
एक राज़ अनसुलझी पहेली – 28
नंदनी का होश पूरी तरह से उड़ा हुआ था, वह इतनी घबराई हुई थी कि एक पल को वह देख भी नही पाई कि सामने कौन है और जल्दी से बोल पड़ी – “व वो नई बिन्दनी ने जहर खा लिया !”
“थे काई बात कररिया हो ?” वह लगभग उसे जोर से झंझोड़ते हुए पूछता है इससे नंदनी सकपकाई सी सामने देखती है, सामने उसका बापू खड़ा उसे गौर से देख रहा था|
“बापू साच्ची बोलूं हूँ – वो पलक है न – वो – वो निढाल पड़ी है – उसके मुंह से झाग निकल रहा है – बापू क्या सच में वो मर गई !!” घबराती वह अपने बापू का हाथ कसकर पकड़ लेती है|
नंदनी की बात सुन भुवन का हाव भाव भी चकराया दिखने लगा| वह तो बस सबको बारात में व्यस्त देख नंदनी को देखने चला आया था पर यहाँ ये सब होगा ये उसने सपने में भी न सोचा था| कुछ पल वह बुत बना सोचता रहा कि आगे क्या कहे फिर अगले ही पल नंदनी का हाथ पकड़कर कोने के एकांत में लाते हुए उसका चेहरा अपनी हथेली के बीच लेता हुआ कहता है –
“शांत रह म्हारी लाडो – ये बता अभी तक कोई हंगामा तो हुआ न तो क्या थारे सिवा किसी को न पता ये बात !”
नंदनी सर न में हिलाती हुई धीरे से कहती है – “न बापू – म्हारे सिवा कोई न था उस कमरे में |”
“अच्छा तू चल म्हारे साथ – ऐसा कर तू पाछे का दरवाजा खोल और आगे का दरवाजा बंद कर दे |”
“पर बापू …!!” नंदनी भुवन की बात समझ नही पाई पर बापू का आँखों से भरोसा देख वह ख़ामोशी से उसका कहा करने लगी|
बाकि की सेविकाए अभी भी बारात देखने में व्यस्त थी तो नंदनी आगे से आती उस तरफ का दरवाजा बंद करके पीछे का दरवाजा खोल देती है जो गलियारे के बिलकुल विपरीत था| भुवन उससे अन्दर आकर अन्दर का नज़ारा अपनी सरसरी दृष्टि से देखता है| बिस्तर के किनारे पलक निढाल पड़ी थी, पहली नज़र में कोई उसे देखता तो उसे सोता हुआ समझता पर नंदनी ने उसे मारा हुआ बताया| ये ध्यान में आते भुवन झांककर उसकी ओर देखता है सच में उसके होंठों के किनारे से सफ़ेद झाग बहकर अब सूख गया था| जैसे किसी ने उसके होंठो के किनारे सफ़ेद खड़िया की लकीर बना दी हो| भुवन जल्दी से उसकी बिस्तर से लटकी कलाई की नब्ज देखता है|
नंदनी खौफ में अभी भी किनारे खड़ी थी|
“ये छोरी तो साच्ची में मर गई – नब्ज तो ठंडी पड़ी है पड़ इसने काई करी ये|” सोचता हुआ वह फिर कमरे में एक नज़र घुमाता है| तब से नंदनी उसे ऐसे खड़ा देख परेशान हो गई|
“बापू माँ को बता देते है |”
“न छोरी |” जल्दी से उसके सामने आता हुआ कहता है – “अनहोणी होणी नही,होणी होय सो हो – समझी छोरी ! मतलब जो होना था हो गया उसमे अपना बस नही अब ये समझ हाथ आया अवसर यूँ नहीं जाने देणा है |”
नंदनी अपने बापू की बात पर आश्चर्य से उसका चेहरा देखती रही|
“ये देख – सारे अवसर थारे हित में दिख रहे है |” भुवन की नज़र बिस्तर पर रखे पलक के जैसे ही दूसरे जोड़े पर पड़ी| नंदनी भी उसे आश्चर्य से देखने लगी| अब तक उसने इस पर ध्यान ही नहीं दिया था कि वे एक जैसे दो जोड़े थे| असल में झलक ने वो जोड़ा लौटा दिया था लेकिन पलक ने अपनी माँ के द्वारा लाया जोड़ा ही पहना| जब तक नंदनी अपनी सोच में पड़ी खड़ी थी तब तक भुवन पलक को कपड़ो से लादकर छुपा रहा था|
“तू तो अहसान कर रही है रजवाडो पर – अभी ये खबर फैलते के इज्जत रह जावेगी इनकी – तू बस वही कर जो मई कहता हूँ |”
नंदनी को नही पता था कि अब अगले पल क्या होने जा रहा है| उसे नही पता कि उसके पलक की जगह दुल्हन बनने से रजवाडो की क्या प्रतिक्रिया होगी| वह तो नवल की दुल्हन बनने का सोचती हुई अब सब कुछ भूल गई|
उधर बारात अपने पूरे शबाब में थी| द्वारचार की रस्म में पलक का पूरा परिवार लगा था| पलक के परिवार की ओर से गिनती के लोग आए थे क्योंकि सबके लिए इतनी दूर वो भी इतने कम समय में आना संभव न हुआ| इसलिए वैभव ने उन सबको पलक झलक के विवाह के बाद की कथा पूजा के साथ ही प्रीतिभोज रखने का कह रखा था| वैभव को इस समय खबर ही नहीं थी कि क्या कुछ पलक के साथ हो गया| उधर झलक पूरी तरह से तैयार हुई अनामिका के साथ झरोखे से बारात देखने में मग्न थी|
द्वारचार होते दुलहन को मंडप में बुलवाया गया| इस वक़्त अनामिका को अपने ससुराल पक्ष के साथ खड़े रहना था इसलिए कुछ सेविकाए झलक को लेकर तो कुछ पलक के कमरे तक आई| इससे पहले ही वे दरवाजा खोलती उससे पहले ही दरवाजे से दुलहन के भेष में नंदनी निकल कर उनके सामने खड़ी हो गई| सजी धजी घूँघट लिए दुल्हन को देखते वे उसे पलक समझ अपने साथ मंडप की ओर ले चली| चारोंओर संगीत की सुर लहरी सभी मन को तरंगित कर रही थी| नवल और शौर्य दूल्हा बने बेहद आकर्षण लग रहे थे| बारात में कई विदेशी मित्र भी थे जो बहुत दूर से बस ये राजसी विवाह देखने आए थे| राजमाता सबसे आगे मौजूद थी पर जो ख़ुशी उस वक़्त उनके चेहरे पर दिखनी चाहिए वो उस समय नही थी| उनकी उदासी शायद राजासाहब के कारण थी जो ज्यादा तबियत खराब होने से आ तक नही पाए थे| जल्दी ही वरमाला पहना कर गठजोड़ करके मंडप में आगे की रस्म के लिए उनको बैठा दिया जाता है| झलक भी इस समय घूँघट में थी| पर उसकी लचक देख उसकी ख़ुशी का अंदाजा लगाया जा सकता था|
पंडित मंत्रोच्चार करते पवित्र अग्नि प्रज्वलित कर चारों के हाथों में अक्षत और फूल देकर वचन भरवा रहे थे| वचनों की हामी के साथ दोनों जोड़े के गठबंधन में फेरे कराए जाते है| विवाह रीती से सम्पन्न हो रहा था जिसकी संतुष्टि वहां मौजूद सभी के चेहरों पर साफ़ देखी जा सकती थी| नीतू और वैभव कुछ भावुक हो उठे थे आखिर एकसाथ उनकी दोनों बेटियों के विवाह के साथ उनका घर आंगन सूना जो हो रहा था|
भुवन दूर से ही विवाह पर नज़र रखे हुए था| एक बार को शारदा से निगाह मिलते वह उसकी ताकती हुई नजरो को घूरने लगती है| इससे भुवन सतर्क होता अपनी मूंछों को ऐंठता मुस्करा कर उनकी नज़रों से छुप जाता है| शारदा को नंदनी की तलाश थी| काफी देर से वह उसे नही दिखी| तभी राजमाता के बुलावे पर फिर उसका ध्यान नंदनी से हट जाता है|
विवाह सम्पन्न होते बन्ना बन्नी आराम से बैठे संगीत कार्यक्रम का लुफ्त ले रहे थे| दोनों दुलहने इस वक़्त घूँघट में थी| अगले कार्यक्रम के होने के बीच विवाह में अब संगीत कार्यक्रम शुरू हो गया था जिसमे आए सभी मेहमान आनंद लेते शिरकत कर रहे थे|
कमायचा की रागनी के साथ रावन हत्था के सिरे पर लगे घुंघरू की आवाज बजते अपने आप ही आए विदेशी मेहमान भी कल्बेरिया नर्तकी के साथ साथ थिरकने लगे थे| माहौल पूरा संगीतमय हो चला था|
मिश्री सु मीठी बाता थारी….
मन है प्रेम का झरनों सा…
कांच भी थासु शरमा जावे….
एसो रूप सजिलो सा…
मणि थारो चाँद सरिसो मुखड़ा कोई नज़र नही लग जाए…
मणि थोडा हलवो हलवो चालो कोणी मोंच नही पड़ जाए..
एक ओर भवई नृत्य सबका ध्यान अपनी ओर खींचे था| नर्तकी सर पर सात आठ मटके रख कर थाली के किनारों पर नाचते हुए जमीन से मुंह से रुमाल उठा लेती तो दर्शको की भीड़ ताली बजा उठती|
इसी बीच वहां से उठकर नवल चुपचाप कही चला जा रहा था| सभी संगीत कार्यक्रम में इतने व्यस्त थे कि किसी का ध्यान उसकी ओर गया ही नही| वह बहुत तेज कदमो से अब वही जा रहा था जहाँ राजगुरु अँधेरे में खड़े उसी का इंतजार कर रहे थे|
“कुंवर सा – जल्दी कीजिए – यही उचित समय है – पूरे सत्ताईस वर्ष बाद ये मूल नक्षत्र का योग बना है – चलिए जल्दी कीजिए |” वे तेज तेज चलते हुए उन्ही काली सीढ़ियों को पार करते अँधेरे कमरे की ओर बढ़ चले थे| नवल इस समय दुल्हे के भेष में था| वह एक हाथ अपनी कमर से लगी तलवार पर रखे था तो दूसरे हाथ की हथेली के बीच चाभी थामे था| चंद क्षणों में वे उस कमरे में पहुँच गए| नवल बिना समय गवाए तुरंत ही ताले में चाभी डालकर घुमाता रहा और अगले ही पल वह हुआ जिसका उसे काफी समय से इंतज़ार था| ताला एक आवाज के साथ खुल जाता है| राजगुरु पीछे खड़े सब देख रहे थे पर नवल के साथ उस कक्ष में प्रवेश का उनका कोई मन नही था| नवल ताला हटाकर दरवाजा धकेल देता है| दरवाजा भी चरमराहट के साथ खुल जाता है| दरवाजे के खुलते और नवल के अन्दर प्रवेश करते कुछ उसके सर के ऊपर से गुजर गया जिससे नवल झट से अपने हाथ से परे हटा देता है| वह जो भी चीज थी इतनी तेज थी कि नवल का उसपर ध्यान ही नही गया| नवल बेरोक उस कमरे में प्रवेश कर जाता है|
कार्यक्रम के बीच दुलहनों को सेविकाएँ उनके कमरों तक ले जाती है क्योंकि राजमाता उन्हें कुछ देर आराम करके आगे के संस्कारों के लिए तैयार चाहती थी| झलक भी बैठी बैठी थक गई थी इसलिए कमरे में जाती लेट जाती है| नंदनी को भी सेविकाएँ उसके कमरे की ओर ले जा रही थी| वह घूँघट में थी लेकिन अपनी बढ़ी हुई धड़कन की उतार चढ़ाव को साफ़ महसूस कर रही थी फिर भी उसके मन में नवल की बिन्दनी होने की आतंरिक ख़ुशी भी थी| वह कमरे के मुहाने तक पहुँचते वही ठिठक जाती है| अन्दर पलक है वह जानती थी इसलिए सेविकाओ को इशारे से परे कर कमरे के अन्दर अकेले जाती दरवाजा बंद कर लेती है| उसका दिल अब जोरो से धडक रहा था क्योंकि उसके सामने अब कोई लाश थी| कमरे को बंद कर नंदनी सहमी से उस पलग की ओर करीब जाती अचानक चौंक जाती है| वह इस आश्चर्य के लिए बिलकुल तैयार नहीं थी| पलग पर से सारे कपडे और पलक दोनों गायब थे…
ये देख नंदनी के पैरो तले जमी ही सरक जाती है…अब क्या होगा आगे…क्या पलक जिन्दा है !! क्या होगा नवल के साथ !! जानने के लिए पढ़ते रहे एक राज़ और अपनी प्रतिक्रिया द्वरा मुझसे जुड़े रहे ताकि अगला भाग लिखने के लिए मैं प्रोत्साहित रहूँ….क्रमशः…………..
Very very👍🤔🤔🤔🤔🤔👍👍👍