
एक राज़ अनसुलझी पहेली – 32
उस बड़े से सजावटी हॉलनुमा कमरे में स्त्रियाँ ही स्त्रियाँ नज़र आ रही थी जिनकी हँसी की आवाज समवेत स्वर में वहां बिखरी हुई थी तो वही एक किनारे कुछ घूँघट वाली स्त्रियाँ कुछ वाद्य यंत्र के साथ माहौल को झंकृत किए थी| कक्ष कृत्रिम रौशनी से नहाया हुआ था जिसे फूलों से बड़ी सुन्दरता से सजाया गया था| हॉल के मध्य में बैठने का कुछ ऊँचा मंच बना था जिसमे चार पांच के बैठने की जगह भर थी| तभी सभी की नज़र अन्दर आती झलक पर गई जिसे अनामिका और शारदा के साथ साथ कुछ सेविकाए अन्दर ला रही थी| उनके अन्दर आते वाद्य यंत्र की आवाज के साथ साथ सुरलहरी भी तेज हो गई| स्त्रियाँ स्थानीय भाषा में गीत गाती गाती मुस्करा रही थी| सेविका झलक को उसी मंच में बैठाकर उसके आस पास खड़ी रहती है जबकि अनामिका उससे कुछ कदम दूर जाकर बैठ गई| जहाँ पहले से कुछ और संभ्रांत स्त्रियाँ बैठी अनामिका का मुस्करा कर भरपूर स्वागत करती है| अगले ही पल वहां रानी साहिबा के आते ढोलक की थापे अचानक रुक गई| ये देख वे मुस्करा कर हाथ के इशारे से उन्हें बजाने का संकेत देती है| रानी सा के आते शारदा, अनामिका और बाकी की स्त्रियाँ उठकर उनका स्वागत करती है| वे मुस्कराकर उनका अभिवादन लेती उनके संग ही बैठ जाती है| उनके बैठते शारदा की ओर ज्यों वे आंख उठाती है वह उनके पास आकर अपना कान उनके मुंह की ओर करती है| ये संकेत था आगे के कार्यक्रम के शुरू होने का| आगे का आदेश शारदा सबको पास करती है जिससे जहाँ झलक बैठी थी अब वहां अनामिका बढ़ गई और झलक के बिलकुल बगल में बैठती हुई उसके कानों में फुसफुसाई –‘अभी कुछ रिवाज होंगे झल्लो – थोडा ध्यान रखना क्योंकि उन्ही रिवाज से सभी नई बिन्दनी को समझने का प्रयास करती है -|’ अनामिका की बात सुन झलक हौले से उसकी ओर आँख उठाकर यूँ देखती है मानो उससे कोई सहायता की पुकार लगा रही हो इसपर अनामिका समझ गई ये वो डर था जिससे हर दुल्हन गुजरती ही है पर उसे ये सोचकर अच्छा लगा कि उसके इस मुश्किल पल में वह अपनी सखी के साथ है| इससे अनामिका उसे आगे का कैसा होगा सब धीरे से समझाने लगती है – ‘अभी सबसे पहले मुंह दिखाई की रस्म होगी तुम बस यूँही थोड़ा शर्माती बैठी रहना |’ अनामिका की खनकती आवाज पर घूँघट के अन्दर से झलक भी मुस्करा दी| ‘जो भी तुम्हारे पास आएंगी सब बड़ी बाईसा, काकी सा या जिजो सा होंगी बस तुम झुककर दोनों हाथों से धोक लगाना मतलब पैर छू लेना फिर उसके बाद घूमर की रस्म होगी जिसमे थोड़ा नाच लेना |’
ये सुनते झलक की आंखे और चौड़ी हो गई जिसपर मुस्कराकर अनामिका उसे हौसला देती हुई कहती है – ‘अरे बस रिवाज है – तुम खड़ी होकर बस हाथ घुमा लेना – माँ सा ने पहले ही घूमर के लिए नचनिया बुला रखी है – माँ सा समझती है कि तुम्हें यहाँ के रिवाज अभी नही पता है – डोन्ट वरी झल्लो |’
अनामिका फिर उठकर चली जाती है| अब बीच में अकेली बैठी झलक और पास खड़ी दो एक सेविका शेष रह गई| अनामिका और रानी सा दूर से सब जायजा ले रही थी| मुंह दिखाई और धोक लगाई की रस्म के बाद वहां नृत्य का माहौल बनने लगा| उस कक्ष में सारंगी, रावन हत्था, कमायचा, रवाज लिए कुछ भांड किनारे बैठ स्वरताल मिलाने लगते है| ज्यों ज्यों बिजोरा पर घिसकर तारों में झंकार पैदा हुई मन यूँही थिरकने लगा संग संग रावन हत्था के तार भी झनक पड़े, उसके सिरे में लगे घुंघरू आप भी ताल में ताल मिला रहे थे| झलक को डांस तो बहुत पसंद था पर राजस्थानी डांस से वह अनभिग्य थी फिर भी अनामिका के निर्देश से वह खुद को रस्म के लिए तैयार करती है| अब हॉल में मध्य में कुछ नचनिया आकर खड़ी हो गई वे सभी रानी सा की ओर देख झुककर उनका अभिवादन करती नृत्य के लिए अनुमति मांगती है जिससे सर हिलाकर वे हाथ के इशारे से शारदा को झलक की ओर जाने को कहती है| शारदा झलक के पास आकर उसको ध्यान से उनके बीच लाती है| झलक उस समय पूरे राजस्थानी वस्त्रो आभूषण से सजी बेहद सुन्दर लग रही थी| झलक के खड़े होती वे नृतकियां उसे साथं देनी कमर में हाथ रखे थोडा थोडा पीछे हो जाती है|संगीत और स्वर उस वातावरण में अपनी सटीक सुरताल लिए फ़ैल गया था| झलक भारी लहंगा पहने थोड़ी असहज थी फिर भी थोडा घूमती हुई हाथ हवा में दायीं बाई घुमाती है जिससे उसकी बाजु में बंधे आड और लूम भी लहरा जाते है, जिसमे के लगे नगीने की चमक से सबकी ऑंखें चमकृत हो उठती है| हलके से घूमकर झलक रुक जाती है और सेविकाए उसे अपने साथ लिए माँ सा के पास लिवा आती है| माँ सा झलक को अपने पास बैठ लेती है| अब नृतकियों को पता था कि महफ़िल उन्हें संभालनी है, ये सोचती वे मध्य में आई ही थी कि उस पल कुछ ऐसा हुआ कि सबकी ऑंखें हैरानगी से चौड़ी हो मानो बाहर ही लटक आई| द्वार से राजस्थानी घेरदार लहंगा में आती एक नृतकी उनके आगे खड़ी घूमने लगी| वह जिस तरह से तेजी से आकर उनके बीच नाचने लगी उससे वे नृतकी सहमकर पीछे हट गई|
“घुमेरदार लेहेंगो…घुमेरदार लेहेंगो…
घुमेरदार लेहेंगो…घुमेरदार लेहेंगो…
बादिला लेता आइजो जि घुमेरदार लेहेंगो..
घुमेरदार लेहेंगो…घुमेरदार लेहेंगो…
घुमेरदार लेहेंगो…घुमेरदार लेहेंगो…
म्हारा ढोला म्हारा साहिब..
लेता आइजो जि घुमेरदार लेहेंगो…
घुमेरदार लेहेंगो…घुमेरदार लेहेंगो…
घुमेरदार लेहेंगो…घुमेरदार लेहेंगो…”
उस पल घूमर के बोल पर अपने सामने नाचते देख उस घूँघट वाली को देख सभी ने दांतों तले उंगली दबा ली| सभी हैरान नज़रों से एकटक उस नृत्य को देखते रह गए| जैसे कोई मोहनी सी उसने सभी पर उड़ेल दी हो| न संगीत रुका न लय और न उसके पैर वह लगातार तेजी से घूमती हुई सही सुर ताल में राजस्थानी घूमर पर नाचती रही| उसका चेहरा घूँघट में था, बस घूँघट के पार नथ का हीरा चमक जाता तो सभी की ऑंखें चुंधिया जाती| सबकी निगाह बस उस नाच पर टिक गई थी| किसी ने इससे पहले इतना तेज नृत्य देखा ही नहीं था| वह नचनिया तो सहमी किनारे खड़ी रह गई| अगर वे उस नाच के बीच में आने की कोशिश भी करती तो लगता जैसे बाजू लूम आकर उनको लतेड देगा| घाघरे के घुमय और लूम से कोई घेरा सा बन गया था जिसके अन्दर जाने की कोई हिम्मत नही कर पाया| काफी देर बाद गीत के बोल खत्म हो गए और ज्यों ही वाद्ययंत्र की आवाज कमजोर पड़ने लगी| उसका घूमर धीरे धीरे कम पड़ने लगा जिससे जैसे वहां का कोई तिलिस्म टूटा और सबका ध्यान उस नृत्यांगना पर गया| वह राजसी जेवर वस्त्र में सुसज्जित उनके सामने खड़ी थी| रानी सा तुरंत शारदा को उसकी ओर जाने का इशारा करती है, आखिर सभी जानना चाहते थे वह कौन है क्योंकि उसके वस्त्र साधारण नही थे !! क्या किसी और की बिन्दनी है !! तो किसकी !!
सभी की नज़र उसी की ओर टिकी थी, शारदा आगे बढ़कर उसके सामने खड़ी हो कर उसका घूँघट हलके से पीछे सरका देती है| उस घूँघट में जो थी उसे देख सब हैरान रह गए लेकिन सबकी हैरानगी की वजह अलग अलग थी| उस पल का सबसे औचक पल था वह| किसी को एक पल को भी नही लगा कि थककर बेहोश होने वाली पलक उनके सामने इस तरह आएगी| झलक का हैरानगी में मुंह खुला का खुला रह गया आखिर वह कैसे यकीन करे जिस बहन के बारे में वह सब कुछ जानती है पर यही नही जानती थी कि वह घूमर डांस इतना अच्छा करना जानती है| अनामिका भी उतनी ही हैरान थी| पर बाकी की संभ्रांत महिलाओ के बीच पलक की तारीफ सुन माँ सा का हैरान चेहरा कुछ मुस्करा पड़ा |
“बड़ी फुट्लो बिन्दनी है |”
“काईन घूमर नाचे – ऐसा घूमर नाचते किसी को न देखा |”
सभी उस मोहनी चेहरे को गौर से देख रहे थे मानों उन कजरारी नदियों के पाटों के बीच उन सबकी नज़रे कैद कर ली गई हो, पलक झुककर एक साथ सबको धोक लगाकर मुस्करा दी…
पलक की मुस्कान के पीछे का राज़ क्या है…क्या कुछ होने वाला है राजमहल में जानने के लिए बस थोडा इंतजार..
.क्रमशः..
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