Kahanikacarvan

एक राज़ अनसुलझी पहेली – 4

पलक के जन्मदिन की ख़ुशी की खुमारी अगले दिन तक बनी रही तब तक जबतक झलक ने ये ऐलान नही कर दिया कि अब सब उसके बारे में सोचना शुरू कर दे क्योंकि अब उसका जन्मदिन आने वाला है| आखिर चार दिन बाद उसका जन्मदिन आने वाला था| झलक को तो हमेशा से जन्मदिन में धमाल पसंद था पिछली बार हॉस्टल में उसके लिए उसकी दोस्तों ने आधी रात उसे घसीटते हुए उठाकर उसकी अधकचरी नींद में ही उससे केक कटवा कर उसके पूरे चेहरे और बालों पर ऐसा मला कि आधी रात में ही उसे नहाना पड़ा पर वो मस्ती उसके मन को आनंदित कर गई| कैसे सबने रूम लॉक करके धीमे म्यूजिक में भी जमकर डांस किया था| इसी याद में डूबी रही झलक कि देर रात दरवाजे की घंटी बजी| जब तक माँ आती झलक दरवाजा खोलने चली गई| उसे लगा कि उसके जन्मदिन के लिए हो सकता है उसकी मामी मामा और आदर्श भैया आ गए हो| वह चहकती हुई दरवाजा खोलती है तो सामने का दृश्य देख सन्न रह जाती है| उसकी नजरों की सीध में खूबसूरत रंग बिरंगे फूलों का बड़ा सा गुलदस्ता था जो कोई लिए हुए था पर बाहर के बरामदे की मध्यम रौशनी सिर्फ उस गुलदस्ते के आगे पड़ रही थी जिससे उसके पीछे के सारे दृश्य धूमिल नजर आ रहे थे| झलक रूककर उस गुलदस्ते के आस पास देखने की कोशिश कर ही रही थी कि दोहरी आवाज एकसाथ गूंजी —जन्मदिन मुबारक हो…

कुछ पल तो झलक ठिठकी पर उस गुलदस्ते के हटते पीछे का  चेहरा साफ़ होते उसकी आँखें हैरानगी से फैली रह गई..वह उस पल खुद को रोक नही पाई और झट से गुलदस्ता लेती गले लगती हुई चहकी – “अनु तू – आई कांट बिलीव कि ये तू ही है |”

“हाँ हाँ हम ही है – जन्मदिन बहुत बहुत मुबारक हो |”

“जन्मदिन आपको बहुत मुबारक हो |” ये आवाज रूद्र की थी जो अनामिका के पीछे के अँधेरे में था और आगे आता हुआ कह रहा था – “आपकी दोस्त से आपको मिलाकर हमने आपको जन्मदिन का सरप्राइज दे दिया|”

“सच्ची जीजू जी – इसके लिए तो आपको बहुत बहुत थैंक्स कहूँगी मैं |” झलक इतनी खुश थी कि अभी भी वही दरवाजे पर खड़ी एक हाथ में गुलदस्ता तो दूसरे हाथ से अनामिका का हाथ थामे थी|

“अनु..!!” अब तक उनकी आवाज सुन पलक पहुंचती अनु के गले लगती प्रश्नों की झड़ी लगा दी – “कब आई ? कैसे आई ? कुछ बता तो…!”

“हे भगवान तब से यही खड़ी हो और बेचारे दामाद जी को भी यही खड़ा रखा है |” अब इस आवाज से सबका ध्यान घर के अन्दर से आती माँ पर गया| उनकी बात सुनकर सबको अपनी स्थिति का अहसास होते सबके चेहरे पर खिसियानी हँसी छा गई| माँ सबको अन्दर आने का रास्ता देती हुई रूद्र को देखती हुई वे अचकचा गई थी, आखिर एक राजकुमार उनके द्वार पर खड़ा था जिसके यहाँ की आलिशान आवभगत वे देख चुकी थी| उन्हें अपने साधारण से घर में उन्हें बुलाते हिचकिचाहट हो रही थी|

“आंटी जी हमे माफ़ करिए – हम अभी नही आ पाएँगे वो तो झलक को विश करने के लिए मैं ही इतनी उतावली थी कि रूद्र जी हमे यहाँ लिवा लाए – |”

अनामिका की बात सुन झलक भी ख़ुशी से झूमती हुई बोल उठी – “हाँ बहुत बड़ा वाला सरप्राइज दिया तुमने – हम कब से तुमसे मिलना चाह रहे थे |”

“अब कल आती हूँ न – अभी के सच में माफ़ी चाहेंगे |”

अनामिका की तर्ज पर रूद्र भी आगे बढ़कर हाथ जोड़कर विदा मांगते है जिसे देख वे सभी शरमा कर अपने में सिमट जाती है|

आखिर उनको वही से विदा कर वे तीनों अंदर आकर मुख्य दरवाजा बंद करके अपने कमरे में चली जाती है| कमरे से आती झलक अभी भी ख़ुशी से दोहरी हुई जा रही थी आखिर ऐसा सरप्राइज उसने सोचा ही कहाँ था !!

“कसम से क्या सरप्राइज दिया अनु ने और उसके साथ रूद्र जी भी थे – सच में बहुत प्यार है उन दोनों में |”

बिस्तर पर अपनी थकी देह छोडती हुई झलक कह रही थी तो पलक भी एक नजर दीवार घड़ी की ओर नज़र घुमाती हुई बिस्तर पर बैठती हुई कहती है – “ठीक रात के बारह बजे आई बिलकुल हॉस्टल की तरह आधी रात विश किया – मुझे तो यकीन नही आया कि वह हमारे सामने है|”

“आखिर हमारी बेस्ट वाली सखी जो है – |”

झलक की बात पर हाँ में हाँ मिलाती हुई पलक कहती है – “हाँ आज उसने सिद्ध भी कर दिया पर ..|”

पलक सोचने की मुद्रा में खामोश हो गई तो झलक का सारा ध्यान उसकी ओर चला गया|

“पर क्या पल्लो !!”

“मुझे आज अनु का आना और जाना सब ऐसा लग रहा था जैसे ये सब दृश्य मैं दुबारा देख रही हूँ – मानों सब कुछ पहले भी घटित हो चुका हो |”

“क्या…!!”

“हाँ झल्लो – सच्ची – मुझे ऐसा ही लगा |”

“ऐसा लगता है कभी कभी – अब आधी रात फ़ालतू की बात कर डरा मत मुझे !”

झलक की बात सुन पलक उसकी ओर तेजी से मुड़ती हुई कहने लगी – “अरे तुझे क्या डराउंगी – मुझे खुद ही ये सोच सोचकर डर लग रहा है – |”

अब हतप्रभ झलक उसकी आँखों में डर साफ़ साफ देख पा रही थी|

“झल्लो मैंने तुझे पूरी बात नही बताई असल में कुछ घटनाएँ मैं पहले से सपने में देखने लगी हूँ – ऐसे ही अनु का हमारे सामने आना मैं सपने में पहले ही देख चुकी थी और ऐसी बहुत सी घटनाएँ |” अपना आखिरी शब्द कहते कहते उसके होंठ डर से थर्रा गए थे|

“क्या सच में !!!”

“हाँ और ऐसा बस पिछले कुछ दिनों से है पर मैं समझ नही पा रही थी लेकिन अनु को आज देखा तो सब कुछ साफ़ हो गया – मैने अपना घर वापस आना भी पहले ही देख लिया था पर उस वक़्त मुझे अहसास नही हुआ |”

“तू सब कुछ देख लेती है ?” झलक अब उठकर बैठ गई थी|

“नही मैं अपनी मर्जी से नही देखती बस कभी भी कुछ भी सपना आ जाता है – पता नही – अभी मुझे यही बात समझने में कई दिन लग गए कि मुझे सपने आते है पर क्यों ये भी ठीक ठीक नही कह सकती – पर सब बहुत अजीब है झल्लो |”

कहती हुई पलक अब शून्य में देखने लगी थी|

क्रमशः……………..

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