे बुदबुदा रहे थे – ‘’बस कुछ पल और फिर मैं तुम्हें हमेशा के लिए पहले सा हँसता मुस्कराता देखूंगा – हाँ बहुत जल्दी |’ कहते हुए उनकी आवाज भर्रा जाती है जिससे वे शांत होते बस एकटक उसको देखते रहे|
नवल वापस आकर अपने कमरे में बेचैनी में टहलता हुआ बुदबुदा रहा था – “ये कैसे हो सकता है ? सब कुछ तो किया हमने फिर भूल कहाँ रह गई – शायद एकबार फिर से हमे सब समझना होगा – हाँ यही करना होगा |’ विचारता हुआ नवल उस ओर बढ़ जाता है जहाँ किताबो की रेक के पास की गोल ऊँची टेबल पर लाल कपडे में बंधी कोई पुस्तक रखी थी| वह पुस्तक को निरावृत कर उसके पृष्ट पलटने लगता है| काफी देर वह पुस्तक के पन्ने पलटते हुए उसे गौर से देखता रहा|
“नवल..|” तभी कमरे में रूद्र आते हुए उसे पुकारता है पर नवल किताब में इतना तल्लीन था कि उसका आवाज पर ध्यान ही नही गया| ये देख रूद्र उसके पास चलता हुआ आता है और ठीक उसके पास खड़ा होकर उसके कंधे पर हाथ रखता है| जिससे नवल चौंककर उसकी ओर देखता है क्योंकि रूद्र का आना वह नही जान पाया था|
“भाई सा – हमे दो दिन और प्रतीक्षा करनी होगी – आज से दो दिन बाद वही नक्षत्र है जो पूरे सत्ताईस साल बाद बन रहा है ओर तभी वह द्वार खुलेगा इसलिए बस भाई सा दो दिन का और इंतज़ार |”
“लेकिन नवल दो दिन बाद तो आपकी शादी है तब ये कैसे संभव होगा ?”
ये सुनते नवल की भौं आपस में जुड़ते सोच ही स्थिति में आ जाती है |
“और आपके बिना तो हम कुछ कर भी नही सकते |” कहता हुआ रूद्र परेशान हो उठा|
“हमारे पास बस वही एक दिन है इसलिए ये तो करना ही है पर कैसे ये सोचना पड़ेगा |”
रूद्र हैरान नवल का चेहरा देख रहा था|
“भाई सा आप अब सब हम पर छोड़ दीजिए और सही वक़्त का इंतज़ार करिए बस |” वह आँखों से भरोसा देता है जिससे आश्वस्त होता रूद्र कमरे से बाहर चला जाता है|
रात के बीतते दिन का उजाला हो गया पर पलक के मन में जैसे रात हटी ही नही इसलिए उदास सी वह लेटी रही जबकि झलक कमरे की खिड़की से दूर दूर तक का महल देखती चहक रही थी| शादी अगले दिन ही थी इसलिए आज ही हल्दी और मेहँदी की रस्म होनी थी| जिसके लिए झलक जहाँ उत्साहित थी वही पलक बुझी हुई पड़ी थी| पर पलक की हालत से बेखबर उनकी माँ का भी उत्साह चरम पर था| वे हल्दी सेरेमनी की तैयारी में लगी थी|
शादी की रात आखिर क्या लाएगी…क्या ये राज सुलझेगा या ये पहेली और उलझ जाएगी…इन सवालों का जवाब के लिए पढ़े कहानी का अगला भाग…
.क्रमशः…
Very very🤔🤔👍👍🤔🤔🤔