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एक राज़ अनसुलझी पहेली – 52

अनिकेत जैसे ही घर वापस आता है अचानक से वैभव जी को अपने घर से निकलते देख चौंक जाता है फिर उनके पास आता उन्हें झुककर प्रणाम करता ही है कि वैभव आगे बढ़कर उसे गले लगा लेते है| अनिकेत अचानक हुए इस व्यवहार पर हैरान रह जाता है| वे अब उसके दोनों बाजु पकड़े हुए कह रहे थे –

“पंडित जी ने बताया तुम बाहर गए हो पर निकलते तुमसे मुलाकात हो जाएगी सोचा नही था – पता नही क्यों पर तुमसे मिलकर बहुत अच्छा लगता है – कहा था न अपने बड़े भाई की छवि तुममे पाता हूँ शायद इसलिए |”

उनकी बात पर अनिकेत हलके से मुस्करा देता है| वे भी प्रतिक्रिया स्वरुप मुस्कराकर चले जाते है|

घर में आते ही वह देखता है कि उसके पिता मंदिर स्थान पर बैठे दीया बाती की तैयारी कर रहे थे| वे बिना मुड़े ही कहते है – “सही समय आए बेटा – चलो स्नान करके आ जाओ|”

“पिता जी – वैभव जी किसलिए आए थे यहाँ ?”

अनिकेत प्रश्नात्मक मुद्रा में देखता है कि अब उसके पिता उसकी ओर मुड़ते हुए कह रहे थे|

“बड़े परेशान है – मंदिर गए थे जब नहीं मिला तो यहाँ मुझसे मिलने चले आए|”

अनिकेत क्यों नही पूछता क्योंकि उसे अहसास था उनकी परेशानी का इसलिए उसके मौन पर उसके पिता गहरा श्वांस छोड़ते हुए आगे कहने लगे – “कभी कभी मनुष्य को समय ऐसे हालातों पर लाकर खड़ा कर देता है जब अपने किए कर्म पर वह खुद ही प्रश्न उठाने लगता है बस वैसी ही दुविधा है उन जजमान की – बस यही ढांढस देते भरोसा दिया कि ईश्वर पर विश्वास बनाए रखे वे अच्छे लोगो के साथ कभी बुरा नहीं करते – चलो जल्दी से आ जाओ फिर मुझे मंदिर भी जाना है –|” कहते हुए वे पुनः प्रतिमा की ओर हाथ जोड़ लेते है| अनिकेत उस पल कुछ कहना चाहता था पर समय ने उससे वह मौका भी छीन लिया इससे वह चुपचाप वहां से चला गया|

रानी साहिबा हॉस्पिटल के नजदीक के होटल में ठहरी थी, नवल भी उसी होटल में ठहरा था और अभी नवल को फोन करके वे अपने पास बुलाने की चेष्टा करती है पर उन्हें पता चलता है कि वह हॉस्पिटल में राजा साहब के पास गया हुआ है जिससे वे भी वही के लिए चल देती है|

अनामिका अपने हाथ में कुछ लिए एक नज़र तैयार होते रूद्र की ओर डालती है तो दूसरी नजर अपने हाथ में पकड़े उस सामान पर| रूद्र तैयार होते होते भी कनखनी से अनामिका को देख लेते| अनामिका अभी भी अपने स्थान पर उलझी हुई खड़ी थी|

“अनु – आप क्यों परेशान हो रही है – कल ही तो निगेटिव आया था |” अब वह अनामिका की ओर बढ़ता हुआ उसके दोनों हाथों को अपने हाथ में लेता हुआ कहता है – “इस खुशखबरी का आपकी तरह हमे भी बेसब्री से इंतज़ार है पर आप इसके लिए परेशान मत रहिए |”

रूद्र की बात पर अनामिका की ऑंखें जैसे नम हो आई वह फिर से अपने हाथ में पकड़ी प्रेगंसी टेस्ट की स्लाइड देखती हुई रूद्र की ओर देखती है|

“ठीक है आपका मन है तो आप आज भी टेस्ट कर लीजिए पर यूँ परेशान मत रहिए हमे बिलकुल अच्छा नही लगता |” आँखों से भरोसा देता रूद्र मुस्कराता है तो हलकी मुस्कान अनामिका के चेहरे पर भी आ जाती है|

अनामिका के जाते रूद्र फिर से आदमकद शीशे के सामने आता अपना कॉलर ठीक कर रहा था| अगले ही पल वह तैयार होकर शीशे के सामने से हटने ही वाला था कि कोई जकड़न उसे अपने पीछे से महसूस हुई तो रूद्र के चेहरे पर भी मुस्कान आ गई|

“क्या हुआ आपको – हमे जरुरी जाना है अभी इसलिए अभी प्रेम का वक़्त नही है |” रूद्र हलके से अनामिका की बाँहों को खोलता उसे अपने सामने लाता हुआ कहता है|

अनामिका ठीक उसके सामने खड़ी मुस्करा रही थी जिससे रूद्र उसके हाव भाव समझ ही रहा था कि वह लजाती हुई कहने लगी – “रूद्र जी – पोजिटिव आया है|”

“क्या ….!!!” एकदम से अवाक् होता रूद्र उसके बाजु कसकर अपने हाथो में लेता हुआ बोला – “क्या सच में !!”

अबकी अनामिका निशब्द बस हाँ में सर हिलाती आंखे नीची किए मुस्करा देती है|

उस पल जैसे उनके पास शब्दों की बेहद कमी सी हो गई और अपनी भावनाओ में अनियंत्रित होते वे आपस में लिपट जाते है| रूद्र के सीने से लगी अनामिका अभी भी मुस्करा रही थी तो रूद्र हौले हौले से उसके बालों पर हाथ फेरते कहने लगा – “आपने तो पल में हमे दुनिया तमाम की ख़ुशी दे दी |” वे दो धड़कने मानों एक ही रिदम में चल रही थी|

“इतनी बड़ी ख़ुशी देने के लिए अब आपको कुछ तो इनाम देना पड़ेगा – बताईऐ कि क्या चाहिए आपको – आज आप जो मांग लेगी वो आपके लिए हम ले आएँगे|” रूद्र अनामिका का चेहरा अपनी हथेली में भरता हुआ कहता है|

“हमे तो बस आप चाहिए – क्या आज का पूरा दिन आप हमारे संग बिता सकते है !!” अपनी झिलमिल आँखों से वह रूद्र की आँखों में झांकती हुई पूछती है|

“जैसा आप कहे |” कहता हुआ रूद्र अनामिका को अपनी बाँहों में और भरता हुआ उसका माथा चूम लेता है|

पलक के कक्ष तक आती झलक बाहर किसी सेविका को नही पाती तो सहज ही अन्दर आ जाती है| अंदर कमरे में दिन होते हुए भी अजीब सा अँधेरा बसा था जिसमे कमरे का हर एक सामान जैसे कोई साए सा नज़र आ रहा था| पलक को पुकारती झलक अन्दर आती बैठक तक आती है तो अचानक जिसे सामने देखती है तो उस पल वह अवाक् रह जाती है|

“पापा.. माँ !!” हैरान दो पल वह अपने सामने खड़े अपने माता पिता को देखती रही फिर दौड़कर उनके गले लगती हुई बोल उठी – “विश्वास नही आता आप !”

उसके बाद जैसे कुछ कह ही नहीं पाई वे उसे थामे वही बैठे रहे| झलक माँ की  गोद में सर रखे जैसे उस अहसास में डूब जाना चाहती थी| पापा भी बगल में बैठे उसका सर हौले हौले सहला रहे थे| अगले ही पल झलक की ऑंखें बंद हो जाती है|

रानी साहिबा जब हॉस्पिटल में राजा साहब के वार्ड तक आती है तो उन्हें नवल नही दिखता बस बेड पर आराम की स्थिति में लेटे हुए राजा साहब दिखते है| उन्हें देखती वे चेहरे पर मुस्कान लिए उनके पास आती उन्हें स्पर्श करती है जिससे उनका ध्यान उनकी तरफ जाता है|

“कैसे है आप ?” वे उनके बगल में खड़ी उसका विगो से बंधा हाथ सहलाती हुई पूछती है|

“बेहतर महसूस कर रहे है पर आप इतनी सुबह क्यों आई – कल पूरी रात तो आप हमारे संग थी और इस वक़्त नवल है यहाँ फिर आपको भी तो आराम की जरुरत है|” वे हलके से गर्दन घुमाते उनके थके चेहरे को देखते हुए कहते है|

“हाँ बस आपको देखने का मन हो आया तो चले आए हम |” वे वही उनके पास बैठती हुई अभी भी उनका हाथ हौले हौले सहलाती हुई कह रही थी – “रूद्र और शौर्य भी आपसे मिलने आना चाह रहे थे तो हमने सोचा नवल और हम चले जाए तो वे दोनों यहाँ आ जाएगे इस तरह से आप भी उन्हें देख पाएँगे |”

“हाँ ठीक है और सोन महल में सब कैसा है – नई बिन्दनीया वहां बेहतर तो महसूस कर रही है न!”

“वही तो हमारे यहाँ होने से वहां कुछ भी व्यवस्थित नही रहा – बिन्दनी बिना परदे के महल में घूमती है – अभी उन्हें महल के सलीके सिखाने का समय था|”

“और बाकी कुछ – सब ठीक है न !!”

वे रानी का चेहरा अभी भी गौर से देख रहे थे जबकि वे उनसे नज़रे बचाती अन्यत्र देखती हुई कहती है –

“हाँ हाँ सब ठीक है |”

अब कुछ पल वे गहरा शवांस छोड़ते अपनी नज़र उनसे हटाते हुए कहते है – “पता नही क्यों पर हमारा मन महल के बारे में सोचते कुछ अजीब सा होने लगता है – उम्मीद है सब कुछ ठीक हो वहां |”

“सब ठीक ही है – अब आप वहां की फ़िक्र छोड़ीए और जब तक नवल आते है तब तक हमसे बातें करिए |” कहती हुई रानी साहिबा अतिरिक्त मुस्कान से उन्हें देख रही थी जबकि राजा साहब के चेहरे के भाव अब सपाट हो चले थे|

अचानक कुछ समय बाद उठते ही झलक देखती है तो वह पलक के कक्ष में अकेली लेटी थी| उठते ही जैसे पिछला कुछ उसे याद नही आया पर मन बड़ा हल्का हल्का महसूस कर रहा था इससे मुस्कराती हुई वह उठकर कमरे में नज़र दौड़ाती है| वहां उसके सिवा कोई नही था| अजीब सा मायाजाल उसके दिमाग में बुना था जहाँ न उसे पलक के बारे में कुछ याद आया और न अपने माता पिता के बारे में| वह अपनी ही ख़ुशी में लहकती तुरंत वहां से बाहर निकल गई| वह यूँ अपने मस्त थी जैसे पुरानी झलक लौट आई हो| उसका मन हो आया कि वह बाहर कही जाए तो इसके लिए वह अनामिका को फोन मिलाती है पर जब उसका फोन नही उठता तो अपने आप ही बुदबुदाती कमरे में चली जाती है|

‘कोई जाए चाहे न जाए – मेरा तो मन बाहर जाने का हो रहा है तो मैं जाउंगी ही – अब सोचती हूँ कि कहाँ जाऊ !! ओह हाँ अनु ने उस दिन बताया था वही स्पा जाती हूँ – रिलेक्स करने की इससे बेहतर क्या जगह होगी|’

झलक किसी मनमौजी की तरह तैयार होती झट से ड्राईवर को फोन लगाकर बाहर जाने जाने लगती है| उस पल वह वैसा ही महसूस कर रही थी जैसा वह शादी से पहले करती थी कि जब मन किया तब उठकर चल दी|

रानी साहिबा राजा साहब से बातें करते करते उन्हें बातों के उस छोर तक ले जाती है जब वे 54 साल पहले की बात करते करते रुक गए थे क्योंकि आज के हालात में वह उस राज़ को जानना चाहती थी कि उस वक़्त क्या हुआ था !!

“आप क्यों जानना चाहती है – हम तो वो सब कुछ याद भी नही करना चाहते |”

“अब आपने बात छेड़ी तो हमारा मन भी वही अटका है – आखिर क्या हुआ था दरवाजा खुलने पर ?” वे अपने शब्दों पर जोर देती हुई कहती है|

राजा साहब बोलने से पहले एक गहरा श्वांस खींचते है जिससे उस पल के निशब्द कमरे में उनकी साँसों की आवाज साफ़ साफ़ सुनाई देती है|

कई घंटे बिताने के बाद शाम होते झलक जब स्पा से बाहर आई तो ड्राईवर को फोन मिलाते अचानक उसकी दृष्टि में रचित का नंबर घूम जाता है जिससे उसके अन्दर की शैतानी जैसे जाग जाती है और अपनी शरारती मुस्कान होंठो के बीच दबाती वह झट से उसे फोन लगाती हुई कहती है –

“हेलो रचित जी –  वो ऐसा है कि हम स्पा के बाहर खड़े है और ड्राईवर को फोन करने पर भी वह नही आया – क्या आप मेरी कोई मदद कर सकते है ?”

उस पार से फोन कान में लगाए रचित अभी काका सा की सारी रात और दिन देख रेख के बाद उनके बहुत कहने पर बस अपने कमरे में जाने के लिए निकलने ही वाला था कि झलक का फोन आते रुक गया| इस तरह झलक का उसे फोन करना अजीब लग रहा था पर उसके कॉल को वह अनदेखा भी नही कर सकता था|

“आप कहाँ है बता दीजिए – मैं ड्राईवर को भेजता हूँ |” वह उसी सख्त लहजे में  उसे कहता है|

“अब मेरे लिए तो ये नई जगह है इसलिए नाम भी नही पता – क्या करूँ समझ नही आ रहा – क्या करूँ टैक्सी कर लूँ इस अजबनी जगह पर !” जबरन अपने शब्दों को उदास करती हूँ वह बोली|

“आप कुछ लोकेशन भेजिए |”

“ओके होल्ड में रहिए मैं भेजती हूँ|” कहती हुई झलक अपनी हँसी होंठो पर दबाए दबाए कुछ बटन इधर उधर दबाने के एक क्षण बाद ही फिर उदासी से कह उठी – “क्या करूँ आज ये लोकेशन भी सेंड नही हो रही – छोड़ीए – मैं कैसे भी आ जाउंगी |”

रचित उस पल थोड़ा परेशान हो उठा|

“नही आप अकेली न आए – मैं आता हूँ –|”

“पर आप कैसे आएँगे ?”

“आप अगर कुछ वहां के आस पास की तस्वीर भेज दे तो मैं वो जगह कुछ समझ सकूँ |”

“ओके |” कहती हुई झलक वहां के आस पास की तस्वीर क्लिक करके तुरंत सेंड करती हुई कहती है – “चलो पिक्स तो चली गई |”

झलक की बात सुनते तुरंत रचित कहता है – “मैं समझ गया – ये जगह कुछ बीस किलोमीटर दूर होगी मुझसे फिर भी मैं तुरंत पहुँचने की कोशिश करता हूँ – आप कही मत जाइएगा |”

कहता हुआ रचित तुरंत मोबाईल अपनी कार के डैशबोर्ड के हवाले करता जितना जल्दी वहां से निकल सकता वह तुरंत वहां से निकल लेता है| उस वक़्त कोई उसका चेहरा देखता तो समझता कि कितनी थकान उसके चेहरे पर पसरी थी फिर भी अपनी भरसक कोशिश में वह कार तेज चलाता निश्चित स्थान के लिए निकल चला था| जैसल के विस्तृत क्षेत्र में यूँ तो बीस किलोमीटर कोई ख़ास मायने नही रखता पर सुनसान चौड़ी सड़क पर कार की रफ़्तार कभी कभी बहुत तेज हो जाती तो इससे सड़क के खतरे भी और बढ़ जाते लेकिन बिना इस बात की परवाह किए वह झलक को लेने चल दिया था इधर रचित का आना सुनकर झलक तुरंत ड्राईवर को फोन कर बुला कर वहां से चली जाती है|

झलक के वहां से जाते ज्योंही रचित वहां पहुँचता है उसे वहां खड़ा न पाकर परेशान हो जाता है| इधर उधर देखने के बाद पास के स्पा तक जाकर वह उसके बारे में पूछ आता है पर वह नही मिलती| इसके बाद वह पिछले आए नंबर कर कॉल करता है पर झलक जो जानकर ये शरारत कर रही थी अपना फोन स्विच ऑफ़ करके महल के लिए निकल चली थी| रचित वही खड़ा बहुत देर तक उसे कॉल लगाता रहा| फिर जब उसे कुछ समझ नही आया तो एक मन ने कहा कि हो सकता है बेटरी खत्म हो गई हो जिससे झलक का फोन बंद आ रहा हो और वे महल चली गई हो| पहले महल जाकर देखते है फिर आगे सोचेगा कि क्या करना है| मन में तय करता रचित महल के लिए निकलता है| उसी तेज रफ़्तार से वह महल पहुँचते बदहवासी में झलक के कक्ष तक आता है| उसके कक्ष तक आते अब उसकी हिम्मत नही होती कि वह खटखटा कर उसे पूछ सके और संकोच वश वह किसी और से कुछ पूछ न सका तो अचानक उसके मष्तिष्क में सीसीटीवी का ख्याल आता है तो वह जल्दी से अपने मोबाईल में सुनिश्चित एप को खोलकर झलक के कक्ष के बाहर की फुटेज खंगालने लगता है फिर जो उसकी आंखे देखती है उसे देख उसका चेहरा तमतमा जाता है| आँखे जलजले की भांति दहक उठती है| अपने कमरे तक आती मुस्कराती हुई कमरे में जा रही थी और मोबाईल उसके हाथो के बीच चमक रहा था| तभी अचानक दरवाजा खुलता है और उस पार से झलक निकलती रचित को बाहर खड़ा देख पहले तो अचकचा जाती है फिर संभलती हुई कहती है – “ओह सॉरी – वो क्या है ड्राईवर आ गया और फिर मैं आपको फोन करना भूल गई |” झलक उसके सामने खड़ी मुस्करा रही थी जिससे रचित तुरंत उससे नज़रे फेरता वहां से चला जाता है|

उसे इस तरह जाता देख झलक बिना आवाज के मुस्कराती हुई बुदबुदाई –

‘बड़े आए मेनेजर साहब – मजा चखाया न कैसा मैंने |’ ये सोचे बिना कि वह सीसीटीवी फुटेज में अभी भी उसे अपनी सख्त नज़रो से देखता हुआ जा रहा था|

क्रमशः……

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