Kahanikacarvan

एक राज़ अनसुलझी पहेली – 29

दरवाजे के पार जैसे कोई और ही दुनिया थी| जाने कब से बंद दरवाजे के अन्दर का कक्ष इतना साफ़ मिलेगा ये नवल की आश्चर्य से डूबी आंखे बता रही थी| न वहां कोई बंद कमरे जैसा माहौल था न गन्दगी और न कोई मकड़ी इत्यादि का जाला| वहां कुछ अलग ही दुनिया थी जिसे नवल कुछ पल तक हैरान देखता रहा| उस विशाल कक्ष के अन्दर एक और दरवाजा दिख रहा था अब नवल के कदम उस ओर बढ़ चले थे| उस वीरान स्थान के प्रति उसका मन कुछ आशंकित भी था जिससे उसका एक हाथ अभी भी अपनी कमर से लटकी तलवार की मूंठ पर था| नवल अब उस दरवाजे के पास पहुँचता गौर से उसे देख रहा था, वह बेहद अजीब दरवाजा था न उसमे कोई ताला था और न कोई भी कुण्डी या हुक जिससे उसे खींचकर खोला जाता| नवल अभी सोच ही रहा था कि उस दरवाजे को कैसे खोला जाए तभी राजगुरु की आवाज ने उसकी तन्द्रा भंग की|

“कुंवर सा जल्दी करे – आपके पास समय नही ज्यादा – आप बस कोई बक्सा देखे और उसे ले आए अपने साथ |”

बात सुनते नवल यूँ चौंका मानो अचानक उसका ध्यान टूटा हो| वह एक उडती नजर उस बंद दरवाजे की ओर डालता पूरे स्थान को सरसरी दृष्टि से देख डालता है| तभी उसकी नजर उस दरवाजे के ठीक ऊपर दीवाल में बने आले में गई जहाँ कुछ रखा उसे दिखता है निसंदेह वह वही बॉक्स था जिसका जिक्र राजगुरु कर रहे थे| नवल फिर उस दरवाजे की ओर बढ़ा और सीधे हाथ बढ़ाकर उस बॉक्स को अपनी जद में ले लेता है| ये दृश्य बाहर खड़े राजगुरु सीधे देख पा रहे थे इससे वे वही खड़े खड़े धीरे से फुसफुसाए – “कुंवर सा जल्दी से बाहर आइए – हमारा काम हो गया|”

राजगुरु की बात सुन नवल भी तुरंत प्रतिक्रिया करता उस छोटे बॉक्स को अपनी हथेली की पकड़ में लेता बाहर निकल आता है| वह जिस तेजी से उस कक्ष से बाहर निकला उसी फुर्ती से राजगुरु ने उसे ताला पकड़ा दिया| नवल बाहर आते उस दरवाजे को बंद कर देता है| लेकिन इस बीच एक चीज और हुई वहां जिसपर उनका ध्यान नही गया| जब नवल बाहर निकल रहा था और राजगुरु का सारा ध्यान ताले पर था तब उस कक्ष के अन्दर का वह बंद दरवाजा बिना आहट के हल्का सा खुल गया था| इस घटना से अनजान नवल उस बॉक्स को अपनी शेरवानी की पॉकेट में रखता हुआ उस कक्ष को बंद कर ताला लगा रहा था तो राजगुरु उस कक्ष के बाहरी हिस्से पर पहले की तरह रक्षासूत्र बाँध रहे थे| ये सब बड़ी फुर्ती से करते वे दोनों उस अँधेरी जगह से निकल कर बाहर चले जाते है|

शादी के जश्न में डूबे लोगो को पता भी न चला कि इतनी देर में क्या से क्या हो गया और उनके बीच नवल फिर से शामिल हो गया|

कमरे में वापस आती नंदनी के हलक से कुछ आवाज नही फूटी| वह ये सोचकर डर से कांप गई कि पलक कहाँ चली गई ? क्या वह जिन्दा थी ? या उसे किसी ने गायब कर दिया !! तो क्या इसका मतलब उसके अलावा भी कोई आया था इस कमरे में !! वह ये सोच सोच कांपे जा रही थी कि उसका सच किसी ओर को भी पता है तो कही ऐसा न हो कि सब उसे पलक का कातिल समझ ले !! ये सोचते हुए उसे अपने बापू की बड़ी तेज याद हो आती है| वह सोचती है कि काश इस वक़्त उसका बापू भी होता वहां !! नंदनी के अन्दर डर अपनी जड़े जमाता जा रहा था इस हालत में वह आगे क्या करे ये समझ ही नही पा रही थी| उसके दिमाग में बस यही आ रहा था कि उसे तुरंत ही अपने बापू से मिल कर सब बताना चाहिए| ये तय करती वह पहले झट से अपने कपडे बदलती है| दुलहन के कपडे उतार कर वह अपने कपडे पहनकर कमरे के पिछवाड़े के द्वार से बाहर निकल जाती है| उधर यही हाल भुवन का भी था| वह कबसे वही जाने का प्रयास कर रहा था जहाँ इस वक़्त नंदनी है लेकिन उस जगह लोगो की अत्यधिक उपस्थिति होने से वह वहां नही जा पा रहा था|

एक अज्ञात स्थान पर बत्ती जाने पर वह हाथ से अँधेरे में टटोलते हुए मोमबत्ती से रौशनी करता है जिससे अगले ही पल कमरे में हल्का लेकिन देखने लायक कृत्रिम उजाला फ़ैल जाता है| वह जॉन था जो अनिकेत के सामने बैठा अपनी भरपूर मुस्कान से उसे देख रहा था|

संगीत कार्यक्रम अपने चरम पर था जिसमे भंति भंति के लोक नृतक माहौल को चका चौंध किए थे| पर शारदा का सारा ध्यान अब नंदनी की ओर था क्योंकि विवाह में एक बार भी वह नही दिखी थी| वह इसका जिक्र रानी साहिबा से करना चाह रही थी कि उसे लगा अब वे भी उसे नजर नही आ रही थी| पर माहौल के बीच में से वे आखिर कहाँ जा सकती है !! वह ये सोच ही रही थी कि शारदा की नजर नंदनी पर पड़ती है जो इधर उधर देखती हकबकाई सी उधर ही बढ़ी आ रही थी| ये देख शारदा उसकी ओर बढ़ गई| भुवन भी नंदनी को तलाशता अभी उधर ही मौजूद था| उसने नंदनी को देखा तो दौड़ता हुआ उसकी ओर बढ़ गया| नंदनी की नज़र भी अपने बापू पर गई| अगले ही पल किसी एकांत में भुवन के सामने नंदनी खड़ी थी और भुवन उसे ऊपर से नीचे देखता दबी आवाज में उससे पूछता है – “लाडो यो काई है – कपडे क्यों बदल लिए – चिंता न कर मई आगा सब संभाल लूँगा |”

घबराई नंदनी इधर उधर देखती हुई अपने बापू को बोल रही थी – “बापू अन्दर कमरे में वो पलक नहीं है – अब काई होगा ?”

“कीसा जा सकती है – वो तो मर गई थी !!”

दोनों एकदूसरे को हैरान नज़र से देख रहे थे| इससे पहले कि वे कुछ समझकर करते शारदा उनकी तरफ आ कर थोड़े तीखे स्वर में बोलती है – “तुम दोनों यहाँ काई कर करे हो – नंदनी तू अट्ठे आ नहीं तो अपने बापू के जैसी बनते काम को खराब कर बैठेगी – चल म्हारे संग |” शारदा आगे बढ़कर नंदनी का हाथ पकड़कर उसे अपने साथ खींचने लगती है| नंदनी परेशान सी अपने बापू की ओर देखती है कि वह कुछ तो करे या कहे पर भुवन की नजर तो उसके पीछे के दृश्य पर अटक सी गई थी| ऐसा करते भुवन के चेहरे पर डर और घबराहट के मिले जुले भाव स्पष्ट नज़र आ रहे थे| ये देख नंदनी भी अब पलटकर अपने पीछे देखती है तो उसके पैरो तले जमी ही सरक जाती है| उसे अनामिका दो दुल्हनों के साथ नज़र आ रही थी|

नंदनी वहां है और पलक मर गई थी तो आखिर कौन है वह दूसरी दुल्हन और अनिकेत अब तक कहाँ था जानने के लिए आगे पढ़ते रहे एक राज़ 3 और अपनी प्रतिक्रिया से मुझसे जुड़े रहे…धन्यवाद

क्रमशः…………..

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