Kahanikacarvan

एक राज़ अनसुलझी पहेली – 46

झलक बड़ी चैन से चुपचाप सो रही कि अचानक से उसकी नींद टूटते वह उठकर बैठ जाती है| वह इतनी गहरी नींद सोई थी कि नींद से उठने के अगले पल से वह खुद की स्थिति देखती है कि वह पलक के पास सोई थी तो पलक कहाँ है !! वह पलक को सोचती हुई उठकर कमरे में निगाह दौड़ाती है तो शयनकक्ष के अगले कमरे जिसमे कोई आदमकद आईने के सामने बैठी उसे बाल संवारती हुई दिखती है| उन दोनों कमरे के बीच में झीना रेशमी पर्दा था जिससे चेहरा तो स्पष्ट नही था पर किसी का बैठा होना साफ़ दिखाई दे रहा था| झलक जल्दी से उस ओर बढ़ती हुई पर्दा हटाती सामने देखती है तो उस पल वह अवाक् रह जाती है| अब शीशे के सामने उसे कोई बैठा नही दिखता| वह अचरच में डूबी अभी ये सोच ही रही कि एक क्षण में कोई वहां से कहाँ जाएगी कि उसे अपने कंधे पर भार महसूस होता है और वह पलटकर देखती है| अब उसकी नज़रों की सीध में पलक थी जिसकी गहरी कजरारी आँखों में कुछ अलग ही चमक थी जिसकी ओर देखती झलक जैसे बुत बनी रह गई| जहाँ झलक के चेहरे पर सपाट भाव थे वही पलक के होंठों पर तिरछी मुस्कान खेल रही थी|

“तूने मेरा काम पूरा नही किया – मैंने कहा था न कि मुझे वो धागे नहीं पसंद तो तू ऐसा कर अब बचे हुए सारे धागे खोलकर फेंक दे – करेगी न तू |” पलक बेहद सधी आवाज में कहती है तो झलक भी किसी आज्ञाकारी बच्चे की तरह हांमी भरती तुरंत ही बाहर की ओर चल देती है| उसे जाता हुआ देख पलक के चेहरे के मुस्कान और भी गहरी हो जाती है|

नंदनी उन दोनों चित्रों को ध्यान से देखती हुई उनके पीछे का बैकग्राउंड समझने की कोशिश कर रही थी| नवल जहाँ खड़ा दिख रहा था वह दीवार देखकर तो महल का हिस्सा ही लग रहा था पर तब से ये बात उसे परेशान किए दे रही थी कि वे सीढियाँ चित्र में काली की गई है या वाकई वह जला हुआ स्थान है अगर जला हुआ स्थान है तो महल का वो कौन सा हिस्सा होगा जो कभी जला हो पर उसकी याद में ऐसा कोई हिस्सा याद ही नही आ रहा था| फिर अचानक उसे याद आया कि वह शक्ति का पीछा करती महल के पिछले हिस्से में जब गई थी तब शायद जिन सीढ़ियों में उसने साया देखा था वह ऐसी ही सीढियाँ थी तो क्या इसका मतलब ये चित्र वहां का है और अगर ये बात सच है तो वहां जाने में तो सभी के लिए प्रतिबन्ध है फिर कुंवर सा वहां क्यों गए होगे !! बहुत देर तक दिमाग मथते जब उसे कोई कारण समझ नही आता तो वह मन ही मन तय करती है कि दिन के समय वह उसी स्थान पर जाकर देखेगी उसके बाद वह राजगुरु जी का भेद पता करेगी| नंदनी देखती है कि शक्ति अभी भी अपनी चित्रकारी में लगा था ये देख नंदनी चुपचाप वहां से उठकर बाहर की ओर चल देती है|

अनिकेत तब से अपने पिता को पूजा करता हुआ चुपचाप देख रहा था वे मंदिर जाने से पहले अपने घर के छोटे से मंदिर में ठाकुर जी को बड़े जतन से भोग लगाते धीरे धीरे भजन गुनगुना रहे थे| अनिकेत बिना कोई विघ्न के बहुत देर खड़ा देखता रहा जब वे भोग लगाकर रामायण का पाठ करके उठे तो अनिकेत को खड़ा देख एकदम से ठहर गए| वे सीधा उसके चेहरे को देखते जैसे उनके मनोभाव पढने का यत्न कर रहे थे|

“बेटा – क्या बात है ? कुछ कहना है ?” वे चलते हुए उसके सामने आते अभी भी उसका चेहरा ध्यान से देख रहे थे|

अनिकेत झुककर उनका पैर छूता है तो वे घबरा कर पूछ उठते है – “क्या कही जा रहे हो ?”

अनिकेत उसके समक्ष खड़ा उसकी बूढी काया तो अपने बलिष्ठ हाथों के बीच थामता हुआ कहता है – “नहीं बस आज शाम किसी काम से जॉन के पास जा रहा हूँ – हो सकता है देर हो जाए तो रात वही रुक जाऊंगा |”

अनिकेत की सहज बात पर वे हलके से हँसते हुए कहते है – “ओह तो यही इसी शहर में तो हो – मेरा मन तो ये सोच डर गया कि कही बाहर जा रहे हो |” वे अनिकेत का हाथ प्यार से हटाते अब पूजा का सामना अपने झोले में डालते हुए कहने लगे – “तुम तो ऐसे आए जिससे मेरा मन डर गया – यही जाने का क्या पूछना – जाओ – कल तक आ जाना और याद है न कल पूरनमासी है तो ठाकुर जी को खीर का भोग लगाना है और वो भी तुम्हारे हाथ की बनी खीर का – तुम्हारे हाथ की बनी खीर से बिलकुल तुम्हारी माँ के हाथो की खुशबू आती है जैसी हर पूरनमासी को वह खीर बनाती थी |” कहते कहते वे झोले में सामान रखते रखते अनिकेत से अपना दुखी चेहरा छुपा ले जाते है| अनिकेत भी अपना हाव भाव उनकी नज़रो से छुपाए था जिसमे उनसे दूर होने का डर भी समाया था| वह इसी डर से उन्हें नही बता पाया कि वह किस खतरनाक कार्य की ओर बढ़ रहा है जहाँ से संभव है वह कभी लौटकर भी न आए, ये सोचकर कि उसके बाद उसके पिता अकेले कैसे रहेंगे पर वक़्त ने अनिकेत को चुनाव का ज्यादा मौका नही दिया था| एक तरफ पिता की जिम्मेदारी थी तो दूसरी तरफ पलक का ख्याल| लेकिन वक़्त का ये जुआ तो उसे हर हाल में खेलना ही था इससे वह कम से कम जाने से पहले अपने पिता से मिलकर जाना चाहता था पर इस भावुकता पर वह अच्छे से नियंत्रण किए था पर उन्हें जाता देख अचानक से वह उन्हें गले लगा लेता है इससे वे पल भर को अचकचा जाते है और सर उठाकर उसका चेहरा पढ़ने की कोशिश करने लगते है| अनिकेत की लम्बी, बलिष्ठ देह के बीच उसका दुर्बल मध्यम कद संकुचा जाता है| वे अनिकेत के मनोभाव पढने का यत्न करते है पर अपनी साधना से अनिकेत अपने भावों को छुपाना अच्छे से जानता था जिससे उन्हें लगता है कि शायद माँ का नाम लेने भर से अनिकेत भावुक हो गया तो उसकी पीठ सहलाते वे उससे अलग होते जाने के लिए अपना झोला उठा लेते है|

दिन के समय महल के हर कोने में हलचल थी| जहाँ एक ओर नंदनी सबसे नज़रे बचाती हुई महल के पिछले हिस्से की ओर बढ़ रही थी तो वही झलक भी यांत्रिक भाव से चलती लगभग हर दरवाजे का रक्षा सूत्र खोल चुकी थी| सेविका उसे जाता हुआ देखती तो रोककर कुछ पूछना चाहती पर झलक तुरंत ही आगे बढ़ जाती| सेविका भी सर झुकाए उसे जाता हुआ बस देखती रही पर कुछ ज्यादा समझ नही पाई| वे आपस में कानाफूसी करती रही कि ये नई बिन्दनी तो सर खोले सारे महल में घूमती है ऐसा तो कभी न हुआ शायद रानी साहिबा के महल में न रहने से ऐसा हो रहा है कि जिसका जो मन आ रहा वो कर रहा है| वे अच्छे से जानती थी कि इस महल का पत्ता भी रानी साहिबा की मर्जी के बिना नही हिलता पर झलक को टोकने या रोकने की किसी की हिम्मत नही हुई| उधर नंदनी अब महल के पिछले हिस्से में आ गई थी| जहाँ आते झरोखे कम होने से प्राकृतिक रौशनी कम होती जा रही थी और अँधेरा बढ़ता जा रहा था| नंदनी को ये देख डर तो लग रहा था पर अपने मन के चरम पर पहुँच चुकी जिज्ञासा को भी वह दरकिनार नही कर पा रही थी| नंदनी दिन में भी घबराती इधर उधर देखती महल के पिछले हिस्से की तरफ आ गई थी| उसकी निगाह को उन्ही जली सीढ़ियों की तलाश थी जिसे उसने तस्वीर में देखा था| खाली पड़े चबूतरे को पार करते वह दीवार को गौर से देखती जा रही थी कि अचानक उसे किसी के आने की आहट हुई तो सतर्क होती किसी खम्बे के पीछे छिपकर आवाज की दिशा की ओर देखने लगी| कोई था जो सीधा वही चला आ रहा था| बढ़ी हुई धड़कनो से वह आवाज की ओर अपना सारा ध्यान लगाए थी तभी उसकी नज़र को वो दिखा जिसपर उसे सहज ही विश्वास नही आया| वह झलक थी जो यांत्रिक भाव से उधर ही चली आ रही थी| नंदनी अवाक् झलक को देखती है और सबसे हैरान करने वाली बात थी उसके हाथ में पकडे ढेरों रक्षासूत्र जिन्हें लिए वह उसके पास से निकल गई| नंदनी को आश्चर्य हुआ कि झलक ने उसे देखा क्यों नही| अब वह उसे जाता हुआ देखती रही| उसकी चाल बेहद सधी हुई और यांत्रिक थी जिसे देखकर नंदनी को अजीब लग रहा था  इससे वह उसके पीछे पीछे दौड़ लगा देती है| अगले ही पल वे किसी अँधेरी गुफा जैसी जगह पर चल रही थी| जहाँ उस अँधेरी जगह पर चलते झलक सहज थी वही नंदनी की हालत बुरी हुई जा रही थी उसका मन ढेरों तरह के प्रश्न में डूबा जा रहा था कि आखिर ये झलक जा कहाँ रही है ? उसका मन अंतरस बौखला उठा कि आखिर ये दोनों बहने है क्या बला कोई मर कर जी उठी तो कोई अजीब सा व्यव्हार कर रही है| अब तो झलक से भी उसे डर लगने लगा| पर इतनी देर तक उसका पीछा करते अब वह वापस नही लौटना चाहती थी| अचानक झलक के कदम कही रुक जाते है वह किसी दरवाजे के सामने खड़ी थी| उसके पीछे खड़ी नंदनी की तो आश्चर्य की सीमा नही रही जब झलक को उस दरवाजे के बाहर से भी रक्षासूत्र को निकालते हुए वह देखती है| अब उससे रहा नहीं जाता और वह दौड़कर झलक को टोकती हुई उसके पास आती है पर झलक ने जैसे कुछ सुना ही नहीं और बिना रुके अपना काम करती रही| नंदनी को ये सब इतना उबाऊ लगा कि वह झलक के हाथ से रक्षासूत्र लेने लगती है और उसी पल झलक की जैसे तन्द्रा टूटते वह अवाक् नंदनी को देखती है जैसे उसका वहां होना उसे अब पता चला हो फिर अपने आस पास देखती हुई पूछती है –

“ये कहाँ हूँ मैं ?”

झलक की बात से नंदनी का सर चकरा जाता है और मन ही मन बुदबुदाती है कि यही सवाल तो वह उससे पूछना चाहती थी|

अभी दोनों अवाक् एकदूसरे को देख रही कि कोई शोर उन्हें सुनाई देता है जैसे कई लोग तेजी से चिल्लाते हुए भाग रहे हो| अब दोनों उस शोर पर अपना ध्यान लगाती हुई सुनती है तो उनके कदम भी उसी शोर की ओर हो लेते है|

“आग आग – जल्दी आओ सब |”

ये आवाज सुनने के बाद उन दोनों के कदम कितनी तेजी से वहां से बाहर की ओर आते है| चबूतरे की ओर आते दोनों किधर जाए ये सोचती चकरा जाती है फिर आश्चर्य से एकदूसरे को देखती एकदूसरे का हाथ पकडे वे आवाज की दिशा में बाहर की ओर भागती है तो एक हैरान कर देने वाला दृश्य उनका इंतज़ार कर रहा था| महल के बीचो बीच बने मंदिर से आग की लपटे उठ रही थी जिसे बुझाने में महल का लगभग हर कर्मचारी लगा था| उन दोनों की तो आवाज ही गुम हो गई थी| वे मौन उस दृश्य को देखती रही|

काफी मशक्कत के बाद आखिर आग बुझा ली गई अब उस जगह से काला धुँआ सा उठा रहा था| इसके बाद उन दोनों को आपस में न कुछ कहते बना और न पूछते वे बस अपने अपने कक्ष की ओर बढ़ गई| क्या हो रहा है महल में या होने को है ?? जानने के लिए पढ़ते रहे…

क्रमशः…….

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