Kahanikacarvan

एक राज़ अनसुलझी पहेली – 48

जहाँ एक ओर नंदनी राज़ का पता लगाने राजगुरु के कक्ष तक जा पहुंची थी वही झलक सबसे बेखबर नींद में डूबी थी जबकि पलक एकटक बैठी जाने कबसे छत के फानूस पर निगाह टिकाए बैठी थी| अब तक एकबार भी उसकी पलक नही झपकी थी जिससे अब फानूस का जलता बल्ब कुछ तेज जलने लगा जिससे उसके चेहरे पर एक विस्मयकारी मुस्कान तैर गई| नंदनी के सामने वही स्थान था जिसे शक्ति ने कागज पर उतारा था वही बिछौने पर कोई लड़की लेटी थी जिसका चेहरा देखते नंदनी के हाव भाव में डर मिश्रित घबराहट समा गई| वह कोई मोम के पुतले सा निस्तेज शरीर था पर नंदनी के डर का कुछ और ही कारण था जिसके बाद उससे वहां एकपल भी नही रहा गया और तुरंत ही वह वहां से छुपती हुई बाहर निकल गई| दौड़ती भागती नंदनी अपने कक्ष में आकर ही सांस छोड़ती है| जब उसे सुकून हो गया कि वह सबकी नज़रो से बचकर आ गई तब किसी तरह से अपनी साँसों को समेटती वही फर्श पर बैठती चुन्नी से पसीना पोछती पोछती पिछला सब घटित अपने मस्तिष्क में खंगालने लगी|

‘राजगुरु ऐसा कैसे कर सकते है – वे आखिर क्या करने वाले है और वो जिसे मेरी आँखों ने देखा वो कतई आँखों का धोखा नही हो सकता – वह सच था कि राजगुरु की बेटी कही नही ख़ोई बल्कि वह अपने घर में कैद है तभी तो कोई इस सच के बारे में नही जानता पर ये कैसे हो सकता है – वे इतने सम्मानित व्यक्ति है तो क्यों झूठ बोलेंगे – अगर उनकी बेटी कही नही खोई तो क्यों ये सच उन्होंने सबसे छुपा रखा है – समझ नही आता आखिर इस महल में हो क्या रहा है !! मैं आखिर किससे ये सब कहूँ – हे करणी माता – आप कुछ तो रास्ता सुझाईए – कोई तो हो जो इन सारे रहस्यों को सुलझा दे – किसी को तो भेज दो माता |’ मन ही मन रोती बिसूरती वह आंख बंद कर हाथ जोड़ लेती है|

शाम गहराते रूद्र, अनामिका और साथ में शौर्य भी महल वापस लौट आते है| अनामिका आती सीधे पलक से मिलने जाती है| अन्दर आती उसे लेटा देख वह वापस चली जाती है फिर झलक के पास शौर्य को जाता देख उसके पास जाने का वह टालकर अपने कक्ष में लौट जाती है| आहट होते झलक की नींद टूटती है तो कमरे में शौर्य को देख वह तुरंत उठ बैठती है| शौर्य को देखकर उसे लगता है कि शायद वह खुद उसके पास आकर बात करेगा पर वह ये देख अवाक् रह गई कि शौर्य ने एकबार भी उसकी तरफ नही देखा बस कपड़े चेंज करके बाहर की ओर निकल गया| झलक उसे चुस्त पैंट, राइडिंग बूट और हाथ में पकड़ी चाबुक के साथ जाता हुआ देखती समझने का प्रयास कर रही थी कि वह कहाँ जा रहा है ? शायद घुड़सवारी के लिए !! उसे जाता हुआ देखती झलक गुस्से में होंठ चबाती रही पर उसे रोका नही| उसके इस व्यव्हार से झलक को इतना बुरा लगा कि फिर उसका भी मन नही हुआ कही जाने का, गुस्सा दबाने वह फिर जबरन बिस्तर पर लेट जाती है|

देर शाम से अनिकेत साधना समाप्त कर अब खुद को योगनिद्रा के लिए तैयार कर रहा था| वह सब बेहद ख़ामोशी से कर रहा था मानो ख़ामोशी उसकी अंतरस शक्ति हो| जॉन भी अपनी मशीनों के साथ तैयार था| जब अनिकेत लेटने वाला था तो पता नही जॉन को क्या सूझा वह अचानक उसके गले लग जाता है इससे अनिकेत अचकचाता उसे ढांढस देने उसकी पीठ थपथपाते हुए कहता है – “जाको राखे साइया मार सके न कोई |”अनिकेत का विश्वास देख वे मुस्कराकर अब आपस में मुट्ठी मिलाते अपने अपने स्थान पर आ जाते है|

अनिकेत के लेटते जॉन मशीनों से निकले तारों से उसके शरीर को जोड़ते हुए देखता है कि अनिकेत बेहद शांति से लेटा नींद में जाने की यात्रा शुरू कर रहा था|

शाम धीरे से रात का आंचल खींच लाई इससे महल की हलचल भी कम होने लगी| झलक अनमनी सी अभी भी आंख खोले लेटी थी| उसका मन जिस उदासी में गोते खा रहा था ये बस उसे ही खबर थी| पूरे दिन भर न उससे कुछ खाया गया और न ही उसने खुद को संवारा बस अजीब सी ख़ामोशी ओढ़े वह लेटी लेटी जैसे समय को बीतता हुआ देख रही थी| इतना खलीपन शायद ही उसने कभी अपने जीवन में महसूस किया था| तभी फिर कुछ आहट हुई तो उसने कनखनी से शौर्य को कमरे में आता पाया जिससे वह चुपचाप आँख बंद कर लेटी रही| कुछ पल बाद किसी के पास होने के अहसास से अचानक वह आँख खोलती है तो अपने बगल में शौर्य को बैठा पाती है जो अजीब निगाह से उसकी ओर देखता अपनी शर्ट के बटन खोल रहा था| झलक पल भर सन्न देखती रह गई और शर्ट खोलकर अपने से अलग करता शौर्य अब झलक की कलाई पकड़ कर उसे अपनी ओर खींचता है जिससे झलक में जाने कहाँ से बल आता है और वह झटके से उससे अपनी कलाई छुड़ा लेती है| ऐसा करते झलक अर्धउठी अपनी सख्त नजरो से उसे घूरने लगी थी जिससे शौर्य दोनों हाथ हवा में उठाते उससे दूर हटता उस किंग साइज बिस्तर के दूसरे कोने में उसकी तरफ से पीठ मोड़े लेट जाता है| उस पल उसका ऐसा व्यव्हार झलक को अंतरस हिला गया ‘क्या हमारे रिश्ते में कोई बातचीत का हिस्सा नही है !!’ सोचती हुई झलक का मन भर आया तो कुछ दर्द की बुँदे उसकी गालों पर से लुढ़क गई पर इन सबसे अनजान रहा शौर्य और यही बात झलक को और बुरी लगी जिससे वह भी उसकी ओर से पीठ मोड़े लेट जाती है| कुछ पल यूँही लेटे लेटे जब उसे नींद नही आई तो दिनभर की सुस्ती और नींद का ख्याल आते उसे आभास था कि अब उसे नींद भी नही आने वाली जिससे वह ऊबकर उठ जाती है| कुछ पल बेचैनी से कमरे में टहलते उसे वहां का माहौल दमघोंटू सा लगने लगा जिससे वह कमरे से बाहर निकल जाती है|  

जॉन का सारा का सारा ध्यान उस वेब साउंड मशीन पर था जिसकी रीडिंग बार बार ऊपर नीचे हो रही थी| जॉन उसकी स्थिरता का इंतज़ार कर रहा था| हार्ट बीट सामान्य से नीचे ऊपर होती तो पल्स लगातार कम हो रही थी| ये देखते जॉन के चेहरे की मांसपेशियों में दवाब आ जाता है| उस समय कमरे में इतना सन्नाटा था कि हलकी सी बीप की ध्वनि भी कमरे में तरंग सी गूंज जाती थी| जॉन की एक नज़र मीटर पर तो दूसरी नजर अनिकेत के चेहरों पर आते भावों पर चली जाती| उसे नही पता था कि अनिकेत अब किस तरह की यात्रा के लिए निकल पड़ा था|

झलक बेमनी सी चलती गलियारे में चली जा रही थी| रात काफी हो चुकी थी इसलिए कोई सेवक नज़र नज़र नही आ रहे थे| बस गलियारे से नीचे झांकते उसे जगह जगह दरबान खड़े नज़र आते| इन सबसे ऊबती झलक गलियारे की मोटी दीवार पर उचककर बैठ जाती है| एकपल जिसके नीचे देखते फिर उसे वही इक्कीस फुट की गहराई नज़र आने लगी जिसके नीचे वह बस गिरने ही वाली थी| वह किसी तरह से संभलती आगे की ओर सरक ही रही थी कि कोई काला साया तेजी से उसके पास से गुजरा और वह बैलेस बिगड़ते पीछे की ओर गिरने ही वाली थी कि कोई हाथ कसकर उसे थामते उसे गलियारे से नीचे उतार लेते है|

झलक हकबकाई उस अनजान मदद को देखती है तो एकबार भी चौंक जाती है|

उसके सामने खड़ा रचित अपने सधे स्वर में कह रहा था – “नीचे उतरने के लिए सीढियाँ भी है |”

उसका रुखा वाक्य जैसे झलक के सूखे मन में पल में आग लगा गया तो वह गुस्से में आँखे फाड़े उसे देखती मन ही मन बुदबुदा उठी – ‘पागल है क्या !! मैं क्या ऊपर से कूदकर नीचे उतरने वाली थी !!’ वह गुस्से में होंठ चबाती रह गई और रचित वहां से जाने लगा|

ये देख अब उससे नही रहा गया तो वह उसके पीछे दौड़ती हुई जोर से बोल पड़ी – “ए सुनो मिस्टर मेनेजर – !”

गुस्से में झलक जैसे ही पुकारती उसे फटकारने वाली थी लेकिन उसके तुरंत पलटकर उसकी ओर देखते वह एकदम से खामोश हो जाती है| और कोई वक़्त होता तो वह दोचार बातें फिर सुना देती लेकिन यही सच था कि उसने दुबारा उसकी जान बचाई थी|

“व वो थैंक्स कहना था |” किसी तरह से शब्दों के भारीपन को उठाती वह एकदम से पटक देती है|

वह बस धीरे से सर हिलाता फिर आगे बढ़ने लगा| पर तबसे बोर हो रही झलक उस पल को जाने नही देना चाहती थी इसलिए फिर उसे रोकने उसकी ओर तेजी से बढ़ जाती है| झलक को अपनी ओर आता देख रचित फिर सख्त नज़रउसकी ओर देखता वही रुक जाता है|

“ये बताओ क्या मेनेजर को रात भर महल में घूमना होता है क्या !!” उस पल झलक के दिमाग में जो पहली बात आती है वह वही पूछ लेती है|

“यहाँ कोई ड्यूटी अवर नही होता है क्या !!” झलक अब चुप होकर जवाब के लिए उसका चेहरा तकती रहती है|

“रात में महल के सारे सीसीटीवी चेक करना मेरी जिम्मेदारी के अन्दर आता है|” उसी सपाट भाव से वह कहता है|

“ओह क्या यहाँ सीसीटीवी कैमरा लगे है – ये तो मैंने देखे ही नहीं |” झलक अब नज़र घुमाकर दीवारों के कोने देखती हुई कहने लगी – “बड़ा काम लेते है महल वाले |”

“जब तक रहूँगा अपनी जिम्मेदारी निभाता रहूँगा |”

धीरे से कहकर वह फिर जाने का उपक्रम करने लगा पर उसकी बात झलक के कानो तक पहुँच चुकी थी जिससे दुबारा वह अगला प्रश्न उसकी ओर उछालती है –

“नौकरी छोड़ने वाले हो – क्या कम पैकेज देते है ये लोग ?”

रचित को झलक की बात अजीब लगी जिससे वह आगे कुछ न कहता न में सर हिलाता फिर जाने लगता है|

“बड़े अजीब इन्सान हो – कोई तरीका आता है कि नहीं – मैं तुमसे बात कर रही हूँ और तुम चले जा रहे हो |”

झलक की खीज पर अब रचित चुपचाप खड़ा हो जाता है|

“मुझे बाग़ तक जाना है तो मैं कैसे जाऊं ?”

“अभी रात है – कल सुबह जाइएगा और कुछ ?”

उसका सख्त स्वर झलक को और भी गुस्सा दिला रहा था जिससे वह उखड़ती हुई बोली – “यहाँ आने जाने के भी कोई नियम है क्या – मुझे तो अभी जाना है तो बस जाना है – पूछ लिया तो एंठने लगे अब मैं खुद ही रास्ता ढूंढ लुंगी |” कहती हुई झलक उसके पास से गुजरती आगे बढ़ने लगी|

ये देख रचित तुरंत बोलता उसके विपरीत जाने को कदम उठा लेता है – “रास्ता इधर से है |”

रचित के कदम धीमे थे तो झलक उसके साथ साथ तेजी से चली जा रही थी| पल में सीढियाँ उतरते वे बाग़ के मुहाने के सामने खड़े थे| सामने बाग देख झलक पल में खुश होती हाथ फैलाकर उस पल की खुली हवा में गहरी गहरी साँस भरने  लगती है|

“चलो कोई तो महल का ऐसा हिस्सा है जहाँ इंसान खुलकर सांस ले सकते है वरना तो हर जगह दम सा घुटता है – थैंक्स सच में मैं अकेली रास्ता नही ढूंढ पाती |”

झलक भरपूर मुस्कान से उसे देखती है पर उसके चेहरे के भाव यूँही सपाट बने रहते है| कुछ देर झलक यूँही इधर उधर टहलती देखती रही कि रचित अभी भी वही खड़ा था| उससे उसे महसूस हुआ कि वह उसे शायद अकेले खो जाने के डर से नही छोड़ रहा होगा| ये सोच झलक अब बहुत देर न करते चुपचाप उसके पीछे पीछे चल देती है| वापस आते वह मुड़कर कुछ कहती उससे पहले ही रचित तेज कदमो से वहां से चला गया| अब अन्दर न जाने का मन होते हुए भी उसे अन्दर जाना पड़ा| अंदर आती वह फिर से अपने स्थान पर लेटकर सोने का उपक्रम करने लगती है|

क्रमशः……

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