Kahanikacarvan

एक राज़ अनसुलझी पहेली – 38

सुबह के चार बजते मौसम में ठडक उतर आई जिससे उठकर चादर ओढ़ने के उपक्रम में नीतू का ध्यान अपने बगल के बिस्तर के हिस्से पर जाता है तो वह चौंक जाती है, फिर चादर का ख्याल छोड़कर उठते हुए धीरे से वैभव को पुकारती हुई कमरे से बाहर आती है तो देखती है कमरे के बाहर की बालकनी में वैभव पीठ पर हाथ बांधे टहल रहे थे ये देख वह तुरंत उनके पास जाती हुई धीमे से पुकारती है –

“क्या हुआ – इतनी सुबह उठ गए !!” परेशान नीतू वैभव का माथा और कपोल छूती हुई कहती है – “तबियत तो ठीक है न आपकी !”

“हाँ ठीक है – बस यूँही आँख खुलते दुबारा नींद नही आई तो ठहलने लगा – चलो अन्दर चलते है |” नीतू का हाथ धीरे से हटाते उसे अन्दर लेजाते हुए कहते है|

इस समय वे उदयपुर में आदर्श के लॉज में ठहरे थे इसलिए बाकी तक उनकी आवाज न जाए इसलिए वे नीतू के साथ अन्दर कमरे में आ जाते है|

“कुछ परेशान है आप – मुझे चाहे न कहे पर आपका चेहरा सब कह देता है |”

नीतू की बात सुन वैभव कहते है – “नीतू पता नही मेरे मन में अजीब से भाव उठ रहे है – मतलब बता नही सकता पर बेटियों को विदा कर बहुत अजीब लग रहा है – अब जाने हर पिता को अपनी बेटी की विदाई पर ऐसा लगता हो कह नही सकता पर मुझे तो लग रहा है|”

“होता है – जान से प्यारी बेटियों को विदा कर ऐसा ही लगता है – मेरा मन भी बड़ा विचलित है और हमसे बेहतर कौन हमारी व्यथा समझ सकता है |”

“हाँ सही कहती हो ऐसा ही लगता होगा – मेरा तो मन कर रहा है जैसे अभी फोन उठाऊँ और अभी इसी वक़्त बात कर लूँ पर अब अपनी ही बेटियों को फोन लगाने से पहले संकोच की सीमा आ जाती है – जाने कब बात होगी उनसे |”

वे बिस्तर के एक ओर बैठे हुए अब एकदूसरे का हाथ पकड़ लेते है|

“नीतू कितने अकेले हो गए है न हम |” उस पल वैभव के ये कहते नीतू का ममतामयी मन भी मानों कंठ तक भर आया और एक पल में ही उसके स्मृतियों में पलक झलक का मासूम चेहरा नज़र आने लगा |

“जाने क्या रीत है अपनी सबसे कीमती अमानत सौपकर भी शिकायत नही कर सकते |” नीतू के स्वर में भी दर्द उभर आया|

कुछ पल उन दोनों के बीच अजीब सी ख़ामोशी पसरी रही जिसके मौन शब्द वे दोनों बिन कहे ही आपस में सुन रहे थे| लग रहा था जैसे वे अपनी आँखों के सामने फिर से पलक झलक को बचपन से बढ़ता हुआ देख रहे थे, इस बात का सूनापन उनकी आँखों में साफ़ झलक रहा था| आखिर उनके जीवन की झंकार एक ही पल में सन्नाटे में बदल गई थी|

“सुनो – सुबह होते उनके मेनेजर को फोन करके पगफेरे की रस्म का बता देना कि कल ही दिन अच्छा है कर लेते है – फिर महीना छह महीना हम नहीं विदा करेंगे |”

नीतू की बात पर वैभव बड़े प्यार से उसकी तरफ देखते है|

“अब हमारा कोई बस नही – हम सिर्फ पूछ सकते है – बाकि उनकी मर्जी |”

वैभव बड़े भारी मन से कहते है तो नीतू का चेहरा उतर जाता है|

“कभी कभी लगता है – आप सही थे – बड़ी जल्दी हमने अपनी दोनों बेटियों की शादी कर दी – अभी नहीं करनी थी – उस समय तो ख़ुशी की धुन में कुछ ऐसा सूझा ही नहीं |”

एक गहरा उच्छ्वास छोड़ते हुए वैभव कहते है – “मेरा बस चलता तो अपनी बेटी की शादी घर के पास करता – कभी इतनी दूर नही भेजता पर ईश्वर जहाँ जोड़ी बनाए |”

इस बात पर नीतू ख़ामोशी से बस उनका चेहरा देखती रहती है|

बार की आरामकुर्सी पर लेटा नवल करवट लेता अचानक गिरते गिरते बचता है फिर हाथों से टटोलकर उसे अहसास होता है कि वह अपने बिस्तर पर नही है| वह तुरंत उठकर बैठता अपने चारोंओर नज़रे घुमाते हुए पिछला सब याद करता है पर अपने भाइयों संग शराब पीने तक ही उसे याद आता है जिससे माथा मसलते हुए वह कहता है – ‘ओहो लगता है गुस्से में ज्यादा पी ली और यही सो गया – जाने पलक क्या सोचती होगी – बीती ख़ास रात यूँ गुजरेगी हमने सोचा नही था – |’ खुद से बडबडाते हुए अपनी कलाई घड़ी में समय देखता है|

‘अब तो सुबह हो गई लेकिन इससे पहले किसी को पता चले हमे अपने कमरे में जाना चाहिए |’ ये सोचते नवल झट से बार से बाहर निकलता हुआ अपने आस पास देखता रहा|

अपने कमरे में पहुँचते ज्यों वह हौले से खटखटाने को होता है, उसे अहसास होता है कि दरवाजा तो खुला है|

‘ओह लगता है सारी रात पलक ने हमारा इंतज़ार किया होगा – हमसे कैसे ये भूल हो गई !’ हौले से बिना आहट के दरवाजा खोलते वह अन्दर आता हुआ अहिस्ता कदमो से अपने शयनकक्ष की ओर बढ़ता है जल्दी ही उसे पलंग पर चित लेटी पलक दिखती है तो और अफ़सोस का भाव उसके चेहरे पर उमड़ आता है – ‘कितने मुद्दतों के बाद ये प्यार की रात आई और हमने एक पत्थर की वज़ह से वो खो दी – पर अब हम आपकी प्यारी नींद नही खराब करेंगे –|’ गहरा उच्छ्वास छोड़ता हुआ नवल अब आगे अपने ड्रेसिंग रूम की ओर बढ़ जाता है|

झट से अपने को दुल्हे के कपड़ो से अलग कर आराम दायक कपडे पहने वह अपनी लाइब्रेरी की ओर चल देता है| लाइब्रेरी के अन्दर आते वह उसका दरवाजा उड़काकर अपनी सुनियोजित कुर्सी पर बैठते टेबल लेम्प जला लेता है| अब उस कमरे में एक गहरा उजाला उसकी मेज पर था तो बाकी कमरे में हलकी हलकी रौशनी फैली थी जिससे वहां खड़ी किताबों की रेक किसी साए से कम नज़र नही आ रही थी| नवल बैठते ही तुरंत नीचे की दराज से कोई लाल कपड़े में लिपटी चीज बाहर निकालकर सहेजते हुए उसे डेस्क पर रखता है| उसका कपड़ा हटाते उसे उसमे कोई किताब नज़र आती है जिसे देखते हुए नवल के हाव भाव बदल जाते है| नवल का सारा का सारा ध्यान किताब पर था वह उस किताब में इतनी गहराई से डूबा था कि उसे अहसास ही नही हुआ कि कोई लम्बा साया लगातार उसकी ओर बढ़ रहा है| अँधेरी दीवार पर बनते उस साए की आकृति बहुत ज्यादा ही लम्बी थी जिसके सर के ऊपर का हिस्सा कुछ ज्यादा ही विस्तार था और लहरा भी रहा था मानो वह किसी विशालकाय स्त्री का साया हो जिसके बाल हवा में लहरा रहे थे| वह साया लगातार उसकी ओर बढ़ता रहा| वह पीछे से आता उसके नजदीक पहुँचने ही वाला था कि तेज बढबढ की आवाज से एकदम से नवल चौंक जाता है और गहरी गहरी सांस लेता उस आवाज की ओर अपना सारा ध्यान लगा देता है| वह आवाज लगातार तेजी से आती है जिससे नवल तुरंत ही उठकर खड़ा होता वहां से बाहर निकलने लगता है| वह वहां से निकलते हुए नही देख पाता कि उसके बाहर जाते वह उस साए से भी दूर होता जाता है| लाइब्रेरी से निकलते नवल तेजी से बाहर के दरवाजे की ओर जाता है जो अन्दर आते हुए उसने बंद कर दिया था| ये दरवाजे पर दस्तख थी जिससे सुनते नवल वहां तक आया| उस अनयास तेज दस्तख से नवल का चेहरा गुस्से से भर उठा था और अब दरवाजे के बाहर जो था उसकी खैर नही थी| झटके से दरवाजा खोलता हुआ वह चीखता है – “कौन है जिसकी इतनी हिम्मत !”

दरवाजा खुलते उस पार नंदनी को देख गुस्सा जबरन नियंत्रण करते वह दांत पीसते हुए बोलता है – “नंदनी – ऐसी क्या आफत आ गई जो तुमने ऐसा करने की हिम्मत की !”

नंदनी डर से हलके से कांपती हुई सर झुकाए झुकाए बोलती है – “माफ़ कर दीजिए कुंवर सा पर ऐसा कुछ देखा कि मैं खुद को रोक नहीं पाई |”

नवल अपनी सख्त आँखों से उसे अभी भी घूर रहा था जबकि नंदनी सर झुकाए अभी भी उसके सामने खड़ी थी| असल में वह रात में नवल को बार में सोता हुआ छोड़कर गई तो थी पर कई बार आ आकर उसे देख लेती कि कही नवल उठकर चले तो नही गए !! जब नवल उठकर अपने कमरे में आया तो उससे दो पल पहले ही नंदनी उसे देख कर गई थी और वापस जब देखने आई और नवल को वहां नही पाया तो मारे घबराहट के उसके मन में जो पहला विचार आया उससे बस वह बिना विचारे उसके कमरे तक चली आई| इस बात का गहरा डर उसके चेहरे पर साफ़ नज़र आ रहा था पर उसे झुपाने उसने अपना सर नीचे झुका रखा था| नवल के लिए तो ये नंदनी की पहली बेअदबी थी इसलिए चाहकर भी वह उसपर उतना नाराज़ नही हुआ पर सख्त आँखों से उसे घूरते हुए फिर पूछता है –

“क्या देख लिया ऐसा कि तहजीब की सीमा तक भूल गई तुम – अब जल्दी बताओ क्या देखा – यूँ हमारा समय बर्बाद मत करो |”

नवल लगातार गुस्से में उसे घूर रहा था और नंदनी हौले हौले कांपती हुई उसके सामने खड़ी थी| आखिर क्या बताने वाली है नंदनी नवल को !! जानने के लिए बस रखे थोड़ा इंतज़ार…

क्रमशः

One thought on “एक राज़ अनसुलझी पहेली – 38

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!