
एक राज़ अनसुलझी पहेली – 40
आग तो धीरे धीरे बुझ गई पर उसकी तपिश अभी तक सबके जेहन को अलग अलग तरह से सुलगा रही थी| आग संयोग से लगी या किसी होनी का आगाज थी ये सोचते हुई रानी साहिबा अपने कक्ष में चहलकदमी कर रही थी साथ साथ खुद से भी बुदबुदाती जा रही थी – ‘ऐसा पहले तो कभी नही हुआ फिर क्या ये कोई संकेत है या हम बेवजह कुछ ज्यादा ही सोच रहे है पर अभी कर भी क्या सकते है – अभी किसी भी हालत में हम राजमहल से दूर नही जाना चाहते क्योंकि अभी उस शक्स का भी पता नही चला जो हमारे अलावा उस गुप्त दरवाजे के बारे में जानता है लेकिन हम करे भी तो क्या !! राजा साहब के साथ जाना भी जरुरी है – अभी फ़िलहाल हम जाते है पर मौका देखकर कुछ आगे की योजना बनाते है – हाँ यही सही रहेगा – उफ़ तनाव में हमारा दिमाग ही काम नही करता |’ परेशानी में अपना सर मसलती हुई वे बैठकर पुश्त से पीठ सटाकर खुद को आरामदायक स्थिति में छोड़ देती है|
नंदनी के होश उड़े हुए थे वह बहुत देर तक रसोई की आग से लोगों को मशकत करती हुई देखती रही| शारदा भी उस घटना को अपनी आँखों से देख रही थी और साथ ही नंदनी को भी| उसे लगा आकस्मिक घटना से नंदनी शायद डर गई| जब सब शांत पड़ गया तो वह नंदनी को अपने साथ लिए अपने कमरे में वापस आ गई|
“अरे इतनो परेसान न हो – इतनी कमजोर बनेगी तो आगे की थारी जिंदगी कैसे चलेगी – चल बैठ |” उस पल शारदा उसे अपने सामने बैठाती हुई बड़े प्यार से उँगलियों से उसके बाल संवार रही थी| नंदनी और शारदा के लिए ऐसा बड़ा कम ही अवसर आता कि वे दोनों प्रेमभाव से एकदूसरे के सामने बैठी हो इसलिए आज दोनों इस पल का आनंद उठा रही थी|
नंदनी को खामोश देख शारदा आगे कहती है – “लाडो – म्हारे को रानी सा के साथ विदेश जाना है तू अपना ध्यान राखेगी न – देख थारा बापू भी यहाँ नही है और थारा दादा भाई – पता है न उसका मन कितना कच्चा है – तुझे ही उसका ध्यान रखना होगा – एक तरह से राजमहल का भी ख्याल रखना होगा |” अपनी बात कहते कहते नंदनी का औचक भाव देख वह मुस्कराती हुई आगे कहती है – “अरे म्हारा मतलब – नई बिन्दनी का भी ख्याल रखना होगा – कुंवर सा भी साथ जा रहे है न |”
“क्या सच मतलब कोण !!” नंदनी तुरंत पूछ उठी फिर अपने भाव को छुपाती माँ से आँखे बचाती हुई अपनी चुन्नी का कोना अपनी उंगली में लपेटती हुई मन ही मन कोई प्रार्थना बुदबुदाती है कि काश वे कुंवर नवल ही हो|
“कुंवर शौर्य तो पहले से ही राजमहल से गए है बाहर और अभी रानी सा के साथ कुंवर नवल सा जा रहे है इसलिए दोनों नई बिन्दनी का ख्याल रखना – सब कुछ नया है न यहाँ उनके लिए |” वे मुस्कराती हुई सारी बातें समझा रही थी और नंदनी आंख झुकाए नवल के जाने की बात सुन अपने इष्टदेव को धन्यवाद कर रही थी|
उनको बाते करता देख उनसे थोड़ी दूर बैठा शक्ति सिंह जो बहुत देर से कागज पर कुछ कलाकृति उकेर रहा था अब हर्षित होता हुआ उनकी ओर आता है| हट्टा कट्टा नौजवान होता हुआ भी शक्ति सिंह बुद्धि से थोडा कम था इसलिए शारदा उसे कोई काम करने नही देती बस उसके मनपसंद रंग कागज देकर उसे भरमाए रहती ताकि वह कही न जाए| एक तरह से उसका अधिकतर समय इसी कमरे में सिमटे बीत जाता| बहुत देर से शक्ति जो कलाकृति बना रहा था उसके पूरा होते ख़ुशी में उछलता हुआ वह अपनी माँ और बहन के पास आता हुआ पुकारता है| उसकी आवाज सुन शारदा अब प्यार से उसकी ओर देखती हुई पूछती है – “काई बात है शक्ति – बडा खुस दिख रहा है – लागे है कुछ नया बनाया है – ला दिखा म्हारे को !”
माँ का प्रोत्साहन पाकर शक्ति तुरंत अपने हाथ में पकडे कागज को अपने पीछे छिपा लेता है – “न – मई न दिखाणा|”
उसका बालहट देख शारदा उठती हुई उसके पास आती पुचकारती हुई बोलती है – “दिखा न शक्ति – काई बनाया है ?”
शक्ति फिर न में सर हिलाता शरारत से मुस्कराता है|
इससे शारदा झूठ मूठ का नाराज़ होती हुई कहती है – “जा अब मई न देखणा |”
शारदा की नाराजगी से शक्ति बालक सा उसे मनाने अपनी बाँहों में उसे घेरता हुआ कागज उसकी आँखों के सामने नचाते हुए दिखाने लगता है| शारदा भी कागज पर ऑंखें धरे उसे गौर से देखती हुई बोली – “वाह शक्ति – थारे ने तो म्हारा मन का भाव ही कागज पर उतार दिया – यही तो चाहूँ हूँ कि अब म्हारी लाडो दुल्हन बने |”
शारदा लगातार मन भर उस कागज की ओर देख रही थी जिसमे एक दुलहन बनी थी जिसका चेहरा पूरा का पूरा नंदनी जैसा था| बेहद सुन्दर रंगों के चयन से शक्ति ने जैसे उसकी प्राण प्रतिष्ठा कर डाली थी| इसी कारण शारदा की निगाह बस उसी में जमी रही| वह उस तस्वीर पर प्यार से हाथ फेरती हुई कह रही थी – “मन्ने तो ऐसा लागे है जैसे ये पूरी की पूरी पलक बिन्दनी है बस चेहरा ही म्हारी नंदनी का है -|” कहती हुई वे हलके से आवाज करती हँस पड़ी पर अपनी माँ की बात सुन नंदनी की जैसे कोई तन्द्रा टूटी जिससे वह तुरंत उठती हुई अपनी माँ के पास आती उनके हाथ में पकड़ी तस्वीर को गौर से देखने लगी| तस्वीर देखते उसके होश उड़ गए| उसे विश्वास नही आया जो उस वक़्त उसकी ऑंखें अपने सामने देख रही थी| वह बिलकुल वही दृश्य था जब वह पलक की जगह दुलहन बनी थी पर ये उसके भाई को कैसे पता चला !! जबकि ये सच तो उसके बापू और उसके सिवा कोई नही जानता !! क्या और भी कोई है जो ये सच जानता है !! ये सोचते उसका सर चकराने लगा वह पस्त होती बैठ गई पर शारदा तो अभी भी उस तस्वीर को हाथ में लिए उसी में डूबी हुई थी –
“म्हारा मन भी यही चाहे है – अब जैसे ही लौट कर आउंगी दिग्विजय जी से थारी और रचित के व्याह की बात करुँगी – अब असली में दुल्हन बनी देखणा चाहूँ हूँ अपनी लाडो को |”
माँ अपनी ख़ुशी में गुम हो गई थी तो सामने खड़ा शक्ति हर्षित हो उठा वही नंदनी की हालत ये सोचकर बुरी हो रही थी कि ये अब कौन सी नई मुसीबत है|
वैभव फोन रखते हुए अपने पीछे खड़ी अपनी पत्नी की तरफ देखते हुए न में सर हिला देते है जिससे अगले ही पल उनका चेहरा यूँ सुस्त पड़ जाता है जैसे एक ही पल में सारी नाउम्मीदी मिल गई हो|
“ये भी भला कोई बात हुई बस संदेशा भिजवा दिया कि अभी पगफेरे की रस्म नही होगी और हमारा मन क्या करे – एक ही पल में हमारी बेटियां हमारे लिए इतनी परायी हो गई |” नीतू बुरी तरह से उखड़ी हुई बडबडाए जा रही थी|
उस कमरे में वैभव नीतू के अलावा आदर्श की माँ भी थी, वे बस नीतू को सांत्वना देती उसकी पीठ सहला रही थी और उसके दुखी मन की भड़ास चुपचाप सुन रही थी|
“बता नही सकती कि कैसा मन हो रहा है – न पलक झलक से बात ही हो पाई और अब ये उम्मीद भी हाथ से चली गई – सोचा था पगफेरे होगे तो कुछ दिन के लिए दोनों को अपने पास रोक लुंगी पर अब तो वो भी उम्मीद नही जाने कब राजा साहब की तबियत ठीक होगी और …|” अपना शब्द अधुरा छोड़ती वह मन में ही सुबक लेती है|
“थोड़ा और सब्र से इंतज़ार करो नीतू – सब ठीक होगा |” वे उसकी पीठ सहलाते सहलाते कहती है|
“हाँ अब इसके सिवा चारा ही क्या है – भाभी सोचती हूँ अब लखनऊ वापस लौट जाते है – बहुत दिन से घर बंद पड़ा है |”
अपनी नन्द की बात सुन वे उसे दिलासा देती हुई आगे कहती है – “कुछ दिन रुक जाओ यही – हो सकता है पगफेरे की खबर ही आ जाए क्योंकि अभी नही हुआ तो शुभ महीना भी ख़त्म हो जाएगा तब दो तीन महीने बाद भी शुभ तारीख निकलेगी इसलिए तो कहती हूँ यही रुको आदर्श के पास |”
“पर भाभी घर कब से बंद है – सब सामान यूँही पड़ा होगा |” नीतू दुबारा चिंता करती हुई बोली|
लेकिन तब से सर पकडे बैठे वैभव बीच में अचानक से बोल पड़े – “सबसे कीमती चीज तो यही रह गई अब किसके लिए घर लौटे !”
वैभव के शब्दों के दर्द का आभास अब दोनों के चेहरों पर भी नज़र आने लगा| ये पिता का दर्द था जो न बेटी के जाने पर खुलकर विलाप कर सकता था और न वक़्त से शिकायत ही कर सकता था| बस मनमसोजे हालात को देखता रह सकता था|
नवल राजगुरु के सामने खड़ा अपनी तीखी आँखों से उन्हें घूर रहा था जबकि राजगुरु अपनी सोच में डूबे मन में सोच रहे थे – ‘ये कैसे संभव है मेरी गणना और योजना में इतना बड़ा उलटफेर !!’ सोचते हुए वह नवल की ओर देखते हुए कहते है – “जो हुआ वह सही नही हुआ !! अब आगे !!”
“आगे का सोचने के लिए अभी हमे समय चाहिए लेकिन आज ही हमे बाहर जाना पड़ रहा है पर बहुत जल्दी हम इसका उपाय भी ढूंढ लेंगे |” कहता हुआ नवल तेजी से वहां से निकलते हुए मन में खुद से कहता है – ‘हमे जाने से पहले एकबार फिर उस जगह का मुआयना कर लेना चाहिए – कुछ तो पता चलेगा |’
राजगुरु अपने स्थान पर खड़े खड़े ही नवल को जाता हुआ देखते है ऐसा करते नवल उनके चेहरे पर आई कुटिल मुस्कान नही देख पाया|
बिस्तर पर लेटे लेटे ही झलक करवट लेती हाथ से टटोलकर अपने बगल को देखने का प्रयास करती है और शायद शौर्य को ना पाकर अब आंख खोले अपनी स्थिति का जायजा लेती है| वह उस वक़्त उस आलीशान बिस्तर पर अकेली थी उसने खुदको मखमली लिहाफ से ढक रखा था और चेहरे पर अजीब सी कशमकश थी| फिर कुछ सोच बगल की मेज तक हाथ करती है जिससे कोई चीज उसके हाथ से टकराती हुई बिस्तर पर गिर पड़ती है पर उस पर ध्यान न देती हुई वह अपना मोबाईल पा लेती है| ऑंखें मलती हुई वह मोबाईल के स्क्रीन में अपने पिता की कई मिस कॉल देखती हुई अब उनका आखिरी में छोड़ा मेसेज पढ़ रही थी जिसमे उसके फोन न उठाए जाने और उन दोनों से बात न हो पाने का सन्देश था| ये पढ़ते बदले में जल्दी ही बात करने का मेसेज टाइप कर वह भेज देती है| अब मोबाईल को रखते वह इधर उधर नज़र घुमाते असमंजस में पड़ी थी कि तभी फिर उसका ध्यान उस चीज पर जाता है जो कोई लिफाफा था और मोबाईल उठाते समय उसके हाथ से टकरा कर अब बिस्तर पर औंधे मुंह गिरा पड़ा था| वह कोई अधखुला लिफाफा था जिससे उसका क्या मतलब ये सोच वह उसे फिर मेज की धकेल देती है| अब उस ओर करवट लिए वह मेज पर रखी घड़ी में समय देखती है जिसमे घडी के दोनों हाथ बस बारह पर मिलने ही वाले थे, ये सोचती हुई वह चौंककर उठ बैठती है – ‘क्या रात के बारह होंगे !! नही वो तो कबके बज चुके थे इसका मतलब दोपहर होने को है और मैं अभी तक सोती रही – मुझे किसी ने जगाया भी नही – क्या करूँ कुछ समझ नही आ रहा – न कोई आया न शौर्य जी है फिर मैं कहाँ जाऊं !!’ सोचती हुई वह जाने किस धुन में उस लिफाफे को दुबारा उठाती हुई उससे खेलती खेलती उसे खोल लेती है| अगले ही पल उसके हाथ में उसके अन्दर रखा एक कागज उसकी हथेली के बीच था जिसका लिखा वह बुदबुदाती हुई पढ़ रही थी – ‘झलक जी आपको ख्वाबो में छोड़कर हमे जाना पड़ा हम जल्दी लौटते है तब तक आपके लिए एक अदना सा गिफ्ट जो लेटर के साथ ही है..|’ ये पढ़ते झलक बेसब्र होती उस पत्र को तुरंत छोड़ती उस लिफाफे को दुबारा खंगालती है जिससे अगले ही पल उसके अन्दर से एक कार्ड जैसा कुछ बाहर आता है| उसे हाथ में लिए इधर उधर पलटती हुई वह होंठ भींचे ख़ुशी से हलके से चिल्लाती हुई कहती है – ‘वाओ क्रेडिड कार्ड – मेरे लिए – !’
कार्ड की ख़ुशी मन में जबरन दबाती हुई वह दुबारा आगे पढने लगती है – ‘उम्मीद है गिफ्ट आपको निराश ही करेगा – खैर जब भी आप उठ जाए तो बस बेड की साइड में लगा बटन दबा दीजिएगा |’
“बस यही लिखा है – गिफ्ट तो बहुत अच्छा है पर ये बटन वाला क्या सिस्टम है – क्या करूँ दबा दूँ क्या !!” खुद से ही पूछती हुई वह संशय में पड़ी उस बटन को दबा देती है|
बटन के दबते ही झलक देखती है कि अचानक उसके बेड के चारोंओर कोई रेशमी पर्दा का घेरा घिर गया और उसके अगले ही पल दरवाजे के खुलने की आवाज के साथ दो सेविका के समवेत स्वर उसके कानों में पड़े – “आपका शुभ बेला में हार्दिक स्वागत है – हमारे लिए काई हुकुम है हुकुम सा ?”
झलक मुंह खोले झीने परदे के पार हाथ जोड़े खड़ी दो सेविका को देख रही थी| अगले ही पल उस राजमहल के वैभवशाली होने का उसे आभास हो गया जिससे एक हलकी मुस्कान उसके चेहरे पर खिल आई|
क्या झलक इन्ही दिखावे में फंस कर शौर्य के सच से अनजान रह जाएगी !! क्या बदलाव होगा नंदनी के जीवन में !! जानने के लिए पढ़ते रहे एक राज़ और अपना स्नेह देते रहे.
..क्रमशः
Very very👍👍👍👍👍🤔🤔🤔🤔🤔