
एक राज़ अनसुलझी पहेली – 47
आग की खबर बहुत दूर बैठी राजमाता तक भी जा पहुंची जिससे एकदम से उनके होश फ़ाक्ता हो उठे| वे बेचैनी में ठहलती रचित को फोन करती है|
“रचित हमे कल रात की सारी सीसीटीवी फुटेज चाहिए – जल्दी ईमेल करो |”
रचित की हामी सुन वे फोन डिस्कनेक्ट कर फिर कुछ सोचती हुई सिलसिलेवार सब पिछला याद करने लगती है कि इसका क्या अर्थ हो सकता है ? राजा साहब की कही बात अभी भी उनके दिमाग में वैसी ही तरोताजा थी तो दरवाजे के खुलने का राज़ अभी भी बना हुआ था अचानक कुछ याद करती वे फिर से रचित को फोन लगाती हुई कहती है – “रचित आप ऐसा करे हमे शादी से एक दिन पहले से लेकर आज तक की सारी फुटेज भेज दे |”
अपनी बात कहकर फोन काटती हुई वे मन ही मन सोचती है कि ये बात उनके दिमाग में पहले क्यों नही आई, अब वे इस फुटेज से जान सकेगी कि कौन उनके पीठ पीछे साजिश रच रहा है| सोचते हुए उनके गालो पर दवाब आ जाता जिससे उनके होंठ अन्दर की ओर भींच जाते है|
ये खबर सैंड ड्युन्स में जलसा मनाते रूद्र और अनामिका तक भी पहुँचती है जिससे चिंतित होती वह सबसे पहले झलक को फोन करके उसकी खबर लेती है|
झलक जो खोई खोई सी कमरे में बैठी यूँही अपना मोबाईल स्क्रोल कर रही थी तभी अनामिका का फोन आता है|
“तुम दोनों ठीक तो हो न – चिंता मत करना हम आज रात तक वापिस आते है – तब तक तुम दोनों अपना ख्याल रखना और हाँ बाबोसा का ओपरेशन सफल हो गया तो संभव है माँ साहिब और बन्ना सा भी जल्दी ही वापिस आ जाए – ये खबर तुम पलक तक जरुर पहुंचा देना – अब फोन रखते है |”
अनामिका एक सांस में अपनी बात कहती कॉल कट कर देती है पर झलक अनमनी सी बैठी रह जाती है| उसे कुछ भी अच्छा नही लग रहा था पर पलक के पास भी जाने का उसका मन नही हुआ| उसे बाद में बता देगी सोचती हुई वह बिस्तर पर और पसरती फिर से मोबाईल में स्क्रोल करने लगती है| एक ख्याल उसका शौर्य की ओर जाता कि बिना कुछ कहे चले गए और कब आना है कुछ बताना जरुरी भी नही समझा| उसका मन उस समय बहुत अकेलपन महसूस कर रहा था जिससे स्क्रोल करते करते व्हाट्स एप में शौर्य द्वारा दिया कोई कांटेक्ट देखते उसे पिछली सुबह का सब याद आ गया कि किस तरह से उसने उसे वह नंबर दिया था जिससे उस पल शौर्य के प्रति उसका मन कसैला हो उठा पर मन मारती आखिर वह उस नंबर को सेव कर लेती है| नंबर सेव करते उस नंबर की डीपी स्पष्ट हो आई जिसे उस पल झलक अनदेखा न कर सकी बल्कि चौंकती हुई वह उस तस्वीर को गौर से देखती हुई बुदबुदाती है – ‘ओह तो ये है मेनेजर रचित – पिछली रात जिसे मैंने अंट शंट सुनाया ये तो वही है |’ वह अब बेहद इंटरेस्ट के साथ उस तस्वीर को देखने लगी जिसमे गहरे कथई बंद गले के सूट में वह तनकर तिरछा खड़ा था जिससे देखने वाले की नज़र बरबस ही उसके इअर स्टड पर सहज ही चली जाती जिसमे कोई नीला नगीना था| उसे देखती झलक मन ही मन बोल उठी – ‘तो ये भी राजपूत है – तभी कुछ ज्यादा ही एटीटयूड है पर हुआ करे – मुझे क्या करना – मुझसे अगली बार ऐसे बात किया न तो देखना मैं क्या करती हूँ – मेरा नाम भी झलक है |’ बुदबुदाती वह मोबाईल झटके से बंद करती अपने बगल में पटककर लेट जाती है|
नंदनी भी अपने कमरे में वापिस आने के साथ ही उलझी हुई थी| अपनी हथेली मसलती वह सोचती रही – ‘पहले तो मुझे पलक पर ही शक था पर अब ये झलक भी मुझे ठीक नही लगती – वह मुझे जहाँ मिली वह वही जगह थी जो मैंने तस्वीर में देखी थी – मैंने महल में रहते हुए भी आज पहली बार उस जगह को देखा लेकिन झलक वहां कैसे पहुंची और फिर मुझे देखकर क्या वह अनजान बनने का नाटक करने लगी – आखिर ये सब हो क्या रहा है – मुझे तो कुछ समझ नही आ रहा लेकिन ये भी सच है कि जब से ये दोनों बहने आई है तभी से महल में सब गड़बड़ी हो रही है – अब तो मुझे इस झलक का सच भी जानना पड़ेगा पर उससे पहले मैं राजगुरु जी के पास जाती हूँ – हाँ यही सही रहेगा |’ मन ही मन तय करती नंदनी फिर से बाहर की ओर निकल जाती है|
अनिकेत जॉन के साथ उसके घर पर मौजूद था| वे दोनों रात की योगनिद्रा के लिए तैयारयाँ करने में लगे थे| एक कमरे को बिलकुल वैसा ही तैयार किया गया जैसा पलक की लुसिड ड्रीमिंग के वक़्त तैयार किया था| अनावाशक रौशनी और आवाजो से रहित| कमरे के बीच में जहाँ बिस्तर था वही उसके चारोंओर काले कपड़े का धेरा था| उसे ठीक करता हुआ अनिकेत देखता है कि जॉन अब वहां कोई मशीन लगा रहा है| वह आश्चर्य से उस मशीन को देखता हुआ पूछता है – “ये क्या है जॉन?”
जॉन उस मशीन को बिस्तर के बगल की मेज पर सही से रखता हुआ कहता है – “यही तो वो चीज है जिस पर पिछले कई दिनों से मैं मेहनत कर रहा था – जिसे मैंने वेब साउंड मशीन नाम दिया है|” अब वह मशीन के तारों को सुलझाता हुआ कहता रहा – “जब तुम योगनिद्रा में रहोगे तब ये तुम्हारी हार्ट बीट, नब्ज की गति, मस्तिष्क की हलचल सब दिखाएगी जिससे तुम्हारे अनकम्फर्ट होते मैं तुम्हे वापिस लाने का प्रयास जल्दी कर सकूँगा|”
अब तक जॉन की बात सुनता अनिकेत उसके पास आता उसके कंधे पर हाथ रखता हुआ कहता है – “शुक्रिया दोस्त तुम मेरे लिए इतना कर रहे हो लेकिन फिर भी मैं तुमसे यही चाहूँगा कि मुझे वापस लाने की जल्दी में मुझे अधूरी नींद से मत उठाना क्योंकि मुझे पता है जब मेरी आत्मा मेरे शरीर से बाहर निकलेगी तो हार्ट बीट शायद कुछ समय के लिए समतल हो जाए पर दोस्त तुम सब्र से इंतज़ार करना क्योंकि आज की रात हर हाल में मुझे पिछला सब सच जानना ही है|”
“हाँ मैं इस बात का ख्याल रखूँगा पर क्या एक रात में ये हो जाएगा !!”
“करना ही है क्योंकि दिन प्रति दिन समय जा ही रहा है अब मैं खुद को वहां पर एकीकृत करूँगा जहाँ से मैं पलक से अलग होकर वापस बाराबंकी वापस आया था – एक बात और जॉन |” अबकी अपनी बात कहता हुआ अनिकेत जॉन का हाथ अपनी हथेली के बीच रखता हुआ कहता है – “तुम्हें पता है पिता जी का मेरे अलावा और कोई नही है और उनकी बढ़ती उम्र से वे किसी भी धक्के से खुद को नही संभाल पाएँगे तो..|” अनिकेत हिचकिचाते हुए अपनी बात कह रहा वही जॉन आश्चर्य से उसकी तरफ देखता उसकी बात समझने की चेष्टा कर रहा था|
“अगर मुझे कुछ हो जाता है तो तुम वैसे ही सब छुपा ले जाना जैसे मेरे कोमा में जाने की बात तुमने छुपाई थी |”
अनिकेत की बात पर जॉन एकदम से उसका हाथ हटाते नाराज़ हो उठा – “मैं तुम्हें कुछ नही होने दूंगा |”
अनिकेत हलके से मुस्कराते हुए कहता है – “पता है दोस्त तुमने मेरे लिए ही रात दिन करके ये मेहनत की है ताकि मुझे बचा सको पर आने वाला वक़्त किसी के हाथ में नही होता और नियति ने आगे क्या लिख रखा है ये तुम मैं या कोई नही जान सकते इसलिए मुझे अपने मन की बात कह लेने दो दोस्त कि वे मेरे बिना तो एक पल भी नही रह पाएँगे पर मेरे इंतज़ार के भ्रम में शायद वे जी जाए तो दोस्त उन्हें मेरा कोई सच तुम मत बताना |” बेहद सपाट भाव में अपनी बात कहता अनिकेत चुप हो जाता है|
“फ़िक्र मत करो यकीनन ऐसी नौबत आएगी ही नही |” विश्वास से वे दोनों नज़रे एकदूसरे को देखती हलके से मुस्करा उठी|
अभी दिन का ही वक़्त था इसलिए नंदनी बहुत संभलती हुई राजगुरु के कक्ष की ओर बढ़ चली थी और किसी को शक न हो तो इसलिए हाथो में पूजा की थाली लिए थी| राजगुरु जो महल के निवास में ही रहते थे लेकिन उनका कक्ष महल के काफी अलग थलगकोने में था जहाँ किसी को उनसे आवश्क काम होने पर ही उधर जाता था| इसलिए नंदनी बेहद सावधानी से उधर जा रही थी|
जहाँ एक तरफ झलक गहरी नींद में थी तो वही पलक अपने कक्ष में पलंग पर बैठी जोर जोर से पैर हिलाती ऊपर की ओर देख रही थी| उस समय उसके हाव भाव बेहद सख्त बने हुए थे और उसका सारा का सारा ध्यान ऊपर छत से लटकते फानूस पर था जो अजीब तरह से उसकी नज़रों के सामने डोल रहा था| अजीब इसलिए कि इतना बड़ा भारी फानूस बिना हाथ लगाए किसी पतंग सा हवा में हिल रहा था और उसी रफ़्तार में पलक पलंग पर बैठी अपने पैर जोर जोर से आगे पीछे कर रही थी| उस वक़्त उस अँधेरे कमरे में ये दृश्य अपने आप में भयावह बना हुआ था पर अन्दर हो रही हलचल का बाहर किसी को कहाँ खबर थी| राजगुरु अपने कक्ष में मौजूद अभी उस लड़की के बगल में बैठे उसे घूर रहे थे| वह लड़की जो अचेतन बिस्तर पर लेटी थी पर राजगुरु का सारा ध्यान उसी की ओर था| वे बहुत देर तक ख़ामोशी से उसके बगल में बैठे रहे फिर कुछ सोचते हुए अपने कक्ष से बाहर निकल जाते है| यही वो पल था जब नंदनी वहां आई और राजगुरु को बाहर निकलते देख किसी खम्बे के पीछे छिप जाती है| छिपी हुई नंदनी जब आश्वस्त हो जाती कि वे वहां से चले गए तब डरती डरती उनके कक्ष में जाने का प्रयास करती है| ऐसा करते उसकी जो हालत थी वो उस वक़्त उससे बेहतर कोई नही जानता था| अपनी धड़कती धड़कनो के साथ वह अन्दर आती है| कक्ष बंद नहीं था इसलिए उसे अन्दर आने में कोई तकलीफ नही हुई| वह अंदर आते दरवाजा हलके से उड़का देती है पर ऐसा करके वह नही देख पाई कि कोई था जो उसपर निगाह रखे था पर इन सबसे बेखबर नंदनी कक्ष में आती अन्दर की ओर बढ़ने लगी थी| अन्दर आते उसकी नज़र के सामने अचानक कुछ ऐसा दिखता है जिसपर उसे बरबस ही यकीन नही होता| वह डर से अपने मुंह पर हाथ रखे अपनी आह को निकलने से पहले रोकती खड़ी रह गई| डर और दहशत से उसकी ऑंखें जैसे बाहर निकल आई………..आखिर क्या देखा नंदनी ने और क्या सच का पता लगा पाएगी नंदनी !! तो अनिकेत की योगनिद्रा की यात्रा क्या गुल खिला पाएगी !!
क्रमशः……
Very very👍👍👍😊😊😊😊🤔🤔🤔🤔🤔🤔