
एक राज़ अनसुलझी पहेली – 43
अभी जिस जगह नंदनी थी वह महल के पीछे का वही हिस्सा था जहाँ कोई नही जाता था पर शक्ति वही गलियारे से होता जैसे किसी अंध गुफा की ओर चला जा रहा था| नंदनी भी लगातार दबे पैर उसके पीछे पीछे चली जा रही थी| शक्ति भी जैसे सब रास्ते पहचानता था तभी वह सहजता से कभी सीढियाँ चढ़ता तो कभी उतर जाता| अभी वह उन्ही काली सीढ़ियों की ओर जा रहा था| नंदनी भी बिना रुके छुपती छुपती उसके पीछे चली जा रही थी|
अनामिका की डर के मारे बुरी हालत थी| वह बिस्तर को कसकर पकड़े थी ताकि घूमते हुए वह छिटककर गिर न जाए कि तभी उसकी नज़रों के सामने का रेशमी पर्दा किसी सांप सा रेंगता हुआ उसके शरीर के चारोंओर लिपटने लगा| अब उस कसते हुए बंधन के बीच अनामिका बुरी तरह फंस गई थी| पर्दा उसके शरीर को बांधता हुआ अब उसकी गर्दन के चारोंओर ओर लिपटता हुआ उसके चेहरे में भी लिपटा जा रहा था| अब अनामिका के हिलने की भी गुंजाईश नही रही जिससे अपनी घुटी हुई साँसों के बीच वह भरसक कोशिश में अपने पैर पटकने लगी| उसका पैर कभी पलंग के गद्दे पर पड़ता तो कभी पलंग के सख्त हिस्से पर जिससे एक तेज टीस उसके जिस्म में दौड़ जाती| हर पल कसते हुए परदे से उसका दम निकला जा रहा था| वह अपने बचाव में लगातार पैर पटक रही थी| धीरे धीरे उसके पैर पटकने की रफ़्तार कम होती जा गई जिसका साफ़ अनुमान था कि उसका शरीर अब उस कसाव को और नही सह पा रहा था| ज्यों ज्यों वह बंधन कस रहा था उसका पैर पटकना धीमा होता जा रहा था पर इससे पहले कि वह बंधन पूरी तरह से अनामिका का दम घोंट देता उसके बगल में रखा मोबाईल तेजी से बज उठा| उसकी रिंग टोन से वह सन्नाटा टूट गया और पल में पर्दा खुलकर अपनी जगह आगया जिससे अनामिका झटके से बिस्तर पर पीठ के बल गिर पड़ी| पल में वहां के सन्नाटे को चीरती वह रिंग टोन लगातार बजती रही जिससे अचानक से अनामिका उठती हुई मोबाईल को तुरंत उठा लेती है| वह इतना घबरा कर मोबाईल को कान पर लगाती है कि डिस्प्ले पर किसका नंबर है ये भी नहीं देख पाई| उस पार रूद्र थे जो बहके लहजे में अनामिका को कह रहे थे –
“इस तन्हाई में आप उधर और हम इधर अकेले – क्या करे मन नही माना तो इतनी रात आपकी नींद खराब करने आपको कॉल लगा ही ली – क्या करे आपकी याद ने हमारी नींद भी तो उड़ाई हुई है तो कैसे चैन से हम आपको सोने दे |” रूद्र उस पार से प्रेम आभास में डूबे कहे जा रहे थे और इस तरफ मोबाईल कान से लगाए अनामिका गहरी गहरी सांसे लिए अब पिछला सब याद करने डर से अपने चारोंओर देख रही थी| कुछ देर पहले उसका पलंग घूम रहा था पर अभी तो कुछ भी ऐसा नही था और उसकी नज़रों के सामने का रेशमी पर्दा वह तो उसे जकड़े था जबकि अभी तो वह हवा में हलके हलके डोल रहा था| वह होंठ दाबे सब समझने का प्रयास कर रही थी पर कुछ भी उसे समझ नही आया क्योंकि अब ऐसा कुछ भी नही दिख रहा था| न पलक जैसी कोई थी वहां न कोई डरावना अहसास फिर वो क्या था अभी अभी जो हुआ उसके साथ !!
“पता है नाराज़ तो होंगी ही आप – एक तो पूरा दिन आपको कॉल नही की और जब आपने कॉल की तो हमने उठाई नही पर आपको क्या बताए सच में हम पूरा दिन बहुत व्यस्त रहे लेकिन हर पल हमारा दिल आपको याद करता रहा – तभी तो जब लगा आपसे बात किए बिना हमे नींद नही आने वाली तो आपकी नींद खराब कर दी – अनु मेरी जान – आप बोलेंगी भी नहीं तो यही खड़े खड़े हमारा दिल धड़कना बंद कर देगा…|” रूद्र की हंसी फोन पर खनक गई पर इस पार अनामिका की हालत अभी भी डर से बुरी बनी हुई थी| अभी सब कुछ उसे सामान्य दिख रहा था जिससे वह जो हुआ उसे समझ ही नही पा रही थी|
वह अपनी कांपती आवाज में धीरे से कहती है – “रु रूद्र – जी – |”
अनामिका की कांपती आवाज सुन रूद्र चौंकता हुआ जल्दी से उससे पूछता है – “क्या हुआ आपकी आवाज ऐसी घबराई हुई क्यों है ?”
“अ अभी हमे लगा जैसे ये पर्दा हमारे चारोंओर लिपटा हमारी जान ले रहा है..|” अनामिका कि डर से घबराई आवाज सुन रूद्र चौंकता हुआ पूछता है –
“क्या कह रही है ?”
“सच कह रहे हम रूद्र जी – अभी लगा जैसे हमारा पलंग गोल गोल घूम रहा है और – और ये पर्दा – इसने हमे कसकर जकड़ लिया है – सच कहते है बहुत डरावना अनुभव था |”
अभी अनामिका की आवाज पर रूद्र हलके से हँसते हुए कहता है – “अच्छा इस गुस्ताख परदे के इतनी हिम्मत – हम अभी इसे बाहर फिकवाते है – आपको सिर्फ हम जकड सकते है और कोई नही |”
“नही रूद्र जी आप बात समझ नही रहे – सच में ऐसा ही लगा |” वह उसे बीच में टोकती हुई कहती है|
“ओह मेरी जान आपने लगता है कोई डरावना ख्वाब देखा होगा |”
अनामिका फिर अपने चारोंओर सब देखती है और सच में वहां का सामान्य माहौल देख खुद में ही उलझ जाती है कि क्या सच है और क्या नहीं !! उधर रूद्र उसे सँभालते हुए समझा रहे थे कि जरुर उसने कोई डरावना ख्वाब देखा और अचानक मोबाईल की रिंग से नींद टूटने से वह सच और ख्वाब में अंतर नही कर पा रही| अब अनामिका भी असमंजस में पड़ी होंठ चबाती चुप रह गई|
“देखिए आपने कही फिर कोई कसा हार तो गले में नही पहन रखा इससे सपने में वह परदे के कसने जैसा लगा होगा |”
रूद्र की बात सुन अनामिका तुरंत अपने गले में चेक करती है और सच में चोकर उसके गले में कसा था जिसे झटके से वह उतारकर दूर फेंक देती है| वह रूद्र की बात पर हामी भरती हुई सोचती है कि बाहर से आकर बिना चेंज किए वह यूँही लेट गई शायद इसी कारण उसे ऐसा लगा होगा|
“आप हमेशा ऐसा करती है – चलिए अब सब भूल कर आराम से लेट जाइए – हम आपके पास ही है और जब तक आप सो नहीं जाती हम कॉल डिसकनेक्ट नही करेंगे |” प्यार से कहता रूद्र हवा में एक चुम्बन देता मोबाईल कान से लगाए कुछ गुनगुनाने लगता है जिससे अनामिका के थके और घबराए चेहरे पर अब हलकी तरावट आ गई और वह भी मोबाईल कान से लगाए लगाए ही लेट गई थी|
सीढ़ियों की ओर जाता रास्ता इतना अँधेरे में डूबा था कि एक पल में शक्ति कहाँ गया ये नंदनी देख भी नही पाई और उस अँधेरी सीढ़ियों के पास डर कर अपने चारोंओर देखने लगी| आधी रात का नीरव सन्नाटा था जिसमे एक एक क्षण में चमगादड़ की आवाज हवा के संग माहौल में गूंज जाती जिससे घबराकर नंदनी अपने चारोंओर देखने लगती| वहां खड़ी वह समझ नही पा रही कि कहाँ जाए कि तभी उसे लगा सीढ़ियों के मुहाने पर कोई खड़ा है| मारे घबराहट के नंदनी का इतना हाल बुरा था कि वह शक्ति का पीछा करने की बात भूलकर अब उसे पुकारने लगी थी पर जवाब में उसे कोई प्रतिक्रिया नही मिलती| वह उस अँधेरे में ऑंखें गड़ाए गौर से उस आकृति को देखने का प्रयास करने लगी| अब वह आकृति उसे हिलती हुई अपने पास आती हुई महसूस हुई जिससे वह उसके डील डौल से समझ गई कि वह शक्ति नही बल्कि कोई और है, कोई स्त्री जिसके बाल हवा में लहरा रहे थे और लम्बे कद पर लहंगा बार बार लहक जाता| बात समझते देर नही लगी और नंदनी ने बिना समय गवाए बस वापसी की ओर दौड़ लगा दी| डर और घबराहट में वह बिना पीछे मुड़े बस दम भर भागती रही| भागते भागते लगातार उसे लगता रहा जैसे कोई कदम उसका पीछा कर रहे है इसी डर से एक बार भी बिना पीछे मुड़े वह भागती हुई उस हिस्से से दूर आ गई जहाँ कोई सेवक जाता हुआ उसे दिखा| उसे देखते नंदनी कि जान में जान आई| वह भी नंदनी को इस तरह भाग कर आते देख हैरान नज़रो से उसे देखने लगा जिससे नंदनी संभलती हुई तुरंत अपने कदम धीमे करती धीरे धीरे उसके बगल से होती अपने कमरे की ओर बढ़ जाती है पर अगर कोई उसका चेहरा ध्यान से देखता तो समझता कि इस पल में डर और दहशत किस कदर उसके हाव भाव में हावी थी|
अपने कमरे में वापिस आते उसके दिमाग में चल रही उथल पुथल में अभी भी ढेरों प्रश्न घुमड़ रहे थे जिसमें खोई हुई वह अपने कमरे में आती अपने दुप्पटे के कोने से माथे का पसीना पौछती हुई एक सरसरी निगाह कमरे में दौड़ाती है| तभी उसे कुछ ऐसा दिखा जिसे देख वह अपने स्थान पर से हिल गई| उसकी नज़रो कि सीध में मेज पर सर रखे शक्ति सोया हुआ था और रंगों से भरे कागज उसके आस पास बिखरे पड़े थे| ‘दादा भाई सा कब वापिस आए !!’ वह सोचती हुई सहमे कदमो से अब उसके पास आती है| वह उसे छू कर सच में खुद को यकीन दिला रही थी कि वह उसका दादा भाई सा ही है पर वह कब वापिस आया और मेज पर ही क्यों सो गया !! वह अचरच में पड़ी अब उन बिखरे पन्नो को समेटने लगी| उस कागजो को समेटते उसके हाथ में रंग लग जाता है जिससे वह समझ गई कि जरुर इन्हें अभी अभी बनाया गया होगा| उस नए बने कागज को उठाकर वह ध्यान से देखती है जिसमे कोई अजीब सी आकृति बनी थी जो किसी स्त्री की होने पर भी उसका चेहरा स्पष्ट नही था बस लहराते बालों और लहंगे से वह अँधेरे में गुम कोई स्त्री काया थी| ये देखते नंदनी का हैरान चेहरा और हैरान रह गया| आखिर यही दृश्य तो उसने देखा था अभी अभी| कोई स्त्री जिसके बाल हवा में लहरा रहे थे पर चेहरा बिलकुल स्पष्ट नही था तो क्या शक्ति कुछ अनदेखा देखता है जिसे वह अपनी कलाकारी से कागज पर उतार देता !! नंदनी बहुत देर अचरच से उस कागज को देखती खड़ी रही|
क्रमशः…………………….
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