
एक राज़ अनसुलझी पहेली – 41
वह खुद को किसी रानी सा महसूस कर रही थी, आखिर बिना श्रम के वह सेविकाओं की सहायता से तैयार जो हो गई| उस पल उसने गुलाबी घाघरे पर हल्का सूती कुर्ते पर बांधनी ओढ़ी हुई थी| उसपर गले में चोकर के साथ आड़ पहनाती सेविका उसे एक एक करके और भी राजपूती जेवर पहनाती मुस्करती जा रही थी| झलक भी अपना अक्स देख जैसे खुद को पहचान नही पा रही थी| वह बिलकुल बदल सी गई थी| दोनों सेविका अब बातों बातों में उसे महल का हाल भी दे रही थी कि कैसे आज महल में वो बात नही है जो होनी चाहिए इस पर झलक चौंककर पूछती है –
“क्यों – ऐसा क्या बदल गया ?”
“बदल तो गया – नही तो नई बिन्दनी के आने पर महल में पखवाड़े तक जस्न होता रहता पर अब…|” वह झलक के माथे पर राखडी लगाती हुई बोली|
उसका उदासीन स्वर सुनती झलक चौंकती हुई उससे पूछ उठी – “अब !!”
सेविका सारा महल का हाल देती हुई बताती है कि राजा साहब की तबियत की वजह से सभी महल से बाहर गए है तो जश्न हो भी तो कैसे !! वह झलक को ये भी बताती है कि उसकी अभी और भी रस्मे शेष रह गई पर कब होगी कौन जाने !! वे झलक को अनामिका की शादी के बाद के समय की व्याख्या कर करके बताती है कि तब कैसा माहौल रहा था और उन सबको कितनी नेमते मिली थी| उनकी बातों से झलक को ये तो पता चल गया कि राजा साहब माँ सा के साथ अमेरिका गए है अपने इलाज के लिए तब उसे लगा कि हो सकता है शौर्य भी उन्ही के साथ गए हो| अब उसे शौर्य का अचानक जाना इतना बुरा भी नही लगा|
झलक के तैयार होते होते उसके लिए उसी कक्ष में भोजन भी आ गया| उसी पल उसे पलक की याद आई पर सोचा कि पहले खा ही लेती हूँ फिर मिलने जाऊ और उसे बोल देगी कि अब से वे साथ में ही भोजन करेंगी आखिर कम से कम यहाँ एकसाथ खाना तो खा सके| बहुत कुछ मन में तय करती हुई झलक सेविका के साथ पलक के कमरे तक आई| वह उस कमरे के बाहर खड़ी अन्दर जाने का सोच ही रही थी कि एक सेविका अन्दर से निकलती है| हकबकाई सी जैसे बोरा गई हो झलक ने उससे पलक का हाल पूछा भी तो भी वह कुछ नही बोली बस उसकी आँखों के सामने से चली गई|
‘अजीब है यहाँ के लोग !!’ मन में सोचती हुई झलक मुंह बनाती हुई सेविका को वापस भेजकर अन्दर प्रवेश करती है|
अभी वह अन्दर जाने ही वाली थी कि कोई कारिन्दा हाथ जोड़े उसे रोकता हुआ अन्दर जाकर नवल के सामने पैक करने की इजाजत मांगता है| झलक कंधे उचकाती हाँ बोल अन्दर आई तो पीछे पीछे वे भी अन्दर चले आए|
कारिंदे सीधे नवल के ड्रेसिंग रूम की ओर बढ़ गए तो अन्दर आती झलक की निगाहे पलक को ढूंढने लगी| शयनकक्ष की ओर बढ़ते हुए उसे बिस्तर के कोने पर कोई बैठी दिखी| झीने परदे के पार के दृश्य पर झलक आंख गड़ाए उस ओर बढती हुई जिसे बेड के कोने में बैठा हुआ देखती है उसके बाल हवा में पूरी तरह लहरा रहे थे मानों वह किसी हवा के बवंडर पर बैठी हो| झलक अनबुझी सी एक दम से झीना पर्दा हटाकर देखती है तो अवाक् रह जाती है पलक उनके चेहरे के ठीक सामने खड़ी मुस्करा रही थी और झलक अनिमिख उसकी निगाहों में देखती खड़ी रह गई|
यही वक़्त था जब नवल कमरे में आता है| वह तब से पलक के पास जाना चाहता था यही सोच वह शयनकक्ष की ओर बढ़ा ही था कि पलक के साथ झलक को देख वही रुकता हुआ सोचने लगा – ‘दो पल भी एकांत नही – अभी आना था झलक को – क्या करूँ यहाँ जाने का समय हो रहा है और हम पलक से मिल भी नही पाए |’ एक गहरा उच्छ्वास छोड़ता हुआ फिर से खुद को समझाता है – ‘अभी तो हमे जल्दी है – जल्दी ही वापस आकर मिलते है आपसे |’ ये सोचते हुए एक गहरी मुस्कान लिए वापस मुड़ते हुए मोबाईल कानों से लगा लेता है जो तब से उसकी पॉकेट में पड़ा तड़प रहा था|
“कुंवर सा टाइम हो गया है – राणी सा आपको याद कर रही है |” उस पार की आवाज सुन नवल के लिए दो पल रुका रहना मुश्किल हो गया| उसके वहां से जाते वे कारिंदे भी उसका सामान पैक किए उसके पीछे पीछे चल देते है|
तब से मूर्ति बनी झलक पलक के सामने बैठी थी जिसकी गहरी कजराई आँखों से वह आंख नही हटा पाई थी| क्या कहना या बताना था सब भूल गई वह| बस वह तो पलक की बात सुन रही थी जो गहरी मुस्कान लपेटे उसे कह रही थी –
“तू मेरा एक काम करेगी – मुझे न ये दरवाजो पर बंधे लाल डोरे अच्छे नही लगते – तू ऐसा कर उन सबको खोलकर फेंक दे |”
पलक की लहकती आवाज पर झलक किसी आज्ञाकारी बच्चे की तरह हाँ में सर हिलाती तुरंत उठकर वापस बाहर जाने लगी तो पलक अपनी गहरी मुस्कान से उसे जाता हुआ देखती रहती है|
झलक यांत्रिक भाव से पलक के कमरे से बाहर निकलकर कुछ कमरों के बाहर खड़ी होकर धागे खोलकर वही फेंक दे रही थी| अभी भी वह किसी कमरे के बाहर खड़ी उसके हैंडिल में लगा रक्षा सूत्र खोल ही रही थी कि कोई आवाज दूर से उसे पुकारती है जिससे एकाएक झलक की तन्द्रा भंग होते वह अब आवाज की दिशा की ओर देखती है| वह अनामिका थी जो गलियारे में उसे देख दूर से ही उसे आवाज लगाती हुई उधर आ रही थी| झलक को देख उसके कदम तेज हो गए और वह लगभग भागती हुई उसके पास आती हुई कहती है – “मैं कहाँ कहाँ तुम्हें देख रही थी – हफ हफ – और ये महारानी मेरे ही कमरे के बाहर खड़ी – हफ हफ – मिली |”
अनामिका अपनी भरपूर नज़र से झलक को देख रही थी तो वही झलक चौंकती हुई अनामिका को देख रही थी मानो सब समझने की कोशिश कर रही हो|
“वाह बड़ी फुट्लो लाग रही है – म्हारी झल्लो तो राजमहल के रंग में बड़ी जल्दी रंग गई – अच्छा अब अन्दर चलकर आराम से बैठकर बात करते है –|” कहती ही अनामिका झलक का हाथ पकडे उसे अपने कमरे के अन्दर ले आती हुई कहती रही – “पता है सुबह से बड़ी व्यस्त हो गई नहीं तो आँख खुलते न तेरे पास ही नज़र आती मैं – तुझे पता तो चल ही गया होगा सबके अमेरिका जाने की बात – क्या करे माहौल ही ऐसा बन गया – रूद्र जी भी निकल गए इसलिए हम सुबह से बिज़ी थे – अच्छा ये पलक महारानी कहाँ है हमारी !! क्या मिली !! हम तो पहले तुमको खोजते यहाँ अपना मोबाईल लेने आए थे और तुम मिल गई सामने |”
अनामिका धाराप्रवाह कहती हुई झलक को अन्दर ले आई|
“पलक मुझे नही मिली – मुझे ऐसा क्यों लग रहा है !!” झलक आखिरी शब्द मन में बुदबुदाती हुई कहती है जिसे अनामिका सुन नही पाती|
“देखो समय भी तो तीन बज रहे है – क्या पता अभी आराम कर रही हो और फिर नवल सा जाने भी वाले है क्या पता उनकी तैयारीयों में लगी हो |”
अनामिका की बात सुन झलक सोचती हुई बस मौन उसे देखती रही मानों उसकी बात में उसकी न सहमति हो और न असहमति|
“अच्छा अब ये बता कैसे लगे हमारे बन्ना सा !! और कैसी कटी रात !!” अनामिका झलक को कंधे से हलके से धक्का देती मुस्करा रही थी इसी बात से झलक को शौर्य का दिया गिफ्ट और राजसी आव भगत याद आगया जिसके अगले ही पल वह खुश होती हुई बोली – “पता है मुझे क्या गिफ्ट मिला – गेस तो कर !”
झलक अनामिका को खुश हो होकर उसे सब बता रही थी| सबसे ज्यादा ख़ुशी तो उसे क्रेडिट कार्ड पाकर थी|
“तो किस बात का इंतज़ार है चलो यूज करते है कार्ड |”
अनामिका की बात पर ख़ुशी से उछलती झलक जाने को तैयार हो जाती है| अनामिका झलक को लिए बाहर निकलते निकलते बताती रही – “आज तुम्हें बताती हूँ कि कहाँ से हम शोपिंग करते है और कौन से स्पा जाते है !! आज दिनभर खूब मस्ती करेंगे और लौटकर न उस बोर पलक को बताएँगे तब देखना कल से वह भी जाने को कितना उत्साहित हो जाएगी|” आपस में खिलखिलाती हुई दोनों सखियाँ साथ में बाहर निकल गई| दोनों नहीं देख पाई कि दरवाजे के बाहर जमीं पर रक्षा सूत्र पड़ा था|
सभी अपने अपने गंतव्य के लिए निकल गए थे इससे नंदनी भी अपनी माँ के जाने के बाद से अकेली रह गई| अब चूँकि नवल भी नही था तो उसका ध्यान पलक की ओर से भी हट गया था| इससे वह शक्ति के पास बैठी उसके कलाकृति वाले पन्ने अलट पलट रही थी| कहते है न भगवान् किसी असमर्थ को भी कोई न कोई सामर्थपूर्ण योग्यता दे ही देते है| शक्ति मानसिक रूप से कमजोर था पर उसकी बनाई कलाकृति को देख ये कोई नही कह सकता| वह कागज पर लकीरे नही उकेरता मानो जान फूंक देता| नंदनी एक एक करके उसके चित्र देख रही थी| शक्ति अपने आस पास के माहौल को ही कागज पर उतारता था| अचानक देखते देखते नंदनी की आंख किसी चित्र पर अटकी रह गई| उसकी ऑंखें जिस चित्र पर टिकी थी उसे देख वह मानों काँप उठी| एक नज़र वह उस कलाकृति पर तो दूसरी नज़र कागज को रंगते शक्ति को देखती रही…..
आखिर क्या देखा नंदनी में और आगे क्या होगा जब रक्षा सूत्र नही रहेगा दरवाजो पर !! जानने के लिए पढ़ते रहे.
.क्रमशः
Very very👍👍👍👍👍👍🤔🤔🤔🤔