
एक राज़ अनसुलझी पहेली – 37
नंदनी नवल की बाँहों में कसकर गिरफ्त थी और उस वक़्त जो उसके मन की हालत थी वह उसके सिवा और कौन समझ सकता था कि नवल का स्पर्श उसपर अपना प्रभाव छोड़ता उसमे कितना उन्माद भर रहा था पर फिर भी वह बुत बनी उस पल के प्रति तटस्थ बनी रही| रचित से ये दृश्य और न देखा गया और आँखों से घूरता वह तेजी से वहां से वापस चला गया| नवल की बाँहों में जकड़ी नंदनी की खुली कमर पर उनकी उंगलिया धीरे धीरे रेंग रही थी तो उसी क्रम में उसके होंठ नंदनी के बालों से होते उसकी गर्दन और कंधे को बराबर चूम रहे थे| नंदनी आंख बंद किए जैसे कोई प्रार्थना में डूबी थी| नंदनी की खुली पीठ की डोरी पर हाथ फेरते नवल अब उसे आहिस्ता से चूम ही रहा था कि एकाएक वह लडखडा गया| नंदनी जैसे इस पल के लिए पहले से तैयार थी जिससे तुरंत ही पलटकर उसे अपनी दोनों बाँहों के बीच किसी तरह से संभाल लेती है| नवल की तन्द्रा धीरे धीरे गुम हो रही थी जिससे उसका खड़ा होना मुश्किल हो गया| नंदनी उसके पूरी तरह से बेहोश होने से पहले उसे किसी तरह से थामे आराम कुर्सी पर लेटा देती है| आराम कुर्सी पर लेटते उसका शरीर जैसे ढह जाता है और नंदनी से उसकी पकड़ पूरी तरह से छूट जाती है| नंदनी भी उसे आराम से लेटाकर अब गौर से उसके चेहरे को देखती हुई धीरे से बुदबुदाती है – ‘मुझे माफ़ कर दीजिए कुंवर सा – मैं कभी आपके साथ ऐसा नही करना चाहती थी पर अभी आपको बेहोश छोड़ने के अलावा मेरे पास कोई उपाय नही था – आखिर मैं कैसे आपको पलक के पास जाने देती जबकि विवाह तो आपका मेरे साथ हुआ है और वो तो पलक भी नही है – मुझे नही पता वो कौन है पर जो भी है जब तक मैं नही जान लुंगी आपको उसके पास हरगिज नही जाने दूंगी |’ बेहद उदासी से अपनी बात खत्म कर वह नवल का सर कुर्सी की पीठ पर ठीक करती हुई नम आँखों से कुछ पल तक उसे निहारती रहती है| फिर मन मारे आखिर बड़े भरी कदमों से वह वहां से निकलती हुई अपने में गुम खुद को सांत्वना देती रही – ‘माँ की ये नींद की गोली है – इससे कुंवर सा बस रात भर नींद में रहेंगे और कुछ नही होगा उनको – हाँ कुछ नही होगा – मैं मजबूर थी नही तो प्रसाद के बहाने उन्हें नींद की दवा न देती – उम्मीद है आप मेरे इस कृत्य के लिए मुझे माफ़ कर देंगे |’ अपनी नम आँखों को पोछती हुई वह दबे पैर वहां से चली गई|
शौर्य तब से अपने कमरे में जाने के बजाये किसी एकांत में सबकी नज़रो से छुपा अभी भी अपने मोबाईल में लगा था| असल में वह तबसे वैजन्ती को फोन लगाने में लगा था पर उसका फोन काफी देर से स्विच ऑफ़ बता रहा था जबकि वैजन्ती हमेशा किसी वक़्त भी उसकी एक रिंग पर भी जवाब देदेती थी पर आज की उसकी रुखाई का कारण उसे पता था फिर भी मन था कि अपनी प्रेम की पनाह से निकलने को तैयार ही नही था| तब से बार बार स्विच ऑफ़ का नोट सुनता शौर्य अब उसके लिए एक वोइस मेसेज रिकॉर्ड करने लगता है – ‘वैजन्ती आप हमारा फोन क्यों नही उठा रही है आपको पता है न आपकी आवाज सुने बगैर हम नींद की आगोश में नही जाते फिर सब जान कर भी हमारे प्रति ऐसी बेरुखी क्यों – अब अगर सुबह तक आपने हमारे मेसेज का कोई जवाब नही दिया तो हम आ रहे है आपके पास – हाँ सब छोड़कर हम आ जाएँगे आपके पास |’ रिकॉर्ड करके तुरंत ही उसे सेंड कर शौर्य एक गहरा श्वांस लेकर छोड़ता हुआ मोबाईल अपनी पॉकेट के हवाले करके थके क़दमों से अपने कक्ष की ओर चल देता है|
आज की रात तो नींद रानी साहिबा की आँखों में भी नही थी, वह अभी भी उस दरवाजे के बारे में सोचती हुई परेशान थी पर कहे भी तो किससे जो राज़ उनके सीने में दफ़न था| वे राजा साहब की तरफ करवट लेती अभी भी आंख खोले थी कि एकाएक उन्हें लगा कि राजा साहब की साँसे कुछ तेज हो गई है| राजा साहब की पीठ उनकी तरफ थी जिससे वे चिंतित होती झट से उन्हें हौले से छूती हुई पूछती है –
“क्या आप जाग रहे है !”
रानी साहिबा को विश्वास नही आया कि सच में जाग रहे होगे, वे तुरंत ही उनकी तरफ पलटते हुए कहते है – “जाग तो आप भी रही है – हमे लगा आप सो गई होंगी |”
वे उनकी तरफ जिस चौकस निगाह से देखते है उससे वे समझ जाती है कि लगता है राजा साहब सोए ही नही थे|
“हम सो गए थे बस अचानक नींद खुल गई पर आप क्यों नही सोए आधी रात हो रही है – आप बेहतर तो महसूस कर रहे है न !”
वे देखती है कि राजा साहब गहरा श्वांस छोड़ते अब पीठ के बल लेटे छत की ओर देखते हुए कहते है – “पता नही पर कुछ अजीब सा महसूस हो रहा है जैसे कुछ बुरा होने वाला है |”
“ये क्या कह रहे है आप ?” वे चौंकती हुई उठकर बैठ जाती है|
“हाँ प्रिय – कुछ अजीब सा महसूस हो रहा है जिसने हमे आंख बंद नही करने दी –पहले आप हमारे पास आइए – हम आज आपको कुछ बताना चाहते है |”
राजा साहब के शब्दों ने रानी साहिबा के होश उड़ा दिए थे क्योंकि आज से पहले उन्होंने कभी इस तरह की बात नही की, डर तो वह पहले ही से रही थी पर अब धड़कने और तेज हो गई फिर किसी तरह से अपने मनोभावों पर नियंत्रण करती वे उनके थोडा और पास सरकती हुई बोली – “हम आपके पास ही है |”
वे उनके पास आती उनका सर सहलाने लगती है जिससे राजा साहब उनका हाथ थामे लेटे लेटे ही कहते है – “आज सच में हमे बहुत अजीब लग रहा है जैसे कुछ होने वाला है |”
“क्या !!” उनकी आवाज भी कांप उठी|
“पता नही बस मन में बार बार यही अहसास हो रहा है |”
“रुकिए – हम अभी डॉक्टर को बुलाते है |” कहती हुई वे उठने का उपक्रम करने लगी पर राजा साहब ने उनका हाथ नही छोड़ा जिससे वे आश्चर्य से उनकी ओर देखती रही|
“आप समझ नही रही है – हम अपनी तबियत की नही बल्कि कुछ और बात कर रहे है – कुछ ऐसा जो अभी आप नही जानती है -|”
ये सुन रानी साहिबा अजीब तरह से उनका चेहरा देखती रही|
“हाँ प्रिय – हमने एक राज़ आजतक आपको नही बताया पर यकीन मानिए उसके पीछे हमारा कोई स्वार्थ नही बल्कि हमारे पिता साहब की कसम थी पर अब शायदा उस कसम का कोई अर्थ नही बचा इसलिए आपका उस सच को जानना बहुत जरुरी है |”
राजा साहब बोलते जा रहे थे और उसी क्रम में रानी साहिबा के चेहरे के भाव चढ़ उतर रहे थे, मन में अजीब सी उथल पुथल मची हुई थी इसलिए उन्हें बिना रोके टोके वे बात कहने दे रही थी|
“आपको इतना तो पता है कि श्राप से हमारी पहली रानी और आपकी बड़ी बहन की असामयिक मृत्यु हुई तब हम भी बहुत सारी बातों पर यकीन नही करते थे लेकिन सिर्फ यकीन न करने से सच झूठ नही हो जाता और इस सच को अजमाने में हमने अपनी पहली रानी को खो दिया |” एक ठन्डे श्वांस के साथ वे आगे कहते रहे – “इसलिए एक और सच है जिसे हमने अजमाने का प्रयास नही किया बस उस पर यकीन कर लिया..|” कहते कहते अचानक उन्हें खांसी आ गई जिससे रानी साहिबा तुरंत उनका सीना मलती हुई कह उठी – “आप अभी आराम करिए – हम कल सुबह बात कर लेंगे |”
“सुनिए अभी आप हमारी बात – हम अभी अपनी बात कह सकते है – |” राजा साहब की जिद्द पर वे फिर मौन होकर उनकी बात सुनती हुई अब उनका सीना सहलाने लगी थी – “आपको पता है न उस दरवाजे का राज़ जिसकी चाभी हमने आपको सौंपी है और आपको ताकीद भी दी कि कोई उसे न खोले |”
“अगर खुल जाए तो !” वे तुरंत पूछ उठी|
“तो अनर्थ होने से कोई नही रोक पाएगा – रानी इसलिए हमने आपको वो चाभी सौपते हुए कहा था कि आप उसका राज़ किसी को भी उजागर मत कीजिएगा क्योंकि लालच में कोई भी उस द्वार को खोल सकता है और अगर वो द्वार खुल गया तो आपको नही पता कितना बड़ा तूफान आ जाएगा |”
अबकी रानी का हाथ रुक गया और वे होंठ काटती हुई अन्यत्र देखने लगी|
“क्योंकि उस द्वार के पीछे जो उर्जा है वो आजाद हो गई तो वही होगा – जो आज से 54 साल पहले हमारे पिता साहब के सामने हुआ था – वो ..|” कहते कहते अचानक उन्हें कुछ ज्यादा ही तेज खांसी आ जाती है जिससे वे एक ओर करवट ले लेते है| रानी साहिबा जल्दी से उठकर पानी का गिलास लिए उन्हें हलके से उठाकर पिलाने लगती है|
वे दो घूंट गले के नीचे उतारकर फिर से अपनी उखड़ी सांसे नियंत्रित करते हुए कहते है – “आप बस – इतना ध्यान रखिए कि किसी भी हालत में वो दरवाजा न – खुलने पाए – न खुलने पाए |” कहते हुए वे अपनी ऑंखें मूंदे हलकी हलकी साँसे लेने लगते है|
पर इतना सब सुनते रानी साहिबा के होश ही उड़ गए थे, अब कैसे कहे कि वे खुद का लालच नही नहीं दबा पाई !! और क्या हुआ था उनके पिता के साथ !! उस पल बहुत कुछ उनके दिमाग की परते कुरेदने लगा था लेकिन उस पल वे राजा साहब की हालत के कारण खुलकर कुछ उनसे नही पूछ पाई बस मन मसोजे होंठ काटती हुई उनकी पीठ देखती रही|
शौर्य का मूड पूरी तरह से उखड़ा था जिससे वह तेजी से अपने कमरे में वापिस आता पहले एक सरसरी निगाह कमरे की फूलो की सजावट पर डालता होंठ सिकोड़े सीधे अपने ड्रेसिंग रूम की ओर बढ़ जाता है| एक बार भी उसकी नज़र बिस्तर पर लेटी झलक पर नही जाती| ड्रेसिंग रूम का डोर खोलते उसकी लाईट अपने आप ओपन हो जाती है जिसकी कृत्रिम रौशनी में करीने से सजे उसके कपडे की लम्बी कतार फिर नीचे तरह तरह के जूते, मोजरी और बूट की कतार थी| शौर्य उसके अन्दर आता पहले घड़ियों की कतार में अपनी कलाई की घडी उतारकर रखता हुआ अपनी मोजरी उतारकर नीचे डाल देता है फिर अपनी शेरवानी उतारने लगता है| चेंज करते करते उसका ध्यान अचानक किसी पुकार पर जाता है और वह ड्रेसिंग रूम के दरवाजे के पार नज़र डालता है जहाँ झलक उसे खड़ी दिखती है|
“शौर्य जी..!” कहती कहती सहसा झलक चुप हो जाती है क्योंकि शौर्य इस समय कम कपड़ो में उसके सामने खड़ा था जिससे संकुचाती वह अन्यत्र देखने लगी|
पर आवाज सुन शौर्य की नज़र बस झलक पर टिकी रह गई थी जो शायद उसका इंतज़ार करते करते थककर सो गई थी और अब शायद उसकी आहट पाते वहां आ गई| उसका निंदासा चेहरा अब घबराहट प्रद्रर्शित कर रहा था| झलक दुल्हन का लिबास उतारकर इस समय वन पीस नाईटी में थी जिसमें से झलकता उसका जिस्म रेत में ओस सा चमक रहा था| झलक सांस रोके जैसे अपने स्थान पर जमी रह गई इसलिए वह नही देख पाई कि शौर्य अब उसकी ओर बढ़ता हुआ उसके बहुत पास आ गया था| उसके पास आते शौर्य उसके कंधे पर अपने हाथ रखता उसकी नाईटी के बंधन की डोर खोल देता है जिससे पल में विवस्त्र झलक को गोद में उठाए शौर्य बिस्तर तक लेजाता उसकी ओर झुक जाता है| उस पल शौर्य के दवाब से बिस्तर पर सजी लड़ियाँ एक झटके से टूटकर जमीन पर बिखर जाती है|
क्रमशः…………………………………..
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