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एक राज़ अनसुलझी पहेली – 35

रात के खाने के बाद पंडित जी के सोते अनिकेत और जॉन हवा खाने छत पर टहल रहे थे| जॉन चिंतित स्वर में कह रहा था – “अनिकेत तुम्हारे पिता की मनस्थिति को देखते मुझे नहीं लगता कि तुम अभी जैसलमेर जा पाओगे – फिर आगे क्या कर पाएँगे हम !”

अनिकेत भी उसी स्वर में गहरा श्वांस छोड़ता हुआ कहता है – “हाँ जॉन – असल में बिना बताए मैं कभी पिता जी की नज़रों से दूर नही गया पर अभी इन छह माह की वजह से उनके मन में मेरे प्रति डर बैठ गया था कि कही वे मुझे खो न दे – अब ऐसी स्थिति में उनको छोड़कर कैसे मैं जाऊ मुझे खुद समझ नही रहा|”

जॉन अनिकेत की दुविधा को समझता उसे सांत्वना देता उसके कंधे पर हाथ रखता हुआ कहता है – “मैं समझ रहा हूँ उनकी भावना क्योंकि इन छह माह एक तरह से मैं भी इसी स्थिति से गुजरा जब तुम कोमा में थे – मैं क्या बताऊँ कई बार तो तुम्हारी हालत देख मेरा हौसला भी पस्त हो जाता था – बहुत बुरा एक्सीडेंट हुआ था तुम्हारा – काश उस पल में जाकर मैं उस शख्स का पता लगा पाता तो गॉड प्रोमिस मैं उसे जेल भेजकर ही दम लेता |” जॉन इतने आक्रोश से बोला कि उसे सँभालने अनिकेत ने उसके हाथ पर अपना हाथ रखते हुए कहा – “फ़िक्र मत करो दोस्त मैं भी उस शख्स को छोड़ने वाला नही हूँ – कभी कभी तो लगता है मैं उसका नाम जानता हूँ बस उसके खिलाफ सबूत जुटाना बाकी है  – नवल |”

“नवल !!” दोनों एकसाथ बोल पड़े|

“क्योंकि उसके सिवा मेरी मौत से और किसे फायदा होगा – और पलक से शादी करके उसने ये साबित भी कर दिया लेकिन मैं इस शादी को सच नही मानता ये धोखा है बस और ये सच मैं पलक को बता कर रहूँगा |”

“लेकिन अनिकेत हमारे पास किसी भी बात का कोई सबूत नही है – हमपर कोई क्यों विश्वास करेगा !!”

“पलक करेगी |” एकदम से कहता हुआ अनिकेत जैसे कही शून्य में देखने लगा, मानो उस शून्य में उसका समस्त अस्तित्व समाने लगा हो|

“पता नही क्योंकि अब पलक से किसी भी तरह से कोई संपर्क नही हो पा रहा – पहले तो लुसिड ड्रीम के जरिए मैं कुछ संकेत उस तक पहुंचा भी देता था पर अब उसकी कोई उर्जा तक मैं नहीं पहुँच पा रहा जैसे किसी अदृश्य ताकत ने उसकी उर्जा को बांध दिया हो इसलिए अनिकेत मुझे लगता है पलक जरुर कोई बहुत बड़ी मुश्किल में है और हमे जल्द से जल्द उस तक पहुंचना चाहिए |”

सहमति में जॉन हाँ में सर हिलाता हुआ कहता है|

“सही कहते हो जॉन पर अभी मैं विवश हूँ फिर भी मैं पिता जी से बात करने का प्रयास करूँगा |” जॉन की ओर दृढ़ता से देखता हुआ आगे कहता है – “और तब तक मैं खाली नही बैठूँगा – साधना के जरिए मैं सकारात्मक उर्जा को बढ़ाता रहूँगा |”

“हाँ बिलकुल और मैं भी यंत्र के माध्यम से पलक से सम्पर्क करने का प्रयास करता रहूँगा|”

दोनों की नज़रे सहमति में एकदूसरे से मिलकर और दृढ हो जाती है|

इधर पलक को देखते हुए नंदनी को उस पल जो आभास हुआ उसे सिर्फ वही महसूस कर पा रही थी पर उसके सामने खड़ी अनामिका नंदनी को अवाक् देख हैरानगी से फिर पूछती है – “क्या हुआ नंदनी ? इतनी हलकान क्यों दिख रही हो ?”

“व वो रानी सा…|”

“क्या कहा माँ सा ने – कोई संदेसा है उनका !!”

“वो तोरण के लिए आपको बुलाया है |” जल्दी से जो समझ आया वह बोल गई|

“अच्छा ठीक है – चलो |” कहती हुई अनामिका फिर पीछे पलटकर पलक की ओर देखती है और यही वक़्त नंदनी का ध्यान दुबारा पलक की ओर जाता है और जो दृश्य उन्हें दिखता है उससे दोनों एकसाथ चौंक जाती है|

“अभी तो यही थी पलक – इतनी जल्दी पलंग तक कैसे पहुंची ?” दोनों की अवाक् नज़रे एक ही दिशा में देख रही थी जहाँ फूलों की लड़ियों से सजे पलंग पर पलक लेटी हुई दिख रही थी पर दोनों ये सोचती हुई अवाक् थी कि एक ही क्षण में वह उनके पास से कब पलंग तक पहुंची !! जिस बात पर अनामिका सिर्फ हैरान थी उसी बात का अनजाना सा खौफ नंदनी के पूरे हाव भाव में झलक आया था|

“लगता है कुछ ज्यादा ही थक गई है – चलो आराम करने देते है |” कहती हुई अनामिका कक्ष से बाहर निकलने लगती है| उसके पीछे पीछे नंदनी भी निकलने लगती है आखिर इसके सिवा उसके पास चारा ही क्या था|

“नंदनी माँ सा कहाँ है इस समय ?” बाहर निकलते निकलते अनामिका पूछती है जिससे नंदनी को अपने झूठ का ख्याल आता है|

“ओह बाई सा – रानी सा अभी तो बैठक से निकल गई होंगी – मैं फिर से देखकर आपको बताती हूँ तब तक आप भी आराम करिए |” जल्दी से अपनी बातों का लेप लगाती वह अपने झूठ को संभाल लेती है|

“ठीक है तो फिर हम अपने कक्ष में जाते है |” कहती हुई बाहर निकलते वह नंदनी के विपरीत दिशा में चली जाती है|

अनामिका को जाता देख नंदनी एक सुकून की साँस छोड़ती हुई आगे जाने लगती है फिर कुछ सोच पीछे पलटकर उस कक्ष का दरवाजा बंद करने लगती है| दरवाजा बंद करके अचानक उसकी दृष्टि दरवाजे की कुण्डी पर ठहर जाती है|

“ये क्या इसमें तो रक्षा सूत्र है ही नहीं |” खुद से बोलते हुए उसकी धडकने तेज हो गई|

रात्रि का प्रथम पहर था हालाँकि अँधेरे को मात देने महल में अतिविशिष्ट रौशनी की गई थी जिसकी जगमगाहट चारोंओर पसरी थी फिर भी जो इस वक़्त नंदनी की नज़र देखकर समझ पा रही थी वो उसके होश ही उडाए थी| नवल के शयनकक्ष के बाहर रक्षासूत्र के न होने से उसके मन का डर और संदेह कई गुना बढ़ गया था|

“ये सब हो क्या रहा है – कुछ तो जरुर बहुत बुरा हुआ है या होने वाला है |”  खुद में ही बडबडाती हुई नंदनी उलझी हुई इधर उधर देखने लगी – “क्या करूँ !! क्या करूँ कुछ समझ नही आ रहा – पर ये तो तय है कि ये कोई तो अजीब शक्ति है – माँ ने एक बार कहा भी था कि बिना रक्षासूत्र मानो कुछ बहुत बुरा -|” ये सोचते नंदनी की रुलाई फूट गई – “जो भी हो पर मैं अपने कुंवर सा को अपनी जान देकर भी बचाऊँगी – हाँ बिलकुल पर करूँ क्या ?” सोचती सोचती नंदनी तेजी से वहां से निकलकर उस ओर जाने लगी जहाँ कुंवर के मिलने की उम्मीद थी| वह बहुत देर से इधर उधर से भटकती हुई आखिर आवाज सुन किसी कक्ष के बाहर आकर रुक जाती है| उस कक्ष के अन्दर से तीनो कुंवर की आवाज आ रही थी| वे आपस में हँसी मजाक करते बीच बीच में कसकर हँस पड़ते| उ कक्ष के बाहर खड़ी नंदनी की हिम्मत नही हुई कि अन्दर जाकर कुछ कह सके| वह कुछ पल अपनी उखड्ती सांसो को संभाले वही खड़ी रही|

“नवल भाई आज तो आपको कुछ ज्यादा ही जल्दी है – वरना यूँ शतरंज में हमे जीतने न देते आप |” ये हँसती हुई आवाज रूद्र की थी|

“क्या भाई सा आप भी |” नवल ख़ुशी दबाते हुए कहता है|

“ये शौर्य को क्या हुआ है तब से देख रहे है हम फोन पर ही लगे है – क्या झलक  जी का फोन है क्या !”

रूद्र की टोक से शौर्य तुरंत उसकी ओर मुड़ता हुआ मोबाईल अपनी पॉकेट के हवाले करता अतिरिक्त मुस्कान के साथ वही आ जाता है| उस वक़्त नवल और शौर्य कुछ ज्यादा ही सजीले बने संवरे दिख रहे थे| उनकी ओर गौर से देखता हुआ रूद्र कहता है –

“आज आप दोनों को देखकर तो हमारा मन अपनी फस्ट नाईट याद कर रहा है – लगता है मन हमारा भी बेकाबू हो जाएगा आज |”

इस बार तीनों की समवेत हँसी का स्वर वहां गूँज उठा|

पर ये सुन नंदनी का मन काँप उठा और तुरंत ही वह वहां से भागती हुई निकल गई| उसे कुछ समझ नही आ रहा था बस मन में अजीब सी उथल पुथल मची थी| अगले ही पल भागती दौड़ती हुई वह फिर से उस कक्ष के बाहर थी जिसके अन्दर पलक थी पर इस बार वह अन्दर जाने की हिम्मत नही जुटा पाई|

“किसी तरह से अपने कुंवर सा को मैं यहाँ आने नही दूंगी |” वह वही खड़ी कुछ सोच ही रही थी कि तभी दो सेविकाओं को हाथ में ट्रे लिए आते वह देखती है| ये देख वह तुरंत ही उनकी ओर बढती हुई इशारे में क्या पूछती है जिसका वे मुस्कराती हुई जवाब देती है –

“नंदनी जी – ये तो केसर दूध है जो हम कक्ष में रखने जा रही है|”

वे सेविका अपनी बात कहकर मंद मंद मुस्करा रही थी तो वही नंदनी हवाइयाँ उड़े भाव से उन्हें देख रही थी|

जब नंदनी की ओर से अपनी बात का कोई प्रतिउत्तर नही मिला तो वे दुबारा एकसाथ पूछती है – “तो क्या हम जावे !”

अबकी उनकी बात से जैसे उसकी तन्द्रा टूटी और वह तुरंत बोल पड़ी – “केसर दूध – क्या तुम लोगों को मालूम न पड़ा कि नई बिन्दनी को केसर दूध न भावे है |”

“ओह हमे तो पता ही नही चला – हमसे तो भूल हो जाती – हम दूसरा दूध लाती है|” कहती हुई वे तुरंत ही पलटकर वापस चली गई| उनके जाते नंदनी के दिमाग में कुछ आता है और वह तेजी से वहां से निकल जाती है|

क्या होगा अब आगे !! क्या नंदनी नवल को सच में बचा पाएगी या होगा कुछ और !! अनिकेत का पलक से कब होगा सामना जानने के लिए पढ़ते रहे अगला भाग…

क्रमशः……

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