Kahanikacarvan

एक राज़ अनसुलझी पहेली – 50

झलक को उसके कक्ष तक छोड़कर रचित सारे सीसीटीवी कैमरा चेक करके वापस जाने अपने कमरे की ओर जा रहा था जो महल के होटल वाले हिस्से के एक कोने में क्रमवत बने थे जिसमे उसका और उसके काका सा दिग्विजय जी का कमरा अगला बगल था| वह कुछ कदम आगे बढ़ता और दो पल रूककर एक नज़र पीछे देखता क्योंकि चलते चलते बार बार उसे अपने पीछे किसी के होने का आभास होता पर हर बार अपने पीछे वह किसी को नही पाता इसे अपना भ्रम मान रचित ऊपरी मंजिल तक जाने के लिए अब सीढ़ियों को चढ़ता हुआ अपने कमरे तक पहुँचने ही वाला था जो सीढ़ियों के ऊपरी हिस्से के दाहिनी ओर का पहला कमरा था पर उसकी समझ से परे कोई कदम बराबर उसके पीछे पीछे चल रहे थे|

“रचित तुम आ गए !”

आवाज से उसका ध्यान सीढ़ी के ऊपरी हिस्से पर खड़े दिग्विजय जी की ओर जाता है| रचित अभी आधी सीढ़ी ही चढ़ पाया था|

“जी काका सा |”

“तब से मैं तुम्हें फोन कर रहा था – राणी साहिबा का फोन आया था कि छह नंबर वाला कैमरा काम नही कर रहा |”

“जी काका सा उसे कल ही बदलवाया था और आज फिर खराब हो गया – मैं उसे ही देखने गया था |”

“वो जरुरी कैमरा है – मुख्य गलियारे की इमेज लेता है – रचित कल फिर से तुम खुद उसकी जाँच कर लेना और राणी साहिबा ने होटल के गेस्ट लिस्ट की फ़ाइल मंगवाई है |”

रचित चौंकते हुए पूछता है – “इतनी रात को !!”

“तुम भूल रहे हो रचित वे जहाँ है वहां रात थोड़े ही है|”

“जी |”

“इसी लिए तो मैं तुम्हे फोन कर रहा था |”

अपने काका सा की बात सुन रचित तुरंत अपनी जेबों में मोबाईल ढूंढता हुआ कहता है – “लगता है ऑफिस में ही रह गया – आप मुझे फ़ाइल कहाँ रखी है  बता दीजिए मैं मोबाईल के साथ उसे भी लेता आऊँगा |”

दोनों सीढ़ी पर निश्चित दूरी पर खड़े अभी बात कर ही रहे थे|

“बहुत रात हो गई है रचित – तुम आराम करो – मैं फ़ाइल के साथ साथ तुम्हारा मोबाईल भी लेता आऊँगा –|”

“मैं ले आता हूँ काका सा |”

“फ़ाइल मैंने रखी है तो मुझे जल्दी मिल जाएगी – तुम जाओ – दिनभर तुम आराम नही करते हो इसलिए लगता है अब तुम्हारी शादी जल्दी करनी पड़ेगी ताकि घर जल्दी लौट सको|” हँसते हँसते कहते हुए दिग्विजय जी नीचे की ओर सीढियाँ उतरने लगे थे तो रचित चुपचाप ऊपर की ओर चढ़ने लगा|

अभी वह कमरे तक पहुँचते उसका लॉक खोलकर अन्दर आया ही था कि दरवाजे के पास के चार्जिंग पॉइंट पर अपना मोबाईल लगा देख खुद से कह उठा – ‘ओह मुझे याद ही नही रहा – दोपहर से ये चार्जिंग पर यही लगा रह गया|’

आधी रात को दिग्विजय जी होटल के ऑफिस के केबिन की ओर चल दिए थे पर इससे बेखबर कि अब कोई अज्ञात साया उनके पीछे हो लिया था| वे जल्दी ही केबिन तक पहुँचते टेबल पर रखा टेबल लैम्प जलाकर मेज की दराज से फ़ाइल निकाल रहे थे| फ़ाइल उनके हाथ आई भी नहीं थी कि तेज आवाज के साथ केबिन का दरवाजा बंद हो जाता है| जब तक वे कुछ समझते टेबल लैम्प बंद हो गया| अचानक रौशनी लुप्त होते केबिन में नीम अँधेरा छा गया जिससे वे अपना दूसरा हाथ टेबल लैम्प की ओर बढ़ाते थोड़ा ऊपर की ओर उठते है लेकिन उनका हाथ टेबल लैम्प तक नही पहुँच पाता जिससे वे उठकर अब उस ओर बढे ही थे कि किसी चीज से टकराकर पीठ के बल गिर जाते है| गिरते हुए उन्हें ऐसा लगता है जैसे किसी हाथ ने उनका पैर कसकर जकड़ लिया हो वे घबराकर अपना पैर छुड़ाने की कोशिश करते सहायता के लिए आवाज लगाने लगते है| कोई हाथ अभी भी उनका पैर जकड़े था जिससे वे जमी में पड़े पड़े अपने शरीर को भरसक हिलाने डुलाने की कोशिश करते उस पकड़ से छूटने की कोशिश कर रहे थे पर पकड़ इतनी मजबूत थी कि वे खुद को उस स्थान से बिलकुल नही हिला पाए| उस पल घबराहट और डर से उनकी सांस फूलने लगी| वे पल में पसीने पसीने हो गए| उनकी धड़कने धौकनी की तरह चलती लग रही थी मानों सीना फाड़कर बाहर ही निकल आएंगी| वे गहरी गहरी सांस लेते खुद को बचाने की भरसक कोशिश कर रहे थे कि तभी कमरे में एक तेज आवाज के साथ उजाला फ़ैल गया पर उनकी हालत इतनी बुरी थी कि उनकी बंद होती आँखों ने बस हलके से परिदृश्य में रचित को अपने सामने देखा जो अपनी घबराई आवाज में कह रहा था – “क्या हुआ काका सा – आपको क्या हुआ ?”

रचित का कहा आखिरी शब्द उनकी तन्द्रा में गूंजा और फिर उन्होंने आंखे मूंद ली|

जॉन की आँखों के सामने अनिकेत की देह शांत पड़ी थी, अब न मीटर में कोई रीडिंग की कोई हलचल थी और न अनिकेत के हाव भाव में| ऐसा मंज़र उसकी आँखों के सामने आएगा ये जॉन ने सोचा भी नही था| वह घबराया अनिकेत का अचेत शरीर देखता हुआ मशीनों को बार बार हिलाता पर अनिकेत के शरीर में कुछ भी हलचल नही होती| उसकी ऐसी हालत देख जॉन की हिम्मत टूटती जा रही थी| अपने होंठ दांतों के बीच दबाए उलझन में वह इधर उधर देख रहा था कि तभी उसे जैसे कुछ याद आता है और वह तुरंत भागकर जाता है और अगले ही पल भागता हुआ आता है तो उसके हाथो के बीच कुछ था जिसे जल्दी जल्दी किसी मशीन से जोड़कर अनिकेत के सर के दोनों ओर लगाता मन ही मन बुदबुदाता है – ‘दोस्त बस यही आखिरी उपाय है कि मैं तुम्हें शॉक वेब थैरेपी दूँ – पता नही इसे तुम्हारा शरीर कितना झेल पाएगा पर इसके अलावा अब कोई चारा नही बचा मेरे पास – |’ मन ही मन अपने इशु को याद करता जॉन इलेक्ट्रोडस को उसके सर पर लगाता निश्चित मात्रा में करंट देता जोर से बोलता है – “लौट आओ अनिकेत – वापस आ जाओ मेरे दोस्त – अपना काम अधुरा छोड़कर मत जाओ|” कहता हुआ वह एक बार करंट दौड़ा कर उसके शरीर में हलचल न होते देख दो पल निराशा से उसकी निस्तेज देह को देखता अबकी करंट का वाल्ट थोड़ा और बढाकर फिर से उसके शरीर में करंट छोड़ता है कि तभी जैसे कोई चमत्कार हुआ और झटके से अनिकेत का शरीर कुछ ऊपर को उछलकर फिर बिस्तर पर गिर पड़ता है| जॉन घबराकर अब मीटर रीडिंग की ओर देखता हुआ भावुक हो जाता है| उस कमरे में मशीन की बीप बीप की आवाज फिर से गूंजने लगती है| ह्रदय की गति दिखाती मशीन अब ऊपर नीचे होकर चलने लगी थी जिससे उसका बीपी भी अब सामान्य होने लगा था| जॉन शॉक मशीन हटाकर अनिकेत की हथेली मलने लगा और यही पल था जब अनिकेत अपनी ऑंखें खोल देता है|

“अनिकेत….|” जॉन एकदम से उसके शरीर को पकड़े अपनी ख़ुशी प्रकट करता है|

पर इसके विपरीत अनिकेत शून्य में देखता रहा मानों देह तो लौट आई पर आत्मा कहीं खो गई हो| इस रात की सुबह में क्या होगा…जिसमे एक साथ दो दो जिंदगियां दाँव में लग गई….

क्रमशः…..

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