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एक राज़ अनसुलझी पहेली – 31

सूर्योदय के पश्चात् पंचम पहर के समय था| नवल कमरे की बड़ी सी खिड़की के पास खड़ा आकाश की लालिमा को घटते और सूर्य को बढ़ते हुए देख रहा था| अभी उसके हाथ में वही बॉक्स था जो उसकी हथेली के सम्पूर्ण आयाम में सुरक्षित था| एक पल आकाश को देखकर वह बॉक्स को देखता है मानों किसी ख़ास पल का उसे इंतज़ार हो| सूर्य की किरणें धरती तक पहुँचने लगी थी| नवल अब बॉक्स को ध्यान से देखता है| काले पत्थर का निर्मित बॉक्स देखने में बेहद अजीब था| सांसे अजीब ये था कि वह कहाँ से खुलेगा ऐसा कुछ भी उसमे स्पष्ट नही था| नवल उसे गौर से देखता हुआ उसी पल उसे अपनी हथेली में ऊपर की ओर उठा लेता है| मानों सूर्य की किरण का स्पर्श वह उस बॉक्स में चाहता हो| किरणें और स्पष्ट होने लगी तभी कुछ बेहद अजीब हुआ वह बॉक्स किसी संगमरमर सा चमक उठा| अब सूर्य की किरणें सीधी उसे स्पष्ट कर रही थी| वे बेहद हैरान कर देने वाला नज़ारा था जो बॉक्स कुछ देर पहले काला दिखाई दे रहा था अब उसके विपरीत सफ़ेद चमक रहा था| किरणें और तेज होने लगी कि तभी खटाक की आवाज के साथ वह बॉक्स खुल गया| उस बॉक्स के खुलने की आवाज के साथ नवल के चेहरे पर क विजयी मुस्कान तैर गई| खुले बॉक्स में उसे लाल रंग का कोई मखमल का टुकड़ा नज़र आ रहा था जिसे देखते हुए नवल की आँखों की चमक चौगनी हो गई थी| नवल उस बॉक्स को एक हाथ से पकडे तो दूसरे हाथ से उस मखमल के कपडे को खोलने लगता है| ऐसा करते एकाएक उसके चेहरे से मुस्कान गायब होकर हैरानगी में बदल जाती है| वह उस मखमल के टुकड़े को अच्छे से खोलकर देखता है| जल्दी ही उसे अहसास होता है कि वह बॉक्स खाली है|

“ये कैसे हो सकता है !! ये संभव ही नहीं – |” नवल उस बॉक्स को तुरंत बंद कर अपनी मुट्ठी में कसकर भींचता हुआ बुदबुदाया – “हमे यकीन नही आता कि ये किताब झूठी है या हमसे पहले ही वो चमत्कारी पत्थर किसी ओर के हाथ लग गया लेकिन ये कैसे हो सकता है – कही राजगुरु !!” सोचते हुए उसका जबड़ा कस गया|

“अब हमे इंतज़ार करना होगा क्योंकि जिसके पास भी ये हमारे राजवंश की अमानत है वो उसका उपयोग करेगा ही और वैसे ही हम उसतक पहुँच जाएँगे क्योंकि जिसके पास ये होगा वह इससे विशेष काम लेगा – कुछ तो विशेष होगा -|” सोचते हुए नवल की मुट्ठी भींचती जा रही थी|

तभी द्वार पर दस्तक से उसका ध्यान टूटता है| बॉक्स अलमारी की निचली दराज के हवाले करता नवल तेज क़दमों से द्वार खोलता है| उस पार एक कारिन्दा हाथ जोड़े खड़ा था|

“खम्मा घणी हुकुम – आपको राजमाता ने याद किया है हुकुम |”

“ठीक है हम आते है |” कहकर नवल द्वार बंद कर देता है|

राजमहल का संगीत इस कदर मध्यम पड़ गया जैसे सबके मन को भांपता हुआ उनका कारिंदा खामोश हो गया हो| पलक कमरे में बेहोश लेटी थी| वही अनामिका और झलक उदास आँखों से जमीन को मानों आँखों से कुरेद रही थी| झलक का मुंह तो बस रोने को हो आया था, आखिर अभी अभी तो अपने माता पिता से जुदा हुई और अब पलक यूँ पड़ी है| क्या कहेगी उनसे !!

अनामिका झलक की मनःस्थिति समझ रही थी, वह झलक के पास सरकती उसे अपने अंक में समेटती हुई कहती है – “उदास मत हो झल्लो – कुछ नही हुआ पलक को – अभी डॉक्टर आकर बोला न कि बस थकान की वजह से वह बेहोश हो गई बस थोडा आराम करेगी तो ठीक हो जाएगी|”

अनामिका के शब्दों से उसका मनोबल कुछ बंधता है तो हलके से उसके होंठों की किनारे विस्तार हो उठते है| इसपर अनामिका झलक का चेहरा अपनी हथेली के बीच लेती हुई आगे कहती है – “अब आप दोनों हमारी जिम्मेदारी भी है और तब तक तो सबसे ज्यादा जब तक आप यहाँ के लिए थोड़ी भी अभ्यस्त नही हो जाती – हम सदा आपके साथ है |”

कहती हुई दोनों सखी एकदूसरें के गले लग जाती है| तभी कुछ आहट पर उनका ध्यान द्वार की ओर जाता है, वे दोनों अब उसी ओर देख रही थी| अगले क्षण ही वहां से रानीसा को आते देख दोनों अपने अपने स्थान पर खड़ी होकर उनको अभिवादन करती है| उसके पीछे शारदा और नंदनी भी उन्हें नज़र आती है| अनामिका आगे बढ़कर रानीसा के पैर स्पर्श करती है ये देख झलक भी ऐसा करने आगे बढती है तो रानी सा उसे कंधो से पकडती हुई कहती है – “अभी नही बिन्दनी – यहाँ सब एक रीती रिवाज से होगा – आप अभी आराम करे और खुद को आने वाले वक़्त के लिए सहज रखे – आगे तो आपको भी अनामिका की तरह सब संभालना है|” वे मुस्करा कर झलक के चेहरे को हथेली से चूम लेती है|

“अब पहले बताईए हमारी दूसरी बिन्दनी कैसी है – हम पहले उन्हें देखेंगे |” कहती हुई इ पलक की ओर बढ़ जाती है| ये देख शारदा भी उनके पीछे से जल्दी से आगे आती हुई पलक के पास आती उसका चेहरा छूती हुई कहती है – “अभी तो भली लागे है उस समय तो कैसा सफ़ेद पड़ गया था मुख |”

अभी तक द्वार की देहरी पर खड़ी खड़ी नंदनी हैरान नज़र से वही से पलक को देख रही थी, उस पल उसके चेहरे पर घबराहट और प्रश्न के मिलेजुले भाव थे|

रानी सा भी पलक का माथा सहलाती कुछ पल तक मुस्करा कर उसे देखती रही फिर पलटकर झलक और अनामिका की ओर देखती हुई कहती है –

“समय हर पल प्रतीक्षा लेता है तब हमे धैर्य से उस पल का सामना करना चाहिए – हमे ख़ुशी है कि आप अपनी बहन को इस हालत में देख कर घबराई नही यही सच्ची राजपूतानी होने का पहला संस्कार है – आप जन्म से न सही पर कर्म से आपको राजपूतानी होने का संस्कार वहन करना होगा – आज से उसी प्रतीक्षा की शुरुआत है |”

अनामिका और झलक उनकी और गौर से देखती हुई उनकी बातों को समझने का प्रयास कर रही थी|

“ससुराल में बिन्दनी संग कोबर में जो संस्कार निभाए जाते है वो सभी उसकी काबिलियत, समझदारी और सहनशीलता को दिखाते है – इसलिए ये सिर्फ संस्कार नही होते बल्कि जीवन का प्रथम पाठ होते है जिसे अच्छे से समझने के बाद ही भविष्य का जीवन और सफलतम होता है – झलक आज आपको इन्ही संस्कारों को निभाना है |”

झलक उनकी बात सुन तुरंत ही पलक की ओर देखती है जिससे उसका मन समझती हुई वे तुरंत ही कहती है – “आप पलक की चिंता न करे अब से आप दोनों हमारी विशेष जिम्मेदारी है – |” फिर अनामिका की ओर देखती हुई कहती – “अनामिका आप झलक के साथ हमारे साथ चलिए क्योंकि रीती के लिए इनकी प्रतीक्षा हो रही है और शारदा आप इसमें अनामिका की सहायता कीजिए तब तक नंदनी पलक के पास रहेगी –|”

रानी सा ने कहा और वे तुरंत ही बाहर को निकल गई| अनामिका आँखों से सांत्वना देती झलक को अपने साथ लेकर बाहर चल देती है| उनके जाते शारदा नंदनी की ओर देखती हुई कहती है – “नंदनी तुम यही रुको |”

नंदनी को तो जैसे सांप सूंघ गया पर अपनी माँ को न कुछ कह सकी और न विरोध कर सकी| शारदा भी अब उनके पीछे चली गई| अब कमरे में पलक के साथ वही शेष थी| वह मनमसोजे अहिस्ता कदमों से पलक के कुछ पास आती उसका चेहरा गौर से देखने लगती है मानों खुद को विश्वास दिला रही हो कि वह पलक ही है !! पर कैसे हो सकती है कोई मर कर जिन्दा नही होता अगर जिन्दा है तो बापू और उसे एकसाथ भ्रम कैसे हो सकता है !! पलक को मृत जानकर उसके बापू ने तो नवल से उसकी शादी करा दी पर ये कैसे शादी थी जिसमे घूँघट के अन्दर से दुल्हन बदल गई और किसी को भनक भी न लगी !! क्या क्या सोच लिया था जैसे किसी ने सुनहरा खवाब देखते एकदम से उसे उठा दिया हो !! उस पल ये सोचते उसकी ऑंखें भर आई, मानो टूटे सपनों की किरचे उसकी आँखों को चुभने लगी हो| वह उदास मन से पलक के सिरहाने बैठ जाती है| जाने क्या होगा अब आगे अब बस उसे अपने बापू पर विश्वास था कि जरुर वह कोई न कोई रास्ता निकाल लेंगे सोचती हुई अपनी डबडबाई ऑंखें अपनी ओढ़नी के कोने से पोछने ओढ़नी खींचने लगती है पर उसे लगता जैसे ओढ़नी कही फसी है वह हौले से उठकर पीछे पलटकर देखती है पलक के हाथ के नीचे उसकी ओढ़नी फसी थी| ये देख वह पलक की कलाई एक हाथ से उठाकर दूसरे हाथ से अपनी ओढ़नी खींचने का प्रयास करती है, वह ओढ़नी खींचने में अपना सारा ध्यान लगाए थी कि सहसा कुछ ऐसा हुआ कि उसकी सांस हलक में ही अटकी रह गई| ऑंखें डरकर हवा में टंगी रह गई| पलक एकदम से उठकर बैठी सामने की ओर शून्य में ताक रही थी| नंदनी घबरा कर मुंह खोले देखती रही डरकर उसके हलक से कोई आवाज भी नही निकली| उसकी हैरान अवाक् नज़र पलक को देख रही थी जो यांत्रिक भाव से बैठती हुई सामने की दीवार को घूर रही थी|

आखिर क्यों नंदनी इतना डर गई…क्या ये पलक है या कोई और जानने के लिए इंतज़ार करे अगले भाग का…

.क्रमशः….

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