
एक राज़ अनसुलझी पहेली – 44
सुबह उठते ही अनामिका सबसे पहले खुद की स्थिति हाथ से टटोलकर देखती हुई उठकर बैठ जाती है| कमरा पूरा शांत वह सुव्यवस्थित था बल्कि सामने पड़ा रेशमी पर्दा अभी भी हलके हलके उड़ रहा था जिसे देख अनामिका को पिछली रात का सब याद हो आया| कुछ पल को डर लगा फिर रात में हुई रूद्र की बात से सच में बीता पल उसे किसी डरवाने सपने सा लगा| अनामिका खुद को समझाती हुई उठने लगी कि कई बार सपने इतने सजीव आते है कि लगता है जैसे हकीकत हो| तभी पलंग से उतरते हुए उसे अपने पैरों में टीस का अनुभव हुआ जिससे वह बैठती हुई अपने पैर देखने लगी| क्या पायल फंस गई !! तभी उसने जो देखा और उस पल जो महसूस किया उसने अब तक का उसका भ्रम एकदम से छिन्न भिन्न कर डाला| उसके पैर एडी से कुछ ऊपर की ओर बुरी तरह से चोटिल थे| वह ये सोच अंतरस घबरा गई कि उसके पैरों में पायल भी नही फिर ये कब और कैसे घायल हुए !! क्या सच में वह सच था कोई सपना नही कि परदे से बचने अपनी जान बचाने के लिए उसने भरसक पैर पटका था| अब एकबार फिर डर से उसका खून सूख गया| साँसे हलक में अटकी रह गई| इस सच और सपने के बीच फंसी वह बुरी तरह घबरा कर तुरंत बिस्तर पर पड़ा मोबाईल उठा लेती है और जल्दी जल्दी रूद्र को कॉल लगाने लगती है|
फोन तुरंत ही उठा लिया जाता है और बेहद प्यार से रूद्र उसे गुड मोर्निंग विश करता उसका हाल लेता है|
अनामिका का मन तो हुआ कि ये रूद्र को बता दे कि जो कुछ भी उसके साथ हुआ वो सपना कतई नही था पर वह फिर नही मानेगे या कही कुछ ज्यादा ही परेशान हो जाएगे ये सोच अनामिका कैसे भी अपने स्वर में भरसक नियंत्रण करती हुई रूद्र की बात का प्रतिउत्तर देती है|
“आपकी प्यारी आवाज सुनकर बहुत अच्छा लगा |”
“अब आप बताईए – कब वापस आ रहे है ?”
“जब चाहे तब आ जाएँगे – हम आपसे दूर थोड़े ही है – यही ड्युन्स के कैम्प में ही है – बताया था न कि वहां कुछ गेस्ट के लिए जलसा चलवा रहे है |”
“फिर भी आप हमसे दूर तो है ही न – आ जाइए या हमे ही बुलवा लीजिए |” अनामिका जिद्द के स्वर में बोली|
“ठीक है – आप तैयार हो जाइए – हम ड्राईवर को बता देते है – |” रूद्र की बात सुनकर अब अनामिका सुकून की सांस छोड़ती मोबाईल कान से लगाए लगाए ही लेट जाती है, रूद्र अभी भी कह रहे थे – “आप आएंगी तो ऊँटों की रेस भी देख लेंगी – अच्छा है आ ही जाए – मन तो आपके बिना हमारा भी नही लग रहा पर आपको पहले इसलिए नही बोला कि आप हो सकता है अभी अपनी सखियों के साथ रहना चाहे |”
“नही हमे अभी बस आपके पास आना है – हम बस तुरंत ही तैयार होते है |” कहती हुई अनामिका अब कॉल डिस्कनेक्ट करती हुई उठ जाती है|
आँख खुलते ही झलक देखती है कि शौर्य नहीं था| वह तुरंत उठकर शयनकक्ष से बाहर निकलती है तो शौर्य को आदमकद शीशे के सामने खड़ा देखती झलक ये तो समझ गई कि शौर्य कही जाने के लिए तैयार हो रहे है| वह कुछ पल वही खड़ी देखती रही| शौर्य के पास खड़ा सेवक अब उसके जोधपुरी सफ़ेद सूट पर माणिक माला पहना कर अब उसके पैरो की ओर झुका उसे जूते पहना रहा था| बहुत देर देखते जब उसे लगता है कि शौर्य ने उसकी तरफ नही देखा तो वह उसके पास जाकर खड़ी मौन ही उसकी ओर देखती रही| जूते पहनाकर सेवक सर झुकाए खड़ा था जिसे बिना देखे शौर्य इशारे से जाने का इशारा कर अब खुद अपने इयर स्टड ठीक करने लगता है| तब से शौर्य की अनदेखी से झल्लाती झलक दांत पीसती हुई पुकारती है – “शौर्य जी – आप कहीं जा रहे है ?”
“कुछ चाहिए आपको !” शौर्य अभी भी शीशे की ओर देखता हुआ कह रहा था – “आपको खर्चे में कभी भी कही भी कोई प्रॉब्लम आए तो आपको अपने मेनेजर रचित का नंबर भेजते है उसे फोन कर दीजिएगा – आपकी सभी पेमेंट हो जाएगी – |”
शौर्य की अनदेखी से ज्यादा उसकी ये बात झलक को बुरी तरह झंझोड़ गई जिससे वह अपने अंतरस गुस्सा दबाने होंठ चबाती खड़ी रह गई|
“हैव अ नाईस डे |” एक अदनी मुस्कान उसकी तरफ फेंकता शौर्य तेज कदमों से वहां से निकल जाता है|
झलक टूटे मन के साथ उसे जाता हुआ देखती रही| उसे समझ नही आ रहा था कि आखिर शौर्य की नजर में उसकी स्थिति है क्या !! वह खुद को किसी वस्तु सा महसूस कर रही थी जिसे प्रयोग करके तिरस्कार से छोड़ दिया गया हो| ये सोचते उसका मन भर आया| इसी पल उसे अपने घर की बहुत याद आने लगी| जहाँ भलेही कोई नौकर चाकर या बहुत सारी सुविधा नही थी पर प्यार भरपूर था, सबका साथ और सानिध्य था| वह अपने माँ पापा की लाड़ली थी| आंख खुलते पलक का साथ मिलता पर यहाँ वह कितनी अकेली हो गई| पर देखा जाए तो पलक से वह शादी के बाद से ढंग से मिली तक नही जैसे वे यहाँ है ही नही| और शौर्य उससे ऐसा व्यव्हार करते है जैसे वह सिर्फ सामान और सुविधा के लिए उनके साथ है, क्या ऐसा है !! वह खुद से पूछती हुआ मन ही मन में कसमसा उठी| ‘पापा माँ मुझे आपके पास आना है |’ खुद में बिलखती झलक मुंह ढापे आखिर रो पड़ी| कुछ देर सुबकते जब मन कुछ शांत हुआ तो झट से मोबाईल लिए वह पापा को फोन लगाती है|
फोन माँ उठाती है, झलक की आवाज सुनते उनकी ख़ुशी की आवाज का अंदाजा लगाती झलक का मन फिर भर उठा फिर किसी तरह खुद पर नियंत्रण करती वह उन्हें ढांढस देती हुई कहती है – “माँ आप बिलकुल फ़िक्र मत करो पलक और मैं बिलकुल ठीक है – बस यहाँ इतने लोग है न इसलिए थोड़ा बिज़ी रहते है इससे समय का पता ही नही चलता|” झलक किसी तरह से उन्हें झूठा दिलासा देती है, आखिर कैसे कहती कि एक ही छत के नीचे होने पर भी वह पलक से मिलने तक नही गई और न उसकी कोई खबर ली|
माँ भी उसकी बात पर भरोसा रखे उसे उसके फर्ज की ढेरों सीख देती हुई कहती है – “कोई बात नही बच्चा – अपना और पल्लो का ध्यान रखना और हमारी भी फ़िक्र मत करो – हम अभी भी आदर्श के पास है तो एकतरह से कहाँ तुमसे दूर है – पहले अपना फर्ज देखो बाकी समय आएगा तो तुम दोनों आओगी ही हमारे पास |” माँ किसी तरह से खुद के भरे मन को काबू करती बेटी को दिलासा देती फोन पापा को पकड़ा देती है| वे पत्नी को देखते समझ रहे थे कि ये सारी दिलासा बेटी को कम बल्कि खुद के लिए थी कि फिर वह दिन आए जब उनके आंगन में उनकी बेटियां फिर से चहके|
भरे मन से झलक पापा से भी ज्यादा बात नही कर पाई और कोई बहाना करती फोन रख देती है|
फोन रखते वह मन ही मन तय करती है कि सबसे पहले वह पलक से मिलने जाएगी आखिर वह तो बिलकुल अकेली होगी|
थोड़ी देर में ही तैयार होकर झलक ज्योंकि कमरे से बाहर निकली एक सेविका उसकी सामने हाज़िर हो गई|
“काई हुकुम है सा !”
झलक को अब ये सब बहुत उबाऊ लगने लगा था| हर जगह सेवकों की भीड़ थी पर कोई अपना नही| पर इस वक़्त सच में इस महल में वह पलक का कक्ष ढूंढ पाएगी इसमें संदेह था इसलिए वह उसके साथ पलक के कमरे की ओर चल देती है|
वह पलक के कक्ष पहुंचकर सेविका को जाने को कहती अकेली अन्दर आती है| सुबह का समय था पर कमरे में भरपूर शांति छाई थी मानों कोई वहां हो ही नही| न कमरे में कोई बत्ती चल रही थी न किसी की मौजूदगी का कोई निशान था| अजीब सा सन्नाटा था वहां| झलक कमरे को देखती पलक को पुकारती अन्दर आती गई| कही कही से आती प्राकृतिक रौशनी से वह पलक के शयनकक्ष की ओर बढ़ती है तो अचानक सामने का दृश्य देख उसके हलक से चीख निकल जाती है| उसकी चीख इतनी तेज थी कि कमरे के बाहर खड़ी सेविका तुरंत भागती हुई अंदर आती है आवाज की दिशा में देखती है कि झलक घबराई हुई फर्श में बैठी पलक का सर गोद में लिए सुबक रही थी| सेविका तुरंत उसके पास आती उसे संभालती हुई पलक को देखती है| वह बेहोश थी और जाने कब से फर्श पर पड़ी थी| ये देख वह झलक कि सहायता से पलक को पलंग पर लेटा देती है| झलक जल्दी से पलक के चेहरे पर पानी कि छींटे मारती उसे होश में लाने का प्रयास करती है पर पलक जब होश में नही आती तो सेविका उसे शांत रहने का दिलासा देती झट से बाहर की ओर भागती है|
अगले ही पल अनामिका के साथ नंदनी और एक लेडी डॉक्टर वहां मौजूद होती है जो पलक का अच्छे से निरिक्षण करती हुई उनकी ओर देखती अब कह रही थी – “कोई विशेष चिंता की बात नहीं है शायद शादी की व्यवस्तता में कुछ ज्यादा ही थकान हो गई – |”
“इतनी कि बेहोश हो गई !” झलक घबरा कर पूछती है|
“हाँ कुछ ज्यादा ही वीक है बीपी भी काफी लो है पर आप फ़िक्र न करे मैं इंजेक्शन दे देती हूँ और ड्रिप लगवा लेती हूँ जिससे जल्दी हेल्दी फ़ील करेंगी –|”
डॉक्टर अपना निर्देश देकर चली जाती है और उसके अगले ही पल एक नर्स आकर ड्रिप लगाने का प्रयोजन करने लगती है| ये सब होता देख जहाँ नंदनी खौफ खाई किनारे चुपचाप खड़ी थी वही झलक और अनामिका के चेहरों पर ढेरों परेशानी उभर आई थी|
अनामिका झलक को सांत्वना देती हुई कहती है – “कहा न डॉक्टर ने कोई चिंता की बात नहीं है – ऐसा करो तुम भी आराम करो – तुम भी कितनी थकी थकी लग रही हो – मैं यही हूँ बस रूद्र जी को फोन करके माना कर देती हूँ |” कहती हुई अनामिका मोबाईल पर डायल करने वाली थी उससे पहले झलक उसका हाथ पकड़ती हुई पूछती है –
“तुम कही जाने वाली थी क्या ?”
“हाँ वो रूद्र जी के पास लेकिन कुछ भी अर्जेंट नहीं है – अब हम यही रुकेंगे |”
“नही अनु – |” सोचती हुई झलक कहती है – “मेरे ख्याल से तुम जाओ और हो सके तो किसी को कुछ मत कहना नहीं तो सभी खामखा परेशान हो जाएँगे – रूद्र जी से भी नही |”
“हाँ ठीक है झल्लो पर तुम..!”
बीच में ही अनामिका की बात काटती हुई झलक कहती है – “मैं रहूंगी पलक के पास और फिर नंदनी तो है ही न – सोचो अगर अपना प्रोग्राम कैंसिल करोगी तो रूद्र जी कारण पूछेगे और मेरे ख्याल से अभी मेरा होना पलक के पास ज्यादा जरुरी है – मैंने ही पल्लो का ख्याल नहीं रखा |” झलक रुंधे गले से कहती है तो धैर्य रखने अनामिका उसे गले लगाती हुई उसकी पीठ सहलाती हुई कहती है –
“ठीक है झल्लो – हम बस ड्युन्स तक ही जा रहे है – कभी भी कोई जरुरत हो कॉल कर लेना – हम तुरंत हाजिर हो जाएँगे और अपना ही ख्याल रखना |”
दोनों सखियाँ एकदूसरे को ढांढस देती जुदा हो जाती है| अब लेटी पलक के पास झलक, नर्स और नंदनी ही थे|
ड्रिप लगातार चल रही थी| नंदनी को पलक को देखकर बिलकुल भी अच्छा नही लग रहा था पर झलक का अपनी बहन के प्रति प्यार देख उसका मन भी द्रवित हो उठा इसलिए चाहकर भी वह उस कमरे से बाहर नही गई| शाम होते होते पलक की ड्रिप हट गई तो नर्स भी चली गई| झलक अभी भी पलक का हाथ पकडे उसके बगल में बैठी थी| शाम को नंदनी पूरे कमरे में उजाला करती हुई झलक को कुछ जरुरत हो पूछने आती है|
इससे झलक उसकी ओर देखती है| जब से झलक यहाँ थी नंदनी भी तबसे उसके साथ मौजूद थी, उसे लगा कि वह तो आराम से बैठी है पर बिचारी तब से इधर उधर डोलती परेशान हो रही है|
“ऐसा करो नंदनी अब तुम जाओ – मुझे किसी चीज की जरुरत होगी तो बुलवा लुंगी – वैसे भी रात होने वाली है तो बस सोना ही है और मैं पलक के पास ही सो जाउंगी |”
नंदनी क्या कहती कि पलक से उसे किस कदर खौफ है पर ये सोच मन को समझा लिया कि वे दोनों आपस में बहने है अच्छे से रह लेंगी| फिर नंदनी नही रुकी और चली गई| अनामिका को भी पलक के आराम करने और ड्रिप पूरी हो जाने की खबर दे दी| रात का खाना कमरे में ही आ गया पर पलक की तबियत से परेशान झलक से कुछ खाया भी नही गया| मन ही मन खुद को कोसती रही कि उसी ने पलक का ध्यान नही रखा जबकि पता है कि वह कितनी नाजुक मन की है और साथ ही वह शौर्य के पास भी नही जाना चाहती थी| अब शौर्य का ध्यान आते उसके बदन में झुरझुरी सी दौड़ जाती| वह बस मन मसोसे पलक के पास ही लेट गई|
पूरे दिन तन मन की थकन से झलक को भी झट से नींद आ गई पर अचानक रात को उसकी आँख खुलती है| झलक सबसे पहले पलक को देखती है तो चौंक जाती है| पलक पलंग पर नही थी तो कहाँ गई !! वह कुछ सोच ही रही थी कि उसे लगता है जैसे कोई अभी अभी कमरे से बाहर गया| पलक गई है क्या !! ये सोच झलक तुरंत समय गवाए उसके पीछे भागती है| कमरे से बाहर आती वह चारोंओर देखती है| शायद आधी रात थी जिससे महल में घुप अँधेरा व शांति छाई थी| इस वक़्त कहाँ जाएगी पलक !! ये सोचती झलक गलियारे की ओर दौड़ लगा देती है| उसे जिधर भी कोई आहट मिलती वह उसी ओर तेजी से चल देती| चलते चलते न कोई रास्ता उसे सूझ रहा था और न पलक ही दिख रही थी| कभी आवाज उसे अपने पीछे से आती लगती कभी सामने की ओर से| उसे दिशा भ्रम होने लगा जिससे वह कभी पीछे चलती तो कभी आगे दौड़ जाती पर कहाँ से आवाज आ रही थी वह समझ ही नहीं पा रही थी उसे तो बस पलक की चिंता हो रही थी| चलते चलते उसे पता ही नही चला कि कहाँ की सीढियाँ चढ़ती हुई वह महल के पिछले हिस्से के छज्जे वाले हिस्से में आ गई जो अँधेरे में पूरी तरह से गिरफ्त था| पलक को आवाज लगाती वह उसी अँधेरे में आगे बढ़ती रही| आगे बढ़ती हुई झलक जान ही नहीं पाई कि वह जिस ओर बढ़ रही है वह हिस्सा छतिग्रस्त है| फिर भी आगे बढ़ती रही कि अचानक उसका पैर किसी से टकराया और वह लडखडाती हुई वह इक्कीस फुट नीचे बस गिरने ही वाली थी पर किसी पुष्ट हाथ ने उसकी बांह कसकर पकड़ ली जिससे वह उसकी बांह थामे हवा में झूल गई| क्रमशः………
Very very👍🤔👍👍👍🤔