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एक राज़ अनसुलझी पहेली – 27

केसरिया बालम आवोनी, पधारो म्हारे देश जी…

केसरिया बालम आवोनी, पधारो म्हारे देश जी..

पियाँ प्यारी रा ढोला, आवोनी, पधारो म्हारे देश..

पिया तुम्हारा इंतज़ार कर रही हूँ आओ अब आ भी जाओ…गीत मन में हिलोरे जगाता भावनाओ को आंदोलित कर रहा था| मरूभूमि में सारंगी की धुन के साथ ये बोल मानों कण कण से फूट रहे हो| इसी संगीतमय माहौल में हल्दी की तैयारियां हो रही थी, सुबह मानों गुलाबी नहीं बल्कि केसरिया होकर आई हो| जिधर भी नज़र जाती केसरिया रंग हवाओं में घुला हुआ नज़र आता| सजावट से लेकर सबके कपडे भी जैसे बता रहे थे कि आज क्या है| आज सबका मन गुलाबी तो तन केसरिया हुआ जा रहा था, पुरुष केसरिया पगड़ी पहने थे तो स्त्रियाँ केसरिया लहरिया पहने इठला रही थी| आज पलक झलक और नवल शौर्य की हल्दी की रस्म हो रही थी| महल का आधा वह हिस्सा जो होटल में तब्दील था उसका सत्तर फीसदी हिस्सा पलक के परिवार के लिए रखा गया था| वे सभी वही अपने कार्यक्रम कर रहे थे तो ख़ास महल के हिस्से में नवल और शौर्य मौजूद थे| अनामिका के चेहरे पर तो जैसे बसंत खिल आया था, अपनी ही सखियों को अपनी देवरानी के रूप में सोचते उसका मन खिल उठता था| इससे उसका एक पैर मुख्य महल में होता तो दूसरा पलक झलक के पास दौड़ जाता पर रानी सा के नियंत्रण के चलते वह ज्यादातर नवल और शौर्य के कार्यक्रम में बनी हुई थी| पलक और झलक की हल्दी के बाद मेहँदी भी लगनी शुरू हो गई| नीतू अपनी दोनों बेटियों को देख निहाल हुई जा रही थी तो उनसे बिछड़ने का सोचते कभी उसकी आँख भर आती| एक माँ के मन का यही हाल होता है अपनी जान-निसार बेटियों को अपने हाथों से तैयार कर पराया करने की रस्म भी क्या रस्म होती है !! पलक की सुनहरी काया हल्दी से और निखर आई थी, पर उसका मन सियाह हुआ जा रहा था| मन हर पल नाउम्मीदी की ओर बढ़ रहा था लेकिन वह इतनी मजबूर थी कि कुछ कह नही सकती थी, वह जानती थी कि अब बात झलक के जीवन की भी थी और रिश्ता इतना आगे बढ़ने पर उसके कदम पीछे करते उसके परिवार की इज्जत भी दाँव में लग जाएगी फिर भी अपनी मुट्ठी के बीच फंसी किसी चीज को वह चुपचाप देखकर उसे सबकी नज़रों से छुपा ले जाती है|

आखिर सारा कार्यक्रम पूर्ण करके अगले दिन की शादी की तैयारिओं में पूरा राजमहल लग गया| आज की रात बहुत विशेष थी सबके लिए| जहाँ शादी की सारी तैयारी हो रही थी वही नवल को आज रात उस दरवाजे के खुलने की उम्मीद भी थी| शारदा अपना काम कर चुकी थी उसने सभी निकासी द्वारों में रक्षासूत्र बांध दिया था साथ ही पलक और झलक के साथ रिवाजो की हिदायत के लिए नंदनी को उनके पास भेज दिया था| झलक के पास जहाँ अनामिका थी वही पलक के पास नंदनी बनी हुई थी| ये बात अलग थी कि नंदनी का पलक को देखना कतई गंवारा नही हो रहा था पर अपनी माँ के हुकुम के आगे उसकी कहाँ चलती थी| पलक ने अपनी माँ का लाया लाल जोड़ा पहना हुआ था, उनकी माँ चाहती थी कि झलक भी वही जोड़ा पहने पर उसे तो अनामिका का लाया राजस्थानी जोड़ा पहनने का मन था| उसके उतावले मन को देख नीतू ने कुछ नही कहा|

नंदनी पड़ला की तैयारी करती गलियारे से होती पलक के पास जा रही थी, उसके हाथों के बीच सामान था| वह अपनी ही सोच में गुम चली जा रही थी| उसे आभास ही नहीं कि उसकी विपरीत दिशा से रचित आ रहा था, उस वक़्त वह सजावट की तैयारी देखने के ख्याल से उधर आ रहा था| दोनों विपरीत दिशा से आते हुए अचानक एक जगह एकदूसरे को देख अपने स्थान पर अटके रह जाते है| रचित चौंककर उसकी ओर देखता है वही नंदनी नज़र चुराकर चली जाना चाहती थी पर उसके ठीक सामने खड़े होने से वह अब छुपी नज़र से उसकी ओर देख रही थी| दोनों की मंगनी हो चुकी थी बस शादी होनी शेष थी लेकिन ये कोई प्रेम विवाह नहीं था इसलिए दोनों एकदूसरे के प्रति अजनबी ही बने रहते| रचित जिसके ताऊ दिग्विजय जी ने अपने छोटे भाई और भाभी के देहावसान के बाद से रचित की जिम्मेदारी खुद उठा रखी थी| वे भी अपने जीवन में अकेले ही थे| संतान कोई थी नहीं और पत्नी के आकस्मिक देहांत के बाद से रचित ही उनके जीवन का एक मात्र सहारा था तो वही राजमहल उनकी अन्तोगत्वा शरणस्थली| रचित स्वभाव से बेहद शांत और सुलझा हुआ था, दिल्ली में पढाई करके वहां नौकरी करने के बजाये अपने ताऊ जी के पास आना उसने ज्यादा उचित समझा| इसी अधिकार के चलते दिग्विजय जी ने रचित का विवाह उससे बिना पूछे नंदनी से तय कर दिया जिसे सहर्ष रचित से स्वीकार कर लिया| अपनी मंगनी वाले दिन के बाद से शायद ही कभी वह नंदनी के सामने आया होगा क्योंकि उसका काम राजमहल के होटल वाले हिस्से में था जबकि नंदनी ज्यादातर ख़ास महल में रहती थी|

दोनों की नज़रे मिलते रचित औपचारिकता से हलके से मुस्करा कर आगे बढ़ जाता है| उसके जाते नंदनी चैन की एक सांस छोडती आगे बढ़ जाती है|

राजमहल के ख़ास महल में अलग ही सरगर्मी थी, पर इन सबके बीच भुवन अपना पसंदीदा काम कर रहा था वो था हर जगह ताकाझांकी करके कौन क्या कर रहा है इसका पता लगाना| यही कारण था जिसके कारण उसे राजमहल से बाहर रखा गया था| शारदा भी उसकी इस आदत से परेशान हो चुकी थी पर कहते है न कुत्ते की पूँछ भी कभी सीधी हो जाने की उम्मीद थी पर भुवन के सुधरने की उम्मीद बेमायने थी|  

वही अनामिका झलक को राजस्थानी लिबास पहनने में मदद कर रही थी| उसके साथ वहां दो सेविका और भी थी मदद के लिए फिर भी आज अनामिका झलक को अपने हाथों से तैयार करना चाहती थी| वह पलक के पास भी गई थी पर उसके आने से पहले ही पलक लहंगा पहन चुकी थी और बाकी की सेविकाए उसे तैयार कर रही थी| इसलिए वह झलक के पास वापस चली गई और शायद इस वक़्त पलक भी यही चाहती थी क्योंकि इस वक़्त उसके मन में क्या चल रहा था कोई नही जानता था|

झलक को तैयार करते करते अनामिका कह रही थी –

“याद है झल्लो हॉस्टल में जब तानिया के ग्रुप ने तुम्हारा लहंगा ले लिया था तब हमने कहा था न कि तुम्हारे लिए मैं लहंगा लाऊंगी पर कभी ये इस तरह होगा ये सोचा ही नहीं था|”

ये सुन झलक पहली बार शरमा कर मुस्करा दी|

“लाओ हम सब पहनने में तुम्हारी मदद करते है – ये ओढना बाद में लेना पहले बांगडी पहन लो |” अनामिका जानती थी झलक के लिए ये सब नया था इसलिए वह उसे सब बताती भी जा रही थी – “ये चूड़ा सबसे इम्पोर्टेंट होता है – जब लाखड़ी की रस्म होगी तब बाजु भरकर और चूड़ा पहनाया जाएगा |”

“क्या सच में !!” ये सुन झलक का स्वर यूँ हो आया मानों अभी वह जेवर और कपड़ो के बोझ से दबी जा रही हो|

अनामिका उसे चूडा पहनाती हुई उसकी बाजु में लूम बांधती है जिसे झलक अचरच भरी नजर से देख रही थी|

“ये सब तो मुझे पहनना भी नही आएगा |”

झलक की बात सुन अनामिका हँसती हुई कहती है – “आज से म्हारे जैसल की बिन्दनी होने की आदत डाल लो |” ये सुन बाकी की सेविकाएँ भी धीरे से मुस्करा दी|

नथ पहनते झलक जैसे सच में कुछ और हो गई, वह खुद को आदमकद आईने में देखकर शरमा दी| जेवरों से लदी वह आज बेहद सुन्दर राजकुमारी लग रही थी|  उस एक पल उसे अपने भावी जीवन का ख्याल आ गया कि कैसे अगले पल से उसके जीवन में सब कुछ बदल जाएगा| क्या सच में वह इस नई जगह ढल पाएगी !! आइना देखती वह सोचती खड़ी रह गई|

इस एक रात सब कुछ बदल रहा था| रूद्र शौर्य और नवल को दूल्हा बनते देख रहा था| वे सजीले राजकुमार अपनी बारात के लिए तैयार थे| चारोंओर संगीत की सुरलहरी छाई थी| आज उस आलिशान बारात को पूरा महल देख रहा था जिसे देखने कई विदेशी चेहरे भी आए थे| बारात हाथी और लश्कर लाब के साथ तैयार थी| यूँ तो बारात राजमहल के एक हिस्से से दुसरे हिस्से तक ही जानी थी पर उसे देखने का हुजूम लगा था|

पलक तैयार होकर आईने के विपरीत ख़ामोशी से बैठी थी| बारात की आहट पर सभी बारात की शान देखने बाहर निकल गई| अब कमरे में नंदनी और पलक की रह गई थी जिनके बीच बात न के बराबर थी| इस वक़्त पलक के मन के क्या चल रहा है कोई नही जानता था| उसके मन में ढेर उथल पुथल मची हुई थी| बीती रात का सपना किसी दंश सा उसे चुभ रहा था| सपने में अनिकेत को घायल देखना और फिर सपने में ही झलक का उसे मृत बताना उसके मन में किसी शूल सा चुभा रह गया था| उसका मन खुद में ही बुदबुदा रहा था –‘मुझे लगता है अनिकेत सच में नहीं है नही तो क्या वे मुझसे मिलने एकबार भी न आते – अरे न मुझसे प्यार सही पर एक बार तो आते – लगता है सच में उनके साथ कुछ बहुत बुरा हो गया है – अब ये जानने के बाद मेरी सारी उम्मीद ही खत्म हो रही है – आखिर एक जबरन का रिश्ता मैं कैसे निभा पाऊँगी – नहीं मुझे अब वही करना होगा जो एक सच्ची प्रेमिका को करना चाहिए – अपने प्रेम में आत्मलीन हो जाना |’ मन ही मन तय करती पलक अन्दर से एक हिल्की भरती है|

नंदनी जो इस वक़्त कमरे में ही थी पर उसका सारा ध्यान कमरे से बड़े झरोखे के पार नवल को देखने में लगा था, मन ही मन बार बार नवल के पास दौड़ जाती| बचपन से जिसे मन ही मन चाहती आ रही थी आज उसकी शादी किसी और के साथ होते देखना उसके जीवन का सबसे बड़ा दुःख था पर इस बात को कहाँ वह किसी से जाहिर कर सकती थी| माँ को पता चल गया तो पता नही कौन सा तूफान आ जाएगा ये सोचती वह अपनी डबडबाई नज़रे पलक की ओर करती है| पलक उसे लेटी हुई दिखती है|

‘शायद थक कर लेट गई’ ये सोचती वह उसके पास आती एक उडी सी नज़र उसकी ओर डालती वापस झरोखे के पास जाने लगी पर तभी उसे लगा उसने कुछ अलग देखा जिससे वह अब पलक की ओर गौर से देखने लगी| पलक अजीब तरह से लेटी थी| वह पलक को नजदीक से देखने आई तो उस पल लगा उसके पैरों तले जमी ही सरक गई| वह झट से उसके चेहरे पर से ओढ़नी हटाकर देखती है तो उसकी सिसकारी निकल जाती है| सफ़ेद झाग उसके गुलाबी होंठो के किनारे से बह निकला था| उसका चेहरा थपथपाते पलक की हथेली के बीच से कोई छोटी शीशी लुढ़क जाती है| निसंदेह वह ज़हर की शीशी थी| ये सब देख नंदनी के पांव तले ज़मीन ही सरक गई| हडबडाहट के साथ वह कमरे से तुरंत बाहर की ओर भागी| सेविकाए अभी भी कमरे के बाहर गलियारे से बारात देखने में व्यस्त थी| एक पल को नंदनी का मन हुआ कि वह सबसे पहले उन्हें बताए पर इतनी बड़ी बात से बहुत बड़ा हंगामा मच जाएगा इसलिए वह अपनी माँ को बताने जल्दी से बाहर की ओर भागी|

अचानक वह किसी से टकराई अगर वह हाथ उसे संभाल न लेते तो वह सीढियों में गिर ही जाती|

“व वो ..|” वह चौंककर सामने उस चेहरे को देखती है तो उसकी ऑंखें हैरानगी से और चौड़ी रह जाती है|

आखिर कौन था नंदनी के सामने !! आखिर अब क्या नया मोड़ लेगी कहानी जानने के लिए पढ़ते रहे एक राज़…3

क्रमशः…..

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