
एक राज़ अनसुलझी पहेली – 33
घूमर नृत्य खत्म हो चुका था और अब अगली रस्म की तैयारी थी| पलक मध्य में बनाए स्थान पर घाघरा फैलाए घूँघट में बैठी थी जबकि सभी स्त्रियों के साथ अनामिका और झलक बैठी हुई थी पर उनकी निगाह बस पलक पर ही जमी हुई थी, उस पल उनके मन की ये स्थिति थी कि सबकी आँखों का बंधन नही होता तो वे कबकी पलक के पास पहुँच चुकी होती| उनकी बेसब्र ऑंखें बता रही थी कि कितने प्रश्नों के झंझावत उनके मन में उठ रहे थे|
भुवन नंदनी को ढूंढता फिर रहा था तो वही नंदनी भी अपने बापू को ढूढती हुई उससे गलियारे में मिल गई| नंदनी की सकपकाई हालत देख भुवन उसका बाजू पकड़कर उसे किसी एकांत में ले जाता हुआ हड़काता है – “किधर डोले है – कबसे ढूढ़ रहा हूँ थारे को |”
“बापू बापू – वो वो तो जिन्दा है – अब म्हारा के होगा – कोण मानेगा म्हारी शादी !!”
“वो तो मई खुद सब देखूं हूँ – थे फ़िक्र मत कर बस खुद को संभाल और जो मई कहता हूँ वो करती जा |” कहता हुआ भुवन अपनी मुट्ठी में पकड़ी कोई चीज उसकी हथेली के बीच रखता हुआ धीमे से फुसफुसाता हुआ कहता है – “लागे है म्हारे से देखण में कोणों भूल हो गई पर अब जो गलती हुई उसे साची करणा है |”कहता हुआ भुवन अपनी मुट्ठी के बीच फसी किसी चीज को नंदनी की हथेली के बीच दबाता हुआ कहता है –“अब थारा काम है इसे कीसे भी पलक को पिला दे जिससे थारे बीच का ये कांटा निकल जावे – समझी लाडो !”
नंदनी हैरान नज़रों से कभी अपनी मुट्ठी को देखती तो कभी जाते हुए अपने बापू को| भुवन के नज़रों से हटते वह भी दबे पैर समारोह स्थान की ओर चल देती है| उस वक़्त नंदनी के मन में अजीब सी उथल पुथल मची हुई थी, वह समझ ही नही पा रही थी कि उसकी जिंदगी कैसी मकडजाल में फंस चुकी है| एक तरफ नवल के साथ विवाह होने का उसका सपना पूरा होकर भी अधुरा रह गया तो वही दूसरी ओर पलक के जीवित होना उसके लिए किसी सदमे से कम नही था और अगर यही सच हुआ तो फिर उसका क्या होगा !! ये सोचते उसके मन में बदले की अग्नि दहक उठी जिससे उसने मुट्ठी और कसकर भींच ली, मुट्ठी के कसते उसे याद आ गया कि उसकी मुट्ठी के बीच फसी चीज ही उसके मृत रिश्ते को पुनर्जीवित करेगी और पलक को सदा के लिए उसके जीवन से दूर| सोचती सोचती अपने में खोई नंदनी अब कुछ पल ही दूर थी कि तेज ठहाकों से उसकी तन्द्रा भंग हुई और चलते चलते उसका ध्यान अपने सामने के दृश्य पर गया| जहाँ नवल और शौर्य तन कर हाथ में तलवार लिए खड़े थे उसके पीछे पीछे घूँघट में जरुर पलक और झलक रही होंगी| नंदनी वही ठिठकी खड़ी देखती रही कि कैसे नवल आगे बढ़ता हुआ तलवार की नोक से अपने सामने कतार से बिछी थाली को हटा कर आगे एक एक कदम रखता और उसके पीछे चलती पलक उन थाली को बेआवाज उठा लेती यही रस्म बिलकुल झलक को भी करना था पर देखकर लग रहा था कि झलक अपनी भरसक कोशिश में थाली को बेआवाज उठाने की कोशिश करती पर कही कुछ खनक ही उठती और माँ सा के साथ साथ सबका सारा का सारा ध्यान उस पल झलक की ओर चला जाता| वही पलक पल में सारी थाली लिए लचकती हुई माँ सा के सामने आती थाली उनकी ओर बढ़ा देती है| ये रस्म अच्छे से पूरी होते माँ सा के चेहरे पर मुस्कान आ गई| उनका इशारा पाते शारदा आगे बढ़कर थाली लेकर किसी सेविका को पकड़ा कर एक जरी के टुकड़े में लपेटी थैली रानी सा की ओर बढ़ा देती है जिसे लेकर वे पलक की हथेली के बीच रखती हुई कहती है – “ये हमारी ओर से नेग है आपके लिए |” पलक भी उसे हथेली में समेट लेती है|
“लेकिन अभी आपकी परीक्षा पूरी नही हुई |”
माँ सा की मुस्कान गवाह थी अगली रस्म की जिसकी तैयारी पूरी होने की सूचना एक सेविका द्वारा पाते शारदा पलक को उस ओर ले चलने का संकेत देती है| पलक और झलक को जहाँ साथ में बैठाया गया था अब उनके सामने कुछ उलझे हुए धागे थे जिसे दिखाती हुई शारदा कहती है – “आप दोनों को अपने अपने उलझे धागे सुलझाने है |” शारदा मुस्कराती हुई उन उलझे धागे के एक एक गुच्छे को दोनों के पास करती है| झलक का तो उन धागों को देख सर ही चकरा गया, अपनी हथेली के बीच लिए उस गुच्छे को कुछ पल तो वह घूरती रही उसका तो मन कर रहा था कि कैंची ले और क़तर कर रख दे उन धागों को, ये भी कोई रस्म होती है !! आज से पहले जब भी उसके दुपट्टे का कोई धागा फसता था तब सुलझाने के बजाये वह तोड़ लेती थी पर आज क्या करे, ये सोचते उसका मन खीज रहा था| अचानक हंसी की फुहार से उसकी तन्द्रा टूटी और उसका ध्यान पलक की ओर गया जिसके हाथ में अब कोई उलझे धागे के बजाये एक लम्बा धागा था ये देख सच में झलक का सर ही घूम गया| ये लड़की कोई जादू सीखकर आई है क्या !! अब सबकी नज़र झलक पर टिक गई, आखिर मरती क्या न करती उसने धीरे धीरे धागे को सुलझाना शुरू किया, करते करते कुछ धागे तोड़ते गांठ लगाते आखिर धागा को जैसे तैसे सुलझा ही लिया| अबकी माँ सा झलक के धागे को हथेली के लेती हुई कहती है – “आखिर आपने उलझन सुलझा ही ली |” कहकर वह हलके से होठों के विस्तार के साथ उसे देखने लगी| झलक को अब बहुत उलझन होने लगी थी एक तो तब से घूँघट में रहने से उसका दम घुटा जा रहा था ऊपर से उससे कोई भी काम टीक से नही हुआ वैसे उसे खुद से कुछ ज्यादा उम्मीद भी नही थी पर पलक सब इतनी सहजता से कर लेगी ये बात उसे ज्यादा हैरान कर गई थी|
कुछ दूरी पर नंदनी खड़ी सब देख रही थी, बल्कि उसका सारा का सारा ध्यान तो पलक पर ही टिका था| पलक को देखते हुए उसकी मुट्ठी अभी भी कसी हुई थी|
“शारदा हमे लगता है हमारी बिन्दनी अब बहुत थक गई होंगी – ऐसा करो बस प्याले की रस्म करा कर हम इन्हें आराम देते है|”
रानी सा की बात सुन शारदा हाँ में हाँ मिलाती हुई नंदनी की ओर देखती उसे इशारे से अपने पास बुलाती है| नंदनी के पास आते वह कहती है – “कहाँ थी तब से ?”
“यही थी |”
नंदनी तपाक से बोलकर अपनी हथेली अपने आंचल में छुपा लेती है|
“अच्छा – ऐसा कर प्याले की रस्म में दोनों की मदद कर – बिन्दनी के लिए ये नया है न |”
अपनी माँ की बात पर सहमति में सर हाँ में हिलाती हुई नंदनी उस ओर चल देती है जहाँ इस रस्म की तैयारी थी| नंदनी की आँखों के सामने कुछ प्याले और शराब की बोतल और कोल्डड्रिंक रखी थी| ये राजपूतों की विशेष रस्म होती थी जिसमे नई बिन्दनी प्यालों में उन ड्रिंक को डालकर अपनी बड़ी काकी सा और माँ सा को सर्व करती है, इससे उसके सलीके को मापा जाता है फिर बदले में उसे भी ड्रिंक सर्व की जाती है जिसे वह पीती है या नहीं ये देखा जाता है| नंदनी को अपने कार्यसिद्धि के लिए यही सटीक मौका लगा| वह सबकी नज़र से बचा कर एक कोल्डड्रिंक को गिलास में डालकर उसमे अपनी हथेली में फसी पुडिया को सारा का सारा उड़ेल कर अच्छे से मिला लेती है और निशानदेही के लिए उस कांच के गिलास के कोने को नाख़ून से कुरेद कर किरचे बना देती है ताकि पलक को गिलास देते गलती न हो| अब सभी बोतल और गिलास पलक और झलक के सामने थी| अनामिका आँखों से इशारा करके झलक को कुछ समझा रही थी वह पलक को भी समझाना चाहती थी पर अभी तक पलक ने एकबार भी न अनामिका की ओर देखा और न झलक की ओर|
पहले बोतल गिलास झलक में सामने आए उसने कोल्डड्रिंक की बोतल उठा ली और धीरे से गिलास में डालने लगी| मन में कई तरह के डर और संकोच होने से झलक ने अपने सामने रखे कई गिलास बड़ी बेतरतीबी से भरे कोई आधा भरा कोई पूरा तो किसी से तो बाहर ही छलक गई| माँ सा ये देखती होंठो के भीतर से मुस्करा दी| झलक छुपी आँखों से इधर उधर देखती हुई पहला गिलास माँ सा की ओर बढाती है वे उसे लेती हुई अगले ही पल उसे झलक की ओर बढाती हुई कहती है – “ये लीजिए ये आप पीजिए हमारी ओर से |” झलक समझ नही पाई कि क्या सच में उसे गिलास लेलेना चाहिए फिर कुछ सोच वह गिलास लेकर पीने लगती है| इसके बाद सबका ध्यान पलक की ओर जाता है जिसके बगल में खड़ी नंदनी का भी सारा ध्यान उसी की ओर था| पलक अपने सामने रखी बोतल में से शराब की बोतल को उठाती है तो सबसे ज्यादा झलक ही चौंक जाती है| फिर सभी देखते है कि सामने रखे छह गिलास में से तीन में वह शराब आधी भरती है तो बाकी के तीन गिलास में कोल्डड्रिंक भी आधी भरती है, सभी गिलास का माप इतना संतुलित था कि सभी देखती रही| माँ सा भी ये देख हौले से मुस्कराती हुई कहती है – “आपका संतुलन तो गजब का है |”
पलक घूँघट में अन्दर से ही मुस्करा रही थी, नंदनी को बिलकुल भी अच्छा नही लगा, वह देखती है कि अब पलक एक शराब का गिलास माँ सा के पैरो के पास रखती झुककर अभिवादन करती है जिससे माँ सा उसे बाजुओं से उठाती हुई कहती है – “हमे आपका अभिवादन अच्छा लगा – |” कहती हुई शारदा की ओर देखती एक गिलास उठाने का इशारा करती है और शारदा नंदनी को जो तब से बस इसी मौके की तलाश में थी| वह झट से अपने साथ लाए गिलास में से निशान वाले गिलास को पहचान कर उनकी ओर बढ़ा देती है| माँ सा गिलास लेकर पलक को देती हुई कहती है – “ये हमारी ओर से आपके लिए |”
गिलास उनके हाथ से लेकर पलक बैठती हुई अपने सामने रख लेती है| ये देख नंदनी को बड़ी खीज हो आती है – ‘आखिर ये पीती क्यों नही !’
“शारदा अब आप हमारी बिन्दनी का स्वागत की तैयारी करे ताकि वे अपने कक्ष में आराम करने जा सके |”
“जी |” झुककर स्वीकृति लेती शारदा तुरंत ही सेविका को कुछ संकेत देती है जिससे वे तुरंत ही आलता के रंगे थाल वही रख देती है| अब पलक झलक को उन थाल में से होकर बाहर निकलना था|
“आइए |” शारदा पलक और झलक दोनों को उस थाल पर से जाने का संकेत करती है|
झलक तुरंत ही थाल में खड़ी होकर उसको लांघती हुई बाहर निकलने लगती है| उसके बाद पलक भी थाल में खड़ी होकर उसे लांघती हुई निकलने लगती है| उनके निकलते वहां मौजूद सभी उसके साथ साथ बाहर निकलने लगी थी| सबके जाते जाते कोलाहल भी धीरे धीरे शांत होने लगा| पर इन सबके बीच खड़ी नंदनी अवाक् वह देख रही थी जिसपर किसी का भी ध्यान नही गया| सभी बिन्दनी के साथ दरवाजे से निकल रही थी पर किसी का भी ध्यान उन पैरो के निशाँ की ओर नही गया| झलक के पैरो के निशान जो सामान्य थे वही पलक के पैरो के सभी निशान से उंगलिया गायब थी| ये देखते नंदनी का गला सूख गया उसके मुंह से कोई बोल नहीं फूटे वह घबरा कर अब पीछे देखती है जहाँ ड्रिंक के गिलास रखे थे, और जिसका उसे यकीन नहीं हुआ ठीक वही हुआ उसका निशानदेही वाला गिलास खाली था| काटो तो खून नहीं वही हालत हो गई थी नंदनी थी| डर और घबराहट से उसका शरीर पसीने से भर उठा, वह घबराहट में होंठ दबाती हुई फिर से पलक की ओर देखती है जो भीड़ के साथ बाहर निकल रही थी|
क्या सच में जहर का गिलास पलक ने पी लिया !! या धोखा हुआ नंदनी को !! और क्या राज़ है उन पैरों के अधूरे निशान का !! जानने के लिए जुड़े रहे एक राज़ सीजन 3 से……….
.क्रमशः….
Very very👍👍👍😊😊😊👍🤔🤔🤔🤔🤔🤔