Kahanikacarvan

एक राज़ अनसुलझी पहेली – 5

जन्मदिन की ख़ुशी झलक से संभाले नही संभल रही थी और सात बजते ही अनामिका को देखकर तो चरम पर पहुँच गई, वह अपने साथ में भी एक बढ़िया डार्क चॉकलेट केक लाई थी तो आदर्श ने भी उसके लिए उसकी पसंद का स्ट्रोबेरी केक जिसके ऊपर एक छोटी सी दो चोटी वाली लड़की बैठाई थी उसे देख पलक की हँसी रुक ही नही रही थी| जहाँ पलक हँस रही थी वही झलक मुंह चिढ़ाने लगी| फिर अनामिका ने बताया कि वह बस एक घंटे के लिए आई है और ठीक एक घंटे बाद उसे जाना पड़ेगा|

“ये भी भला क्या बात हुई – एक तो तू मेरे जन्मदिन में आई नही और झलक के जन्मदिन पर आई भी तो अब जल्दी भी जाना है |” पलक अनामिका पर थोड़ी खफा भी थी|

“सच्ची हम जरुर रुकते पर ये राजसी होना भी न कितना व्यस्त कर देता है – रात में नौ बजे कही जाना है – अब इतने समय बाद लखनऊ आए है तो रूद्र जी को कई लोगों से मिलना होता है|” अनामिका बेबसी से कहती है|

इससे उनके बीच आती झलक तुरंत बोल उठी – “ओहो चली जाना पर अभी तो एन्जॉय कर |”

“हाँ वो तो करूंगी ही – वैसे पलक झलक तुमदोनो अपना जन्मदिन एक ही दिन मनाती तो मेरा भी एक बार आने से काम हो जाता |”

अनामिका की बात सुन इससे पहले की वे दोनों कुछ कहती आदर्श बोल उठा – “और मेरा भी एक ही केक से काम चल जाता |”

आदर्श की बात सुन झलक तुरत ठुनकती हुई बोली – “तबभी हम आपसे दो अलग अलग केक बनवाते भईया तो ऐसा करे ये इरादा आप छोड़ दे तो अच्छा है|”

झलक की बात पर जहाँ आदर्श झूठ मुठ का मुंह बना लेता है वही सभी समवेत स्वर में हँस पड़ते है|

केक काटकर और खाकर अब तीनो एक साथ बैठी बचा समय एक दूसरें के साथ बिता रही थी|

अनामिका पेरिस की खूबसूरती का बखान करती नही थक रही थी पर उसकी बात सुनते उसे बीच में टोकती हुई पलक पूछती है – “ये बता तुम अपने महल में क्यों नही रहती |”

पलक की बात सुन अनामिका बेचारगी से कहती है – “मुझे क्या पता बस रूद्र जी ने मालदीव के बाद अचानक से पेरिस का प्रोग्राम बना लिया – पहले तो मुझे लगा वे वहां मुझे घुमाने ले जा रहे है लेकिन अब तो लगता है काम के बहाने बनाते वे महल आना ही नही चाहते |”

“क्यों !!!” दोनों एकसाथ पूछ बैठी|

“तुम्हे क्या पता ये जो राजघराने होते है न इनकी हर बात के पीछे कोई राज़ होता है जिसे जान पाना इतना आसान नही होता – पूछने पर कभी रहस्यभरी मुस्कान मिलती है तो कभी गहन खामोशी |”

उसकी बात सुन वे कुछ और कहने ही वाली थी कि हॉर्न की हलकी आहट उन तीनो की तन्द्रा एकसाथ भंग करती है| उसी आवाज के साथ कोई शालीन सी दस्तक दरवाजे पर पडती है जिसे सुन अनामिका झट से खड़ी हो जाती है|

“हमे जाना होगा – रूद्र जी समय के बहुत पाबंध है |”

अनामिका खड़ी होकर अपनी ड्रेस ठीक करने लगती है|

“अब कब मिलोगी ?”

उनके प्रश्न पर अदनी सी मुस्कान छोड़ती “पता नहीं ” कहती हुई बाहर की ओर अपने कदम बढ़ा लेती है|

दोनों बस उसे जाता हुआ देखती रही|

अगले दिन एक अनायास फोन से उनके घर में एक खलबली मच गई जहाँ वैभव फोन पकडे रह गए वही नीतू अवाक् देखती रही|

“क्या सच कह रहे है आप ?” नीतू को अभी भी विश्वास नही आया जो उसने कुछ क्षण पहले सुना|

“हाँ कहा तो यही है कि रानी साहिबा हमसे मिलना चाहती है |”

“पर क्यों !!”

पत्नी की जिज्ञासा पर वैभव पिछली सुनी सब बातों को अपने दिमाग में दुबारा याद करते हुए धीरे धीरे कहते है मानों कोशिश कर रहे हो कि भूल से कुछ कहना छूट न जाए – “यही कहा है कि वे होटल हयात में कोई पार्टी कर रहे है और खास तौर पर पलक झलक और हम दोनों को बुलाया है जहाँ रानी साहिबा हमसे भेंट करेंगी – आखिर क्या कहना चाहती होंगी वे हमसे ?” अपनी बात कहते कहते वे खुद से ही प्रश्न कर उठे|

अबकी नीतू के चेहरे पर कुछ अलग की मुस्कान शिरकत कर गई जिसे अचंभित भाव से वैभव देखने लगे|

“ऐसे क्या देख रहे है अगर मेरी छठी इन्द्रिय सही समझ रही है तो बस बेटियों की विदाई की तैयारी शुरू कीजिए आप |”

“क्या !!!”

“और क्या – वे हमसे कोई रेसिपी जानने तो मिलेंगी नही – देखा नही था जब अनामिका की शादी में वे हमसे कितने ख़ास तरह से मिली थी और कितनी आस भरी नज़र से हमारी बेटियों को देख रही थी – मेरा तो ये सब सोच सोचकर मन गुदगुदा उठा है कि हमारी बेटी भी अनामिका की तरह रानी बनेगी |”

“अरे अरे कुछ ज्यादा जल्दीबाजी में नही हो तुम !!” वे पत्नी को टोकते हुए बोले – “वैसे मुझे तो पता ही नही था कि तुम्हारी पांचो इन्द्रिय के साथ छठी इन्द्रिय भी काम करती है |”

“आपको अपनी किताबो से हट कर कुछ देखने की फुर्सत कब रहती है जो पता चले |”

पत्नी की नाराजगी पर उस पल वैभव के चेहरे पर एक शरारती मुस्कान तैर जाती है|

“चलिए आज ही पता करते है आपके अन्दर क्या है !”

पति की चंचल होती निगाह को टोहका लगाती वे धत कहती रसोई की ओर चल देती है| ये देख वे भी मुस्करा देते है|

ये बात पलक और झलक के कानों के नीचे से भी गुजरी तो इसपर दोनों की अलग अलग प्रतिक्रिया हुई जहाँ झलक पहली बार शरमा उठी वही पलक के अंतर्मन में एक अलग सी बेचैनी उमड़ पड़ी| अगले पल झलक पलक का मन टटोलने लगी|

पलक झलक की बात सुन और उलझ गई, क्या वाकई उसे तय करना है कि उसका जीवनसाथी कौन होगा!!! अनिकेत या नवल !!!

“नही पता !!” झलक चौककर पूछती है|
“दोनों ही बहुत अच्छे है |” आखिर झुंझला कर पलक कह देती है|

“चल कोई बात नहीं – तू दोनों रख ले  – अगर पांचाली पांच से कर सकती है तो तू भी दो से कर लेना शादी…एक लखनऊ वाला दूसरा जैसलमेर वाला…|” कहकर झलक ठहाका मारकर हँस दी|

पलक का तो खड़े खड़े खून सूख गया|

क्रमशः…………………….

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