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एक राज़ अनसुलझी पहेली – 36

नंदनी को कुछ समझ नही आ रहा था, वह बेतहाशा कही भागी जा रही थी| महल की भीड़ में उसकी निगाह को शायद अपने बापू की तलाश थी क्योंकि इस अजीबोगरीब परिस्थति से निकलने का वही कोई रास्ता सुझा सकते थे|

रानी सा के गले में मोती का हार का कुंडा सहेजती हुई शारदा उनकी ओर झुकती हुई कहती है – “अब चोखे लागे है |”

शारदा को लगा था कि रानी सा उसकी बात का कोई प्रतिउत्तर देगी पर वे खामोश उस आदमकद शीशे से सामने खड़ी रही| वह किसी गहन सोच में थी जिससे शारदा चुपचाप अब उनकी साड़ी की सिलवटे ठीक कर रही थी|

“खम्मा घणी हुकुम |”

आवाज से उन दोनों की तन्द्रा भंग होती है और वे देखती है नागेन्द्र जी हाथ जोड़े खड़े अभिवादन कर रहे है, उन्हें देख रानी साहिबा तुरंत उनकी तरफ पलटती है जैसे तबसे उन्ही का इंतजार कर रही हो|

“नागेन्द्र जी कल कुछ खास विदेशी मेहमानों की आवभगत के लिए हमने सैंड ड्युन्स में प्रबंध कराया है और इसीलिए हम चाहते है कि कोई ख़ास व्यक्ति महल से जाए जो हमारी रियासत का गुणगान उनके सामने कर सके – आप बताईए – कौन बेहतर तरीके से कर सकता है ?” वे प्रश्नात्मक मुद्रा में बारी बारी से शारदा और नागेन्द्र जी को देखती है जो खुद उनकी बात से उलझे हुए लग रहे थे|

कुछ पल जब वे दोनों सोच में पड़े रहे तो रानी साहिबा खुद कह उठी – “क्या भुवन कर सकता है ये काम – आखिर ढोला था कभी !”

रानी साहिबा की बात सुन जहाँ शारदा के चेहरे पर हलकी मुस्कान आ गई वही नागेन्द्र जी का भाव अजीब हो गया| उसे विश्वास नही हुआ कि वे भुवन पर इतना विश्वास दिखाएंगी| वह खामोश रहा तो शारदा तुरंत कह उठी –

“जो हुकुम – आपने इतनो विश्वास से कहा है तो वह जरुर करेगा |”

“तो ठीक है शारदा आप उसे समझा दे और तुरंत वहां के लिए रवाना कर दे |”

“जो हुकुम |” हाथ जोड़ अभिवादन कर शारदा तुरंत ही वहां से निकल गई|

उसको जाते देख नागेन्द्र रानी साहिबा की ओर देखता हुआ पूछता है – “म्हारे लिए किया हुकुम है ?”

उसी मुद्रा में खड़ी खड़ी वे कहती है – “नागेन्द्र जी आप अभी तुरंत ही भुवन के जाने का प्रबंध कीजिए और ख्याल रहे वह मेरे हुकुम के बिना यहाँ वापिस न आए |”

उनकी बात पर वे कुछ क्षण आश्चर्य से उनकी ओर देखते रहे फिर हामी में सर झुकाते वहां से चले गए उसके जाते वे मन ही मन खुद को आश्वस्त करने लगी – ‘भुवन का आना हमे पहले भी नही सुहाया था – पहले इसे भेजकर देखते है महल में हमारी पीठ पाछे क्या हो रहा है क्योंकि कोई तो है जो हमारे सिवा भी उस दरवाजे का भेद जानता है |’ सोचते सोचते वे अपने होठं भींच लेती है|

प्रथम रात्री का उन्माद सजे राजकुमारों के हाव भाव से झलक रहा था| उनकी अपने कमरों में रुक्सती से पहले नज़र उतारने की रस्म हो रही थी जिसे भाभी सा तोरण लगे मंडप के बीच बैठाकर कर रही थी साथ साथ कुछ हँसी ठिठोली भी कर लेती|

“देवर सा हम तो आज रात भर नज़र उतारते रहेंगे – क्या पता कितनो की नज़र लगी हो |” अनामिका की हँसी से नवल और शौर्य के साथ साथ कुछ दूर बैठे रूद्र की भी हँसी छूट गई|

“हमे मंजूर है भाभी सा – आखिर आप भी तो बनी रहेंगी हमारे साथ |” कहते हुए नवल के  होंठो के किनारे फ़ैल गए तो वही अनामिका शरमा गई|

अब रानी सा के आते रस्म पूरी कर रूद्र उन दोनों को लिए बाहर निकल जाता है| ये रस्म थी कि रूद्र ही दोनों दुल्हा को उनके कक्ष तक पहुंचेगा पर वहां से निकलते उन तीनों का मन एकसार होता बार की ओर मुड़ गया| बिना रात के रोमांच को सेलिब्रेट किए वे अपने अपने कमरों में जाने को तैयार न हुए|

महल के एक हिस्से में बार भी था जो बेहद खूबसूरती से सजाया गया था जिसके अन्दर एक कृत्रिम ताल जिसमे एक जलपरी की बुत लगी थी और जिसके शरीर से बहते झरने से वह ताल रंगबिरंगी रौशनी के बीच भरता रहता| वही कुछ आरामदायक कुर्सी जिनपर लेटकर भी उन रंगीनीयों का आनन्द लिया जा सकता था| इस समय बार में मौजूद सेवक को वे बाहर भेज कर खुद के लिए ड्रिंक बनाने लगते है| रूद्र की इच्छा पर वे अपना अपना गिलास लिए आराम कुर्सी पर जम गए थे| पहले तो वे अपने बिजनेस की बात करते रहे फिर शौर्य के बार बार मोबाईल चेक करने से शंकित होते रूद्र कह उठे – “कोई प्रॉब्लम है शौर्य – हम तब से देख रहे है आप मोबाईल को बार बार देख रहे है – क्या किसी ख़ास का फोन आना है क्या |” अपना आखिरी शब्द थोडा मुस्करा कर कहते है|

शौर्य राजकुमारी वैजन्ती से फोन पर लगा होगा ये नवल समझ चुका था लेकिन उससे अभी रूद्र अनजान था|

“नही भाई सा – अब हम चलते है |” वह तुरंत ही अपना गिलास का सारा एक घूंट में गटकता हुआ खड़ा हो गया|

“रुकिए हम भी चलेंगे बस सोचा आज की रात थोडा सेलिब्रेट कर ले |”

रूद्र की बात सुन शौर्य जल्दी से कह उठा – “नही भाई सा आप अपनी ड्रिक आराम से खत्म करिए हम चलते है |” बिना उसके उत्तर की प्रतीक्षा किए शौर्य गिलास रखता बाहर चला गया|

“हमे नही पता आपको इतनी जल्दी है – शुभकामनाएं हमारी |” शौर्य ने जाते जाते रूद्र का हँसते हुए स्वर सुना पर फिर भी वह रुका नही|

रूद्र को जाते देख तुरंत ही नवल के चेहरे के भाव बदल गए और वह तीखी सी नज़र रूद्र की ओर करता हुआ कहता है – “भाई सा हमे वो चमत्कारी पत्थर नही मिला |”

“क्या !!” एक ही झटके में जैसे उसके हाव भाव बदल गए और आश्चर्य से नवल की ओर देखता हुआ कहता है – “हमे लगा वो आपको मिल गया होगा !! पर मिला क्यों नही क्या ताला नही खुला या ..!”

“कोई हमसे पहले उसे ले गया – |”

“ले गया |” रूद्र अपने से उखड़ता हुआ तुरंत खड़ा हो गया|

“इतनी मेहनत के बाद हमारे हाथ खाली रहे |”

अबकी नवल भी उनके सामने खड़ा होता उनका चेहरा गौर से देखता हुआ कहता है – “भाई सा आपके हमारे और राजगुरु के अलावा किसी को हमने इसके बारे में नही बताया था अब आप ही सोचिए कहाँ जा सकता है|”

नवल की बात सुन रूद्र अब सख्त नज़रो से उसकी ओर देखता हुआ कहता है – “कहना क्या चाहते हो नवल – क्या हम पर शक है आपको !!”

“नही नही भाई सा – बस हम आपसे पूछ रहे है कि आपका अनुमान क्या कहता है ?” वह अभी भी रूद्र पर अपनी नज़र गड़ाए था जबकि रूद्र के हाव भाव सख्त हो गए थे|

“हमे नही पता नवल आप क्या सोच रहे है पर आप अच्छे से जानते है कि जब आपने उस पत्थर की जिक्र हमसे किया था तब भी हम आप पर ही निभर थे क्योंकि आपने जितना बताया हम बस उतना ही जानते है उसके बारे में इसलिए अब आप खुद तय कर लीजिए कि अगर उसे हम खुद पाना चाहते तो आपकी मदद नही लेते |”

कुछ पल दोनों एकदूसरे को सख्त नज़रो से देखते रहे फिर रूद्र अपना गिलास रखता हुआ कहता है – “आप चलेंगे क्योंकि हमे अब नींद आ रही है |”

“हम कुछ देर यही रुकेंगे |”

ठीक है कहता रूद्र तुरंत ही वहां से चला जाता है जबकि नवल वही खड़ा उसे जाता हुआ घूरता रहता है|

भुवन भी नंदनी के लिए परेशान था क्योंकि जहर की पुडिया थमाने के बाद क्या हुआ उसे कुछ नही पता क्योंकि कुछ भी होता तो राजमहल में हडकंप जरुर मचता, इसलिए नंदनी को लेकर उसका मन बहुत आशंकित था| लेकिन महल में मेहमानों के बीच से निकलकर नंदनी को खोजना मुश्किल हो रहा था उसपर शारदा आकर रानी सा का हुकुम सुनाती हुई कहती है – “देखो पहली बार है जो रानी सा थारे पर विश्वास करने को कहा है तो जो कहे सो करणा – |”

हर बार शारदा की बात हँसी में लेता भुवन गंभीर बना रहा – “शारदा थारे को कुछ बताना है |”

“भुवन जल्दी कर मेह वही जा रिहा है – चल जाल्दी |” नागेन्द्र उसके सामने तेजी से आते उसे लगभग खींचते हुए अपने  साथ ले जाने लगते है|

“थोड़ी देर रुको आता हूँ |” भुवन फिर बड़ी बेचारगी से शारदा की ओर देखता है जो उसकी बात को नज़रन्दाज करती उसे जाने को कहती है|

इधर नागेन्द्र जी भी जल्दी कर रहे थे उधर शारदा उसकी बात नही समझ रही थी आखिर क्या करता वह मन मारे वहां से चला जाता है|

नंदनी को जब उसका बापू नही मिलता तो वह अपनी माँ के कमरे में आती कुछ खोजने लगती है| आहट सुन वही सोता उसका भाई जाग जाता है| आँख खोले वह नंदनी को देख अचरच में पूछता है – “के बात है बाई सा – कुछ चाहिए ?”

एकदम से भाई को जगा देख वह जल्दी से अपनी घबराहट पर काबू करती हुई कहती है – “न नहीं दादा भाई सा – कुछ नही – आप सो जाओ |”

नंदनी का आश्वासन सुन वाकई वह फिर लेट जाता है| उसके लेटने के कुछ पल बाद फिर धीरे से एक दराज खोलकर वह कोई दवाई को ध्यान से देखती हुई उठा कर अपने आंचल में दबा लेती है|

नवल अभी भी बार में मौजूद था और इस बार एक नीट अपने हलक में उतारता हुआ एक मुक्का प्लेटफोर्म पर मारता हुआ खुद में ही बुदबुदाता है – “हमसे इतनी बड़ी गलती कैसे हो सकती है – हमने रूद्र भाई को क्यों बताया ये – न बताते तो कम से कम ये तो पक्का रहता कि हमारी पीठ पीछे किसने खंजर भोका है – अब कैसे पता करे कि हमारी मेहनत पर किसने पानी फेरा है – क्या उस किताब में इसके खोने का जिक्र होगा – हमे फिर से उसके बारे में सब पता करना होगा क्योंकि हाथ आया अवसर हम यूँही नही खो सकते – हम इतनी आसानी से उस गद्दार को अपनी नज़रो के सामने से नही जाने दे सकते – हमे पता करना ही होगा कि वह पत्थर आखिर है किसके पास और जिसके पास भी होगा वह उसका चमत्कार किए बिना नही रहेगा इस तरह से हम उस कलप्रिट तक पहुँच ही जाएँगे|”

अपने से बातें करता करता नवल गिलास में दुबारा जाम भरने लगता है कि पायल की आवाज से उसकी दृष्टि अपने सामने की ओर जाती है जहाँ से किसी को आता देख वह उस मध्यम रौशनी में उसे गौर से देखने लगता है| वह जो भी थी धीमे धीमे चलती उसके पास आ रही थी, उस वक़्त उसके सर पर आँचल इतना रखा था कि उसकी ऑंखें छुपी हुई थी वह हाथ में कुछ लिए उसकी ओर बढती आ रही थी|

जब तक नवल अपनी नशेडी आँखों स उस शक्ल को देखने का प्रयास कर रहा था वह उसके पास आती हुई बिलकुल उसके सामने रूकती हुई कहती है – “कुंवर सा ये प्रसाद है – हमने आपके लिए उपवास रखा था – आप इसे खा ले तो हमारा व्रत पूरा हो |” 

वह नंदनी थी जो अपने हाथ में कोई मिठाई का टुकड़ा बड़े सलीके से लिए उसकी ओर बढ़ा रही थी पर नवल पर तो कुछ और ही नशा सवार था जिससे उसे लगा वह पलक है|

“आपका व्रत तो हमी तोड़ेंगे – पास तो आइए हमारे |” कहता हुआ नवल उसे अपनी ओर खींच लेता है जिससे वह उसके सीने के बहुत पास आ जाती है|

उस पल नंदनी की हालत बिन पानी के मछली जैसी थी सामने मन भावन सावन फिर भी उसका मन सूख का कांटा हुआ जा रहा था| वह किसी तरह से साहस करती कांपते हाथो से नवल के मुंह में वह टुकड़ा पूरा रख देती है| नवल में उसे अपने  होठो के भीतर लेता उसकी उंगलिया चूम लेता है जिससे नंदनी के  तन बदन में झुरझुरी सी छूट जाती है| उसक मन खुद पर से बेकाबू हुआ जा रहा था उसे लग रहा था कि इस पल और वह रुक गई तो वह अपना समस्त मन हार बैठेगी| हालाँकि वह जानती थी कि विवाह होने से इस हद की हकदार वही थी पर इस तरह से नही वह तो सच की तरह नवल की जीवन में आना चाहती थी| वह तुरंत ही पलटकर जाने लगती है पर इसका कहाँ पता था कि नवल अपनी हद ही बढ़ा लेगा| वह जाती हुई नंदनी का हाथ कसकर पकड़कर अपनी ओर खींच लेता है जिससे नंदनी की पीठ अब नवल से सट गई थी| नंदनी की धड़कने धौकनी सी चल पड़ी थी|

“ओह पलक आप को हमारा इंतज़ार करते देर हो गई न – अच्छा हुआ जो आप खुद आ गई – इस मदहोशी भरी रात में हम बहुत तनहा हो गए थे – आप हमारे जीवन में झंकार की तरह आई है |”

नंदनी पर नवल का स्पर्श असर कर रहा था पर पलक का नाम सुन उसका मन तुरंत ही धुँआ हो उठा, मन कसैला हो उठा| उस पल उसका मन हुआ कि बता दे कि वह कौन है पर जज्बातों ने उसके होठ सिल दिए|

“आपको क्या बताए कि हमे आपका कितना शिद्दत से इंतज़ार था – जब पहली बार आपको देखा था तभी से आपको पाने की चाहत हमारे मन थी और ज्यों ज्यों आप हमसे दूर होती हमारा मन आपको पाने को और भी तड़प उठता – उफ़ क्या खुशबू है आपकी |” कहता हुआ वह अपने होठ उसके कान से स्पर्श करता उसके बालों पर सहलाने लगता है| नंदनी का चेहरा नवल के विपरीत था इसलिए नवल उसका घबराया हुआ चेहरा देख नहीं पा रहा था| वह उसे कमर से कसकर पकडे अपने होठ से उसे स्पर्श कर रहा था कि तभी कोई और वहां आया जो ये दृश्य देख अपनी जगह थमा रह गया| नवल जहाँ नंदनी को पलक समझ उसके जिस्म को अपने में दबोचे था वही नंदनी डरकर आंख बंद किए थी| इससे उन्हें खबर ही नहीं हुई कि उसी वक़्त रचित जो किसी काम से वहां आया था पर उस पल नंदनी को नवल की बाँहों में देख हकबक सा उनको देखता रह गया|

जिस्म से रूह तक तो रूह से जिस्म तक होता कोई अनजाना नाता जो ठहरा रहता है होंठो पर नज्म लिए….रखिए थोडा इंतज़ार…क्रमशः…………

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