
एक राज़ अनसुलझी पहेली – 42
नंदनी ज्यो ज्यो उन चित्रकारी वाले कागजों को देखती रही उसके होश उड़ते गए| आखिर कैसे और कब इन दृश्यों को देखकर उसके दादा भाई सा ने ये चित्र बनाए होंगे !! वह हैरान नज़रों से फिर से शक्ति को देखती है जो अभी भी किसी आकृति में रंग भरने में लगा था| वह एक बार पुकारती भी है पर अपनी धुन में मग्न वह उसकी ओर देखता भी नही है| नंदनी फिर से एक एक करके उन चित्रों को देखने लगी| अब उसके हाथ में जो चित्र था वह नवल का था पर आश्चर्य नवल के चित्र पर नही बल्कि वह जहाँ खड़ा दिख रहा था उसके लिए था| नंदनी बड़े ध्यान से उसके आस पास के परिदृश्य को समझने का प्रयास कर रही थी| नवल किसी सीढ़ी के शुरुआत में खड़ा था और शक्ति ने उन सीढ़ियों को बिलकुल काला मानो जला हुआ दिखाया था पर दीवार तो बिलकुल राजमहल जैसी दिख रही थी जिससे नंदनी सोच में पड़ी थी कि आखिर ऐसी कौन सी जगह है जिसे वह पहचान भी नही पा रही| नंदनी सोचती हुई अब दूसरें चित्र को देख रही थी जो किसी व्यक्ति के पीठ के हिस्से को दिखा रहा था जिसमे वह किसी लेटी हुई स्त्री की ओर मुंह किए था| वह पीठ का हिस्सा देखकर ही उस कदकाठी से अंदाजा लगा लेती है कि वे राजगुरु ही है पर वह स्त्री कौन है जिसकी ओर वे मुंह किए है| स्त्री का चेहरा छुपा था बस उसके वस्त्रो से उसका स्त्री होना पता चल रहा था लेकिन उसे हैरान कर देने वाली ये बात थी कि राजगुरु तो अपने निवास में अकेले रहते थे फिर ये कौन हो सकती है !! नंदनी इन दो चित्रों को देख हैरानगी में पड़ी थी|
“कहा था न – मजा आएगा – |” अनामिका झलक के साथ महल के गलियारे में चल रही थी पीछे पीछे सेविका हाथो में कुछ पैकेट लिए थी|
“हाँ सच में – मस्ती करते समय का पता ही नही चला – रात भी हो गई – आज तो अपने गंज की मार्किट याद आ गई|” कहती हुई झलक भी मुस्करा पड़ी|
“हर बार तो हम अकेली पड़ जाती थी पर इस बार तुम्हारे संग तो सच में हम अपने हॉस्टल वाले दिन में लौट गए – काश हमेशा की तरह पलक भी हमारे साथ होती |” अनामिका की बात पर झलक भी चिहुँकते हुए बोली – “सच में यार ये पलक भी न – अभी जाती हूँ उसके पास |” झलक अपनी बात कहते कहते अपने कक्ष तक आ गई थी| अनामिका भी उसके साथ उसके कक्ष में जाने वाली थी पर बाहर से ही उसे पता चल गया कि शौर्य है वहां तो देहरी पर ही रूकती हुई कहती है –
“लगता है बन्ना सा लौट आए है – हम बाद में आते है – तुम जाओ |”
“पर अभी पलक से मिलना था !!” झलक पलक के बारे में सोचकर परेशान हो उठी|
“ओहो – अभी तुम्हें बन्ना सा के साथ होना चाहिए और रही बात पलक की तो हम अभी जाते है उससे मिलने – तुम आराम से जाओ |” मुस्कराती हुई अनामिका उसे जाने का इसरार करती सेविका को अपने पीछे चलने का इशारा करती अपने कक्ष की ओर चल देती है|
झलक अन्दर आती हुई देखती है कि शौर्य ड्रेसिंग रूम से चेंज करके आ रहा था उसे देख झलक बड़े उत्साह में अपने हाथ में पकडे पैकेट दिखाती हुई कहती है – “शौर्य जी देखिए – आज मैंने क्या शोपिंग की….|”
“पहले आप शावर लेकर आए |” झलक की बात पर सपाट भाव से कहता वह आरामकुर्सी पर बैठते मैगज़ीन उठा लेता है|
ये देख झलक का उत्साह पानी हो गया जिससे वह सामान रखती हुई अपने कपड़े लिए वाशरूम में चली जाती है|
रात के दस बज रहे थे| महल की चहलकदमी काफी कम हो गई थी| रात के खाने के बाद बिस्तर पर लेटी नंदनी करवटे बदल रही थी| नींद का एक टुकड़ा भी उसकी आँखों में नहीं था| बहुत कुछ था जो उसके अंतर्मन में खलबली मचाए था| न अपना सच वह अभी तक किसी से कह पाई और ऊपर से रोज नई नई आफते अपना सर उठा लेती| अभी तो अपने भाई सा के बनाए चित्र उसके मष्तिष्क में चलचित्र से घूम रहे थे| तभी उसे कुछ आहट हुई तो सर उठाकर वह बाहर की ओर देखती है तो हैरानगी से उसकी ऑंखें फैली रह गई| उसे लगा था उसके भाई सा सो गए पर वह तो कही बाहर जा रहा था| ‘इस वक़्त वे कहाँ जा रहे होंगे !! और क्यों !! मुझे देखना चाहिए |’ सोचती हुई नंदनी बिना आहट किए चुपचाप उसके पीछे हो लेती है|
अनामिका अपने कमरे में आती बिस्तर पर निढाल हो गई, ये देख एक सेविका अपने हाथ में पकड़ा सामान रखती हुई उसके सैंडिल उतारने लगी| दिन भर की थकान से उसे अब उठने का बिलकुल मन नही हो रहा था पर पलक का ख्याल उसके मष्तिष्क में दौड़ जाता है – ‘इतनी थकन के बाद हमारा तो उठने का मन ही नहीं हो रहा लेकिन पलक बिचारी दिन भर से अकेली होगी – अभी नवल सा भी नही है यहाँ – क्या करूँ बुलवा लूँ !! नही हमे खुद जाना चाहिए – चलो थोड़ी देर आराम करके तब जाती हूँ उसके पास |’ सोचती हुई अनामिका सेविका को बाहर भेज देती है|
झलक शावर लेकर बाहर आती टोवल से अपने गीले बाल पोछती पोछती शौर्य के पास पहुँच गई|
“शौर्य जी हम आपको बता रहे थे न कि हम कहाँ कहाँ गए – वो..|”
झलक की आवाज पर शौर्य नज़र उठाकर उसे भरपूर नज़र से देखता है| इस वक़्त वह नाईट सूट में थी जो उसके भीगे बदन से चिपका उसकी देह का उभार ले लिया था| झलक अभी भी अपने भीगे बालों को पोछने में मग्न थी कि शौर्य उसके पास आ गया जिससे उसके शब्द होंठो पर कुछ पल के लिए ठहर से गए| वह उसे लिए बिस्तर की ओर ले जा रहा था पर झलक कुछ कहना चाहती थी, वह संकुचाती हुई फिर बोल उठी –
“वो मुझसे आज पचास हजार खर्च हो गए..|”
शौर्य उसे बिस्तर की ओर धकेलकर उसकी देह को अपनी आगोश में समेटता एक एक करके उसके कपड़े उससे अलग करता हुआ कहता है – “ये तो बहुत छोटी रकम है – जितना जी में आए खर्च करिए -|”
झलक अवाक् रह गई क्योंकि फिर न शौर्य ने न खुद कुछ कहा और न उसकी सुनी बस लगा वहां दो इंसान नही बल्कि दो जिस्म थे| उसका उत्साह हताशा में बदल गया वह हताशा से उसके आगे हथियार डाल देती है|
नंदनी बड़े सधे क़दमों से अपने भाई सा के पीछे पीछे चल रही थी| उसे ऐसा करना बड़ा अजीब लग रहा था पर वह सच में जानना चाहती थी कि वह आखिर इतनी रात जा कहाँ रहे है ? शक्ति भी किसी यांत्रिक भाव से बस चला जा रहा था| नंदनी इससे भी अवाक् थी कि वह इतने अभ्यस्त भाव से जा कहाँ रहा था मानों सभी रास्तों से भलीभांति परिचित हो जबकि वह न महल में कभी इतना रहा और न दिनभर कभी उसे महल में निकलते देखा उसने इसलिए इस राज़ को जानना नंदनी के लिए और भी जरुरी हो गया|
अनामिका कुछ पल में ही गहरी नींद के आगोश में चली गई पर कमरे के एक खटके से उसकी नींद अचानक से खुल गई और वह लेटी लेटी ही सामने की ओर देखती है वहां से उसे कोई आता हुआ दिख रहा था जिससे वह ऑंखें मलती हुई उस ओर गौर से देखती हुई पुकारती है – “कौन है वहां ?”
पर वापसी में कोई उत्तर नही मिलता बल्कि वह साया लगातार उसकी ओर बढ़ता हुआ मालूम पड़ रहा था| वह तुरंत उठ बैठती हुई फिर पूछती है – “कौन है वहां ? जवाब क्यों नही देता !!”
वह अब ध्यान से उस आकृति को देखने का प्रयास करती है तब उसे लगता है कि वह पहचानती है इस आकृति को जिससे वह फिर उसे पुकारती है – “पलक !! क्या तुम हो !! अच्छा हुआ जो तुम खुद आ गई – हम आने वाले थे तुम्हारे पास |” अनामिका राहत की सांस छोड़ती हुई वही बैठी उसके पास आने का इंतज़ार करती बगल में रखा अपना मोबाईल उठाती हुई कहती रही – “क्या करूँ आज दिन भर में इतना थक गई कि तुरंत लेट गई – सोचा पहले थोड़ा आराम कर लूँ फिर आती हूँ तुम्हारे पास – हमने तो आज दिन भर में रूद्र जी से भी बात नही की – सोचो कितना बिज़ी रहे होंगे हम |” कहती कहती वह कोई परिचित नंबर मिलाती है पर शायद उस तरफ का फोन रिसीव नही हुआ जिससे वह मोबाईल बगल में रखती हुई फिर सामने की ओर देखने लगती है|
वह साया अब उससे दो हाथ की दूरी पर था पर उनके बीच झीना पर्दा और कमरे की मध्यम रौशनी से अनामिका उसका चेहरा नही देख पाई बस उसके डील डौल से अंदाजा भर लगा पाई थी कि वह पलक ही है|
“आओ न पलक – वहां क्यों रुकी हो -?” अनामिका अभी ये कह ही रही थी कि उसे लगा कि उसका सर घूम रहा था इससे पहले कि वह कुछ समझती या संभलती उसका पलंग गोल गोल घूमने लगा| अनामिका बुरी तरह घबरा गई मारे डर के वह पैर ऊपर किए बिस्तर को कसकर पकड़ लेती है| बिस्तर गोल गोल घूमते घूमते तेज होने लगता है| डर के मारे अनामिका के मुंह से कोई स्वर ही नही फूटा| पलंग गोल गोल घूमता घूमता कभी धीमा होता और कभी तेज पर अनामिका के डर का ये आलम था कि वह पलंग से उतरने की हिम्मत नही कर पाई|
ये पल झलक की समझ और मन के बिलकुल विपरीत था, उस पल सब कुछ जैसे जिस्म से होकर गुजर गया पर मन का हर कोना अछुता रह गया| शौर्य तुरंत ही उससे अलग होता आराम से लेट गया पर निरुत्तर हुई झलक बस मौन ही उस पल को भोगती रही| कुछ था जो उसे बिलकुल अच्छा नही लगा पर मन अभी तक उसे शब्द नही दे पाया था जिससे अपनी ख़ामोशी में खुद को लिहाफ से ढके वह चुपचाप लेट गई|
क्या होने को है इस रात में !! क्या कोई राज़ खुलेगा या बढ़ जाएगा रहस्य का दायरा….जानने के लिए पढ़ते रहे एक राज़…..क्रमशः
Very very🤔🤔👍👍👍👍🤔